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संत पापाः समर्पित जीवन के लिए नई दृष्टि विकसित करें

संत पापा फ्रांसिस ने विश्व समर्पित दिवस के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए समर्पित जीवन के लिए तीन बातों पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरूवार, 03 फरवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने 02 फरवरी को विश्व समर्पित दिवस के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर में यूख्ररिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

मिस्सा बलिदान के दौरान उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि दो बुजुर्ग व्यक्ति सिमियोन और अन्ना ईश मंदिर में ईश्वरीय प्रतिज्ञा, मुक्तिदाता का अपने लोगों के बीच आने की प्रतिक्षा कर रहे  होते हैं। यद्यपि उनकी प्रतीक्षा निष्क्रिया नहीं बल्कि अपने में कार्यों से भरी थी। हम सिमियोन की ओर देखें। सर्वप्रथम वह अपने को पवित्र आत्मा से प्रेरित पाता है, उसके बाद वह बालक येसु में मुक्ति को देखता और अंततः उसे अपनी बांहों में लेता है। हम अपने समर्पित जीवन में इन तीन बातों पर चिंतन करें।

हमारी प्रेरणा कहाँ से आती हैॽ

पहली बात हमें क्या प्रेरित करती हैॽ सिमियोन पवित्र आत्मा से प्रेरित ईश मंदिर जाते हैं। हम यहाँ पवित्र आत्मा को नायक के रुप में पाते हैं। वे सिमियोन के हृदय को ईश्वरीय चाहत से प्रज्जवलित करते हैं। वे उनके हृदय में आशा को जाग्रित करते हैं। वे उसे मंदिर में जाने को प्रेरित करते और वहाँ मुक्तिदाता को पहचानने में मदद करते हैं यद्यपि मुक्तिदाता एक गरीब बालक के रुप में प्रकट होते हैं। पवित्र आत्मा हमारे लिए यही करते हैं- वे हमें ईश्वर की उपस्थिति को पहचानने और उनको कार्य में देखने में मदद करते हैं जो बड़ी चीजों, वाह्य दिखावा में नहीं होती बल्कि अपनी छोटी और संवेदनशीलता में होती हैं। शब्द “ईश्वर की आत्मा से प्रेरित” हमें प्राचीन ईशशास्त्र की याद दिलाती है जो “पवित्र आत्मा की परख” कहलाती है, इसका तत्पर्य हमारी आत्मा के मनोभावोँ से है जिसे हम अपने अंदर पहचानते हैं और उसकी जाँच करने हेतु आमंत्रित किये जाते हैं, जिससे हम उसकी पहचान सकें कि वे पवित्र आत्मा से आते हैं या नहीं।

प्रेरणा का उद्गम स्थल

संत पापा ने कहा कि हम अपने में यह पूछ सकते हैं कि हमें क्या मुख्य रुप में प्रेरित करता हैॽ क्या यह पवित्र आत्मा है या दुनियादारी की आत्माॽ यह वह सवाल है जिसे हम सभों को और विशेषकर समर्पित लोगों को अपने में पूछने की आवश्यकता है। पवित्र आत्मा हमें ईश्वर को छोटे और बालक की संवेदनशीलता में प्रकट करते हैं यद्यपि हम बहुधा हम अपने समर्पित जीवन में केवल परिणामों,लक्ष्यों, और सफलताओं तक ही सीमित हो कर रह जाते हैं, हम अपने प्रभाव, अपनी दृश्यता और संख्याओं को अपने में देखते हैं। वहीं दूसरी ओर पवित्र आत्मा इन चीजों को नहीं देखते हैं। वे हमसे चाहते हैं कि हम नित्य प्रतिदिन निष्ठावान बने रहें और उन छोटी चीजों के प्रति सजग रहें जिन्हें देख-रेख करने की जिम्मेदारी हमें सौंपी गई हैं। सिमियोन और अन्ना की निष्ठा अपने में कितनी हृदयस्पर्शी है। प्रतिदिन वे ईश मंदिर जाते, प्रार्थना करते जबकि समय बीतता जाता और ऐसा प्रतीत होता  है मानो कुछ नहीं हो रहा है। वे बिना निराश हुए या शिकायत किये अपनी आशा में बने रहते हुए पवित्र आत्मा द्वारा प्रज्जवलित की गई आशा के दीप को अपने हृदय में बनाये रखते हैं। 

