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खजूर रविवार के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए खजूर रविवार के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए 

खजूर रविवार को पोप : येसु के साथ कभी देर नहीं होती

खजूर रविवार को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए उपदेश में संत पापा फ्राँसिस ने ईश्वर की क्षमाशीलता के साथ पास्का की ओर बढ़ने का प्रोत्साहन दिया तथा याद दिलाया कि ईश्वर हमारे हिंसक एवं संतप्त दुनिया को देखते हुए यह कहने से कभी नहीं थकते, "पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।"

उषा मनोरमा तिर्की-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 10 अप्रैल 2022 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने खजूर रविवार महापर्व के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "कलवारी पर दो तरह की सोच आपस में टकराती हैं। सुसमाचार में, क्रूसित येसु के शब्द उन्हें क्रूसित करनेवाले लोगों के शब्दों के बिलकुल विपरीत हैं। वे कहते हैं, "अपने आपको बचा लो"। जनता के नेता यह कहते हुए उनका उपहास करते थे, इसने दूसरों को बचाया। यदि यह ईश्वर का मसीह और परमप्रिय है तो अपने को बचाये।” (लूक. 23:35) सैनिकों ने भी उनका उपहास किया, "यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।"(37) अंततः दो कुकर्मियों में एक इस प्रकार ईसा की निंदा करने लगा, "तू मसीह है न? अपने को और हमें भी बचा।" (39) संत पापा ने कहा, "अपनी चिंता करना, अपने लिए सोचना, दूसरों के लिए नहीं, अपने हित का ख्याल रखना, अपनी सफलता, अपनी रूचि, अपनी सम्पति, शक्ति और छवि की परवाह करना। अपने आपको बचाना। ये उस दुनिया का स्वर है जिसने प्रभु को क्रूसित किया। आइये हम इसपर चिंतन करें।"

पिता इन्हें क्षमा कर

यह आत्मकेंद्रित मानसिकता ईश्वर की सोच के विपरीत है। "अपने को बचा" का मंत्र मुक्तिदाता के शब्द से अलग है जो अपने आपको अर्पित करते हैं। उनके शत्रुओं की तरह येसु आज के सुसमाचार में तीन बार बोलते हैं (34,43,46) फिर भी वे अपने लिए कुछ दावा नहीं करते। निश्चय ही वे अपना बचाव नहीं करते अथवा सफाई नहीं देते। वे पिता से प्रार्थना करते और भले डाकू को अपनी करुणा प्रदान करते हैं। उनमें से एक का शब्द "अपने को बचा" मंत्र में परिवर्तन लाता है। उसने कहा, "पिता, इन्हें क्षमा कर।" (34)  

संत पापा ने येसु के क्रूस पर से कहे गये शब्दों पर चिंतन करते हुए कहा, "आइये हम प्रभु के शब्दों पर चिंतन करें। जिनको उन्होंने बहुत खास समय में कहा है जब वे क्रूसित किये जा रहे थे, जब वे अपनी कलाईयों एवं पैरों पर कील ठोंके जाने का दर्द महसूस कर रहे थे।"

आइए हम उस दर्दनाक पीड़ा की कल्पना करने की कोशिश करें जिसे उन्होंने झेला। उस समय, जब ख्रीस्त ने अपने शरीर में अत्यधिक पीड़ा महसूस की, उन्होंने उनके लिए क्षमा मांगा जो उन्हें छेद रहे थे। ऐसे समय में, शायद हम चिल्लाये होते और हमारे सारे गुस्से एवं दुःख को बाहर निकाले होते। किन्तु येसु ने कहा, "उन्हें क्षमा कर।"

दूसरे शहीदों की तरह जिनके बारे बाईबिल कहता है (2 मक 7,18-19) येसु ने अपने हत्यारों को गाली नहीं दी या ईश्वर के नाम पर सजा का भय नहीं दिलाया, बल्कि उन्होंने कुकर्मियों के लिए प्रार्थना की। अपमान की आड़ में बंधी उनकी देने की प्रवृत्ति क्षमा में बदल गई।  

