माल्टा में पोप ˸ दूसरों के लिए हमारा स्वागत दुनिया बचाने में मददगार
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
माल्टा, सोमवार, 4 मार्च 2022 (रेई) ˸ संत पापा फ्राँसिस ने माल्टा की प्रेरितिक यात्रा के अंतिम दिन 3 अप्रैल को हाल फार के संत जॉन 23वें शांति लैब आप्रवासी केंद्र का दौरा कर, जहाँ उन्होंने 200 शरणार्थियों से मुलाकात की। उन्हें सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो।
मैं आप सभी का बड़े स्नेह से अभिवादन करता हूँ और माल्टा में आप लोगों के साथ कुछ समय व्यतीत करते हुए अपनी प्रेरितिक यात्रा का समापन कर खुश हूँ। मैं फादर देवनिसियुस को उनके स्वागत के लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं दानिएल एवं सिरिमन को उनके साक्ष्यों के लिए धन्यवाद देता हूँ, आपने अपना हृदय खोला और अपना जीवन साझा किया और साथ ही, हमारे बहुत सारे भाइयों एवं बहनों को आवाज दी जिन्हें एक सुरक्षित आश्रय खोजने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा है।
उन्होंने कहा, "मैं लेसबोस द्वीप में कहे गये अपने शब्दों को पुनः दुहराता हूँ ˸ मैं यहाँ हूँ...आपको अपने सामीप्य का आश्वासन देने के लिए...मैं यहाँ आपके चेहरे, आपकी आखों में नजर डालने आया हूँ। जब से मैंने लम्पेदूसरा का दौरा किया है तब से मैं आपको नहीं भूलता है। आप हमेशा मेरे हृदय और प्रार्थना में रहते हैं।"
प्यारे आप्रवासियों, आपलोगों के साथ यह मुलाकात, हमें माल्टा की प्रेरितिक यात्रा के प्रतीक चिन्ह के महत्व पर चिंतन करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस प्रतीक चिन्ह को प्रेरित चरित से लिया गया है। जो याद दिलाता है कि माल्टा के लोगों ने जहाज टूट जाने पर किस तरह प्रेरित संत पौलुस एवं उनके साथियों का स्वागत किया था। हमें बतलाया गया है कि उन्होंने "असाधारण दयालुता" के साथ उनका स्वागत किया था। (प्रेरि. 28:2)
संत पापा ने इन शब्दों की ओर ध्यान खींचते हुए कहा, "सिर्फ दयालुता नहीं बल्कि असाधारण दयालुता के साथ, एक विशेष देखभाल और चिंता के साथ, जिसे संत लूकस प्रेरित चरित की पुस्तक में अमर करना चाहते थे।" उन्होंने कहा, "मेरी आशा है कि माल्टा हमेशा इसी तरह उन लोगों के साथ पेश आता रहे, जो इसके तटों पर पाँव रखते हैं और उन्हें वास्तव में "सुरक्षित बंदरगाह" प्रदान करे।"
जहाज के टूटने का अनुभव, हजारों, पुरूषों, महिलाओं और बच्चों ने भूमध्यसागर में हाल के वर्षों में किया है। दुर्भाग्य से, कई लोगों के लिए यह दुखद अंत बन गया। हालांकि हम इन घटनाओं में एक अन्य प्रकार के जहाज के टूटने को देख रहे हैं। जो सभ्यता को तोड़ रहा है, जो न केवल आप्रवासियों को बल्कि हमें भी तबाह कर रहा है। हम इस तबाही से किस तरह अपनी रक्षा कर सकते हैं जिससे हमारी सभ्यता के जहाज के डुबने का खतरा है? संत पापा ने कहा, "दयालुता एवं मानवता के साथ पेश आने के द्वारा। लोगों को न केवल संख्या के रूप में देखने बल्कि जैसा कि सिरिमन ने बतलाया सच्चे व्यक्ति के रूप में, पुरूषों, महिलाओं, भाइयों और बहनों के रूप में देखने के द्वारा, जिनमें प्रत्येक की अपनी कहानी है। समुद्र में नाव पर सवार भीड़ अथवा समुद्र में इधर-उधर भटकते लोगों में कल्पना करना कि उसमें हमारे लोग हैं, हमारा बेटा या बेटी है...