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संत पापाः बुजुर्गों को प्रेम-सम्मान करें

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में बुजुर्गों के सम्मान और उनकी देख-रेख को ईश्वरीय कृपा का माध्यम निरूपित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 20 अप्रैल 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागंण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

आज हम ईश वचनों के आधार पर बुढ़ापे की नाजुकता पर चिंतन करते हैं जो हमें विशेष रूप से भ्रम और निराशा, खोने और परित्याग, मोहभंग और संदेह के अनुभवों से अवगत कराता है। निश्चय ही हमारे जीवन की संवेदनशीलता जहां हम जीवन के दुःख भरे क्षणों का सामना करते हैं हमारे जीवन की किसी भी परिस्थिति में घट सकती है। जबकि बुजुर्गवास्था हमारे प्रभाव को कम करती और यह दूसरों के लिए सदैव एक तरह से झुंझलाहट की विषयवस्तु बन जाती है। हमने कितनी बार यह सुना है, “बुजुर्ग हमें तंग करते हैं।” बचपन और युवावस्था के गम्भीर घाव, अन्याय और विरोध के भाव उत्पन्न करते हैं जिसके फलस्वरुप हम अपनी शक्ति को प्रतिकार और लड़ाई में खर्च होते हैं। वहीं दूसरी ओर, वृद्धावस्था के घाव, चाहे वह कितना भी गंभीर क्योंकि न हो, जीवन का प्रतिशोध नहीं कर सकता है, क्योंकि यह अपने से परे निकल चुका है।

बुजुर्गों का सम्मान

सामान्य मानवीय अनुभवों में जैसे कि कहा जाता है, प्रेम में उतार होता है, यह हमारे जीवन में उसी शक्ति और ताकत के साथ लौट कर नहीं आता जिसमें हम एक समय सराबोर रहते हैं, फिर भी यह हमारे जीवन में बना रहता है। हम उसमें प्रेम की निःशुल्कता को देखते हैं, माता-पिता इसे सदैव अच्छी तरह जानते हैं, बुजुर्ग इसे अपने में शीघ्र सीखते हैं। फिर भी, रहस्योद्भेदन प्रेम के आदान-प्रदान हेतु एक अलग रास्ता खोलता है: जहाँ हम उन लोगों का सम्मान करते हैं जो हमसे पहले चले गये हैं।

बड़ों का आदर ईश्वरीय आज्ञा

संत पापा ने कहा कि सम्मान रूपी यह प्रेम अपने को करूणा और आदर में व्यक्त करता है जिसे हम अपने बुजुर्गों के लिए व्यक्त करते हैं जो हमारे लिए ईश्वरीय आज्ञा में अंकित किया गया है। संहिता की दस आज्ञाओं में हम इसे “अपने माता-पिता का अदार करो” एक समपर्ण स्वरुप व्यक्त पाते हैं। यह हमारे लिए केवल अपने माता-पिता का आदर करने तक सीमित नहीं है। यह हमें उनकी पीढ़ी और उनसे आगे की पीढ़ियों, अपने बुजुर्गजनों का सम्मान करने का आहृवान करता है।

आदर अपने में एक अच्छा शब्द है जो बुजुर्गों के लिए हमारे प्रेम को सम्माहित करता है। अपने माता-पिता और दादा-दादी से मिले प्रेम को हम उनकी बुजुर्गावस्था में उन्हें प्रेम करने के माध्यम वापस देते हैं। हम इसे सम्मान के रूप में व्यक्त करते हैं जो हर जीवन का आदर और एक-दूसरे की सेवा में अभिव्यक्त होता है। सम्मान को हम यहाँ आदर के समानार्थक महत्वपूर्ण शब्द स्वरुप पाते हैं।

बुजुर्ग के प्रति हमारा व्यवहार

संत पापा ने सम्मान की सुन्दर अभिव्यक्ति की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि बीमारों की देखभाल, जो आत्मनिर्भर नहीं हैं, उनके भरण-पोषण की गारंटी में भी सम्मान की कमी हो सकती है। आत्मविश्वास की अधिकता होने पर हम सम्मान की कमी हो पाते हैं, अपने को कोमलता और स्नेह, विनम्रता और आदर में प्रस्तुत करने के बदले इस भांति हम अपने में कठोर और शोषण करने वाले में बदल जाते हैं। यह बुजुर्गों के संग तब होता है जब वे कमजोर हो जाते हैं, उन्हें सजा दिया जाता है, मानों यह अवस्था उनकी एक गलती हो। भ्रमित और खोने की स्थिति हमारे लिए अक्रमकता के क्षण होते हैं। यह हमारे घरों में भी होता है, देख-रेख के निवासालय में, दफ्तरों में या शहर के खुले स्थलों में। ऐसी परिस्थिति में युवाओं के द्वारा प्रत्यक्ष रुप में वृद्धावस्था के प्रति छींटा-कशी और उनकी कमजोरियों के प्रति अवमानना ​के भाव भयानक चीजों को जन्म देती है। यह अकल्पनीय ज्यादतियों का मार्ग बनती है। बुजुर्गों के संग युवाओं का आमनवीय ढ़ंग से पेश आना जो अपने जीवन में पहले ही निराशा के शिकार हैं जले में नमक छिड़के जैसा होता है। संत पापा ने कहा कि बहुत बार हम बुजुर्गों के संग कचरा के समान पेश आते हैं, उन्हें फेंक देते हैं; पुराना समझकर उनका तिरस्कृत करते हैं। उन्हें त्याग दिया जाता है, जीवन से अलग कर दिया जाता है।

