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संत पापाः वृद्धावस्था सभों के लिए उपहार

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में बुजुर्गों पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार 23 फरवरी, 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

हमने संत योसेफ पर अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की। आज हम ईश वचन की प्रेरणा में एक धर्मशिक्षा माला की शुरूआत करेंगे जो वृद्धावास्था और उसके मूल्य को समझने हेतु हमारी मदद करेगा। आइए हम वृद्धावस्था पर चिंतन करें। आज से कुछ दशकों पहले, जीवन की इस अवस्था को “नए लोगों” की संज्ञा दी गई जिसका संबंध वास्तविक रुप से बुजुर्गों से है। मानव इतिहास में हमने उनकी संख्या को इतना अधिक नहीं पाया जिनता की आज है। उनका परित्याग करने की जोखिम आज हमारे लिए उतनी ही अधिक बनी है, क्योंकि बुजुर्गों को बहुधा एक भार स्वरुप देखा जाता है। ये वे थे जिन्हें महामारी के प्रथम नाटकीय चरण में सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। वे पहले ही अपने में सबसे कमजोर और छोड़ दिये समूह के लोग थे, जब तक वे जीवित थे हमने बहुत अधिक उनकी देख-रेख नहीं की, हमने उन्हें मृत्युशय्या में भी नहीं देखा।

वृद्धावस्था एक महत्वपूर्ण मुद्दा

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि प्रवासन के अलावे, बुजुर्गावस्था हमारे लिए एक अति महत्वपूर्ण मुद्द है जिससे मानव परिवार वर्तमान समय में जूझ रहा है। यह केवल संख्या में परिवर्तन की बात नहीं है बल्कि जीवन के चरणों में हम एकता की जोखिम को पाते हैं, कहने का अर्थ इसका मुख्य संदर्भ मानव जीवन को उसकी संपूर्णता में समझने और उसकी सराहना करने से है। हम अपने में पूछें, क्या हम जीवन के विभिन्न स्तरों में मित्रता, सहयोग को पाते हैं या हम उन्हें अगल करते हुए अपने से दूर कर देते हैंॽ

हम वर्तमान परिस्थिति में बच्चों, युवाओं, व्यस्कों और बुजुर्गों के साथ में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन हम इसके अनुपात में परिवर्तन को पाते हैं- विश्व के अधिकांश भाग में, हम दीर्घायु में बढ़ोत्तरी को पाते तो वहीं बचपना अपने में छोटी खुराकों में बांट कर रह गया है। इस असंतुलन के कई दुष्परिणाम हो रहे हैं। आज प्रमुख संस्कृति में हम युवा वयस्क को एकमात्र आदर्श के रुप में पाते हैं अर्थात एक व्यक्ति जो व्यक्तिगत रुप में अपने को सदा युवा रखता है। यह सही है कि युवावस्था अपने में अर्थपूर्ण चीजों से भरी है, लेकिन क्या बुजुर्गावस्था हमारे लिए खाली और खोयेपन को प्रस्तुत करती हैॽ युवावस्था को मानव हेतु एकमात्र आदर्श अवस्था के रूप में माहिममंडित करना,  जबकि बुढ़ापे की अवस्था को अवमानना के साथ कमजोरी, बेकार, विकलांगता के रुप में देखना बीसवीं सदी के अधिनायकवाद की प्रमुख छवि रही है। क्या हम इस सोच को भूल गये हैं?

वृद्धावस्था के प्रति मानसिकता

जीवन की अवधि का संरचनात्मक प्रभाव व्यक्तियों, परिवारों और समाजों के इतिहास पर पड़ता है। लेकिन हमें अपने में पूछने की आवश्यकता है, क्या इसका आध्यात्मिक गुण और इसकी सांप्रदायिक भावना इस तर्क से मेल खाती है? शायद बुजुर्गों को अपने में अपनी ढिठाई हेतु क्षमा मांगने की जरुरत है जो जीवन हेतु दूसरों पर आश्रित रहते हैंॽ या हम उन्हें उन गुणों के लिए सम्मान देते हैं जिसे उन्होंने दूसरों के जीवन में प्रसारित किया हैॽ वास्तव में, जीवन की अर्थपूर्णत के संबंध में और खास कर जो अपने में विकसित संस्कृति कहलाती है- बुजुर्गावस्था को कम आंका जाता है। क्योंॽ क्योंकि इसे वह अवस्था समझा जाता है जिसमें समाज को देने हेतु कुछ विशेष नहीं होता है, और न ही स्वयं उनमें जीवन जीने का कोई अर्थ होता है। इससे भी बढ़ हम हम देखते हैं कि उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता, उनकी कोई पूछ नहीं होती है, यह मानव समाज में इस शिक्षा की कमी को व्यक्त करता है कि उन्हें कोई पहचान नहीं दिया जाता है। संक्षेप में, बुजुर्ग जो अपने समय में समुदाय के अभिन्न अंग रहे जिन्होंने अपने जीवन के एक तिहाई जिन्दगी गुजारी, कभी-कभी देखभाल योजनाएं के होते हुए भी अपने जीवन अस्तित्व से बाहर होते हैं। और यह हमारे विचार, कल्पना और रचनात्मकता की शून्यता को व्यक्त करता है। हम बुजुर्गों को बेकार की चीज, फेंके जाने वाली वस्तुओं के रुप में देखते हैं।

