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वाटिकन में पुरोहिताई पर अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय संगोष्ठी वाटिकन में पुरोहिताई पर अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय संगोष्ठी  

पोप ने पुरोहितों को ईश्वर, धर्माध्यक्ष, पुरोहितों एवं लोगों के निकट रहने की सलाह दी

संत पापा फ्राँसिस ने 17 फरवरी को वाटिकन में पुरोहिताई पर अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित किया तथा पुरोहितों का आह्वान किया कि वे ईश्वर, अपने धर्माध्यक्ष, अपने साथी पुरोहितों एवं उन लोगों के करीब रहें जिनके बीच वे सेवा देने हेतु बुलाये गये हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 17 फरवरी 2022 (रेई)-संत पापा फ्राँसिस ने पवित्र आत्मा प्रदत्त, शांति और फलदायी होने का अनुभव करने में आज के पुरोहितों की मदद करने के उद्देश्य से सम्बोधित भाषण में, अपनी पुरोहिताई के पच्चास से अधिक वर्षों की याद की। उन्होंने अपना भाषण धर्माध्यक्षों के धर्मसंघ के तत्वधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किया। जिसकी शुरूआत बृहस्पतिवार को की गई।

सिनॉडल कलीसिया ने पुरोहिताई पर बड़ी संगोष्ठी का आयोजन किया

संत पापा ने कहा कि उनकी टिप्पणी न केवल उन पुरोहितों के लिए है जिन्होंने अपने जीवन एवं साक्ष्य से मेरे आरम्भिक दिनों में, मुझे इस बात पर चिंतन करने के लिए प्रेरित किया कि भला चरवाहा होने का अर्थ क्या है, बल्कि उन पुरोहित भाइयों के लिए भी है जिन्हें साथ दिया जाना था क्योंकि वे प्रथम प्रेम की ज्वाला को खो चुके थे, ऐसे पुरोहित जिनकी प्रेरिताई बंजर, दुहराव और अर्थहीन हो गई थी।  

उन्होंने कहा, "युग परिवर्तन के दौर में, पुरोहितों को चुनौतियों का सामना करने सीखना है न केवल अतीत में पीछे लौटते हुए, जोखिम से रक्षा की खोज करते हुए अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण आशावाद के द्वारा जो बदलाव की कठिनाइयों को अनदेखा करता है, बल्कि "मैं वास्तविकता की एक भरोसेमंद स्वीकृति से पैदा हुई प्रतिक्रिया को पसंद करता हूँ, जो कलीसिया की बुद्धिमान और जीवित परंपरा में लंगर डाले हुए है, जो हमें बिना किसी डर के 'गहरे पानी में ले चलने' में सक्षम बनाता है।"

संत पापा ने कहा कि सभी बुलाहटों की तरह पुरोहितीय बुलाहट भी भरोसेमंद आत्मपरख की मांग करता है जिसमें दृढ़ता हो कि ईश्वर हमें कहाँ ले जा रहे हैं। हमारे युग के कई सवालों एवं परीक्षाओं का सामना करते हुए वे उस पर ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं जो आज के पुरोहित के जीवन के लिए निर्णायक है, मनोभाव जो पुरोहितों को बल प्रदान करता है। संत पापा ने पुरोहिताई जीवन के चार स्तम्भों पर ध्यान केंद्रित किया जिसको उन्होंने चार तरह का सामीप्य कहा ˸ ईश्वर के प्रति सामीप्य, धर्माध्यक्ष के प्रति सामीप्य, अपने साथी पुरोहितों के प्रति सामीप्य एवं ईश प्रजा के प्रति सामीप्य।

ईश्वर के प्रति सामीप्य

संत पापा ने बल दिया कि पुरोहित सबसे बढ़कर ईश्वर के सामीप्य के लिए बुलाये गये हैं, जो उन्हें अपने प्रेरिताई में आवश्यक शक्ति प्राप्त करने में मदद देता है। येसु के निकट रहकर पुरोहित आनन्द और दुःख दोनों का अनुभव करता है, क्योंकि वह उनकी शक्ति पर निर्भर करता है न कि अपनी शक्ति पर। इस सामीप्य को प्रार्थना एवं ईश्वर पर मनन-चिंतन के द्वारा मजबूत किया जाना चाहिए। साथ ही साथ पुरोहित को अपने लोगों के करीब रहना है जो उन्हें ईश्वर के नजदीक लाते हैं।  