शायद इस समय जब हम यहाँ हैं कुछ नाव समुद्र की ओर बढ़ रहे होंगे। आइये हम उन भाई बहनों के लिए प्रार्थना करें जो आशा की खोज में समुद्र में अपना जीवन जोखिम में डालते हैं। आपने भी इस अग्नि परीक्षा को महसूस किया एवं यहाँ पहुँचे।
आपका अनुभव, हमें उन लाखों लोगों के अनुभवों को सोचने के लिए मजबूर कर रहा है जिन्हें युद्ध के कारण यूक्रेन से भागना पड़ रहा है। किन्तु एशिया, अफ्रीका और अमरीका में भी लोग इसी तरह का अनुभव कर रहे हैं, जिन्हें अपनी सुरक्षा के लिए अपना घर एवं अपनी मातृभूमि छोड़ना पड़ा है। मैं उन सभी लोगों की याद कर रहा हूँ एवं उनके लिए प्रार्थना कर रहा हूँ।
कुछ समय पहले, मैंने आपके केंद्र से एक दूसरा साक्ष्य सुना ˸ एक युवक की कहानी, जिसने अपने दुखद क्षण के बारे बतलाया, जब उसे अपनी माता एवं अपने परिवार को छोड़ना पड़ा। उसकी कहानी ने मुझे प्रभावित किया एवं सोचने के लिए मजबूर किया किन्तु दानिएल और सिरिमन आपने भी इसी तरह अनुभव किया है, आपको अपने मूल से अलग होना, उखाड़ा जाना पड़ा। उखाड़े जाने का यह अनुभव दाग छोड़ देता है। न केवल उस क्षण का दर्द और भावना, बल्कि एक युवा पुरुष या महिला के रूप में आपके विकास की यात्रा को प्रभावित करनेवाले एक गहरे घाव का दाग भी। इस घाव के चंगा होने में समय लगता है, और सबसे बढ़कर मानवीय दया का अनुभव किये जाने की आवश्यकता होती है, ऐसे लोगों के साथ मुलाकात करने की, जो आपको स्वीकार करते, सुनते, समझते एवं आपका साथ देते हैं। यात्रा करनेवाले अन्य साथियों के साथ रहने, उनके साथ चीजें साझा करने और अपने बोझ को एक साथ उठाने का अनुभव… इन घावों को भरने में मदद करता है।
संत पापा ने आप्रवासियों का स्वागत करनेवाले केंद्रों की सराहना की जो यह महसूस करते हुए कि पलायन इस समय का संकेत है, इस चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "हम ख्रीस्तियों को भी येसु के सुसमाचार के अनुरूप अपनी भूमिका अदा करनी है जो कहता है, "मैं परदेशी था और तुमने मेरा स्वागत किया।" (मती. 25, 35) संत पापा ने माल्टा के आप्रवासी केंद्र को विशेष रूप से धन्यवाद दिया।
संत पापा ने आप्रवासियों के प्रति अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि मानवीय दयालुता एवं भाईचारा से समृद्ध स्वागत प्राप्त करने के बाद वे भी स्वागत एवं भाईचारा का साक्ष्य देनेवाले बनें। उन्होंने उन्हें ईश्वर के हाथों समर्पित करते हुए कहा कि जो हमारे लिए असंभव है वह ईश्वर के लिए असंभव नहीं है। "मैं मानता हूँ कि आज के इस आप्रवासी दुनिया में सम्मानजनक और भाईचारापूर्ण जीवन के लिए इन मानवीय मूल्यों का साक्ष्य देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ये ऐसे मूल्य हैं जो आपके हृदयों में हैं जो आपके मूल के हिस्से हैं। जब उखाड़े जाने का दर्द थम जायेगा तब आप अपनी आंतरिक समृद्धि को बाहर निकालें और उस समुदाय को बांटें जो आपका स्वागत करेगा। यह भाईचारा और सामाजिक मित्रता का रास्ता है। वैश्विक दुनिया में यही मानव परिवार का भविष्य है।
