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संत पापाः बुजुर्ग विश्वास की मूल्यवान निधि

संत पापा फ्रांसिस ने “मूसा के भजन” की चर्चा करते हुए बुजुर्ग पर अपनी धर्मशिक्षा माला में उनके विश्वास को एक अद्वितीय उपहार घोषित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 मार्च 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

धर्मग्रंथ में बुजुर्ग, मूसा की मृत्यु से पहले दिया गया आध्यात्मिक वसीयत व्यख्यान “मूसा का भजन” कहलाता है। यह प्रथम भजन है जो विश्वास की एक सुन्दरता को अभिव्यक्त करता है। “मैं प्रभु के नाम की स्तुति करूंगा। हमारे ईश्वर की महिमा घोषित करो। वह हमारी चट्टान है उसके सभी कार्य अदोष हैं और उसके सभी मार्ग न्यायपूर्ण, क्योंकि ईश्वर सत्यप्रतिज्ञा है, उसमें अन्याय नहीं, वह न्यायी और निष्कपट है” (विधि.32.3-4)। यह ईश्वर के साथ व्यतीत लोगों के इतिहास, जीवनगाथा की स्मृति भी थी जो आब्रहम, इसाहक और याकूब का ईश्वर में विश्वास पर आधारित है। इसके साथ ही मूसा उन बातों की याद करते हैं जहाँ उन्होंने कुटता और ईश्वर में निराशा का अनुभव किया। उसकी विश्वासनीयता निरंतर लोगों की अविश्वासनीयता के कारण परखी गई। ईश्वर की निष्ठा और लोगों का अनिष्ठापूर्ण उत्तर, मानों लोगों ने ईश्वरीय निष्ठा की परीक्षा लेनी चाही। वे सदैव उनके निकट, अपने लोगों के प्रति निष्ठावान बने रहे। ईश्वर सत्यप्रतिज्ञा हैं जो सम्पूर्ण जीवन में हमारे साथ चलते हैं- यही मूसा के भजन का सार है।

बुजुर्गों की दृष्टि विवेक भरी

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अपने विश्वास की उद्घोषणा करने के समय मूसा प्रतिज्ञात देश की दहलीज के साथ-साथ अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर होते हैं। उनकी आयु एक सौ बीस साल की हो गई थी, “लेकिन उनकी आखें धुंधली नहीं हुई थी” (विधि.34.7)। देखने की वह क्षमता जो हमें प्रतीकात्मक रुप में देखने की क्षमता के बारे में कहती है जिसे हम बुजुर्गों के जीवन में पाते हैं, जो जीवन की घटनाओं, उनके अर्थ को जानते हैं। उनके देखने की क्षमता अपने में एक मूल्यवान उपहार है, यह उन्हें अपने लम्बे जीवन और विश्वास के अनुभवों को वसीयतनामे की भांति स्पष्टता में दूसरों को देखने हेतु मदद करता है। मूसा इतिहास को देखते और उसे दूसरों के साथ साझा करते हैं, बुजुर्ग जीवन इतिहास को हमारे बतलाते हैं।

बुजुर्ग जीवित यादें

बुजुर्गावस्था जो हमारे लिए ऐसी स्पष्टता व्यक्त करती है, आने वाली पीढ़ी के लिए एक बहुमूल्य उपहार है। व्यक्तिगत और प्रत्यक्ष रुप में जीये गये विश्वास के इतिहास को सुनना, जहाँ हम जीवन के उतार-चढ़ाव को पाते हैं, अपने में अद्वितीय है। इसे किताबों में पढ़ना, फिल्मों में देखना, इटरनेट में खोजना चाहे यह कितना भी उपयोगी क्यों न हो, उनके जैसा कभी नहीं हो सकता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को उसे प्रदान करना, जो सच्ची और उचित परापंरा है, आज नई पीढ़ियों के लिए बेहद कम हो गई है, एक अभाव जो सदैव बढ़ती जा रही है। संत पापा ने कहा कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि नई सभ्यता अपने में यह सोचती है कि पुराने बेकार की चीजें हैं, पुरानी चीजों को छोड़े देना चाहिए, उन्हें त्याग देना चाहिए। यह अपने में क्रूरता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। व्यक्तियों के संग आमने-सामने की गई बातें, वार्ता और विचारों के आदान-प्रदान से अच्छा और कोई दूसरा माध्यम नहीं हो सकता है। एक बुजुर्ग व्यक्ति जो लम्बे समय तक जीवन जीया और इतिहास की घटनाओं से स्पष्ट और तीक्ष्ण रुप में प्रभावित हुआ है, अपने में एक अद्वितीय आशीष है। क्या हम इस उपहार को पहचानते और उसका सम्मान करते हैंॽ क्या विश्वास और जीवन के अर्थ को हम इस भांति प्रसारित होता पाते हैंॽ क्या हम अपने जीवन के द्वारा दूसरों के लिए जीवित साक्ष्य बनते हैंॽ सन् 1914 के युद्दों का अनुभव, दादा-दादियों के द्वारा जीवन के अनुभवों को अपने नाती-पोतों को बतलाना अपने में अमूल्य निधि बनती है। दुर्भाग्यवश आज बुजुर्गों को बेकार की चीजों के रूप में देखा जाता है, ऐसा न हो। वे हमारे जीवन के लिए जीवित यादें हैं हमें उन्हें सुनने की जरुरत है।

हमारी संस्कृति में, जो राजनीतिक रूप में सही है, यह मार्ग, परिवार, समाज और ख्रीस्तीय समुदाय में कई तरह से बाधा लाती है। यहाँ तक की कुछ लोग हैं जो इतिहास की शिक्षा को खत्म करने की बातें कहते हैं, मानो वे दुनिया के बारे में, व्यर्थ की चीजों के बारे में जानकारी देती हों, जो संसाधनों को वर्तमान ज्ञान से दूर ले जाता है।

