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संत पापाः मृत्यु और पुनरूत्थान जीवन की सत्यता

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में संतों की संगति पर प्रकाश डालते हुए मृत्यु और पुनरूत्थान की सत्यता पर चिंतन किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 9 फरवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

पिछले सप्ताह की धर्मशिक्षा में, संत योसेफ के जीवन से पुनः प्रेरित होते हुए हमने संतों की संगति के अर्थ पर चितंन किया। इस संदर्भ में आज की धर्मशिक्षा में, मैं ख्रीस्तियों की उस विशेष भक्ति का जिक्र करना चाहूँगा जहाँ वे संत योसेफ को भला मरण के संरक्षक संत की तरह देखते हैं। इस भक्ति का उद्भव उस विचार से होता है कि संत योसेफ की मृत्यु येसु और कुंवारी मरियम के सरंक्षण में हुई। हमें संत योसेफ के बारे में कोई ऐतिहासिक सूचना नहीं मिली है और न ही जनसामान्य जीवन में उनकी कोई चर्चा, इससे यह प्रतीत होता है कि उनकी मृत्यु नाजरेत में उनके परिवार, येसु और मरियम की उपस्थिति में हुई।  

संत योसेफ एक सेतु

संत पापा बेनेदिक्त 15वें ने एक सदी पहले लिखा, “योसेफ के माध्यम हम सीधे मरियम के पास जाते, और मरियम के द्वारा पवित्रता के स्रोत येसु के पास पहुँचते हैं।” संत योसेफ और मरियम हमें येसु की ओर आने में मदद करते हैं। संत योसेफ के आदर में उन्होंने एक धार्मिक प्रथा की शुरूआत यह कहते हुए किया, “क्योंकि वे मृत्युशय्या में पड़े लोगों के लिए एक प्रभावकारी रक्षक हैं जिनकी मृत्यु मरियम और येसु के सानिध्य में हुई, यह उन पवित्र संघों जैसे कि “द गुड डेथ”, “ट्रांजिट ऑफ सेंट जोसेफ” और “मृत्युशय्या” संस्थानों में कार्यारत पुरोहितों को लोगों की देखभाल करने और उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु सहायक होगा।

मृत्यु का संबंध

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि शायद कुछ लोग सोचते हैं कि यह केवल अतीत में किया गया प्रचलन है, लेकिन वास्तव में, मृत्यु का संबंध हमारे अतीत से कभी नहीं है बल्कि इसका संबंध हमारे वर्तमान से है। उन्होंने कुछ दिन पूर्व संत पापा बेनेदिक्त 16वें द्वारा कही गई बातों को उद्धृत करते हुए कहा, “वह मौत के अंधेरे दरवाजे के सामने हैं”। “अच्छा अनुभव” करने वाली संस्कृति मृत्यु को अपने से दूर करने का प्रयास करती है लेकिन कोरोना महामारी ने इसे हमारे जीवन के केन्द्र-बिन्दु में पुनः नाटकीय ढ़ंग से लाकर खड़ा कर दिया है। हमारे बहुत से भाई-बहनों ने अपने प्रियजनों को अपने से दूर रहते हुए खोया है, यह हमें मृत्यु को स्वीकारने और उससे होकर गुजरने हेतु और भी कठिन बना दिया है। संत पापा ने अस्पताल की एक परिचारिका के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मृत्युशय्या में पड़ी एक नानी ने उनसे कहा कि मैं मरने से पहले अपने प्रियजनों को अलविदा कहना चाहती हूँ। उस परिचारिका ने फोन में उसके परिजनों से बातें कराते हुए उसकी करूणामय विदाई में मदद की। 

इन सारी चीजों के बावजूद, हम जीवन के सीमित अस्तित्व में बने रहने की चाह रखते हैं, हम विश्वास के इस भ्रम में रहते हुए मृत्यु की शक्ति और भय को अपने के दूर करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ख्रीस्तीय विश्वास मृत्यु के भय से दूर होना नहीं अपितु इसका सामना करने हेतु हमारी मदद करता है।

पुनरूत्थान की सत्यता

येसु का पुनरूत्थान हमारे लिए मृत्यु के रहस्य को सही अर्थ में प्रकाशित करता है। संत पौलुस लिखते हैं,“यदि हमारी शिक्षा यह है कि मसीह मृतकों में से जी उठे, तो आप लोगों में कुछ यह कैसे कहते हैं कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होताॽ यदि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता, तो मसीह भी जी नहीं उठे। यदि मसीह जी नहीं उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है औऱ आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है। (1 कुरू.15.12-14)

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि हम केवल पुनरूत्थान पर विश्वास करने के द्वारा बिना भयभीत हुए मृत्यु के गर्त का सामना कर सकते हैं। उतना ही नहीं, हम मृत्यु को सकारात्मक रुप में देख सकते हैं। वास्तव में, मृत्यु के बारे में विचार करते हुए, हम ख्रीस्त के रहस्य से आलोकित होते, जो हमें जीवन को नई निगाहों से देखने हेतु मदद करता है। मैंने शववाहन के पीछे एक ट्रक को कभी नहीं देखा है। उन्होंने कहा कि हम कफन में अकेले जायेंगे हमारे साथ दूसरी और कोई भी चीजें नहीं जायेंगी। यही मृत्यु की हकीकत है। एक दिन हम सभी मर जायेंगे अतः हमारे जमा करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। हमें चाहिए कि हम अपने लिए प्रेम एकत्रित करें और उसे दूसरों के संग बांटें, हम दूसरों की आवश्यकता पर अपने को उदासीन न रखें। हमारे लिए इसके क्या लाभ कि हम अपने एक भाई-बहन, मित्र, अपने एक संबंधी या अपने ही धर्म के किसी भाई या बहन से युद्ध की स्थिति में रहते हों, जहाँ हमें एक दिन मर जाना है। हमारे लिए किसी से, दूसरों से क्रोधित होना क्या अर्थ रखता हैॽ मृत्यु की स्थिति में सारे सावल छोटे हो जाते हैं। हमारे लिए यह उचित है कि हम मेल-मिलाप कर, बिना किसी द्वेष और किसी बात की आह भरे मृत्यु को प्राप्त करें।

