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संत पापाः नारियों का सम्मान ईश्वर का सम्मान

संत पापा फ्रांसिस ने ईश माता के महोत्सव का ख्रीस्तयाग संत पेत्रुस के महागिरजाघर में अर्पित करते हुए माता मरियम पर चिंतन किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 01 जनवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने 01 जनवरी को माता मरियम ईश्वर की माता और विश्व विश्व शांति दिवस के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया। 

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि चरवाहों ने “मरियम और योसेफ, और बालक येसु को चरनी में लेटा पाया” (लूका.2.16)। चरवाहों के लिए चरनी अपने में एक खुशी की निशानी थी, यह उनके लिए स्वर्गदूत से मिले संदेश का पुष्टीकरण था, जहाँ वे तारणहारा को पाते हैं। यह उनके लिए ईश्वरीय निकटता का भी साक्ष्य था क्योंकि वे एक चरनी में जन्म लिये थे, जिसे वे पूरी तरह से जानते थे। चरनी हमारे लिए भी खुशी की एक निशानी है। येसु ख्रीस्त दरिद्रता और नगण्‍यता में हमारे हृदयों का स्पर्श करते हैं, वे हमें अपने भय से नहीं बल्कि प्रेम से भरते हैं। चरनी हमें उनके बारे में कहती है जो हमारे लिए भोजन बनते हैं। उनकी दरिद्रता प्रत्येक जन के लिए शुभ संदेश है विशेष कर गरीबों, परित्यक्त और उनके लिए जो विश्व की नजरों में नण्य हैं। ईश्वर हमारे लिए ऐसे ही आते हैं, अति तेजी से नहीं बल्कि जन्म के स्थल की कमी में आते हैं। उन्हें चरनी में लेटा देखना कितनी सुन्दरता बात है।

ईश माता का दुःख

संत पापा ने कहा कि यद्यपि मरियम, ईश्वर की माता के साथ ऐसी बात नहीं थी। उसे “चरनी के अपमान” का सामना करना पड़ता है। वह भी, चरवाहों से पहले, स्वर्गदूत के द्वारा संदेश पाई थी, जहाँ उसे दाऊद के महिमामय सिंहासन के बारे में कहा गया,“आप गर्भवती होंगी औऱ पुत्र प्रसव करेंगी, और उनका नाम येसु रखेंगी। वे महान होंगे और सर्वोंच्च ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे, ईश्वर उन्हें दाऊद का सिंहासन प्रदान करेंगे” (लूका. 1.31-32)। और अब उन्हें जानवरों के नाँद में लिटाना पड़ा है। वह दो चीजों, राजा के सिंहासन और छोटी चरनी को कैसे अपने में समझ सकती है। वह कैसे ईश्वर की महिमा और गोशाले की दरिद्रता के बीच तालमेल बैठा सकती हैॽ हम ईश माता के दुःखों के बारे में सोचें। एक माता के लिए अपने बच्चे को गरीबी में देखने से बड़ा और कौन-सा दुःख हो सकता हैॽ यह अपने में सचमुच विचलित करने वाला है। हम मरियम को दोष नहीं दे सकते हैं, क्या वह आशा से परे उन तकलीफों के लिए शिकायत कर सकती है। यद्यपि वह हताश नहीं होती है। वह शिकायत नहीं करती अपितु मौन धारण किये रहती है। शिकायत करने के बदले वह एक अलग चुनाव करती है, जैसे कि सुसमाचार हमें बतलाता है, “वह सारी बातों को अपने हृदय में संजोकर रखती और उन पर चिंतन करती है” (लूका.2.19)।

