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संत पापाः समुद्री हवाओं से शांति की तरंगों तक बढ़ें

संत पापा फ्रांसिस ने माल्टा की प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन शांति, एकता, सेवा और शारणर्थियों के स्वागत जैसे मुद्दों पर देश के नेताओं का ध्यान आकर्षित कराया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, 02 अप्रैल 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने माल्टा की अपनी प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन माल्टा गणराज्य के राष्ट्रपति, नागरिक सामाजिक, अधिकारियों और राजनयिकों से भेंट करते हुए उन्हें संबोधित किया।

संत पापा ने राष्ट्रपति के स्वागत संबोधन उपरांत उनका धन्यवाद अदा करते हुआ कहा कि आप के पूर्वजों ने रोम के मार्ग में प्रेरित संत पौलुस और उनके सहयात्रियों की अभूतपूर्व अहोभगत की। रोम से आते हुए इस वक्त मैं स्वयं उस अमूल्य निधि, अतिथ्य का अनुभव कर रहा हूँ जिसे माल्टावासियों ने अपने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया है।

माल्टा “हवाओं का गुलाब”

माल्टा भूमध्यसगरीय प्रांत का हृदय कहलाती है हम इस भौगोलिक परिस्थिति के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं। न केवल भौगोलिक दृष्टिकोण से- बल्कि हजारों वर्षों से, ऐतिहासिक घटनाओं की परस्पर क्रिया और विभिन्न लोगों के मिलन ने इस द्वीप को जीवन, शक्ति और संस्कृति, आध्यात्मिकता और सुंदरता का केंद्र बना दिया है, एक ऐसा चौराहा जिसने विश्व को प्रभावित किया और उनके साथ एक सामंजस्य स्थापित किया है। विविधता का यह प्रभाव हमें इस देश में बहने वाली हवाओं के बारे में सोचने को विवश करती है। यह संयोग की बात नहीं, कि भूमध्यसागरीय प्राचीन मानचित्रों में, माल्टा द्वीप को “हवाओं का गुलाब” स्वरुप चिचित्र किया गया है। संत पापा ने हवाओं के गुलाब परिभाषित शब्द का उपयोग करते हुए इस देश के चार मुख्य बिन्दुओं की ओर इंगति किया जो इस देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए चार मूलभूत प्रभावों की व्याख्या करती है। कम्पास के चार प्रमुख बिंदुओं का संदर्भ हवाओं की दिशा का ज्ञान प्रस्तुत करता है।

एकता और शांति

यह प्रचलित है कि हवाओं का प्रवाह उत्तर पश्चिम दिशा से माल्टा के द्वीपों में होता है। उत्तर, यूरोप की याद दिलाती है, विशेष रूप से उस निवास का जिसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय संघ करता है, जिसका निर्माण शांति स्थापित करने हेतु किया गया है। एकता और शांति माल्टा निवासियों के उपहार हैं जिसे वे अपने राष्ट्रीय गान गाते हुए ईश्वर से निवेदन करते हैं। दुन कारम पसैला द्वारा लिखित प्रार्थना के भाव इस प्रकार हैं, “हे सर्वशक्तिमान ईश्वर, उन्हें प्रज्ञा प्रदान कर जो देश का संचलान करते हैं, उन्हें शक्ति प्रदान कर जो कार्य करते हैं, माल्टावासियों को एकता और शांति से सुदृढ़ कर”। शांति एकता से उत्पन्न होती और आगे बढ़ती है। यह हमें एक साथ मिलकर कार्य करने की महत्वपूर्णतः को बतलाती है, जहाँ हम विभाजन के बदले सामंजस्य को प्राथमिकता देते हैं, और अपनी उन जड़ों और मूल्यों को मजबूत करते हैं जिनके द्वारा माल्टीज़ समाज अपनी विशिष्टता प्रस्तुत करती है।

