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संत पापाः कलीसिया की अच्छी लड़ाई जारी रहे

संत पापा फ्रांसिस ने रोम के संरक्षक संतों, पेत्रुस और पौलुस का त्योहार मनाते हुए कलीसिया को उनके कार्यों की याद दिलाई और अच्छी लड़ाई जारी रखने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 29 जून 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने रोम के संऱक्षक संतों पेत्रुस और पौलुस के महापर्व के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघऱ में यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित किया। 

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि दो महान प्रेरितों पेत्रुस और पौलुस का साक्ष्य आज की कलीसियाई धर्मविधि में पुनः सजीव बन कर आता है। राजा हेरोद के द्वारा बंदीगृह में कैद पेत्रुस को ईश्वर का एक दूत कहता है, “जल्दी उठये” (प्रेरि.12.7) वहीं, पौलुस अपने पूरे जीवन को मुढ़कर देखते और कहते हैं,“मैंने अच्छी लड़ाई लड़ी है”(2 तिम.4.7) हम इन दो वाक्यों पर चिंतन करें। हम अपने से पूछें कि ये दो वाक्याएँ आज ख्रीस्तीय समुदाय से क्या कहती हैं जो सिनोडलिटी की प्रक्रिया में संलग्न है।

जागे और तैयार हों

प्रेरित चरित से, पहला वाक्य हमें उस रात के बारे में जिक्र करता है जहाँ पेत्रुस बंदीगृह में जंजीरों से मुक्त हुए थे। स्वर्गदूत ने उनकी बगल को थपथपाते हुए कहा,“जल्दी उठिए” (प्रेति.12.7)। स्वर्गदूत पेत्रुस को जगाते और तैयार होने को कहते हैं। यह दृश्य हमें पास्का की याद दिलाती है क्योंकि हम इसमें पुनरूत्थान की दो क्रियाओं को सम्माहित पाते हैं, जागना और तैयार होना। वास्तव में, स्वर्गदूत पेत्रुस को नींद से जगाते और तैयार होने को कहते हैं जिससे वे उजाले की ओर जा सकें, वे अपने को ईश्वर के द्वारा संचालित होने देते हैं जो उन्हें सभी बंद दरवाजों से लेकर चलते हैं। यह निशानी कलीसिया के लिए बृहृद मायने रखती है। हमें और ख्रीस्तीय समुदाय को, येसु ख्रीस्त के शिष्यों के रुप में जल्दी उठने का निमंत्रण दिया जाता, हमें पुनरूत्थान के रहस्य में प्रवेश करने और अपने को येसु ख्रीस्त की इच्छानुसार उनके मार्ग में संचालित होने का बुलावा मिलता है।

हमारी बेड़ियां क्या हैंॽ

फिर भी, हम अपने अन्दर बहुत सारे अवरोधों का अनुभव करते हैं जो तैयार होने में हमारे  लिए बाधक बनते हैं। कभी-कभी, कलीसिया के रुप में, हम सुस्तीपन का शिकार हो जाते हैं, उठने और नई क्षितिज की ओर देखने, खुले समुद्र की ओर जाने के बदले, हम बैठे रह कर कुछ निश्चित चीजें जिन्हें हम अपने में धारण करते हैं, चिंतन करने की सोचते हैं। बहुत बार हम पेत्रुस की तरह अपनी आदतों की बेड़ियों, परिवर्तन के भय और अपने दैनिक दिनचर्या से कैद रहते हैं। यह हमें चलता है वाली, सामान्य आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करता है- हम अपने प्रेरितिक कार्य को “सहज रुप में”, और “चल रहा है” की भावना से प्रभावित होता पाते हैं। हमारी प्रेरिताई का उत्साह क्षीण हो जाता और जीवटता तथा रचनात्मक होने के बदले हम सुस्त और प्राणहीन हो जाते हैं। पुरोहित दे लुबाक के शब्दों में-विश्वास “औपचारिकता और आदत का शिकार हो जाती... धर्म अपने में समारोहों और भक्ति, गहनों और अश्लील सांत्वनाओं का रूप हो जाता... ईसाई धर्म जो याजकीय, औपचारिक, प्राणहीन और कठोर हो जाता है” (The Drama of Atheist Humanism).

