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संत पापाः परिवार ईश्वरीय प्रेम की निशानी बने

संत पापा फ्रांसिस ने शनिवार 25 जून को 10वीं विश्व परिवारों के मिलन समारोह में परिवारों को ईश्वरीय शांति, एकता और प्रेम की निशानी बनने का संदेश दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 27 जून 2022 (रेई) संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में 10वीं विश्व परिवारों के मिलन समारोह यूखारिस्तीय बलिदान से समपन्न हुआ। कार्डिनल केविन फैरेल की अगुवाई में अर्पित मिस्सा बलिदान के दौरान संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि यह परिवार है जहाँ हम सर्वप्रथम प्रेम करना सीखते हैं।  

उन्होंने कहा कि अब कृतज्ञता अर्पित करने का समय है। आज हम हमारे परिवारों में पवित्र आत्मा से मिले सभी वरदानों को कृतज्ञपूर्ण हृदय से लाते और अर्पित करते हैं। विभिन्न रुपों ने इस मिलन समारोह में सहभागी होते हुए हमने एक तरह से बृहृद “तारामंडल” का निर्माण किया है। संत पापा ने कि मैं बृहृद समृद्ध अनुभवों, योजनाओं और सपनों के साथ-साथ अनिश्चितता और चिंताओं की याद भी करता हूँ जिन्हें आप ने एक दूसरे के साथ साझा किया है। हम उन्हें ईश्वर को अर्पित करते हुए अपने लिए शक्ति और प्रेम की याचना करते हैं। आप माता-पिता,बच्चों, दादा-दादियों और चाचा-चाचियों के रुप में यहां हैं। आप सभी एक अलग पारिवारिक अनुभव को लाते हैं लेकिन आप की आशा और प्रार्थना एक है कि ईश्वर आप के परिवार को और विश्व के सभी परिवारों को अपनी आशीष से भर दें।

स्वतंत्रता एक चाह

आज के दूसरे पाठ मे संत पौलुस स्वतंत्रता के बारे में कहते हैं। यह हमारे लिए एक अति आदर्श और प्यारा लक्ष्य है। हर कोई सभी रुपों में स्वतंत्र होने की चाह रखता है। यद्यपि बहुत से हैं जो एक बड़ी स्वतंत्रता जो आंतरिक स्वतंत्रता है कि कमी का एहसास करते हैं। प्रेरित हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि ख्रीस्तीय स्वतंत्रता ऊपर से दिया गया एक उपहार है,“ख्रीस्त ने हमें स्वतंत्र किया है” (गला.5.1)। यह हमें दिया गया है। हम आंतरिक और बाह्य रूप विभिन्न तरह के बंधनों से जकड़े हुए हैं विशेष रुप से स्वार्थ की भावना से, जिसके फलस्वरूप हम अपने को सभी चीजें के केन्द्र-विन्दु में बनाये रखना चाहते और केवल अपनी इच्छाओं तक सीमित हो जाते हैं। इस गुलामी से ईश्वर ने हमें स्वतंत्र किया है। संत पौलुस हमें कहते हैं जिस स्वतंत्रता को ईश्वर ने हमें दिया है वह झूठी और दुनिया की नजर में खोखली नहीं है। हमारी इस स्वतंत्रता हेतु ख्रीस्त ने अपने लोहू की कीमत चुकाई है जो हमारे लिए उनके स्मपूर्ण प्रेम को व्यक्त करता है, अतः “प्रेम में हम एक दूसरे के सेवक बनते हैं।”

स्वतंत्रता में सेवा का सार 

दंपतियों के रुप में, आप जो ईश्वरीय कृपा में परिवारों का निर्माण करते हैं, एक साहसिक निर्णय है, जहाँ आप अपनी स्वतंत्रता को अपने लिए नहीं लेकिन उस व्यक्ति को प्रेम करने के लिए उपयोग करते हैं जिसे ईश्वर ने आपके लिए दिया है। इस तरह अकेले जीवनयापन करने के बदले आप “एक दूसरे के लिए सेवक बनते हैं” जहाँ हम पारिवारिक मिलन, सेवा और अपने आप से परे जाते हुए दूसरों के संग खड़ा होते हुए स्वागत करने का एक स्थल बनते है। परिवार वह पहला स्थल है जहाँ हम प्रेम करना सीखते हैं।

संत पापा ने कहा कि परिवार की सुन्दरता का बखान करते हुए हमें इसे पहले से अधिक सुरक्षित रखने हेतु प्रतिबद्ध होते हैं। आइए हम अपने परिवारों को विभिन्न प्रकार के जहर, स्वार्थ, व्यक्तिगतवाद, उदासीनता से दूषित होने न दें, उसे टूटने से बचाते हुए उसकी डीएनए सेवा और स्वीकराने के गुण को सुरक्षित रखें।