वैधता और पारदर्शिता

संत पापा ने कहा कि यद्यपि एक बेहतर सामाजिक सह-अस्तित्व हेतु केवल संयुक्त होने के अपने भाव को मजबूत करना काफी नहीं है, इसके लिए हमें सामाजिक जीवन की नींव मजबूत करने की जरूरत है, जो कानून और वैधता पर टिकी हुई है। ईमानदारी, न्याय, कर्तव्य-बोध और पारदर्शिता एक परिपक्व नागरिक समाज के आधारभूत स्तम्भ हैं। अनौतिक और भ्रष्टाचार को खत्म करने हेतु आप की निष्ठा मजबूत बनी रहे जैसे की दक्षिणी हवा जो इस देश के तटों को साफ करती है। आप सदैव अपने में वैधता और पारदर्शिता को बढ़ावा दें जो भ्रष्टाचार और अपराध को जड़ से उखाड़ती है।

यूरोपीय निवास, जो न्याय और सामाजिक सामनता के लिए समर्पित है, ईश्वर द्वारा निर्मित बड़े निवास सृष्टि की सुरक्षा भी उसकी प्रथामिकता है। हम जिस परस्थितिकी में रहते हैं वह स्वर्ग से मिला हमें एक वरदान है जैसे कि आपके देश का राष्ट्रीय गान इसे घोषित करता है, जहाँ हम ईश्वर से इस देश की सुन्दरता को बचाये रखने का निवेदन करते हैं, एक माता जो चमचमाती ज्योति के वस्त्र को धारण करती है। माल्टा में, जहाँ प्राकृतिक छटा की सुन्दरता कठिनाइयों को दूर कर देती, सृष्टि जो हमारे जीवन और इतिहास की कठिनाइयों के मध्य, पृथ्वी पर हमारे जीवन की सुन्दरता की याद दिलाती है। अतः हमें चाहिए कि हम इसे लोभ, लालच और निर्माण सट्टेबाज़ी से सुरक्षित रखें, जो न केवल प्राकृतिक सौदर्य बल्कि भविष्य से भी समझौता करता है। इसके बदले हमें प्रर्यावरण की सुरक्षा और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन देते हुए भविष्य हेतु तैयार रहना है, साथ ही युवाओं में अच्छी राजनीति हेतु एक जुनून उत्पन्न करना जिससे वे उदासीनता के शिकार न हों और उनकी निष्ठा में कमी न आये।

विकास जड़ों से अलग न करें

उत्तरी हवा का मिलन पश्चिमी हवा से होता है। यह यूरोपीय देश खास कर यहाँ के युवाजन, अपने में पश्चिमी जीवन शौली और सोचने के तरीकों को साझा करते हैं। यह उनके लिए बहुत फायेदमंद है जहाँ तक मैं स्वतंत्रता और लोकतंत्र के बारे में सोचता हूँ, यह अपने में जोखिमों से भी भर है, जो अपने में सतर्कता की मांग करता है जिसे विकास की चाह उन्हें अपनी जड़ों से अलग न करें। माल्टा “जैविक विकास की प्रयोगशाला” है जो अपने में शानदार है, लेकिन विकास का अर्थ अपने को अतीत की जड़ों से अलग करना नहीं, जो झूठी समृद्धि के नाम पर धन कमाने की चाह रखता हो, भौतिकतावाद उत्पन्न करता हो, जो किसी भी चीज को अधिकार में करने हेतु कुछ भी नहीं कहता हो। एक उचित विकास अतीत की स्मृतियों को अपने में बनाये रखने की मांग करता और पीढ़ियों के बीच, एकरूपता और वैचारिक उपनिवेशीकरण के आगे झुके बिना, सम्मान औऱ एकता को बनाये रखता है।

