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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना ˸ येसु के शिष्य दरिद्र और प्रसन्नचित होते हैं

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने चिंतन में ख्रीस्तीय पहचान पर चिंतन किया जिसे धन्यताओं में समझा जा सकता है तथा कहा कि येसु के शिष्य धन्य हैं क्योंकि वे दरिद्र हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 13 फरवरी 2022 (रेई)˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 13 फरवरी को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

गरीब, धन्य, विनम्र

आज की धर्मविधि के सुसमाचार पाठ के केंद्र में धन्यताएँ हैं (लूक. 6,20-23)। यह गौर करना रोचक है कि येसु भीड़ द्वारा घिरे होने के बावजूद अपने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए घोषणा करते हैं। (20) धन्यताएँ, निश्चय ही येसु के शिष्यों की पहचान को परिभाषित करते हैं। जो शिष्य नहीं हैं उनके लिए ये अजीब सुनाई दे सकते हैं, लगभग समझ के परे। जबकि यदि हम पूछें कि येसु के शिष्य को कैसे होना चाहिए, उत्तर निश्चित रूप से, धन्यताएँ होंगी। पहले पर गौर करें, जो सबका आधार है ˸ धन्य हो तुम जो दरिद्र हो, स्वर्ग राज्य तुम लोगों का है।" (20) संत पापा ने कहा, "येसु अपने शिष्यों से दो चीजें कहते हैं ˸ धन्य एवं दरिद्र ; कि वे दरिद्र हैं इसलिए धन्य हैं।"

संत पापा ने प्रश्न किया, "किस अर्थ में? उन्होंने अर्थ बतलाते हुए कहा, "इस अर्थ में कि येसु के शिष्य अपना आनन्द रूपया या अन्य वस्तुओं में नहीं पाते, बल्कि उस दान में जिसको वे हर दिन ईश्वर से प्राप्त करते हैं ˸ जीवन, सृष्टि, भाई एवं बहनें आदि।" और अपने पास जो कुछ है उसे आपस में बांटने में संतुष्टि अनुभव करते हैं क्योंकि वे ईश्वर के तर्क में जीते हैं जो मुफ्त है। शिष्य मुफ्त के मनोभाव में जीना सीखता है। यह दरिद्रता भी जीवन की सार्थकता के लिए एक मनोभाव है। क्योंकि येसु का शिष्य इसे प्राप्त करना, सब कुछ को जानने नहीं चाहता बल्कि जानता है कि उसे हर दिन सीखना है। अतः शिष्य विनम्र होता है, और यह एक दरिद्रता है, हर दिन सीखने की चेतना है। येसु के शिष्यों का मनोभाव क्यों ऐसा होता है, क्योंकि वह एक दीन व्यक्ति है, खुला तथा पूर्वाग्रह एवं कठोरता से दूर।

धन्यता का विरोधाभास

पिछले रविवार के सुसमाचार पाठ में एक अच्छा उदाहरण था ˸ सिमोन पेत्रुस, मछली मारने में माहिर, येसु के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए एक असामान्य समय में जाल डालता है और चमत्कारिक रूप से मछली पकड़ने पर आश्चर्यचकित होता है। पेत्रुस सब कुछ को छोड़कर विनम्रता का प्रदर्शन करता है इस तरह वह शिष्य बन जाता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने विचार, अपनी सुरक्षा से बहुत अधिक आसक्त होता है वह बड़ी कठिनाई से येसु का अनुसरण करता है। उन्हीं चीजों में उनका अनुसरण करता हूँ जिनमें वह सहमत होता और वे भी सहमत होते," अन्य चीजों में नहीं। संत पापा ने कहा कि वह शिष्य नहीं है। इस तरह वह उदासी में पड़ जाता है। वह उदास हो जाता है क्योंकि वह उसके लिए महत्वहीन होता, क्योंकि वास्तविकता उनकी मानसिकता से दूर होती है इस तरह वह असंतुष्ट हो जाता है। जबकि शिष्य जानता है कि अपने आपसे किस तरह सवाल करना है, हर दिन दीनता से ईश्वर की खोज करना जानता है और यही है जो व्यक्ति को सच्चाई में प्रवेश कराता है, इसकी समृद्धि एवं जटिलता को समझना।