येसु भ्रष्ट घेरे को तोड़ने के लिए कहते हैं

संत पापा ने कहा, "भाइयो एवं बहनो, ईश्वर हमारे साथ भी ऐसा ही करते हैं। जब हम अपने कार्यों से ईश्वर को दुःख देते हैं तो उन्हें तकलीफ होती है किन्तु वे हमें क्षमा देना चाहते हैं। इसकी सराहना करने के लिए हम क्रूसित येसु की ओर देखें। हमारे पापों के कील से छिदकर दर्दभरे घावों से, खून की धारा में क्षमा प्रवाहित होती है। आइये हम क्रूस पर येसु को देखें और याद करें कि उन्होंने कोई बड़ा शब्द नहीं कहा। उन्होंने कहा, "पिता इन्हें क्षमा कर।" आइये हम येसु को क्रूस पर देखें और महसूस करें कि हम उसपर कभी अच्छे और सहानुभूतिपूर्ण भाव से नहीं देखें होते। आइये हम क्रूस पर येसु को देखें और समझें कि हम कभी इस तरह प्रेमी आलिंगन नहीं किये गये होते। हम क्रूसित प्रभु की ओर देखें और कहें," धन्यवाद येसु : आप मुझे प्यार करते हैं और हमेशा क्षमा देते हैं, उस समय भी जब मैं अपने आपको प्यार करने और क्षमा देने में कठिनाई महसूस करता हूँ।"

जब वे क्रूसित किये जा रहे थे तब अपने सबसे पीड़ादायक क्षण में भी येसु ने उस आदेश का पालन किया कि हमें अपने शत्रुओं से प्रेम करना है। हम उस व्यक्ति की याद करें जिसने हमारे जीवन में दुख दिया है, हमें चोट पहुँचायी है या निराश किया है। जिसने हमें गुस्सा दिलाया है, हमें नहीं समझा अथवा बुरा उदाहरण दिया है। कितनी बार हम अपने साथ हुए बुरे वर्ताव को मुड़कर देखने में समय बिताते हैं। हम कितनी बार पीछे देखते एवं घावों को कुरेदते हैं जिसको दूसरों से या अपने आपसे अथवा इतिहास से मिला है। आज येसु हमें सिखलाते हैं कि हमें उसी में ठहरे नहीं रहना बल्कि प्रतिक्रिया व्यक्त करना है, बुराई एवं दुःख के बुरे घेरे को तोड़ना है। हमारे जीवन के कीलों को प्रेम से जवाब देना है, घृणा को क्षमाशीलता के आलिंगन से दूर करना है। येसु के शिष्यों के रूप में क्या हम स्वामी का अनुसरण करते हैं अथवा क्या हम बदला लेने की हमारी चाह को पूरा करते हैं?

येसु क्षमा करने से कभी नहीं थकते

यदि हम जाँच करना चाहें कि क्या हम सचमुच येसु के शिष्य हैं तो हम गौर करें कि हमें दुःख देनेवालों के साथ हमारा व्यवहार कैसा है। प्रभु हमें वैसा उत्तर देने के लिए नहीं कहते हैं जैसा हम चाहते हैं अथवा जैसा हर कोई करते हैं बल्कि उस तरह जिस तरह वह हमसे व्यवहार करता है। वे हमें हमारी उस मानसिकता को तोड़ने के लिए कहते हैं जो कहता है "मैं तुम्हें प्यार करूँगा यदि तुम मुझे प्यार करोगे। मैं तुम्हारा मित्र होऊँगा यदि तुम मेरे मित्र होगे, मैं तभी तुम्हारी मदद करूँगा जब तुम मेरी मदद करोगे।" बल्कि हमें प्रत्येक के प्रति दया और करुणा प्रकट करना है क्योंकि ईश्वर हर व्यक्ति में एक बेटे या बेटी देखते हैं। वे हमें अच्छे और बुरे, मित्र अथवा दुश्मन के रूप में अलग नहीं करते। हम ऐसा करते हैं और ईश्वर को दुःख देते हैं। उनके लिए हम सभी उनके प्यारे बच्चे हैं जिन्हें वे आलिंगन करना और क्षमा देना चाहते हैं।  

येसु कहते रहते हैं, "पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।" जब उन्हें कीलों से जकड़ा जा रहा था उन्होंने हमेशा के लिए एक ही बार ऐसा नहीं कहा बल्कि अपना सारा समय क्रूस पर ऐसा कहते हुए बिताया। ईश्वर क्षमा करने से कभी नहीं थकते। वे हमारे साथ कुछ देर रहने के बाद अपना मन नहीं बदल लेते, जैसा कि हम करने के प्रलोभन में पड़ते हैं। संत लूकस रचित सुसमाचार बतलाता है, येसु इस दुनिया में हमारे पापों के लिए क्षमा लेकर आये। (लूक.1,77) अंत में उन्होंने हमें स्पष्ट आदेश दिया कि उनके नाम पर सभी को पापक्षमा का उपदेश दिया जाए।     (लूक. 24:47).

