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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस   (ANSA)

आमदर्शन समारोह में बुजूर्गों से पोप ˸ क्रिया के बिना ज्ञान के प्रलोभन से बचें

वृध्दावस्था पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखते हुए संत पापा फ्राँसिस ने बाईबिल के उपदेशक ग्रंथ से प्रेरणा प्रस्तुत की। उन्होंने ज्ञान को क्रिया में बदले बिना उसे संचित करने के प्रलोभन का विरोध करते हुए बुजुर्गों से, न्याय के लिए अपने जुनून को बनाए रखने का आग्रह किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 25 मई 2022 (रेई) ˸ संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागंण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।"

बुजूर्ग न्याय के लिए उत्साह बनाये रखें

वृध्दावस्था पर हमारे चिंतन में, हम वृध्दावस्था पर चर्चा जारी रखेंगे। आज हम उपदेशक ग्रंथ से इसकी तुलना करेंगे जो बाईबिल में एक दूसरा गहना है। पहले पाठ में, यह छोटी पुस्तक हमें प्रभावित करती एवं अपने प्रसिद्ध पद से चकित करती है ˸ "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ, सब कुछ व्यर्थ है।" सब कुछ कोहरा है, सब कुछ धुआँ और सब कुछ खालीपन। संत पापा ने कहा कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति को महसूस करना विस्मयकारी है जो धर्मग्रंथ में अस्तित्व के अर्थ पर सवाल है। वास्तव में, उपदेशक ग्रंथ चेतन और अचेतन के बीच निरंतर उतार-चढ़ाव है, जीवन के उस ज्ञान का व्यंग्योक्ति है जिसमें न्याय के लिए उत्साह नहीं है, जिसे ईश्वर प्रदान करते हैं। और पुस्तक का निष्कर्ष जाँच से बाहर निकलने का रास्ता बताता है ˸ "ईश्वर पर श्रद्धा रखो और उसकी आज्ञाओं का पालन करो ˸ यही मनुष्य का कर्तव्य है।" (उपदेशक 12:13)

एक वास्तविकता का सामना करते हुए, निश्चित समय पर, हमें लगता है कि हम सभी विपरीतताओं को समायोजित करते हैं, जिनका एक ही भाग्य है, जो शून्य में समाप्त होता, उदासीनता का मार्ग हमारे लिए एक दर्दनाक निराशा का एकमात्र उपाय प्रतीत होता है। तब इस तरह के सवाल हमारे मन में उठते हैं: क्या हमारे प्रयासों ने दुनिया बदली? क्या कोई है जो न्याय और अन्याय के बीच फर्क को मूल्य दे सकता है? लगता है कि सब कुछ व्यर्थ है ˸ ऐसे में क्यों प्रयास करते रहना है?

संत पापा ने कहा कि यह एक नकारात्मक विचार है जो जीवन के किसी भी काल में उठ सकता है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुढ़ापा निराशा को अपरिहार्य बना देता है। बुढ़ापे की आवस्था में निराशा आवश्य आती है। और इसलिए इस मायूसी के निराशाजनक प्रभावों के लिए बुढ़ापे का प्रतिरोध निर्णायक है ˸ यदि बुजूर्ग, जिन्होंने इसे देखा है, न्याय के लिए अपनी उत्साह बनाये रखते हैं तो प्रेम और विश्वास के लिए भी उम्मीद बनी रहती है। समकालीन विश्व के लिए इस संकट से गुजरना निर्णायक हो गया है क्योंकि एक संस्कृति जो हर चीज को मापने और हर चीज में हेरफेर करने का साहस करती है, वह अर्थ, प्रेम, अच्छाई का सामूहिक मनोबल भी पैदा करती है।

कम के बिना सच्चाई लकवाग्रस्त करती है

मनोबल गिरने से हमारी काम करने की इच्छा समाप्त हो जाती है। काल्पनिक सच्चाई जो दुनिया को दर्ज करने तक सीमित है, वह विरोधियों के प्रति अपनी उदासीनता भी दर्ज करती है और उन्हें बिना मुक्ति के, समय के प्रवाह और शून्यता के भाग्य के लिए भेजती है। इस तरह – विज्ञान के जाल में लिपटे, किन्तु अत्यन्त असंवेदनशील और अनैतिक – सच्चाई की आधुनिक खोज, अब एक साथ न्याय करने हेतु उत्साह से अवकाश लेने के प्रलोभन में पड़ गई है। यह अपने भाग्य, प्रतीज्ञा और मुक्ति पर भरोसा नहीं करती।  

हमारी वर्तमान संस्कृति, जो समर्पित हो जाना चाहती है, खासकर, सब कुछ जानने के लिए, सभी चीजों के सटीक ज्ञान के लिए, एक नए कुटिल कारण के लिए - जो ज्ञान और गैर-जिम्मेदारी को जोड़ती है - एक कठोर परिणाम है। निश्चय ही, ज्ञान जो हमें नैतिकता से दूर करता, वह शुरू में स्वतंत्रता और उर्जा के समान लगता है किन्तु जल्द ही आत्मा को लकवाग्रस्त कर देता है।