संत पापा ने कहा, “प्रिय भाइयो एवं बहनों हम अपने में पूछें कि हमारे दौनिक जीवन को क्या प्रेरित करता हैॽ वह कौन-सा प्रेम है जो हमें आगे ले चलता हैॽ क्या यह पवित्र आत्मा हैं या वर्तमान समय की इच्छाएंॽ हम कलीसिया और समाज में कैसे आगे बढ़ते हैंॽ” कभी-कभी हमें अपने बड़े कार्य के बावजूद छिपे रह जाते हैं। वहीं दूसरी ओर अच्छी चीजें करने के बाद भी हमारे समुदाय अपने में दैनिक कार्यों के दुहरावे मात्र प्रतीत होते हैं- जहाँ हम अपने कार्यो को पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर उत्साह में खुले तौर पर करने के बदले आदतन करते और अपने को व्यस्त रखते हैं। आज हम अपनी आंतिरक हलचल का पता लगायें और पवित्र आत्मा की गतिविधि की जाँच करें जिससे हम अपने समर्पित जीवन में नवीनता का अनुभव कर सकें।

हम क्या देखते हैंॽ

संत पापा ने दूसरे सवाल के बारे में कहा कि हमारी आंखें क्या देखती हैंॽ पवित्र आत्मा से प्रेरित, सिमियोन ने ख्रीस्त को पहचाना। इस तरह वह यह कहते हुए प्रार्थना करते हैं, “मेरी आंखों ने तेरी मुक्ति को देखा है”। यह विश्वास का बहुत बड़ा चमत्कार है, यह आंखों को खोलती है, हमारी निगाहों को परिवर्तित करती और हमारी दृष्टिकोणों को बदलती है। हम इसे सुसमाचार के विभिन्न संदर्भों में येसु से मिलन में पाते हैं, विश्वास की उत्पत्ति करूणामय दृष्टि में होती है जहाँ ईश्वर हमारी ओर निगाहें फेरते हैं, यह हमारे हृदय की कठोरता को नम्रता में बदलता है, हमारे घावों को चंगाई प्रदान करता और हमें दुनिया को और स्वयं को नयी निगाहों से देखने में मदद करता है। हम अपनी ओर, दूसरों की ओर और अपने सभी अनुभवों को यहाँ तक की उन्हें भी जो अति कष्टपूर्ण हैं, नये रुप में देखते हैं। यह अपने में घिसा-पिटा, सच्चाई से भागना, और मुसीबतों को अस्वीकारना नहीं बल्कि अपने “अंदर देखना” और “परे जाना” है। एक नजरिया जो रूप-रंगों तक सीमित नहीं होती बल्कि यह अंदर तक जाती, हमारी कमजोरियों और असफलताओं को भी देखती है जहाँ हम ईश्वर की उपस्थिति को परखते हैं।  

बुजुर्ग सिमियोन की आंखें ईश्वर को देखती हैं। वे मुक्ति का दीदार करती हैं। हमारी स्थिति क्या हैॽ हम क्या देखते हैंॽ हमारे समर्पित जीवन की दृष्टि क्या हैॽ दुनिया इसे बहुधा “एक व्यर्थ”, एक पुरानी निशानी, एक बेकार रुप में देखती है। लेकिन हम ख्रीस्तीय समुदाय के नर और नारी, हम क्या देखते हैंॽ क्या हमारी आँखें अपने तक ही सीमित हैं,  हम चीजों की खोज करते जो हमारे पास नहीं हैं या क्या हम विश्वास में दूरदर्शी होते हैं, क्या हम अपने आप से बाहर निकल कर दूर देखते हैंॽ संत पापा ने बुजुर्ग समर्पित लोगों के बारे में कहा कि मैं उन्हें देख कर अपने में बहुत ही सुकून का अनुभव करता हूँ जिनकी आंखों में चमक है जो निरंतर अपनी मुस्कान से युवाओं को आशा प्रदान करते हैं। हम उन क्षणओं की याद करते हुए ईश्वर का धन्यवाद अदा करें जब हमारी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई। क्योंकि उनकी आँखें आशा और भविष्य के लिए खुली हैं।

