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2022.06.17 ला स्कूओला कतोलिका के संपादकीय बोर्ड के सदस्यों के साथ संत पाप फ्राँसिस 2022.06.17 ला स्कूओला कतोलिका के संपादकीय बोर्ड के सदस्यों के साथ संत पाप फ्राँसिस 

कलीसिया 'जीवित ईशशास्त्र' के साथ विश्वास का संचार करे, संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को वाटिकन में मिलान महाधर्मप्रांत से प्रशिक्षकों से मुलाकात की और ईशशास्त्र के तीन पहलुओं पर प्रकाश डाला जो आज कलीसिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार 18 जून 2022 (वाटिकन न्यूज) : संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को धर्मशास्त्रीय पत्रिका की 150 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ला स्कूओला कतोलिका के संपादकीय बोर्ड के सदस्यों को दिए गए एक संबोधन में धर्मशास्त्र के स्कूलों के मिशन और धार्मिक पत्रिकाओं की भूमिका पर विचार किया।

अपनी लिखित टिप्पणियों में, संत पापा ने प्रकाशन का वर्णन किया, जो मिलान महाधर्मप्रांत के सेमिनरी से जुड़ा हुआ है, "एक दुकान की खिड़की की तरह, जहां एक कारीगर अपने काम को प्रदर्शित करता है और कोई उसकी रचनात्मकता की प्रशंसा कर सकता है।"

इस दृष्टि से देखा जाए तो संत पापा फ्राँसिस ने ईशशास्त्र के तीन पहलुओं पर प्रकाश डाला जो आज की दुनिया में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

कलीसिया के जीवित विश्वास की सेवा में ईशशास्त्र

संत पापा ने आधुनिक दुनिया के लिए विश्वास की व्याख्या करने के महत्व पर जोर दिया, जिससे यह "परंपरा की गतिशीलता में" हर युग में लोगों के लिए सुलभ हो। ईशशास्त्रीय भाषा हमेशा जीवित होनी चाहिए और स्वयं को समझने के लिए सावधान रहते हुए, इसे विकसित करनी चाहिए।

उन्होंने कहा, "विश्वास के अर्थ की खोज को प्रोत्साहित करने और मार्गदर्शन करने का एक बड़ी जिम्मेदारी ईशशास्त्र की है," विशेष रूप से वर्तमान में। संत पापा ने स्वयं से पूछने के लिए आमंत्रित किया कि आधुनिक दुनिया में विश्वास की सच्चाई का संवाद कैसे करें।

मानवता और निकटता में विशेषज्ञ बनाना

संत पापा फ्राँसिस ने दूसरी पहलु, बुलाहट के नवीकरण और भविष्य के लिए अच्छे प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया

उन्होंने कहा "प्रत्येक बुलाहट कलीसिया में पैदा होता है, बढ़ता है और विकसित होता है।"  जिन्हें पुरोहित या धर्मसंघी जीवन के लिए बुलाया जाता है, सभी के अपने-अपने जीवन के अनुभव होते हैं और प्रशिक्षक को सेमिनारियों के संपूर्ण व्यक्तित्व को देखने और परखने में सक्षम होना चाहिए, जिसमें उनकी "बुद्धि, भावना, हृदय, सपने और आकांक्षाएं शामिल है।”

उन्होंने जोर देकर कहा, एक अच्छा प्रशिक्षक "अपनी सेवा को इस दृष्टिकोण से व्यक्त करता है कि हम उसे सच्चाई का 'सेवक' कह सकते हैं," क्योंकि इसमें "लोगों का ठोस अस्तित्व" शामिल है। संत पापा ने कहा कि प्रशिक्षकों अपने शब्दों के बजाय अपने जीवन के उदाहरण से अधिक सीखने में सक्षम होना चाहिए, सेमिनरियो को यह सीखना चाहिए कि कैसे खुले और दूसरों के लिए उपलब्ध रहें, विशेष रूप से सबसे ज्यादा जरूरतमंदों के लिए।

सेवा के केंद्र में सुसमाचार प्रचार

अंत में, संत पापा ने कहा कि सुसमाचार प्रचार - जो कभी धर्मांतरण नहीं है - प्रशिक्षकों की कलीसियाई सेवा के केंद्र में है। उन्होंने सुसमाचार प्रचार को "मसीह के प्रति आकर्षण, उसके साथ एक मुलाकात को बढ़ावा देने के रूप में वर्णित किया जो उनके जीवन को बदल देता है, जो उन्हें खुश रखता है और हर दिन, एक नया प्राणी और उसके प्रेम का एक दृश्यमान संकेत बनाता है।

उन्होंने कहा, प्रत्येक व्यक्ति को सुसमाचार प्राप्त करने का अधिकार है; जो अनिवार्य रूप से ख्रीस्तियों के लिए नीहित है और दुनिया में विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के साथ एक संवाद है।

संत पापा फ्राँसिस ने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि पवित्र आत्मा "हमें रहस्य से परिचित कराती है और कलीसिया के मिशन पर जोर देती है।" इस कारण से, ईशशास्त्रियों को दुनिया के लिए खुला होना चाहिए, सत्य की पूर्णता को "धारण" करना चाहिए, जिसकी ओर आत्मा ले जाती है।

संत पापा ने कहा "वास्तव में, ईशशास्त्र को पढ़ाने और अध्ययन करने का अर्थ है एक सीमा पर रहना, वह सीमा जहाँ सुसमाचार लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करता है। इसीलिए हमें एक ऐसे ईशशास्त्र की आवश्यकता है जो जीवित हो, जो 'स्वाद' के साथ-साथ ज्ञान भी देता हो, जो कि गंभीर कलीसियाई संवाद का, एक धर्मसभा संवाद का आधार है। आज के सांस्कृतिक परिवर्तनों में विश्वास को फिर से शुरू करने के लिए स्थानीय समुदायों में संगठित और अभ्यास किया जाना है।"

विश्वास, कलीसिया और दुनिया के लिए एक सेवा

संत पापा फ्राँसिस ने अपने संबोधन का समापन इस आशा के साथ किया कि उनका संवाद मिलान के प्रशिक्षकों को "विश्वास, कलीसिया और दुनिया के लिए सेवा के अपनी बुलाहट को विकसित करने में मददगार सिद्ध होगा।"

 

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18 June 2022, 15:33