नूह की संतानें, हमारा आदर्श

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यह विचार जो बुजुर्गों का सम्मान नहीं करता, वास्तव में हम सभी का सम्मान नहीं करता है। यदि मैं बुजुर्गों का अपमान करता हूँ, तो मैं खुद का भी अपमान करता हूँ। प्रवक्ता ग्रंथ से लिया गया पाठ जिसको हमने समारोह के शुरू में सुना इस अपमान के खिलाफ है जो ईश्वर के सामने प्रतिशोध की दुहाई देता है। नूह की कहानी में यह स्पष्ट है। वयोवृद्ध नूह, जो बाढ़ के समय एक नायक था और अब भी कड़ी मेहनत करता था, बहुत अधिक शराब पीकर बेसुध पड़ा था। वह बूढ़ा हो चुका था, उसने बहुत अधिक पी ली थी। उनके बच्चों ने उन्हें शर्मिंदगी के साथ जगाने के बादले, बड़े आदर के साथ चुपचाप कपड़ा ढ़क दिया। यह पाठ अत्यन्त सुन्दर है और यह बुजुर्गों के सम्मान के बारे कहता है; बुजुर्गों की कमजोरियों को ढंकने के लिए कहता है, ताकि वे शर्मिंदा न हों।

बुजुर्गों को न छोड़ें

सभी भौतिक वस्तुओं की उपलब्धता के बावजूद, सबसे अमीर और सबसे संगठित समाज बूढ़े लोगों की सहायता करते हैं - जिन पर हम निश्चित रूप से गर्व कर सकते हैं – विशेषकर प्रेम के रूप में सम्मान देना, अब भी नाजुक और अपरिपक्व लगता है। हमें इसका समर्थन एवं प्रोत्साहन देने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, जो “प्रेम की सभ्यता” को संवेदनशील बनाता हो। संत पापा ने माता-पिताओं को सलाह देते हुए कहा कि अपने बच्चों को बुजुर्गों के करीब लायें। और जब बुजुर्ग बीमार होते हैं, दीमागी रूप से कमजोर हो जाते हैं तो उनके निकट रहें। उन्हें महसूस करायें कि वे हमारे शरीर के अंग हैं। “कृपया बुजुर्गों को दूर न करें।” यदि वे वृद्धा आश्रम में रखे गये हैं तो उन्हें देखने जायें। बच्चों के साथ उनकी मुलाकात करें। यह हमारी सभ्यता के प्रति सम्मान है, जिसका द्वार बुजुर्गों ने द्वार खोला है, जिसे  बच्चे बहुधा भूल जाते हैं। संत पापा ने बोएनोस आएरेस की एक घटना बतलाते हुए कहा, “मैं वहाँ वृद्धा आश्रमों में जाना पसंद करता था। मैं बहुधा वहाँ जाता और हरेक से मुलाकात करता था। एक बार मैं याद करता हूँ कि मैंने एक महिला से पूछाः आपके कितने बच्चे हैं? उसे कहा, “मेरे चार बच्चे हैं, सभी ने शादी कर ली है और पोते–पोतियों के साथ रहते हैं। इस तरह वह परिवार के बारे बतलाने लगी। मैंने पूछा “क्या वे आते हैं?”  उसने कहा, “हाँ वे हमेशा आते हैं।” जब मैं कमरे से निकला तो नर्स जिसने बातें सुन ली थी मुझसे कहा, “फादर उसने आपसे झूठ कहा अपने बच्चों को छिपाने के लिए। छः महीनों से कोई नहीं आया है।” संत पापा ने कहा कि यह बूढ़ों को नष्ट करना है, यह एक ऐसी सोच है जो बूढ़ों को व्यर्थ की वस्तु समझती है। यह एक महापाप है। यह बड़ी आज्ञाओं में से पहली और एकमात्र आज्ञा है जो पुरस्कार की बात करती है- अपने माता-पिता का आदर करो जिससे पृथ्वी पर तुम्हें लम्बी आयु प्राप्त होगी। बूढ़ों का सम्मान करने की आज्ञा हमें आशीर्वाद प्रदान करती है। जो इस प्रकार प्रकट होता है ˸ तुम्हें लम्बी आयु प्राप्त होगी। संत पापा ने कहा, “बुजुर्गों को प्रसन्न रखें। यदि वे मानसिक रूप से कमजोर हो जाएँ, तब भी उन्हें अपने पास रखें क्योंकि वे इतिहास की उपस्थिति हैं, परिवार की उपस्थिति, उन्हीं के कारण हमारा अस्तित्व है। हम सभी कह सकते हैं, “दादा और दादी आपको धन्यवाद, मैं जिंदा हूँ।” उन्हें अकेले न रखें। बुजुर्गों की देखभाल करने का अर्थ उनके लिए श्रृंगार-प्रसाधन देना और प्लास्टिक सर्जरी कराना नहीं है, बल्कि यह सम्मान का सवाल है, जो जीवन और इसके आयामों के संबंध में युवाओं की शिक्षा में परिवर्तन ला सकता है। मानव के प्रति प्रेम हम सभी के लिए आम है, सम्मानपूर्ण जीवन केवल बूढ़े लोगों की बात नहीं है। बल्कि, यह एक महत्वाकांक्षा है जो अपने सर्वोत्तम गुणों को प्राप्त करने वाले युवाओं के जीवन को प्रकाशित करेगा। ईश्वर की आत्मा का ज्ञान हमें इस असल सांस्कृतिक क्रांति के क्षितिज को आवश्यक ऊर्जा के साथ खोलने में मदद करे।  

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20 April 2022, 16:22