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संत पापा माल्टा के फ्लोरियाना में मिस्सा पूजा के दौरान संत पापा माल्टा के फ्लोरियाना में मिस्सा पूजा के दौरान 

संत पापाः ईश्वर में हमें दूसरा मौका मिलता है

संत पापा ने चालीसा के पांचवें रविवार आराधना विधि चिंतन हेतु लिये गये सुसमाचार पाठ के अनुरूप व्यभिचार में पकड़ी गई स्त्री पर चिंतन प्रस्तुत किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने माल्टा की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन फ्लोरियाना के ग्रनारेईस में यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

“भोर को येसु पुनः मंदिर आये और भीड़ उनके साथ थी ”(यो.8.2)। यह हमें व्यभिचार में पकड़ी गई नारी की कहानी का संदर्भ प्रस्तुत करता है। येरुसलेम के केन्द्र में सुबह का समय अपने में शांत है। येरूसलेम मंदिर के प्रागँण में जनता गुरूवर येसु की खोज करती है, वे उनसे सुनना चाहते हैं क्योंकि उनके वचन प्रज्ञा से भरे हैं जो हृदय को उद्वेलित करते हैं। उनकी शिक्षा अमूर्त नहीं बल्कि यह हमारे हृदय का स्पर्श करते हुए हमें मुक्ति, नया जीवन प्रदान करती है। यहाँ हम लोगों की उत्सुकता को देखते हैं, वे मंदिर के निर्मित पत्थरों से संतुष्ट नहीं हैं बल्कि वे येसु के पास इकट्टा होते हैं। इस अध्याय में हम सभी उम्र के विश्वासियों को देखते हैं जो ईश प्रजा हैं। यहाँ माल्टा में लोगों की संख्या अच्छी है जो अपने में सक्रिया हैं, विश्वासीगण ठोस रुप में अपने ईश्वर की खोज सजीव विश्वास में करते हैं।

हमारी मानवीय स्थिति

जनता की उपस्थिति में येसु अपना समय लेते हैं, सुसमाचार हमें बतलाता है,“वे बैठ गये और शिक्षा देने लगे”। यद्यपि हम येसु के विद्यालय में बैठने के स्थानों को खाली पाते हैं। वहाँ नारी को सजा देने वालों की अनुपस्थिति है। वे गुरूवर येसु के पास नहीं जाते हैं। इसके अपने-अपने कारण हो सकते हैं। शास्त्री और फरीसी अपने में यह सोचते हैं कि उन्हें सारी चीजों को जानते हैं और उन्हें येसु की शिक्षा की कोई जरुरत नहीं है। वहीं, दूसरी ओर नारी अपने में खोई और भ्रमित है, अपनी खुशी की चाह में वह भटक गई। वे अपने में विभिन्न कारणों से अनुपस्थित थे इस भांति कहानी का अंत सभों के लिए अपने तरह से होगा। हम अनुपस्थित लोगों के बारे में चिंतन करें।

सर्वप्रथम हम नारी पर दोष लगाने वालों के बारे में चिंतन करें। उनमें, हम उन लोगों को पाते हैं जो अपने को धर्मी समझते हैं, ईश्वर के नियमों का पालन करने वाले, नेक और सम्मानजनक लोग। वे अपनी गलतियों को नहीं देखते जबकि उन्हें दूसरों के बारे में बहुत चिंता होती है। वे येसु के पास जाते हैं खुले हृदय से उनके वचनों को सुनने हेतु नहीं बल्कि उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से जिससे वे उनपर दोष लगा सकें। यह हमें उन सज्जनों और धर्मी व्यक्तियों के आंतरिक विचार का हाल प्रस्तुत करता है। वे मंदिर जाते धर्मग्रंथ जानते यद्यपि वे अपने हृदय में बुरे विचारों को रोक नहीं पाते हैं। जनता की निगाहों में धर्म की बातों में वे माहिर लगते हैं यद्यपि वे येसु को नहीं पहचान पाते हैं। वास्तव में, वे उन्हें शत्रु की तरह देखते और उन्हें खत्म करने की चाह रखते हैं। अपनी चाल में खरा उतरने हेतु वे उस नारी का उपयोग करते हैं जिसे वे घृणित समझते और सारेआम व्यभिचारिणी की संज्ञा देते हैं। वे उस नारी को पत्थरों से मारने की बात कहते हैं और उस पर अपनी भड़ास निकलते हैं।

