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संत पापाः संतों की संगति में ख्रीस्तीय एकता

संत पापा फ्रांसिस ने संत योसेफ पर अपनी धर्मशिक्षा का समापन करते हुए संतों के संग ख्रीस्तियों के संबंध पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 02 फरवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बधुवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौलुस षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

विगत सप्ताहों में हमने संत योसेफ के व्यक्तित्व को, सुसमाचार में चर्चित छोटे लेकिन महत्वपूर्ण व्याख्याओं के आधार पर और साथ ही सदियों से प्रचलित उनके व्यक्तित्व जिसे कलीसिया प्रार्थना और भक्ति स्वरूप उजागर करने की कोशिश की है, गहराई से समझने का प्रयास किया है। संत योसेफ की इन सामान्य अनुभूतियों के आधार पर आज मैं हमारे विश्वास के एक महत्वपूर्ण तथ्य का जिक्र करना चाहूँगा जो हमारे ख्रीस्तीय जीवन, संतों तथा प्रिय मृतजनों के साथ हमारे संबंध को और भी समृद्ध बनायेगा। संत पापा ने कहा कि हम प्रेरितों के धर्मसार में, “मैं धार्मियों के संग संबंध पर विश्वास” की बात कहते हैं। इसका अर्थ हमारे लिए क्या हैॽ

चमत्कार के मध्यस्थ संतगण

कभी-कभी ख्रीस्तीयता भी उन पूजा-आराधना के रूपों का शिकार हो सकती है जो हमारे ख्रीस्तीय होने की अपेक्षा गैर-ख्रीस्तीय होने की मानसिकता को अभिव्यक्त करती है। हमारे लिए मूलभूत अंतर यह है कि हमारी प्रार्थना और विश्वासियों की भक्ति किसी इंसान, या किसी छवि या वस्तु में विश्वास पर आधारित नहीं है, तथापि हम इस बात को जानते हैं कि वे पवित्र हैं। नबी येरेमियस इसके बारे में हमें याद दिलाते हैं, “धिकार उस व्यक्ति को जो मनुष्य में विश्वास करता है, (...) धन्य है वह मनुष्य जो ईश्वर पर विश्वास करता है”(17.5,7)। यद्यिप हम एक संत की मध्यस्थता में पूर्णरूपेण आश्रित रहते या उससे भी बढ़कर कुंवारी मरियम से मध्यस्थता की याचना करते हैं, तो हमारे विश्वास का मूल्य केवल ख्रीस्त से संबंधित है। ये ख्रीस्त हैं जिनके नाम में हम अपने को एक दूसरे के संग, संतों की संगति में पाते हैं। संत पापा ने यहाँ इस बात को स्पष्ट किया कि हमारे लिए संत चमत्मकार नहीं करते बल्कि सिर्फ ईश्वर की कृपा जो हमें एक पवित्र, धर्मी व्यक्ति के माध्यम प्राप्त होती है, हमें चंगाई प्रदान करती है। हमें इस तथ्य से स्पष्ट होना है। बहुत से लोग हैं जो कहते हैं, “मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता हूँ, मैं उन्हें नहीं जानता हूँ, बल्कि मैं इस संत को जानता हूँ।” ऐसा कहना अपने में गलत है। एक संत हमारे लिए मध्यस्थ है जो हमारे लिए प्रार्थना करता है और हम उसके पास मध्यस्था की प्रार्थना करते हैं। अतः ईश्वर हमें उस संत के माध्यम अपनी आशीष प्रदान करते हैं।

कलीसिया मुक्ति प्राप्त मानव समुदाय

अतः “संतों की संगति” क्या हैॽ काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें इसके बारे में कहती है,“कलीसिया में धर्मियों का संबंध” (946)। इसका अर्थ क्या हैॽ क्या कलीसिया केवल पूर्णतः प्राप्त लोगों के लिए हैॽ नहीं। इसका अर्थ है कलीसिया पापियों का वह समुदाय है जो बचाये गये हैं। यह परिभाषा अपने में सुन्दर है। कलीसिया से कोई भी अलग नहीं किया जा सकता है हम सभी पापियों के रुप में बचाये गये हैं। हमारी पवित्रता ईश्वर के प्रेम में फलहित होती है जो हमारे लिए ख्रीस्त में प्रकट किया गया है जो हमें प्रेम करते हुए हमारी कमजोरियों से हमें शुद्ध करते और हमें बचाते हैं। हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं जो एक शरीर का निर्माण करते हैं जैसे कि संत पौलुस कहते हैं, येसु सिर हैं औऱ हम उसके अंग (1 कुरू.12.12)। शरीर की यह उपमा हमें इस तत्थ को समझने में मदद करती है कि एकता में बने रहने का अर्थ क्या है। संत पौलुस लिखते हैं,“यदि एक अंग को पीड़ा होती है तो उसके सभी अंगों को पीड़ा होती है, और यदि एक अंग का सम्मान किया जाता है, तो उसके साथ सभी अंग आनंद मनाते हैं। इस तरह आप सब मिलकर मसीह के शरीर हैं और आप में से प्रत्येक उसका एक अंग है (1 कुरू.12.26-27)। यहां पौलुस कहते हैं कि हम सब एक शरीर हैं, सभी विश्वास से, बपतिस्मा से एकजुट हैं... और यह संतों की संगति है।