उपदेशक ग्रंथ अपने व्यंग्योक्ति से इस सर्व-ज्ञान की शक्ति के घातक प्रलोभन को पर्दाहीन करता है - एक "सर्वज्ञान का भ्रम" - जो इच्छा की शक्तिहीनता उत्पन्न करता है। आरम्भिक ख्रीस्तीय परम्परा के मठवासियों ने आत्मा की इस बीमारी को पहले ही पहचान लिया था, जो बिना विश्वास और बिना नैतिकता के ज्ञान के घमंड, न्याय के बिना सत्य के भ्रम को अचानक खोज लेती है। उन्होंने इसे विरक्ति कहा। संत पापा ने कहा कि यह बुजूर्गों और दूसरे सभी लोगों के लिए एक प्रलोभन है। यह केवल आलस्य नहीं है, न ही सरल निराशा है। बल्कि यह दुनिया के ज्ञान से घिरे होकर, न्याय और ठोस कार्रवाई के लिए उत्साहहीन होना है।

शिथिलता बुराई के आक्रमण के लिए द्वार खोलती है

अर्थ शून्य और शक्तिहीन होना इसी ज्ञान का परिणाम है जो हर प्रकार की नैतिक जिम्मेदारियों एवं वास्तविक अच्छाई के प्रति स्नेह से इन्कार करता है, संत पाप ने कहा कि यह हानिरहित नहीं है। यह न केवल अच्छाई की चाह रखने की शक्ति समाप्त कर देता, बल्कि इसके विपरीत यह बुराई की शक्ति की आक्रामकता के लिए द्वार खोल देता है। वे एक पागलपन की ताकत है, जो विचारधारा की अधिकता से कुटिल बना दी गई हैं। वास्तव में, हमारे हर प्रकार की प्रगति एवं समृद्धि के बावजूद, हम शिथिलता का समाज बन गये हैं। हमें वास्तव में व्यापक कल्याण उत्पन्न करना था और हम स्वास्थ्य में वैज्ञानिक रूप से चयनात्मक बाजार को सहन कर रहे हैं। हम शांति पर एक दुर्गम सीमा लगाने वाले थे, और हम रक्षाहीन लोगों के खिलाफ अधिक से अधिक क्रूर युद्ध देख रहे हैं। विज्ञान में प्रगति आवश्य हुई है और यह अच्छा है किन्तु जीवन की प्रज्ञा एक अलग चीज है जो रूकी हुई के समान लगती है।

अंततः, यह भावनात्मक और तर्कहीन कारण भी सच्चाई के ज्ञान की शक्ति एवं अर्थ को समाप्त कर देता है। यह कोई संयोग नहीं है कि हमारा युग फेक न्यूज़, सामूहिक अंधविश्वासों और झूठे वैज्ञानिक सत्यों का युग है। यह अजीब है कि इस ज्ञान की संस्कृति में, सब कुछ जानने, ज्ञान की सटीकता में भी, कई जादू टोना फैला हुआ है, आप जानते है क्यों? यह कुछ संस्कृतियों में जादू-टोना है लेकिन जीवन को अंधविश्वास की ओर ले जाता है। एक ओर, चीजों को उनके मूल के साथ जानते हुए आगे बढ़ना; वहीँ दूसरी ओर आत्मा जिसको दूसरी चीज की आवश्यकता है वह अंधविश्वास का रास्ता अपना लेता और जादू –टोना में विश्वास करने लगता है।

बुजूर्गों की प्रज्ञा युवाओं को ज्ञान के जाल से बचा सकती है

बुजूर्ग आवस्था, उपदेशक ग्रंथ की प्रज्ञा की व्यंग्योक्ति में न्याय के लिए स्नेह से रहित मन की सच्चाई के भ्रम में छिपे धोखे को प्रकाश में लाने की कला सीख सकती है। प्रज्ञा के धनी और मजाकिया बुजूर्ग, युवाओं की अच्छाई के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। वे उन्हें जीवन की प्रज्ञा से रहित मायूस दुनियावी ज्ञान के प्रलोभन से बचा सकते हैं। वे उन्हें येसु की उस प्रतिज्ञा के लिए वापस ला सकते हैं ˸ "धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, वे तृप्त किये जायेंगे।" (मती. 5:6)

बुजूर्ग ही युवाओं में न्याय के लिए भूख और प्यास के बीज बो सकते हैं। संत पापा ने सभी बुजूर्गों को सम्बोधित कर कहा, "हिम्मत रखें, हम सभी बुजूर्ग साहस बनाये रखें और आगे बढ़ें। हमारे लिए दुनिया में एक बड़ा मिशन है। लेकिन हम थोड़ा सा, आमूर्त, आवास्तविक एवं बिना जड़ की विचारधारा में शरण की खोज न करें। जीवन के जादू – टोने में, हम स्पष्ट रूप से कहें।"

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की तथा सभी को आशीर्वाद देते हुए हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया।    

आमदर्शन समारोह 25 मई 2022

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25 May 2022, 16:10