सही शिष्य का मापदंड

संत पापा ने कहा प्रिय भाइयो एवं बहनों सुसमाचार के नायक हमें इस बात कि याद दिलाते हैं कि हमारी व्यक्तिगत और सामुदायिक धार्मिकता में पंखड़ता का कीड़ा और दूसरों पर अंगुली उठाना छुपी हो सकती है। हम सदैव येसु को समझने में गलती कर सकते हैं, हमारी होंठे में उनके नाम हो सकते हैं लेकिन अपनी जीवन जीने से हम उन्हें नकार सकते हैं, चाहे हम तख्ते पर क्रूस के चिन्ह को उठा कर भी क्यों न दिखाते हो। तब, कैसे हम यह साबित कर सकते हैं कि हम गुरूवर के सही शिष्य हैंॽ हम अपने पड़ोसियों को कैसे देखते हैं, हम स्वयं को देखते हुए यह कर सकते हैं।

अपने पड़ोसी की चिंता करते हुए। इसे हम येसु की तरह करूणा भरी निगाहों से कर सकते हैं जिसे येसु आज हमें दिखाते हैं, या दूसरों का न्याय करते जैसे कि सुसमाचार में दोषारोपण करने वालों ने किया, जो अपने को येसु के रक्षक स्वरुप पेश करते हैं लेकिन वे अपने में यह अनुभव नहीं करते कि वे अपने भाई-बहनों को रौंद रहे हैं। वे जो इस बात पर विश्वास करते हैं कि उनका विश्वास दूसरों की ओर अंगुली उठाने में बना रहता है, उनमें कुछ धार्मिकता हो सकती है लेकिन उन्होंने सुसमाचार की आत्मा का आलिंगन नहीं किया है क्योंकि वे करूणा को नकारते हैं जो ईश्वर का हृदय है।

व्यक्तिगत मूल्यांकन

इस बात को समझने हेतु कि हम येसु ख्रीस्त के सच्चे शिष्य है या नहीं, हमें अपने बारे सोचने की जरुरत है कि हम अपने को कैसे देखते हैं। नारी में दोष लगाने वाले इस बात से विश्वस्त थे कि उन्हें कुछ सीखने की जरुरत नहीं है। उनका वाह्य दिखावा त्रुटिहीन था, यद्यपि उनमें सच्चे हृदय का अभाव था। वे उन विश्वासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हर युग में विश्वास को अपना मुखौटा बना लेते हैं। वे बाह्य रूप में अपने को एक प्रभावशाली और शानदार तरीके से प्रस्तुत करते लेकिन उनमें आतंरिक दरिद्रता का अभाव है जो हृदय की सबसे बड़ी निधि है। वास्तव में, येसु के लिए हमारा खुलापन और नम्रता अधिक मायने रखता है जहाँ हम अपने में मुक्ति की जरुरत महसूस करते हैं। हमारे लिए अतः यह उचित होगा जब हम प्रार्थना करते हैं या किसी धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेते तो हम अपने में यह पूछें कि क्या हम सच्चे रुप में येसु से संयुक्त हैं। हम इसे सीधे तौर पर पूछ सकते हैं, “येसु, मैं यहाँ आप के साथ हूँ, लेकिन आप मुझसे क्या चाहते हैंॽ मेरे हृदय में क्या है, मेरे जीवन में, जिसे तू चाहता है कि मैं बदलूंॽ तू कैसे मुझे दूसरों के संग पेश आने की चाह रखता हैॽ इस तरह की प्रार्थना करना हमारी सहायता करेगा क्योंकि गुरूवर हमारे बाह्य स्वरुप से खुश नहीं होते वे हमारे हृदय की सच्चाई चाहते हैं। एक बार जब हम सच्चाई में अपना हृदय खोलते तो वे हमारे लिए चमत्कार कर सकते हैं।