मृत्यु अतिथि 

सुसमाचार हमें बतलाता है कि मृत्यु एक चोर की भांति आयेगा, येसु हमें यही कहते हैं। और चाहे हम इसे अपने से कितना भी दूर करने की कोशिश करें, यहाँ तक कि इसके बारे में योजना बनायें, यह एक घटना ही रहेगी जिसे हमें गले लगाना है, इसके पहले हमें चाहिए कि हम अपने लिए चुनाव करें।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा हम ख्रीस्तियों के लिए दो बातें मुख्य रुप में रह जाती हैं। पहली कि हम मृत्यु को अपने से दूर नहीं कर सकते हैं और यही कारण है कि मानवीय रुप में सभी चीजें करने के बाद, व्यर्थ के उपचार में संलग्न होना अनैतिकता है (सीसीसी 2278)। उन्होंने कहा कि हम विश्वासियों को यह कहते हुए सुनते हैं, “उसे शांति में मरने दो” यह कितनी विवेकपूर्ण बात है। दूसरी बात मृत्यु के संबंध में ही, हमारे दुःख-दर्द की गुणवत्ता। वास्तव में, हमें चिकित्सा के प्रयासों हेतु कृतज्ञता के भाव प्रकट करना चाहिए क्योंकि “प्रशामक देखभाल” जैसे यह कहलाती है, जहाँ हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुरूप अंतिम क्षणों तक जीवन जीने की चाह रखता है। यद्यपि हम इस बात पर ध्यान दें कि हम इच्छा मृत्यु से अपने को भ्रमित न होने दें। हमें लोगों को मृत्यु की ओर बढ़ने में साथ देना है लेकिन हम उन्हें मृत्यु के लिए या आत्महत्या हेतु मदद न करें। संत पापा ने कहा कि मैं इस बात पर जोर देना चाहूँगा कि चिकित्सा और सेवा पाने का अधिकार सभों का है जिसे सदैव प्रथामिकता देने की जरुरत है जिससे कि सबसे कमजोर, विशेष कर बुजुर्ग और बीमार परित्याग का शिकार कभी न हों।  जीवन एक अधिकार है, न कि मृत्यु, जिसे हमें स्वागत करने की जरुरत है हमें इसे किसी को देना नहीं है। यह नौतिकता का सिद्धांत न केवल ख्रीस्तियों वरन सभों के लिए लागू होता है।

बुजुर्ग हमारी निधि हैं

अपनी धर्मशिक्षा के अंत में संत पापा ने एक कटु सामाजिक समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए उसे “योजना” की संज्ञा दी, जो बुजुर्गों को शीघ्रता से मौत की ओर अग्रसर करना है। कुछ निश्चित समुदाय में बुजुर्ग लोगों को जरूरत से कम दवाइयाँ दी जाती हैं जो अपने में अमानवीय है, जिससे उन्हें मृत्यु की ओर जल्द धकेला जा सके। हमें उन्हें मानवता के निधि स्वरुप देखभाल करने की जरुरत है, वे हमारे लिए प्रज्ञा हैं। यदि वे नहीं बोलते, अपने में विचारहीन हो जाते फिर भी वे हमारे लिए मानवीय ज्ञान की निशानी होते हैं। उन्होंने हमारे लिए सुन्दर मार्ग तैयार कर बहुत सारी सुन्दर चीजें, यादें, ज्ञान की बातों को छोड़ा है। संत पापा ने बुजुर्गों को अपने से अगल नहीं करने, उन्हें मृत्यु की ओर नहीं ढ़केलने का आहृवान किया। एक बुजुर्ग की सेवा करना आशा में एक बालक की देख-रेख करने के समान है क्योंकि जीवन की शुरूआत और उसका अंत अपने में एक रहस्य है, एक रहस्य जिसे हमें सम्मान, सहचर्य और सेवा करते हुए प्रेम करना है।

संत योसेफ हमें मृत्यु के रहस्य को बेहतर तरीके से जीने में मदद करें। एक ख्रीस्तीय के लिए भला मरण अपने में ईश्वरीय कृपा का एहसास है, जो हमारे लिए अपने जीवन के अंतिम समय तक भी आता है। प्रमाण मरियम की प्रार्थना में भी हम कुंवारी मरियम से इसके लिए निवेदन करते हैं,“हमारे मरण के समय”। यही कारण है कि आज मैं इस धर्मशिक्षा माला का समापन प्रणाम मरियम की प्रार्थना से करना चाहूँगा, उनके लिए जो मरण संकट में हैं और वे जो वियोग की अवस्था में जी रहे हैं।  

 

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09 February 2022, 15:04