संत पापा ने सिरिमन के साक्ष्य पर गौर किया कि जो लोग अपना देश छोड़ते हैं वे अपने दिल में एक सपने के साथ अपने घरों को छोड़ते हैं, वह सपना है स्वतंत्रता एवं प्रजातंत्र का। यह सपना एक कठोर वास्तविकता से टकराता है, जो अक्सर खतरनाक होता, और कभी-कभी भयानक एवं अमानवीय भी। संत पापा ने कहा कि उन्होंने उन लाखों अप्रवासियों की दबी अर्जी को आवाज दी है जिनकी अर्जी को ठुकरा दिया जाता है। उन लाखों आप्रवासियों की दबी मांग को, जिनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, दुःख की बात है कि इसमें कई बार सक्षम अधिकारी भी शामिल होते हैं।
आपने हमारा ध्यान सबसे महत्वपूर्ण चीज, व्यक्ति की प्रतिष्ठा की ओर खींचा है। मैं पुनः पुष्ट करना चाहता हूँ कि आप संख्या नहीं बल्कि आप रक्त और मांस एवं चेहरे और सपनों के व्यक्ति हैं।
व्यक्ति की प्रतिष्ठा से हम एक नई शुरूआत कर सकते हैं। "अतः हम उन लोगों से न ठगे जाएँ जो कहते हैं कि "कुछ भी नहीं किया जा सकता," ये समस्याएँ हमारे लिए बहुत बड़ी हैं, इसे दूसरे करें, मुझे अपना काम करना है।" संत पापा ने कहा, "हम इस तरह के जाल में न फसें। आइए हम आप्रवासियों और शरणार्थियों की चुनौती का करुणा और मानवता से जवाब दें। आइये हम भाईचारा की आग प्रज्वलित करें जिससे लोग उष्मा प्राप्त कर सकें, ऊपर उठ सकें एवं आशा पा सकें। आइये हम इसी स्थान से शुरू करते हुए सामाजिक मित्रता एवं मुलाकात की संस्कृति के ताने-बाने को मजबूत करें। वे परिपूर्ण नहीं हो सकते हैं, लेकिन वे वास्तव में "शांति की प्रयोगशालाएं" हैं। चूंकि यह केंद्र संत जॉन 23वें के नाम पर स्थापित है, इसलिए मैं उस आशा को याद करना चाहूँगा जो पोप जॉन ने शांति पर अपने प्रसिद्ध विश्वपत्र के अंत में व्यक्त की थी: "[प्रभु] उन पुरुषों और महिलाओं की आत्माओं से दूर होते हैं जो शांति को खतरे में डालते। वे हम सभी को सत्य, न्याय और भाईचारे के प्रेम के गवाह बनायें। अपने प्रकाश से शासकों के मन को प्रकाशित करें, ताकि वे अपने लोगों के भौतिक कल्याण की देखभाल करने के अलावा, उन्हें शांति के सर्वोत्तम उपहार की गारंटी दे सकें।
तब संत पापा ने ईश्वर पर विश्वास एवं आशा के प्रतीक मोमबत्ती जलाते हुए कहा कि यह माता मरियम हमारी माता की आशा है जो सबसे कठिन समय में भी जलती रहती है, यही आशा मैंने आपकी आखों में भी देखी है। इसी आशा ने आपकी यात्रा को अर्थपूर्ण बनायी एवं आपको आगे ले चलती है। माता मरियम आपको इस आशा को कभी नहीं खोने में मदद दे। संत पापा ने उन्हें माता मरियम को सिपूर्द किया। तथा उन्हें अपनी प्रार्थनाओं का आश्वासन दिया।
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