मरियम के दो मनोभाव

संत पापा ने कहा कि  उस बात को चरवाहे और दूसरे लोग नहीं करते हैं। चरवाहे सभों से उन चीजों का जिक्र करते हैं जिसे उन्होंने देखाः आधी रात को दूत उन्हें दिखाई दिये और बालक के बारे में बतलाया। वहीं लोग उनकी बातों को सुनकर आश्चर्यचकित होते हैं। मरियम इसके बदले में, विचार करती है, वह सारी चीजों को अपने में रखती और हृदय में उनके बारे विचार करती है। हम स्वयं अपने में उन दो मनोभावों को धारण कर सकते हैं। चरवाहों के द्वारा घटना का जिक्र और उनका आश्चर्य हमें विश्वास की याद दिलाता है जहाँ सभी चीजें सहज और स्पष्ट लगती हैं। हम ईश्वर की नयी पहल पर आनंदित होते हैं जो हमारे जीवन में प्रवेश करते औऱ हमें आनंद और विस्मय से भर देते हैं। मरियम का चिंतन दूसरी ओर अपने में एक सशक्त विश्वास को व्यक्त करता है। यह नया जन्मा हुआ विश्वास नहीं बल्कि एक विश्वास को जन्म देता है। हमारे लिए आध्यात्मिकता अपनी परीक्षाओं और जाँच में फलहित होती है। नाजरेत की शांति और दूत के द्वारा मिली विजयी प्रतिज्ञा के बीच हम मरियम को अब बेतलेहेम के अंधेरे गोशाले में पाते हैं। यद्यपि वह वहाँ दुनिया के लिए ईश्वर को प्रदान करती है। चरनी के अपमान में दूसरे अपने को गहरे रुप में विचलित पाते हैं। लेकिन मरियम के साथ ऐसा नहीं होता- वह सारी बातों को हृदय में रखती और उन पर चिंतन करती है। 

अपने में रखना और चिंतन करना

संत पापा कहा कि आइए हम ईश माता से दोनों मनोभावों, अपने में रखना और चिंतन करने के बारे में सीखें। क्योंकि हमें भी निश्चित रुप में “चरनी का अपमान” वहन करना पड़ेगा। हम आशा करते हैं कि सारी चीजों ठीक होंगी, लेकिन अचानक मुसीबत आ खड़ी होती है। हमारी अपेक्षाओं का टकराव सच्चाई के दर्द से होता है। यह हमारे विश्वास के जीवन में हो सकता है जब सुसमाचार खुशी की परीक्षा मुश्किल भरी परिस्थितियों में होती है। आज ईश्वर की माता हमें इस टकराव से लाभ उठाने हेतु आमंत्रित करती है। वह हमारे लिए इस बात की आवश्यकता को व्यक्त करती है कि लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग संकरें हैं, क्रूस के बिना हमारे लिए पुनरूत्थान संभव नहीं है। प्रसव की पीड़ा की तरह, यह एक अधिक परिपक्व विश्वास को जन्म देती है।

हम कैसे इस परिस्थिति से आगे निकलते हैं, हमें कैसे आदर्श और सत्य के टकराव से पार जाना हैॽ ठीक उसी तरह पेश आते हुए जैसे मरियम ने किया, अपने में रखते हुए और उन बातों में चिंतन करते हुए। मरियम जो होता है पहले उन्हें “धारण” करती है, वह उन्हें नहीं भूलती या उनका परित्याग नहीं करती है। वह उन सारी चीजों को अपने हृदय में रखती जिन्हें वह देखती और सुनती है। वे सुन्दर बातें जिसकी चर्चा उसके लिए दूत और चरवाहें करते हैं, उसके साथ ही विचलित करने वाली बातें जैसे कि विवाह के पूर्व ही गर्भवती होना और अब गोशाले में जन्म देना। मरियम ऐसा ही करती है। वह चीजों का चुनाव नहीं करती बल्कि वह जीवन की सारी बातों को बिना दिखावा या अलंकृत किया स्वीकार करती है।