विकास का आधार मानवीय सम्मान

संत पापा ने कहा कि सभी विकास का ठोस आधार मानवीय सम्मान है, हर नर और नारी के जीवन का सम्मान। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से वाकिफ हूँ कि माल्टावासी जीवन का आलिंगन करते हुए उसे बचाने हेतु निष्ठावान हैं। हम प्रेरित चरित में इसका उदाहरण पहले ही पाते हैं इस द्वीप के निवासी बहुतों के जीवन की रक्षा करने हेतु जाने जाते हैं। मैं इस संबंध में आप को प्रोत्साहन देना चाहूँगा कि आप जीवन का, शुरू से लेकर प्राकृतिक अंत तक इसकी रक्षा करें, साथ ही हर क्षण इसके फेंके जाने का परित्याग करने से बचे रहें। संत पापा ने विशेष रुप से कार्यकर्ताओं के मानवीय सम्मान के अधिकार की बात कही खासकर वे जो बुजुर्ग और बीमार हैं। और युवा जो अपने जीवन की अच्छाईयाँ जिन्हें वे अपने में धारण करते हैं उन चीजों की खोज करते हुए यूं ही नष्ट करने की जोखिम में पड़ जाते हैं जो उन्हें खालीपन में छोड़ देती है। ये सारी बातें भौतिकवाद की मूलभूत चीजें हैं, दूसरों की आवश्यकताओं के बारे में उदासीनता रहना, नशा का दंश जो स्वतंत्रता को खत्म कर देता और गुलामी उत्पन्न करता है। आइए हम जीवन की सुन्दरता की रक्षा करें।

माल्टा “सुरक्षित बंदरगाह”

गुलाबी हवाओं का अनुसरण करते हुए अब हम दक्षिण की ओर देखते हैं जहाँ से बहुत सारे भाई-बहनें आशा में आये हैं। संत पापा फ्रांसिस ने नागरिक अधिकारियों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव अर्पित किये जिन्होंने उनका स्वागत किया है जो सुसमाचार के अतिथ्य को प्रकट करता है। फोनीशियन व्युत्पत्ति के आधार पर माल्टा का अर्थ, “सुरक्षित बंदगाह” होता है जो अपने में सटीक बैठता है। यदि हम प्रवासन की जटिलता की उचित चर्चा करें तो यह समय और स्थान की व्यापक की मांग करता है। समय के संदर्भ में प्रवासन अपने में अस्थायी परिस्थिति नहीं, लेकिन हमारे समय की एक निशानी है। यह अपने साथ अन्याय, शोषण, जलवायु परिवर्तन और युद्धों की त्रासदी के लेकर आता है जिसे हम अभी भी महसूस कर सकते हैं। दक्षिण की घनी गरीब अबादी, धनी उत्तर की ओर पलायन कर रही है। यह एक सच्चाई है, और इसे कालदोष अलगाववाद को अपनाकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जो समृद्धि और एकीकरण को बढ़ावा नहीं देगा। यह हमें युद्धग्रस्त यूक्रेन के बारे विचार करते हुए बृहृद स्तर पर संयुक्त प्रत्युत्तर की मांग करता है। कुछ देशों के द्वारा पूरे समस्या का जबाव नहीं दिया जा सकता है वहीं दूसरे देश अपने में उदासीन बने रहते हैं। सभ्य देश अपने स्वार्थ के लिए अन्य मनुष्यों को गुलाम बनाने वाले अपराधियों के साथ घिनौने करारों को स्वीकार नहीं कर सकते। भूमध्यसागरीय प्रांत को यूरोप की ओर से सह-जिम्मेदारी की आवश्यकता है, जिससे वह एकता का एक नया रंगमंच बन सकें न कि सभ्यता का एक दुखद टूटता जहाज।