साक्ष्य में ईमानदारी जरुरी 

विश्वास का संचार, वहीं दूसरी ओर, एक तरह से बहुधा “जीवित इतिहास” में जुनून की कमी अनुभव करता है। विश्वास को बांटने का अर्थ केवल बकबक करना नहीं बल्कि विश्वास के अनुभवों को साझा करना है। अतः यह कैसे लोगों को सदैव प्रेम का चुनाव करने, वचनों के प्रति सत्यप्रतिज्ञा, धैर्य में निष्ठावान बने रहने, घायलों और निराश चेहरों के प्रति करूणावान बने रहने को मदद करता हैॽ निश्चय ही, जीवन की कहानियों को हमें साक्ष्य स्वरुप परिणत करने की जरुरत है और यह साक्ष्य ईमानदारी की मांग करता है। एक आर्दश जो इतिहास को स्वयं की योजनाओं के अनुरूप पिरोता है निश्चित ही विश्वासनीय नहीं है। प्रचार जो इतिहास को अपने अनूकूलित करता जिससे उसे समूह को बढ़ावा मिले तो वह वफादार नहीं है; इतिहास को एक ऐसे न्यायाधिकरण में बदलना वफादारी नहीं है जिसमें अतीत की निंदा की जाती है और किसी भी भविष्य को हतोत्साहित किया जाता है। कहानी जैसे है उसे उसी रूप में प्रस्तुत करना निष्पक्षता है और जो उसके अंग रहे हैं केवल वे ही ऐसा कर सकते हैं। यही कारण है कि हमें बुजुर्गों को सुनना अति आवश्यकता है, अपने दादा-दादियों, नाना-नानियों को जिनसे बच्चें बातें करते हैं।

धर्मग्रंथः इतिहास, सच्चाई और साक्ष्य पूर्ण

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार ईमानदारी पूर्वक येसु के साथ घटित हुई घटनाओं गलतियों को छुपाये बिना, नसमझियों और यहाँ तक की शिष्यों की धोखाघड़ी के बारे में वर्णन करता है। यह हमारे लिए इतिहास, सच्चाई, साक्ष्य है। यह हमारे लिए स्मृति का उपहार है जिसे कलीसिया के “बुजुर्गों” ने हमारे लिए शुरू से ही “हाथों-हाथ” पीढ़ी दर पीढ़ी बांटा है। हमारे लिए यह पूछना अच्छा होगा, विश्वास के इस प्रसार को हम कितना महत्व देते हैं, जहाँ समुदाय के बुजुर्ग भावी पीढ़ी को प्रत्यक्ष रुप में इतिहास से रुबरू कराते हैं जो भविष्य के लिए खुले हैंॽ संत पापा ने विश्वास के प्रसार पर सवाल किया कि यह कैसे होता है। यह पुस्तकों के माध्यम नहीं होता है। इसका प्रसार स्थानी भाषा, प्रचलित प्रवचनों के माध्यम होता है जिसे दादा-दादी अपने नाती-पोतों, माता-पिता अपने बच्चों को बतलाते हैं। यही कारण है कि परिवार में वार्ता हमारे लिए अति महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बुजुर्गों के संग नाती-पोतों की बातचीत जो अपने में विश्वास रूपी ज्ञान के भण्डार हैं।

सुनना और देखनाः ज्ञान का स्रोत

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि कभी-कभी मैं इस अजीब विसंगति पर विचार करता हूं। आज काथलिक कलीसिया की दीक्षा ईश्वर के वचन पर आधारित है जो सिद्धातों, विश्वास की नैतिकता और संस्कारों के बारे में सटीक जानकारी देती है। हालाँकि, अक्सर जिस चीज की कमी हम महसूस करते हैं, वह हमारे लिए कलीसिया का ज्ञान है जो हमें विश्वास के वास्तविक इतिहास और कलीसियाई समुदाय के जीवन को सुनने और देखने से आती है। बच्चों के रुप में हम ईश वचनों को धर्मशिक्षा की क्लासों में सीखते हैं, लेकिन युवाओं के रुप में कलीसिया का “शिक्षण” हमें वर्गों और वैश्विक सूचना के माध्यमों से आती है।

दीक्षा, प्रतिज्ञात देश में प्रवेश का मार्ग

विश्वास के इतिहास की व्याख्या मूसा के भजन स्वरुप होना चाहिए, इसे सुसमाचार और प्रेरित चरित के रुप में होने की जरुरत है। दूसरे शब्दों में यदि हम कहें तो यह ईश्वर की आशीषों को अपनी भावनाओं और असफलताओं में ईमानदारी से पहचानना है। यह अपने में कितना अच्छा होता यदि धर्मशिक्षा को शुरू से ही संलग्न किया जाता, जहाँ हम बुजुर्गों के अनुभवों को सुनने के आदी होते, ईश्वर से मिली आशीषों को पहचानते, जिनका हम आनंद उठाते, और हमारे विश्वास का साक्ष्य जहाँ हम अपनी असफलताओं को ईमादारी पूर्वक स्वीकारते हुए उन्हें ठीक करते और सुधार सकते। बुजुर्गों ने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश किया, जिसे ईश्वर हर पीढ़ी के लिए चाहते हैं ऐसा तब होता है जब वे युवाओं के लिए अपनी सुन्दर अनुभवों का साक्ष्य दीक्षा स्वरुप प्रस्तुत करते हैं। इस भांति, येसु ख्रीस्त से निर्देशित बुजुर्ग और युवा दोनों ईश्वर के प्रेमपूर्ण जीवन और राज्य में प्रवेश करते हैं।                   

 

 

 

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23 March 2022, 15:41