कलीसिया के लिए आहृवान

सिनोड की प्रक्रिया जिसमें हम संलग्न हैं, हमें कलीसिया बनने हेतु उठने का आहृवान करती है जिससे हम अपने कैदखाने से निकलते हुए दुनिया से मिल सकें। बेड़ियों और दीवारों के बिना कलीसिया जहाँ में हर कोई स्वागत किया जाता और सहचर्य का अनुभव करता है, एक जो सुनती, वार्ता करती और सहभागी होती केवल पवित्र आत्मा के माध्यम अनुप्रेरित होती है। कलीसिया जो अपने में स्वतंत्र और नम्र है, वर्तमान समय की चुनौतियों में “जल्दी उठती” और ढ़ीली-ढ़ाली नहीं होती है। वह कलीसिया अपने को पवित्र चाहरदीवारी तक सीमित नहीं रखती बल्कि उत्साह के साथ सुसमाचार प्रचार करती, हर एक संग मिलती और उन्हें स्वीकार करती है। संत पापा ने इस बात पर जोर दिया कि कलासिया के रुप में हमें सभों का स्वागत करना है, हमें इस बात को हृदय में धारण करने की जरुरत है कि कलीसिया के दरवाजे सभों के लिए खुले हैं, वहां सभों के लिए स्थान है।  

दूसरे पाठ में हम संत पौलुस के वचनों को सुनते हैं, जो अपने जीवन को पीछे मुढ़कर देखते और कहते हैं, “मैंने एक अच्छी लड़ाई लड़ी है” (2 तिम.4.7)। प्रेरित उन असंख्य स्थितियों के बारे में कहते हैं जहाँ उन्हें सतावट और दुःख झेलना पड़ा लेकिन वे वैसी परिस्थिति में भी येसु ख्रीस्त से सुसमाचार का प्रचार करते रहे। आज भी यह अपने में एक बृहृद लड़ाई की ओर इंगित कराता है जो इतिहास में जारी है, क्योंकि बहुत से लोगों येसु ख्रीस्त को स्वीकारने की स्थिति में नहीं हैं, वे अपनी ही इच्छानुसार दूसरी बातों, शिक्षा की ओर झुके रहते हैं, जो उन्हें सहज, आरामदेह लगता है। पौलुस ने अपनी लड़ाई लड़ी है, उन्होंने अपनी दौड़ पूरी की है, वे तिमथी और समुदाय के भाइयों से आग्रह करते हैं कि वे उनके कार्य, प्रवचन और शिक्षा को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ायें। हममें से प्रत्येक जन को अपना प्रेरितिक कार्य पूरा करना है जिसे हमें दिया गया है।

चिंतन के दो सवाल

पौलुस का संबोधन हमारे लिए भी जीवन है यह हमें इस बात की अनुभूति प्रदान करता है कि कलीसिया में हम सभी प्रेरिताई के शिष्य होने और अपनी ओर सहयोग देने हेतु बुलाये गये हैं। संत पापा ने दो सवालों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया, पहला, मैं कलीसिया के लिए क्या कर सकता हूँॽ कलीसिया के बारे में शिकायत करने के बदले मैं कैसे इसके प्रति निष्ठावान रह सकता हूँॽ हम नम्रता और जुनून में अपनी सहभागिता दिखा सकते हैं। जुनून क्योंकि हमें अपने में मूक दर्शक नहीं होना चाहिए, नम्रता क्योंकि समुदाय में अपने को निष्ठापूर्वक देने का अर्थ अपने को केन्द्र-विन्दु में बनाये रखना नहीं है, जहाँ हम अपने को दूसरों से बेहतर समझते और उन्हें अपने निकट नहीं आने देते हैं। सिनोडल कलीसिया का अर्थ है- हर किसी की एक भूमिका है, कोई दूसरे का स्थान नहीं ले सकता या उनके ऊपर हो सकता है। ख्रीस्तियों के में कोई ऊंच-नीच नहीं है, हम सभी एक हैं।