छिपे धागों को खोजें

मरियम का दूसरा मनोभाव चिंतन करना है। सुसमाचार हमें बतलाता है कि मरियम “घटनाओं को जमा” करती, अपने भिन्न अनुभवों की तुलना करती और उनमें छिपे धागों की खोज करती है जो चीजों को जोड़ती है। अपने हृदय में, अपनी प्रार्थना में, वह यही करती है- वह सुन्दर और कुरूप चीजों को भी जोड़ती है। वह उन्हें अलग-अलग नहीं रखती है बल्कि एक साथ मिलाती है। इस भांति ईश्वरीय दृष्टिकोण में वह उनके सही अर्थ को परखती है। अपने ममतामयी हृदय में वह इस बात का अनुभव करती है कि ईश्वर की सर्वोच्च महिमा नम्रता में होती है, वह मुक्तियोजना का स्वागत करती और ईश्वर को चरनी में लिटाती है। वह दिव्य बालक को कमजोर और ठिठुरते हुए देखती है, वह भव्यता और छोटेपन के बीच चमत्कारिक दिव्य अंतःक्रिया को स्वीकार करती है।

माताओं का हृदय

संत पापा ने कहा कि चीजों को ऐसी समावेशी भाव में देखना माता के कार्य करने को व्यक्त करता है। बहुत सारी माताएँ अपनी संतानों की मुसीबतों को ऐसे ही गले से लगाती हैं। उनका मातृत्वमय “भाव” तनाव उत्पन्न नहीं करता है, यह मुसीबतों के मध्य कोढ़ग्रस्त नहीं होता बल्कि उनका अवलोकन एक विस्तृत निगाहों से करता है। हम सभी उन माताओं के चेहरे को देख सकते हैं जो अपने बच्चों की चिंता करते हैं जो बीमार या कठिनाइयों में हैं। हम उनकी आंखों में बृहद प्रेम को देखते हैं। अपनी आंसूओं में भी वे आशा को प्रेरित करते हैं। उनकी नज़रें एक सचेत और यथार्थवादी निगाहें हैं, साथ ही दर्द और समस्याओं से परे, देख-रेख और प्रेम की एक बड़ी तस्वीर जो नई आशा को जन्म देती है। माताएँ ऐसा ही करती हैं, वे बाधाओं और असहमतियों पर विजय होना जानती और शांति स्थापित करती हैं। इस भांति, वे मुसीबातों को अवसर में बदलते हुए नये जीवन और विकास लाती हैं। वे ऐसा कर पाती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि जीवन के भिन्न धागों को कैसे सहेज कर “रखना” है। हमें ऐसे लोगों की जरुरत है, जो कंटीली तारों और विभाजन के बदले एकता को बुनना जानती हैं।

नारी सम्मान, ईश्वर का सम्मान

नये वर्ष की शुरूआत माता के सरंक्षण में हो रहा है। एक माता की निगाहें हमारे लिए नये जीवन और विकास की राह है। हमें माताओं, नारियों की जरुरत है जो विश्व को दूरूपयोग करने की निगाहों से नहीं बल्कि जीवन को विकास भरी नजरों से देखती है। नारियाँ जो हृदय से देखती हैं, जो सपनों और चाहतों की अमूर्तता और सूखी व्यावहारिकता में बहे बिना ठोस सच्चाई से देखती हैं। और चूंकि माताएँ जीवन देती और नारियाँ दुनिया को “बनाये” रखती हैं, हमें इस बात हेतु प्रयास करने की जरुरत है कि हम माताओं और नारियों को सुरक्षा प्रदान करें। हम उनके विरूध कितने हिंसा को देखते हैं। यह और न हो। एक नारी का अपमान ईश्वर का अपमान है, जो एक नारी से हमारी मानवता में प्रवेश करते हैं।

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने कहा कि साल के शुरू में, तब आईए हम अपने को ईश्वर की माता के संरक्षण में सुपुर्द करें जो हमारी भी माता हैं। वह हमें सारी चीजों पर चिंतन करने हेतु मदद करे, कठिनाइयों से भयमुक्त करे और इस खुशी से भर दे कि ईश्वर हमारे साथ निष्ठावान बने रहते और सारे क्रूस को पुनरूत्थान में बदल सकते हैं। आज भी, “आइए हम ऐफिसस के उन ईश प्रज्ञा की भांति पुकारें, ईश्वर की माता को तीन बार पुकारे: “ईश्वर की पवित्र माता, ईश्वर की पवित्र माता, ईश्वर की पवित्र माता”।

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01 January 2022, 15:24