ईश्वरीय प्रेम अखंडनीय

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा,“सुख और दुःख जो हमारे जीवन का स्पर्श करता है हममें से प्रत्येक को प्रभावित करता है ठीक उसी भांति जैसे कि हमारे निकट रहने वाले भाई और बहन का सुख और दुःख हमें प्रभावित करता है। हम एक दूसरे के प्रति उदासीन नहीं रह सकते हैं क्योंकि हम एक शरीर के रुप में एक दूसरे से संयुक्त हैं। इस अर्थ में, यह एक व्यक्ति का पाप ही क्यों न हो यह सभों को प्रभावित करता है, और हरएक के लिए प्रेम सभों को प्रभावित करता है। संतों के संग एकता के फलस्वरुप कलीसिया का हर सदस्य मुझे से गहराई से जुड़ा है और यह अपने में इतना मजबूत है कि यह मृत्यु से भी पृथ्क नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, संतों की संगति का संदर्भ केवल हमारे उन भाइयों और बहनों के साथ में नहीं है जो इस वक्त हमारे साथ हैं बल्कि यह हमें उन सभों के संग भी संयुक्त करता है जो अपनी इस यात्रा को समाप्त कर मृत्यु को प्राप्त दूसरे लोक में चले गये हैं। वे भी हमारे संग संयुक्त हैं। संत पापा ने कहा कि हम इस बात पर विचार करें कि येसु ख्रीस्त में हमें अपने प्रेम करने वालों से कोई भी अलग नहीं कर सकता है, यह केवल उनके साथ एक रहने से परिवर्तन लाता है, लेकिन हमारे इस संबंध को कोई तोड़ नहीं सकता है। संतों की संगति हमें विश्वासी समुदाय के रूप में इस धरती पर और स्वर्ग में एक साथ संयुक्त रखती है।

ख्रीस्तीय मित्रता लौकिक-आलौकिक

इस अर्थ में, उन्होंने कहा कि अपने अगल-बगल में रहने वाले एक भाई या बहन के संग मित्रता स्थापित करने के अलावे मैं उनके संग भी संबंध स्थापित कर सकता हूँ जो स्वर्ग में हैं। संतगण हमारे लिए वे मित्र हैं जिनके संग हम मित्रमय संबंध स्थापित करते हैं। यहाँ हम किसी एक संत के  प्रति अपनी एक विशेष भक्ति को पाते हैं जो हमारे लिए प्रेम को प्रकट करने की एक निशानी है जो हमें एक दूसरे के संग संयुक्त रखता है। और इस भांति हम जानते हैं कि हम सदैव अपने मित्र की ओर अभिमुख हो सकते हैं विशेष कर जब हम मुश्किल की घड़ी में अपने को पाते हैं। हमें मित्रों की आवश्यकता होती है, हमें जीवन में आगे बढ़ने हेतु अर्थपूर्ण संबंध की जरुरत होती है। संत पापा ने कहा कि येसु के भी मित्र थे, और उन्होंने अपने जीवन की विशेष मानवीय अनुभूतियों की घड़ी में अपने को उनके निकट लाया। कलीसिया के इतिहास में हम कुछ व्यक्तित्वों को पाते हैं जो विश्वासियों के संग सदैव निकट रहे हैं, सर्वप्रथम कलीसिया ने ईश्वर की माता मरियम के सानिध्य को अनुभव किया है जो हमारी माता हैं वे स्नेहिल रुप में हमेशा हमारे संग रहती हैं। संत योसेफ के संग भी हम उनके सहचर्य को विशेष रुप में पाते हैं, क्योंकि ईश्वर उन्हें अति मूल्यवान निधि अपने बेटे और कुंवारी मरियम को सौपते हैं। हम सभी संतों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव सदैव प्रकट करे जो हमारे लिए संरक्षकों के रुप में हैं- क्योंकि हम उनके नाम को धारण करते हैं, क्योंकि हम कलीसिया में उसके संग विभिन्न रुपों में संयुक्त रहते हैं। हमारा यह विश्वास हमें सदैव अपने जीवन की विभिन्न परिस्थिति में उनकी ओर अभिमुख होने में मदद करे। संत की भक्ति कोई जादुई बात नहीं है बल्कि यह अपने भाई-बहनों से वार्ता करने जैसा है जो धार्मिक, पवित्र, आदर्श जीवन व्यतीत करते हुए अब ईश्वर के सानिध्य में हैं।

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि मैं संत योसेफ पर अपनी धर्मशिक्षा माला का समापन एक उस प्रार्थना से करना चाहता हूँ जो मेरे हृदय के निकट है जिसका जाप मैं अपने दैनिक जीवन में चालीस सालों से करता आ रहा हूँ।

महिमामय कुलपति संत योसेफ,

जिसकी शक्ति असंभव को संभव बनाती है,

जीवन के दुःख और कठिन परिस्थिति में मेरी सहायता कर।

मेरे जीवन की विकट और गम्भीर बातों को अपने संरक्षण में लें

जिन्हें मैं तुझे अर्पित करता हूँ, जिससे वे सुखद परिस्थिति में बदल सकें।

मेरे प्रिय पिता, सारा भरोसा मैं तुझ पर अर्पित करता हूँ।

तुझसे विनय करना कभी व्यर्थ न हो, तू येसु और मरियम के संग सारी चीजें कर सकता है,

मुझे यह दिखा कि तेरी अच्छाई तेरी शक्ति जैसे महान है। आमेन

 

 

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02 February 2022, 15:08