युद्ध में येसु पुनः क्रूसित

संत पापा ने कहा, "आइये हम ईश्वर की क्षमाशीलता की घोषणा करने से कभी न थकें।" येसु न केवल क्षमा किये जाने की मांग करते हैं बल्कि कारण का भी जिक्र करते हैं "क्योंकि वे नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।" यह कैसे हो सकता? जिन्होंने उन्हें क्रूसित किया, उन्होंने उन्हें मारने की योजना बनायी थी, उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी की थी और अब उनकी मृत्यु की गवाही देने के लिए कलवारी पहाड़ पर खड़े थे। फिर भी येसु उन हिंसक लोगों को यह कहते हुए न्यायसंगत ठहराते हैं कि वे नहीं जानते। हमारे लिए भी येसु ऐसा ही करते हैं। वे हमारे मध्यस्थ बनते हैं। वे हमारे विरूद्ध नहीं होते बल्कि हमारे लिए मध्यस्थ बनते हैं। उनके ये शब्द हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि वे नहीं जानते।

जब हम हिंसा का सहारा लेते हैं तब हम ईश्वर के बारे कुछ नहीं जानते, जो हमारे पिता हैं, अथवा दूसरों को नहीं पहचानते जो हमारे भाई-बहनें हैं। हम भूल जाते हैं कि हम क्यों इस दुनिया में हैं और व्यर्थ के क्रूर कृत्यों को कर बैठते हैं। हम युद्ध की मूर्खता में इसे देख सकते हैं, जहाँ ख्रीस्त दूसरी बार क्रूसित होते हैं। ख्रीस्त दूसरी बार क्रूस में कीलों द्वारा जकड़े जाते हैं जब लोग अपने पति एवं पुत्रों के अन्यायपूर्ण मौत के लिए शोक मनाते। वे उन शरणार्थियों के लिए क्रूसित होते हैं जिन्हें बम के नीचे अपने बच्चों के साथ भागना पड़ता है। वे उन बुजूर्गों के साथ क्रूसित होते हैं जिन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, युवा जो भविष्य से वंचित हो जाते, सैनिक जिन्हें अपने भाई-बहनों को मारने के लिए भेजा जाता है।

तुम स्वर्ग में मेरे साथ होओगे

पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं। कई लोगों ने इस असाधारण शब्द को सुना किन्तु सिर्फ एक व्यक्ति ने इसका उत्तर दिया। वह अपराधी था और येसु की बगल में क्रूसित था। हम कल्पना कर सकते हैं कि किस तरह ख्रीस्त की दया उसकी अंतिम इच्छा को प्रेरित करती और वह कहता है, "येसु मुझे भी याद कीजिएगा।" (लूक.23,42) मानो कह रहा हो, "सभी ने मुझे भूला दिया है, किन्तु आप उन लोगों की याद कर रहे हैं जिन्होंने आपको क्रूसित किया है, अतः उसमें मेरे लिए भी एक स्थान हो सकता है।" अपने जीवन के अंतिम क्षण में भले डाकू ने ईश्वर को स्वीकार किया और इस तरह उसका जीवन नया हो गया। इस दुनिया के नरक में उन्होंने स्वर्ग को खुला देखा। "आज ही तुम स्वर्ग में मेरे साथ होओगे।" (43) यह ईश्वर की क्षमाशीलता की महानता है कि वे उस व्यक्ति के आग्रह को भी ध्यान देते हैं जिन्हें मौत की सजा मिली थी।

ईश्वर के साथ कभी देर नहीं

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा कि इस सप्ताह हम स्वीकार करें कि ईश्वर हमारे हर पाप क्षमा कर सकते हैं, हर दूरी पाट सकते हैं हर प्रकार के शोक को आनन्द में बदल सकते हैं। येसु में वह निश्चितता है कि हम प्रत्येक के लिए स्थान है। येसु में कभी कुछ समाप्त नहीं होता। उनके साथ कभी देर नहीं होती। ईश्वर के साथ हम हमेशा जीवन को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। आइये हम साहस पूर्वक, उनकी क्षमाशीलता में पास्का की ओर यात्रा करें। क्योंकि ख्रीस्त लगातार हमारे लिए अर्जी करते हैं। हमारे हिंसक एवं संतप्त दुनिया को देखकर, वे यह कहने से कभी नहीं थकते, "पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।"  

खजूर रविवार का मिस्सा

             

           

           

           

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10 April 2022, 16:14