पीढ़ियों में समांजस्य की जरुरत

युवावास्था अपने में सुन्दर है लेकिन यह अपने में एक अति भयंकर भ्रमित अवस्था है। बुजुर्गावस्था हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की युवावास्था। हम इस बात को याद रखें। पीढ़ियों के बीच समांजस्य,  जो मानव को जीवन के सभी युगों में पुनर्स्थापित करता है, हमारा खोया हुआ उपहार है। हमें इसे फिर से खोजना होगा।

ईश्वर का वचन इस संदर्भ में हमें बहुत कुछ कहता है। जैसे कि हमने धर्मशिक्षा के शुरू में नबी योएल के ग्रंथ में सुना,“तुम्हारे युवा भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे बड़े-बूढ़े स्वप्न देखेंगे” (योए.3.1) संत पापा ने कहा कि हम इसका अनुवाद इस तरह से कर सकते हैं, जब बुजुर्ग अपनी उत्साह खो देते हैं, अतीत के अपने सपनों को दफन कर देते, तो ऐसी परिस्थिति में युवा उन चीजों को नहीं देख सकते हैं जिन्हें भविष्य को खोलने के लिए किया जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, जब बुजुर्ग अपने सपनों की चर्चा करते, तो युवा इस बात को स्पष्ट रुप में देखते हैं कि उन्हें क्या करना है। युवा जब बुजुर्गों के सपनों के बारे में नहीं पूछते, बल्कि अपनी नाक से आगे नहीं जाने वाली दृश्यों पर ही अपना सिर झुकाये रहते, तो वे अपने वर्तमान में आगे बढ़ने और भविष्य में फलहित होने हेतु संघर्ष करते हैं। संत पापा ने कहा कि यदि नाना-नानी और दादा-दादी अपने में उदासी का शिकार होते तो युवा अपने में स्मार्टफोन पर ही सिमटे रह जायेंगे। स्कीन अपने में चालू रहेगा लेकिन जीवन का अंत समय से पहले हो जायेगा। क्या इस महामारी के समय में सबसे गंभीर नुकसान युवाओं को नहीं हुआ है? पुराने लोगों के पास जीवन के संसाधन पहले से हैं जिसका वे उपयोग कर सकते हैं। क्या वे उदासीन खड़े होकर युवाओं की विलुप्त होती नजरों को देखेंगे या वे अपने सपनों को गर्मजोशी के साथ उनके संग साझा करेंगेॽ

विवेकपूर्ण लम्बी यात्रा जो वृद्धावस्था को लेकर आती है हमें चाहिए कि हम जीवन के अर्थ को अनुभव के रुप में दूसरों के संग साझा करें, न कि हम उसे अस्तित्व की जड़ता स्वरूप उपभोग करें। यदि वृद्धावस्था मानव जीवन को एक योग्य जीवन की गरिमा स्वरुप बहाल नहीं करती, तो यह अपने आप को एक निराशा में बंद कर लेती है जो दूसरों को सभी तरह के प्रेम से वंचित कर देता है। मानवता और सभ्यता की इस चुनौती को हमारी प्रतिबद्धता और ईश्वरीय सहायता की आवश्यकता है। आइए हम पवित्र आत्मा से निवदेन करें। वृद्धावस्था पर अपनी इस धर्मशिक्षा के द्वारा मैं सभों से यह चाहूँगा कि हम अपने विचारों और प्रेममय उपहारों को एक दूसरे के संग साझा करें जो जीवन को विकसित करता है। वृद्धावस्था जीवन के सभी उम्र के लिए एक उपहार है। यह परिपक्वता का, ज्ञान का उपहार है। ईश्वर का वचन हमें वृद्धावस्था के मूल्य और अर्थ को पहचाने में मदद करेगा, पवित्र आत्मा हमें अपनी कृपा से भर दें कि हम सपने और ख्वाब देख सकें।

वृक्ष और जड़

संत पापा ने नबी योएल के ग्रंथ से लिए गये वचनों के अनुरूप पुनः इस बात पर बल दिया कि युवा बुजुर्गों के साथ वार्ता करें और उसी भांति बुजुर्गजन युवाओं के संग। यह सेतु मानवता में ज्ञान का विकास करेगा। यह चिंतन हमें एक दूसरे से वार्ता करने में मददगार सिद्ध हो जिससे युवा बुजुर्गों के सपनों को आगे ले सकें। संत पापा ने युवाओं और बुजुर्गों के बीच के संबंध को पेड़, जड़, फूल और फल की उपमा देते हुए अपनी धर्मशिक्षा माला के अंत में कहा कि बुजुर्ग बेकार की चीजें नहीं बल्कि वे समाज के लिए एक आशीष हैं। 

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23 February 2022, 15:41