मानवता अहम

जहाज टूटने की इस बात की चर्चा करते हुए संत पापा ने संत पौलुस की भूमध्यसागरीय प्रांत में अंतिम यात्रा की याद की जहाँ वे आनयास ही उन तटों पर पहुंच गये जहाँ लोग उनकी सेवा करने को तत्पर थे। लोगों ने पहले उन्हें अपराधी समझा लेकिन एक विषैले सांप ने काटने पर भी कुछ असर न होने पर लोगों ने उन्हें ईश्वर के अवतार स्वरुप देखा। इन दो बातों के बीच एक जरुरी बात की चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा कि संत पौलुस को उस समय सहायता की जरुरत थी। मानवता हमारे लिए सबसे पहले आती है, टूटे हुए जाहज से पौलुस का उस द्वीप में पहुंचना और लोगों के द्वारा सहायता किया जाना इस देश के द्वारा दिये गये इसी साक्ष्य को व्यक्त करता है। संत पौलुस ने ईश्वर के नाम पर जिस सुसमाचार का प्रचार किया वह हमारे हृदयों को खोले और हम जरुरतमंद पड़ोसियों की सेवा की सुन्दरता को पुनः समझ सकें। संत पापा ने भूमध्यसागरीय मार्ग से आ रहे प्रवासियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि हमारी व्यक्तिगत सुरक्षा हमारे लिए अहम है लेकिन हम प्रवासियों को अपने लिए खतरा स्वरुप न देखें, हम उनसे अपने को बचाने हेतु सेतुओं और दीवारों को खड़ा न करें। दूसरे लोग हमारे लिए एक वायरस नहीं हैं जिनसे हमें अपने को बचाने की जरुर है लेकिन वे हमारी ही तरह हैं जिन्हें हमें स्वीकारना है। इस संदर्भ में, “ख्रीस्तीय आदर्श हमेशा हमारे लिए एक आहृवान हो जो हमारे संदेह को दूर करने, अविश्वास, हमारी गोपनीयता खोने का डर, सभी रक्षात्मक दृष्टिकोणों से परे जाने में मदद करे जिसे आज की दुनिया हम पर थोपती है” (एवंजेली गौदियुम 88)। उदासीनता एक साथ मिलकर रहने के हमारे सपने में बाधा न बने। निश्चित रूप में स्वीकारना हमसे एक प्रयास की मांग करती है जिसके लिए त्याग का होना जरूरी है। संत पौलुस के अनुभव में यही बात उभर कर आती है जहाज को बचाने हेतु उस जहाज पर ले जा रहे माल का त्याग करना पड़ा। (प्रेरि.27.38)। हर एक बलिदान, हर त्याग जो बेहतर चीजों के लिए किया जाता है, मानव के जीवन के लिए जो ईश्वर का उपहार है, अपने में पवित्र है।

शांति की चाह बनी रहे

अंतत एक हवा जो पूर्व की ओर से आती है सदैव हमारे लिए नया दिन लाती है जिसे होमर ने “यूरूस” की संज्ञा दी (ओडिसी 5 349, 423)। यद्यपि यूरोप के पूर्व से, सूर्योदय के स्थल से, युद्ध की एक काली परछाई आज फैली है। हमने सोचा था कि दूसरे देशों का आक्रमण, सड़क पर क्रूर लड़ाई और परमाणु खतरे अतीत की गंभीर यादें भर थीं। जबकि युद्ध की चुभन भरी हवा जो केवल मौत, विनाश और घृणा लाती है बहुतों के जीवन को, हम सभी को बुरी तरह प्रभावित किया है। एक बार फिर, कुछ शक्तिशाली, जो दुर्भाग्य से राष्ट्रवादी हितों के दावों में फंसकर युद्धों को भड़काया है, जबकि आमलोग भविष्य निर्माण की आवश्यकता महसूस करते हैं, जो या तो संभव हो सकता है, या बिल्कुल भी नहीं होगा। मानवता जो युद्ध की इस परिस्थिति में फंसी है, हम अपने में शांति के सपने को धूमिल होने न दें।

सेवा की जरुरत

माल्टा जो भूमध्यसागरीय प्रांत के हृदय में चमकती है, हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है क्योंकि हमारे लिए यह अति जरूरी है कि हम मानवता के सुन्दर चेहरे को बचायें जो युद्ध में कुरूप हो गई है। भूमध्यसागीय की एक मूर्ति जहाँ हम एक नारी, इऐरेने के आलिंगन में पोलोतुस, समृद्धि को पाते हैं। यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि समृद्धि की उत्पत्ति शांति में होती जबकि युद्ध के द्वारा केवल गरीबी उत्पन्न होती है। खास रुप में इस मूर्ति में हम समृद्धि को माता के रुप में देखते जो अपनी संतान को बाहों में ली है। माता की करूणा, जो दुनिया में जीवन को लाती है हमारे लिए युद्ध के हानिकारक तर्क की इस स्थिति में एक सच्चे विकल्प को व्यक्त करती है। आज हमें जनसामान्य लोगों के लिए ठोस करूणा और सेवा की जरुरत है, न कि वैचारिक और लोकलुभावन दृष्टि कोण।