माता-पिता की चिंता

आज के पहले पाठ में नबी एलियस और एलिशा के बीच संबंध हमें पीढ़ियों के संबंध को प्रस्तुत करता है, जहाँ हम माता-पिता के द्वारा बच्चों के लिए साक्ष्य देने की बातों को पाते हैं। वर्तमान समय में यह सहज नहीं है यह सदैव हमारे लिए चिंता की बात होती है। माता-पिता इस बात की चिंता करते हैं कि उनके बच्चे वर्तमान समय की जटिलता, समाज की दुविधा भरी स्थिति जहाँ सारी चीजें अस्त-व्यस्त लगती है, अपनी राह को खोजने के बदले खो जायेंगे। ये बातें उन्हें चिंतित करती और इसीलिए वे अपने बच्चों को अधिक सुरक्षा में रखते हैं। ऐसी स्थिति के कारण कभी-कभी हम दुनिया में नयी चीजों की पहल में असफल हो जाते हैं।

एलियस और एलिशा के बीच संबंध पर चिंतन करते हुए हम इस बात को पाते हैं कि मुसीबतों और आने वाले भय के मध्य, ईश्वर एलियस को एलिशा का अभिषेक करने की आज्ञा देते हैं। ईश्वर, अपनी प्रेरितिक जिम्मेदारी एलिशा को सौंपने के द्वारा एलियस को इस बात की अनुभूति प्रदान करते हैं कि दुनिया का अंत उसके द्वारा नहीं होता है। यह एलिशा के कंधों में चादर ढ़कने के द्वारा व्यक्त होता है जहाँ चेला गुरू का स्थान लेता है जिससे वह इस्रराएल के लिए प्रेरिताई कार्य कर सके। ईश्वर इस भांति युवा एलिशा पर अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं।

युवाओं के लिए ईश्वर की चाह

संत पापा ने कहा कि माता-पिता के लिए ईश्वर के कार्यों पर चिंतन करना कितना महत्वपूर्ण है। ईश्वर युवाओं को प्रेम करते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे उन्हें जोखिमों, चुनौतियों और सभी मुसीबतों से बचाये रखने की चाह रखते हैं। ईश्वर चिंतित और उन्हें अत्यधिक सुरक्षा में नहीं रखते हैं इसके विपरीत वे उन्हें बुलाते और उन पर विश्वास करते हुए यह चाहते हैं कि वे अपनी जीवन और प्रेरिताई की ऊंचाई तक जायें। इस संदर्भ में साम्मुएल, युवा दाऊद, या नबी येरेमियाह और उनसे भी बढ़कर कुंवारी मरिया के बारे में हम सोच सकते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर का वचन हमें मार्ग दिखलाता है जहाँ हम अपने बच्चों को छोटी मुसीबतों और दुःखों से बचाये रखने को नहीं कहे जाते, बल्कि जीवन हेतु जुनूनी होने हेतु शिक्षा देने, उनकी बुलाहट को पहचानने, और ईश्वर के प्रेरितिक कार्यों का आलिंगन करने हेतु प्रेरित किये जाते हैं जिसे ईश्वर ने उनके लिए सोच रखा है। यह वही खोज थी जहाँ हम एलिशा को साहसी और सुदृढ़ पाते हैं जो उसे प्रौढ़ बनाता है। वह अपने माता-पिता को छोड़ता, अपने में इस बात का अनुभव करता कि यह उसके ऊपर निर्भर करता है कि यह ईश्वर की बुलाहट को सुनने और अपने गुरू के कार्य को आगे बढ़ाने का समय है। इसे वह अपने जीवन के अंतिम क्षण तक पूरा करता है। संत पापा ने माता-पिता को उनके उत्तरदायित्व की याद दिलाते हुए कहा कि यदि आप अपनी संतान, उनकी बुलाहट को खोजने और उसे स्वीकारने में मदद करते हैं तो आप उन्हें अपने प्रेरिताई में सुदृढ़ पायेंगे, वे अपने जीवन में शक्ति को प्राप्त करेंगे जो उन्हें अपने जीवन की मुसीबतों का सामना करने में मदद करेगा।