अच्छाई लड़ी जारी रहे

सहभागिता का अर्थ “अच्छी लड़ाई” को जारी रखना भी है जैसे कि पौलुस कहते हैं। क्योंकि सुसमाचार का प्रचार अपने में कभी उदासीन नहीं हो सकता है, यह चीजों को वैसे ही नहीं छोड़ता जैसे कि वे हैं, यह इस दुनिया के सोच-विचार संग समझौता नहीं कर सकता है बल्कि यह उन परिस्थितियों में जहाँ शक्ति का खेल है, बुराई, हिंसा, भ्रष्टचार, अन्याय और अलगाव में ईश्वरीय राज्य की आग लगाता है। जब से येसु मृतकों में से जी उठे हैं तब से यह इतिहास में युद्ध जारी है, “जीवन और मृत्यु के बीच युद्ध, आशा और निराशा, बदतर स्थिति में त्याग और बेहतर हेतु संघर्ष की लड़ाई। एक ऐसी लड़ाई जिसमें घृणा और विनाश की सभी शक्तियों की निश्चित हार तक कोई समझौता नहीं होगा”।  (C.M. MARTINI, Easter Homily, 4 April 1999).

कलीसिया के रुप में हमारे कार्य

इस तरह दूसरा सवाल- हम कलीसिया के रुप में मिलकर एक साथ क्या कर सकते हैं, जिससे विश्व अपने में अधिक मानवीय, न्यायपूर्ण और एकतामय, ईश्वर के लिए और अधिक खुला और मनुष्यों के बीच भ्रातृत्व कायम रहेॽ निश्चित रुप में हम अपनी कलीसियाई केन्द्र की ओर लौट कर नहीं आ सकते और न ही फलहीन वाद-विवाद तक सीमित होकर रह सकते हैं। इसके बदले  हमें चाहिए कि हम इस दुनिया के सूखेपन में एक दूसरे को हरियाली पहुंचाने का प्रयास करें। संत पापा ने पुनः याजकीयवाद से बचे रहने का आहृवान किया। हम साथ मिलकर मानव जीवन की चिंता करें, सृष्टि को बचाने, श्रम का सम्मान, परिवारों की समस्याओं, बुजुर्गों की सेवा और वे जो परित्यक्त, छोड़ दिया गये हैं या घृणित व्यवहार किये जाते, उनकी देख-रेख करें। दूसरे शब्दों में, कलीसिया के रुप में हमारा बुलावा संवेदनशीलों के प्रति सेवा और करूणा की संस्कृति को बढ़ावा देना है जिससे हर किसी के जीवन में सुसमाचार की खुशी चमक सके। हमारे “लड़ाई” यही है जो चुनौती भरी है।

एक साथ चलें

संत पापा ने अपने प्रवचन के अंत में सभी नवनियुक्त महाधर्माध्यक्षों को संबोधित करते हुए कहा कि परंपरा के अनुसार मैंने आपके लिए पाल्लिका (धर्माध्यक्षों के लिए विशेष कपड़ा) की आशीष दी है। संत पेत्रुस के संग आप सभी “शीघ्र तैयार” होने के लिए बुलाये गये हैं जिससे आप अपनी रेवड़ की सेवा करते हुए “अच्छी लड़ाई लड़ सके”। अच्छे चरवाहों को ईश्वर के सानिध्य में अपने लोगों के साथ, उनके सामने, आगे-पीछे रहने की जरुरत है। संत पापा ने प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमेयो के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हुए उनके द्वारा प्रेषित प्रतिनिधियों का भी अभिवादन किया। हम एक साथ मिल कर चलें क्योंकि एक साथ रहने के द्वार ही सुसमाचार के बीज और भ्रातृत्व का साक्ष्य दे सकेंगे।

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29 June 2022, 14:17