मानवीय संयम की जरुरत

साठ साल पहले, विनाश से ग्रस्ति दुनिया में, जहां कानून वैचारिक संघर्षों और गुटों के तर्क से तय होता था, भूमध्यसागरीय प्रांत से एक अलग आवाज उठाई गई थी, जिसका सार स्वार्थपूर्ण बातों का खण्डन करते हुए सार्वभौमिक उत्थान हेतु कार्य करना था। यह जॉर्जियो ला पिरा की आवाज थी,“ऐतिहासिक विकट परिस्थिति जिस मोड़ पर हम रहते हैं, हितों और विचारधाराओं का टकराव, जो अविश्वसनीय बचकानेपन के शिकार मानवता को झंकझोर कर रख देता है, भूमध्यसागरीय को एक खास जिम्मेदारी प्रदान करता है। यह एक बार फिर संयम के नियम को परिभाषित करने का है जिसमें मनुष्य, पागलपन और संयम की कमी का परित्याग कर, खुद को पहचान सकता है” (भूमध्यसागरीय संस्कृति सम्मेलन में हस्तक्षेप,19 फरवरी 1960)। ये वाक्य उचित समय में कहे गये थे। बचकनी और विनाशकारी आक्रमण के समाने जो हमें धमकाती है, “बीहड़ शीतयुद्ध” की स्थिति में जो सारी मानवता और पीढ़ियों को निगल जाने का डर उत्पन्न करती है आज हमारे लिए “मानवीय संयम” की कितनी जरुरत है। वह “बचकना” दुःख की बात है, हमें से दूर नहीं गया है। यह शक्तिशाली निरंकुशता, साम्राज्यवाद के नए रूपों, व्यापक आक्रामकता, और पुलों के निर्माण की अयोग्यता के रुप में उभर कर आया है जहाँ हम अपने बीच में उपस्थित सबसे गरीबों से शुरू करने हेतु बुलाये जाते हैं। युद्ध की शुरूआत ऐसी ठंढ़ी वायु के प्रवाह से होती है। वास्तव में इस युद्ध की तैयारी व्यापक रुप में हथियारों में निवेश के द्वारा पहले ही हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति व्यवस्था की पहल का विलुप्त हो जाना अपने में दुःखद है, जहाँ हमें कुछेक शक्तिशाली को स्वार्थ में अपने भूगोल को विस्तृत करने की चाह पाते हैं। ऐसी परस्थिति में न केवल शांति बल्कि बहुत से सवाल जैसे कि भूखमरी और असमानता के विरूध लड़ाई मुख्य राजनीतिक विषयवस्तु से दूर हो जाते हैं।   

लेकिन समस्या का समाधान, सभी समस्याओं की चिंता करना है, क्योंकि वैश्विक समस्याओं के लिए वैश्विक समाधानों की आवश्यकता होती है। आइए हम एक दूसरे की मदद करें जिससे हम शांति की कामना कर सकें। हम अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन की ओर मुढ़कर देखें जहाँ निरस्त्रीकरण को हम केंद्रीय विषयवस्तु के रुप में पाते हैं, जहां हमारे विचार आने वाली पीढ़ियों की ओर मुड़ते हैं। और जहां अकूत धन जो अभी भी हथियारों के लिए नियत है, विकास, स्वास्थ्य, देखभाल और पोषण के लिए उपयोग किया जा सकता है।

अपने संबोधन के अंत में संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि मैं पुनः पूर्व की ओर देखते हुए अपने विचार में मध्य पूर्वी प्रांतों को लाता हूँ जिनकी भाषाएँ, दूसरों से मेल खाती हैं, जो इस राष्ट्र की मूल भाषा में परिलक्षित होती है, मानो यह माल्टा के लोगों की योग्यता की याद करना है, जो विविधता की स्थिति में भी सह-अस्तित्व के लाभकारी रूपों को उत्पन्न करता है। मध्य पूर्वी के देशों, लेबनान, सीरिया, यमन, और दूसरे देशों को इसी बात की आवश्यकता है जो हिंसा और समस्याओं से घिरे हैं। माल्टा, भूमध्यसागरीय प्रांत का हृदय ईश्वर की सहायता से जिसका नाम शांति है अपने में आशा, जीवन की चिंता, दूसरों के आलिंगन, शांति की चाह हेतु धकड़ता रहे।

02 April 2022, 16:47