अपनी बुलाहट का आलिंगन करें

उन्होंने प्रशिक्षकों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि युवाओं को अपनी बुलाहट का अनुसरण हेतु मदद करने का सबसे बेहतर तरीका हमें अपनी बुलाहट को निष्ठापूर्ण ढ़ंग से आलिंगन करना है। येसु ने अपने शिष्यों को इसी बात का साक्ष्य दिया जिसे आज का सुसमाचार हमारे लिए चिन्ह स्वरुप प्रस्तुत करता है “वे येरुसालेम की ओर बढ़ते हैं” (लूका.9.51) यह जानते हुए भी कि उनपर दोषारोपण करते हुए उन्हें मौत की सजा सुनाई जायेगी। येरुसालेम की राह में, उन्हें समारियों से तिरस्कृत होना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया क्योंकि यह उनकी बुलाहट का हिस्सा था। उन्हें तो शुरू से ही नाजरेत में अपने लोगों से तिरस्कार का शिकार होना पड़ा। उन्होंने सारी बातों को स्वीकार किया क्योंकि वे पापों के भार को अपने ऊपर लेने आये। उसी भांति, अपने वैवाहिक जीवन को एक प्रेरितिक साक्ष्य स्वरुप प्रस्तुत करने से बड़ा प्रोत्साहित करने वाली और कोई दूसरी बात नहीं हो सकती है जहाँ हम जीवन की कठिनाइयों, दुःखों और परिक्षाओं के बावजूद उन्हें निष्ठा और धैर्य का प्रमाण देते हैं। येसु ने समारिया में जिन बातों का सामना किया वह हर परिवार में होता है। हम अपने जीवन में अवरोध, प्रतिकार, परित्याग और नसमझी का शिकार होते जो हृदय से उत्पन्न होता है, लेकिन हम ख्रीस्त की कृपा में इन सारी बातों को दूसरों के प्रति समझ और कृरूणामय प्रेम में परिणत होता पाते हैं।

बुलाहट की कसौटी

इसके तुरंत बात हम बुलाहट की तीन स्थिति के बारे में सुनते जो येसु की बुलाहट के बारे में कहता है। पहली स्थिति में येसु का अनुसरण करना, मतलब येसु के संग कभी खत्म नहीं होने वाली यात्रा में निकलना है जो हमारे जीवन की घटनाओं में होता है। यह वैवाहिक दंपतियों के संग कितना सटीक बैठता है। वैवाहिक जीवन और परिवार को स्वीकारने द्वारा आपने अपने “नीड़” का परित्याग किया और एक यात्रा में निकले हैं, यह नहीं जानते हुए कि इसका अनजाम क्या होगा, और जीवन में कितनी परिस्थितियाँ, अनसोची आश्चर्य घटनाओं का सामना करेंगे। इसका अर्थ ईश्वर के संग यात्रा करना है। यह अपने में सजीव, अवर्णनीय और अपने में एक शानदार खोज की तीर्थ है। हम इस बात की याद करें कि हर शिष्य ईश्वर की इच्छा पूरी करने में अपने लिए एक शरण प्राप्त करता है चाहे वह हमें कहीं भी ले जाये।

“मुर्द दफनाने जाने” का तत्पर्य चौथी आज्ञा पालन से नहीं है जो अपने में तर्कसंगत है। बल्कि यह पहली आज्ञा, ईश्वर को सारी चीजों से बढ़कर प्रेम करने से है। तीसरे शिष्य के संग भी यही बात लागू होती है, जो अन्य किसी दूसरी बातों की चिंता किये बिना एकचित और एक हृदय में ईश्वर का अनुसार करने हेतु बुलाया जाता है।

जीवन “जीवाश्म” न बने

संत पापा ने कहा कि हम परिवारों को दूसरे विकल्पों के बारे में, “पीछे मुढ़कर” नहीं देखने को कहा जाता है, जहाँ हम अतीत की स्वतंत्रता, पुराने जीवन, उसकी झूठी बातों में फंसे न रहें। ईश्वर के नये बुलावे हेतु खुला नहीं होने के कारण हमारा जीवन एक “जीवाश्म” बन जाता है। जब येसु हमें बुलाते तो वे हमें सदैव आगे की ओर देखने को कहते हैं और वे हमें सदैव राह में आगे ले चलते हैं। वे हमें प्रेम और सेवा में आगे ले चलते हैं। वे जो उनका अनुसरण करते, कभी हताश नहीं होंगे।

आज का पाठ हमारे लिए बुलाहट के बारे में कहते हैं जो “परिवार प्रेमः एक बुलाहट और पवित्रता का एक मार्ग” से मेल खाता है। संत पापा ने कहा कि येसु के वचनों से सुदृढ़ आप पारिवारिक प्रेम के मार्ग में नवीनता से आगे बढ़ते जायें और बुलावे की इस खुशी को परिवार के सदस्यों संग साझा करें। आप का प्रेम सदैव खुला, प्रत्यक्ष हो जो कमजोरों और घायलों का स्पर्श करे, जो शारीरिक और आत्मिक रुप में दुर्बल हैं।

कलीसिया आप के साथ है, वास्तव में, कलीसिया आप में है। क्योंकि इसका जन्म एक परिवार से, नाजरेत के पवित्र परिवार से हुआ, और यह खास कर परिवारों से बनी है। ईश्वर आप सभों को सदैव एकता, शांति और खुशी में बने रहने हेतु मदद करें, और आप यह दिखा सकें कि ईश्वर प्रेम और एकता के स्रोत हैं। 

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10वें विश्व परिवार मिलन समारोह का समापन
27 June 2022, 10:39