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संत पापाः पीढ़ियों मध्य वार्ता अपरिहार्य

संत पापा फ्रांसिस ने बुजुर्गों पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए पीढ़ियों के बीच वार्ता के महत्व पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 2 मार्च 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

धर्मग्रंध की वंशवली हमें पूर्वजों की दीर्घायु से प्रभावित करती है, वहाँ हम सदियों की चर्चा सुनते हैं। हम वहाँ वृद्धावस्था की शुरू कहाँ से पाते हैंॽ और हम उन पूर्वजों में किस बात की महत्वपूर्णतः को पाते हैं जो संतानों के पिता होने के उपरांत उन्हें दीर्घायु बनाता हैॽ पिता और पुत्र एक साथ सदियों जीवनयापन करते हैं। सदियों के संदर्भ में, जीवन को हम एक रीति शैली में अभिव्यक्त पाते हैं जो दीर्घायु और वंशावली के बीच संबंध को एक बहुत ही गहरा प्रतीकात्मक अर्थ प्रदान करता है।

मानव में नवीनता की चाह

हमारे लिए यहाँ ऐसा प्रतीत होता है मानो मानव जीवन, धरती पर अपनी नवीनता में, एक धीमी और लंबी शुरुआत की मांग करता हो। एक प्राणी के रुप में मानव का इतिहास, जो अपने में आत्मा और शरीर, विवेकी और स्वतंत्र, संवेदनशील और जिम्मेदार है, सारी चीजें में नवीनता को पाता है। मानव का जीवन अपनी उत्पत्पि में, अपने को ईश्वर के रूप और समानता, और अपनी नश्वर स्थिति की नाजुकता में, एक बड़े तनाव में, सारी बातों में अपनी नवीनता की खोज करता है। यह एक लम्बी दीक्षा की मांग करती है, जहाँ पीढ़ियों के बीच में आदान-प्रदान और सहयोग अपने में अपरिहार्य है जिसके फलस्वरुप वह अनुभवों को समझता और जीवन की पहेली का सामना करने के योग्य बनता है। इस अवधि में मानव की आध्यात्मिक क्षमता भी अपने में धीरे से प्रस्फुटित होती है।

आत्मसात के लिए धैर्य   

एक अर्थ में, मानव इतिहास में समय का हर पड़ाव एक अनुभव को लेकर कर आता है। यह इस रूप में होता है मानो हम शांतिमय तरीके से अपने जीवन की एक नई शुरूआत करते हुए जीवन के कई सवालों, उसके अर्थ को समझने का प्रयास कर रहे हों, जहाँ हमारे लिए जीवन की कई परिस्थितियाँ उभरकर आती हैं और हम अपने लिए नये अनुभवों तथा अनुत्तरित सावलों के पाते हैं। निश्चित रुप में, सांस्कृतिक स्मृति हमें अपने जीवन के मार्ग में आगे बढ़ने हेतु मददगार सिद्ध होती है। हस्तांतरण का समय कम हो जाता है, लेकिन जीवन को आत्मसात करने में हमें समय के साथ हमेशा धैर्य की आवश्यकता होती है। अति शीघ्रता से चलना हमारे लिए जीवन के हर अनुभव को एकदम छिछला बना देता है जो हमें “पोषित” नहीं करता है। युवाजन अपनी अचेतना में इसके शिकार हैं जो घड़ी की गति में अपने जीवन को संचालित करते हैं जबकि हमें अपने जीवन का “रसास्वादन” करने की आवश्यकता है।

वृद्धावस्था की गति

वृद्धावस्था निश्चित रुप में जीवन की गति को धीमा कर देता है- लेकिन यह केवल जड़ता का समय नहीं है। वास्तव में, जीवन का यह लय हमारे लिए अज्ञात जीवन के अर्थ को खोल कर सामने लाता है जिसे हम शीघ्रता के जुनून में भूल जाते हैं। धीमी गति से चलने वालों के संग अपने संबंध खोना हमारे लिए हानिकारक होता है, हम जीवन की बहुत सारी बातों को खो देते हैं। संत पापा ने कहा कि इस संदर्भ में मैंने जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह को बुजुर्गों दादा-दादियों, नाना-नानियों के लिए त्योहार स्वरुप घोषित किया है। बच्चों और बुजुर्गों, दो पीढ़ियों के बीच संबंध युवाओं और व्यस्कों के लिए भी सहायक होता है जिसके फलस्वरुप मानव अस्तित्व समाज में धनी बनता है।

वार्ता की महत्वपूर्णत

संत पापा ने कहा कि हमें पीढ़ियों के मध्य वार्ता की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं होता तो हम अपने में ही अकेले रह जाते और संदेशों का आदान-प्रदान नहीं होता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि एक युवा जो अपनी जड़ों से जुड़ा नहीं है जो उनके दादा-दादी, नाना-नानी हैं तो वह एक वृक्ष के रुप में शक्तिशाली नहीं होता है बल्कि वह अपने में बीमार, संदर्भहीन हो जाता है। यही कारण है हमारे लिए पीढ़ियों के बीच वार्ता की आवश्यकता है।