अकड़ता से मुक्त

दूसरे शब्दों में शिष्य, धन्यताओं के विरोधाभास को स्वीकार करता है ˸ वे घोषित करते हैं कि जो गरीब हैं, जिनके पास सामान नहीं हैं और वे इसे स्वीकार करते हैं वे धन्य हैं, आनन्दित हैं। मानवीय रूप से, हम अलग तरह से सोचने के लिए प्रेरित किये जाते हैं। सामान्यतः वही खुश होता है जो धनी है, तृप्त है, सम्पति पर अधिकार रखता है, जिसको प्रसिद्धि मिली है, जिसकी ओर अधिक लोग आकर्षित होते हैं, जिसके पास सुरक्षा के हर साधन मौजूद हैं। संत पापा ने कहा कि यह एक दुनियावी सोच है धन्यताओं के अनुसार नहीं। इसके विपरीत, येसु दुनिया की सफलता को असफलता कहते हैं क्योंकि यह स्वार्थ पर आधारित है जो फूलाता और अंत में खाली छोड़ देता है। धन्यताओं के विरोधाभास के सामने शिष्य चुनौती महसूस करते हैं, इस बात को जानते हुए कि हमारे तर्क में ईश्वर को प्रवेश नहीं करना है बल्कि हमें उनके तर्क में प्रवेश करना है। और यह यात्रा की मांग करता है जो कभी-कभी थकानदेह होता, लेकिन हमेशा खुशी प्रदान करता है। क्योंकि येसु के शिष्य उस आनन्द से आनन्ददित होते हैं, जो येसु से आता है। हम येसु के कथन के पहले शब्द को याद करें ˸ धन्य हो, इसी से धन्यताएँ बनी है। यह शिष्य होने का पर्यायवाची शब्द है। प्रभु हमें आत्मकेंद्रितता की गुलामी से मुक्त कर, हमारे बंद को खोलते, हमारी कठोरता को नरम बनाते और हमारे लिए सच्ची खुशी को खोलते हैं, जिसको बहुधा हम वहाँ पाते हैं जहाँ उम्मीद नहीं करते। हमारे जीवन का मार्गदर्शन उन्हें करना है न कि हमें अपनी मांगों से। और अंत में शिष्य वह है जो अपने आपको येसु को देखने देता, जो येसु के लिए अपना हृदय खोलता, उन्हें सुनता और उनके रास्ते पर चलता है।

ख्रीस्तीय शिष्य होने का आनन्द

अतः हम अपने आप से सवाल कर सकते हैं- क्या मुझमें शिष्य होने की तत्परता है? अथवा क्या मैं उस अकड़ता से व्यवहार करता हूँ जो अपने आप में महसूस करता है कि सब कुछ ठीक है, उचित है, भरपूर है? क्या मैं अपने आपको अंदर से धन्यताओं से प्रेरित होने देता हूँ या क्या मैं अपने ही विचारों के घेरे में रहना पसंद करता। कठिनाइयों एवं मुश्किलताओं को एक किनारे रखकर, क्या मैं येसु का अनुसरण करने का आनन्द महसूस करता हूँ? हम हृदय के आनन्द को न भूलें। यदि कोई शिष्य है तो उसे यह जानना एक कसौटी है कि क्या उसके दिल में आनन्द है? यही विन्दु है।

माता मरियम, प्रभु के प्रथम शिष्य हमें शिष्यों के समान खुला और प्रसन्नचित रहकर जीने में मदद दे। इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।   

देवदूत प्रार्थना के दौरान संत पापा फ्रांसिस का संदेश

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13 February 2022, 14:41