पापियों के प्रति येसु के मनोभाव

व्यभिचार में पकड़ी गई नारी। उसकी स्थिति अपने में निराशा भरी लगती है, लेकिन एक नई और आशा के विपरीत एक क्षितिज उसके सामने खुल कर आती है। वह अपमान का शिकार होती और क्रूर न्याय और सजा की प्रतीक्षा करती है। यद्यपि आश्चर्य में वह ईश्वर के द्वारा अपने को दोषमुक्त पाती है, जो उसे एक भविष्य की ओर इंगित कराते हैं जिसके बारे में उसने कभी नहीं सोचा था। “क्या किसी ने तुम्हें दण्ड नहीं दियाॽ” येसु उससे कहते हैं, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूंगा, जाओ, और दुबारा पाप नहीं करना” (10.11)। हम गुरूवर और दोषी आरोपित करने वालों के बीच कितना बड़ा अंतर पाते हैं। उन्होंने सुसमाचार का हवाला देते हुए उसे सजा देना चाहा, वहीं येसु के वचन नारी में सुधार लाता है, उसकी आशा को सुव्यस्थित करता है। इस कहानी के द्वारा, हम यही सीखते हैं कि कोई भी न्याय जो करूणा से प्रेरित और प्रभावित नहीं है, सजा पाने वाली के लिए केवल, चीजों को और भी खराब कर देता है। ईश्वर वहीं दूसरी ओर, हमें एक सदैव एक दूसरा अवसर देते हैं, वे हमारे लिए एक राह खोजते जो हमें मुक्ति और नये जीवन की ओर अग्रसर करता है।

ईश्वर हम अवसर देते हैं

क्षमा ने नारी के जीवन को बदल दिया। हम इस बात का भी अनुमान लगा सकते हैं कि येसु से क्षमा प्राप्ति के उपरांत वह दूसरों को क्षमा करने में सक्षम होती है। शायद उसने अपने दोषी करार देने वालों को भी क्षमा कर दिया। वह उन्हें दुष्ट या बुरे लोगों की भांति नहीं देखती बल्कि यह सोचती है कि उन्होंने उसे येसु से मिलने में मदद की। येसु हमसे भी यही चाह रखते हैं कि हम भी दूसरों के संग मेल-मिलाप के अथाह साक्षी बनें। ईश्वर हमें सदा क्षमा करते और हमारे ऊपर विश्वास करते हुए हमें सदैव एक नई शुरूआत का अवसर देते हैं। ऐसा कोई भी पाप या गलती नहीं जिसे हम येसु पास लेकर आते और वह हमारे लिए नये जीवन का स्रोत न बने, क्योंकि हम क्षमा किये जाते हैं।

हम अचंभित हों

यह येसु ख्रीस्त हैं। हम उन्हें अच्छी तरह तब जानते हैं जब हम उनकी क्षमा का अनुभव अपने जीवन में करते हैं। सुसमाचार की उस नारी के माध्यम हम यह जानते हैं कि येसु हमारे पास हमारे आंतरिक घायलपन में आते हैं। वे हमें अपनी इस स्थिति में यह बतलाते हैं कि वे निरोगों के लिए नहीं बल्कि रोगियों के लिए आये (मत्ती. 9.12)। आज जिस नारी ने अपनी दयनीय दशा में ईश्वर की क्षमा का अनुभव करते हुए अपने में चंगाई प्राप्त किया वह हमें निमंत्रण देती है कि हम सुसमाचार के विद्यलाय की ओर लौटे, उस आशावान ईश्वर से सीखें जो हमें आश्चर्यचकित करना बंद नहीं करते हैं। यदि हम उनका अनुसरण करते हैं, तो हम अपने पापों की ओर झुके नहीं रहेंगे, लेकिन हम पापियों की खोज हेतु निकलेंगे। हम उपस्थित लोगों से संतोष का अनुभव करेंगे और अनुपस्थिति लोगों को खोजने जायेंगे। हम दूसरों पर अंगुली नहीं उठायेंगे लेकिन सुनना शुरू करेंगे। हम तिरस्कार और घृणा नहीं करेंगे लेकिन सबसे निचले स्तर में रहने वालों को प्रथम स्थान देंगे। येसु आज हमें अपने उदाहरण के द्वारा इसी बात की शिक्षा देते हैं। हम उन्हें अपने को अचंभित करने दें। आइए हम आनंदपूर्वक सुसमाचार का स्वागत करें जिसे वे हमारे लिए लाते हैं।

माल्टा में संत पापा का ख्रीस्तयाग

 

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03 April 2022, 11:54