आधुनिक शहर की मानसिकता

हम उस शहर के बारे में विचार करें जहाँ विभिन्न उम्र के लोग सह-अस्तित्व में जीवनयापन करते हैं। हम युवाओं और बुजुर्गों के मध्य प्रेमपूर्ण संबंध भरी एक स्थिति के बारे में सोचें। पीढ़ियों का परस्परव्यापी, वास्तव में दृश्यमान और मानवतावाद समाज के लिए ऊर्जा का स्रोत होता है। आधुनिक शहर अपने को बुजुर्गों के प्रति कठोर बना लेते हैं यह बच्चों के संदर्भ में भी दिखाई देता है। वह समाज जहाँ हम फेंकने की भावना को पाते हैं अवांछित बच्चों और बुजुर्गों का परित्याग कर देता है। तीव्रता से हमारा चलना हमें आत्मक्रेन्दित कर देता जहाँ हम कांनफेटी (कागज के रंगीन छोटे टुकड़ों) की भांति बिखर कर रह जाते हैं। इस भांति व्यक्ति बड़ी चीजों को देखने की क्षमता खो देता है। व्यक्ति अपने में बने रहने के कारण शहरी-बाजार में तैरता रहता है क्योंकि धीरे चलना का अर्थ खोना और जल्दी चलना हमें धन से संयुक्त करता है। अधिक तेजी से चलना हमारे जीवन को तीव्र नहीं बनाता बल्कि यह उसे चकनाचूर कर देता है। संत पापा ने कहा कि हमारे लिए विवेक अपने समय को खोने में है, जहाँ हम घर जाकर अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं, अपने दादा-दादी और नाना-नानी को समय देते हैं जो घरों में हैं और ऐसा करने के द्वारा हम मानवता रूपी परिवार को मजबूत बनाते हैं। इसके द्वारा हमें धन की प्राप्ति नहीं होती लेकिन अपने बच्चों के संग, बुजुर्गों के संग समय व्यतीत करने में हम जीवन को दूसरी निगाहों से देखने के योग्य होते हैं।

वृद्धावस्था, एक संसाधन

संत पापा ने कहा कि महामारी की स्थिति में जहाँ हम जीवनयापन करने को बाध्य हैं हमारे लिए दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति लाते हैं जो हमारे जीवन की गति में अवरोध उत्पन्न करती है। इस परिस्थिति में बुजुर्गों ने बच्चों के लिए “निर्जलीकरण” की भांति कार्य किया है। पीढ़ियों के बीच दृश्यमान संबंध जो गति और लय में सामंजस्य स्थापित करती है, हमारी आशा को बनाये रखते हुए जीवन की सार्थकता व्यक्त करती है। यह हमारे संवेदनशील जीवन के लिए प्रेम को स्थापित करता है जो हमारे जीवन की राह में गति के जुनून को दूर करता जो हमारे लिए बाधा उत्पन्न करता है। वृद्धावस्था की लय समय द्वारा चिह्नित जीवन के अर्थ को समझने के लिए एक अनिवार्य संसाधन है। हम इस चिंतन हेतु ईश्वर का धन्यवाद करते हैं जो उनके साथ हमारे मिलन को और विश्वासनीय बनाता है, यह मानव जीवन की उत्पत्ति में हमारे लिए छुपा कर रखी गई है जहां हम अपने को “ईश्वर के अनुरूप” बनाया गया पाते हैं, यह हमारे लिए ईशपुत्र का मानव बनने में अंकित किया गया है।

आज मानव जीवन की दीर्घायु अपने में बड़ी है। यह हमें जीवन के सभी समयों के बीच प्रसंविदा बढ़ाने का अवसर देती है; और साथ ही जीवन की संपूर्णता के अर्थ को भी। मानव जीवन का अर्थ इसकी व्यस्कता, 25 से 60 साल में केवल नहीं है बल्कि इसका अर्थ जन्म से लेकर मरण तक है, और हमें चाहिए कि हम सभों के संग बातें करें, सभों से भावनात्मक रुप में अपने को संयुक्त करें, जिससे हमारी परिपक्वता अधिक समृद्ध और मजबूत हो।

जीवन लय बदलें

संत पापा ने कहा कि हमें यह परिवर्तन अपने हृदय, परिवार औऱ समाज में करना है। इस बात पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे हट्टीपन को हम जीवन के सुन्दर लय में परिणत करें। समय के प्रति अपनी ढ़िठाई जो हमें शीघ्रता में चलने को प्रेरित करती है हम उसे जीवन के लय में बदलें। वह समाज जहाँ युवा बुजुर्गों से वार्ता नहीं करते, व्यस्क वृद्धों या युवाओं के बातें नहीं करते तो वह समाज बंजर, बिना भविष्य के बन जाता है, एक  समाज जो क्षितिज की ओऱ देखने के बदले अपने में देखने लगता है। इस भांति वह अकेला हो जाता है। ईश्वर हमें जीवन के सही धुन को खोजने में मदद करें जहाँ सभी उम्र के लोगों का मेल है, जिनके बीच वार्ता का संगीत व्याप्त है। 

 

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02 March 2022, 15:27