प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें अपनी निशानियों को देने में असफल नहीं होते जो हमारे समर्पित जीवन को नई दृष्टिकोण से देखने हेतु निमंत्रण देता है। हम उन्हें नहीं देखने का बहाना नहीं कर सकते जिससे हम अपनी राहों में यूं ही चलते हुए अपने पुराने कार्यों में संलग्न रहें, जो हमें आतीत में उलझाये रखता और परिवर्तन के भय से ग्रस्ति करता है। आइए हम अपनी आँखें खोलें- उन्होंने अपने आतीत पर विलाप नहीं किया जो लौट कर कभी नहीं आती हैं बल्कि खुले दिल से भविष्य का आलिंगन किया जो उनके सामने थी। हम आतीत को देखने हुए अपने वर्तमान का विनाश न करें, अपितु हम ईश्वर के सामने आते हुए उनकी आराधना हेतु अपने को अर्पित करें और अच्छाई को देखने तथा ईश्वर की योजना को पहचानने की कृपा मांगें।

येसु को अपनी बाहों में लें

अंत में संत पापा ने तीसरे सवाल के बारे में कहा कि हम अपनी बाहों में क्या लेते हैंॽ सिमियोन ने अपनी बाहों में येसु को लिया। यह अपने में हृदयस्पर्शी दृश्य है जो अर्थ से भरा और सुसमाचार का अद्वितीय भाग है। ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारी बाहों में भी रखा है क्योंकि येसु का आलिंगन करना महत्वपूर्ण बात है यह विश्वास का केन्द्रविन्दु है। कभी-कभी हम इस बात से चूक जाते हैं क्योंकि हम अपने को असंख्य बातों में उलझा पाते, हम छोटी चीजों में फँसे रहते या नये कार्यो में कूद पड़ते हैं जबकि येसु हमारे जीवन के शीर्ष हैं जिन्हें हमें अपने जीवन के स्वामी स्वरूप आलिंगन करना है।

जब सिमियोन ने येसु को अपनी बाहों में लिया उन्होंने आर्शीवचन, महिमा और आश्चर्य की बातें कहीं। यदि समर्पित लोग अपने में उन धन्य वचनों का अभाव पाते जो दूसरो को लिए आशीष का करणा होते हैं, जिनके द्वारा ईश्वर की महिमा होती है, उन में खुशी का अभाव होता, उनकी उत्साह में कमी होती, उनका भातृत्वमय जीवन केवल दिनचर्या मात्र होता तो इसमें किसी बात की कुछ गड़बड़ी नहीं है। यह इसलिए होता है कि हम अपनी बाहों में येसु का आलिंगन नहीं करते हैं। जब ऐसा होता है, तो हमारे हृदय कटुता के शिकार होते, हम चीजों के बारे में शिकायत करने लगते हैं, अपने में हट्ठी और कठोर, अपने अहम में धूमिल हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर यदि हम अपने में येसु को वहन करते तो हम दूसरों को भी विश्वास और नम्रता में गले लगाते हैं। वहाँ लड़ाई आगे नहीं बढ़तीं, असहमति हमें विभाजित नहीं करती और हम किसी को दबाने की परीक्षा में, दूसरों के सम्मान को चोट पहुंचाने से बाज आते हैं। अतः हम अपनी बांहों को येसु के लिए और अपने भाई-बहनों के लिए खोलें।

संत पापा ने कहा कि हम खुशीपूर्वक अपने समर्पित जीवन का नवीनीकरण करें। हम अपने आप से पूछें की हमारे हृदयों और कार्यों को क्या प्रभावित करता है, हम कौन-सी नई दृष्टि को वहन करने हेतु आमंत्रित किये जाते हैं और उससे भी बढ़कर हम येसु को अपनी बाहों में लें। यहाँ तक की जब हम अपने में थकान और चिंताग्रस्त हो जाते हैं, हम वैसा ही करें जैसे कि सिमियोन ने किया। उन्होंने धैर्य में येसु की निष्ठा का इंतजार किया और उनसे मिलन की खुशी से अपने को वंचित होने नहीं दिया। हम येसु को अपने जीवन के क्रेन्द में रखते हुए खुशी से अपने जीवन में आगे बढ़ें। 

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03 February 2022, 12:28