धर्माध्यक्षों के करीब

संत पापा ने कहा कि अपने धर्माध्यक्षों के करीब रहने का अर्थ है सुनने सीखना, दूसरों के आज्ञापन और दूसरों के साथ संबंध में ईश्वर की इच्छा पहचानना। धर्माध्यक्ष कलीसिया की एकता को स्थापित करता एवं इसकी रक्षा करता है। संत पापा ने पुरोहितों को निमंत्रण दिया कि वे अपने धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना करें, उन्हें आश्वासन दिया कि यदि उनके बीच संबंध बना रहा, तो वे सुरक्षित अपने रास्ते पर आगे बढ़ सकेंगे।  

दूसरे पुरोहितों के साथ नजदीकी

संत पापा ने आगे कहा कि सहभागिता के आधार पर तीसरे नजदीकी संबंध का जन्म होता है जो भ्रातृत्व का सामीप्य है। इस पुरोहितीय भ्रातृत्व में, अकेले नहीं बल्कि जानबूझकर दूसरों के साथ पवित्रता में आगे बढ़ने का चुनाव करना है। इसका अर्थ है दूसरों के साथ खुला और ईमानदार होना, साथ ही साथ विनम्र भी होना। संत पापा ने यह भी स्वीकार किया कि दूसरों के साथ भ्रातृत्व को जीना कठिन है तथा उन्होंने आपसी प्रेम पर आधारित भाईचारा का अग्रदूत बनने के लिए प्रेरित किया। इस पृष्टभूमि पर संत पापा ने पुरोहितीय ब्रह्मचर्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह एक वरदान है जिसे लातीनी कलीसिया सुरक्षित रखती है किन्तु इसे स्वस्थ संबंध पर आधारित होनी चाहिए।

लोकधर्मियों के प्रति सामीप्य

तब संत पापा ने पुरोहितों का लोकधर्मियों के साथ संबंध पर चिंतन किया जिसको उन्होंने कर्तव्य नहीं बल्कि एक कृपा कहा। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हर पुरोहित का सही स्थान लोगों के बीच में होता है, दूसरों के साथ नजदीकी संबंध में।  

उन्होंने कहा कि इसका इसका मतलब लोगों की कठिनाइयों और दुखों से खुद को बचाने के बजाय उनके "वास्तविक जीवन" में शामिल होना है। संत पापा ने पुरोहितों को येसु भले चरवाहे के अंदाज को अपनाने का निमंत्रण दिया जो सामीप्य, सहानुभूति एवं कोमलता का अंदाज है।  

उन्होंने उन्हें अपनेपन की भावना में बढ़ने का प्रोत्साहन दिया, ऐसे युग में जब सभी के सम्पर्क में रहते हुए भी लोग अकेलापन महसूस करते हैं।

बोझ नहीं बल्कि वरदान

संत पापा ने धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों को चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि वे इन सभी नजदीकियों का अभ्यास किस तरह कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि "एक पुरोहित का दिल सामीप्य को समझता है, क्योंकि उसकी निकटता का प्राथमिक रूप प्रभु के साथ है।" संत पापा ने कहा कि ये नजदीकियाँ जिनकी मांग प्रभु करते हैं वे बोझ नहीं हैं बल्कि वरदान हैं जिनको वे हमारी बुलाहट को जीवित और फलप्रद रखने के लिए प्रदान करते हैं।

वे संकेत-स्तंभ हैं जो उनके मिशनरी उत्साह की सराहना करने और उसे फिर से जगाने का मार्ग दिखाते हैं। पुरोहितीय सामीप्य स्वयं ईश्वर के सामीप्य का अंदाज है जो सहानुभूति एवं कोमल प्रेम के साथ हमेशा हमारे नजदीक रहते हैं।

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17 February 2022, 16:33