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संत पापाः संत योसेफ आदर्श पालक पिता

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 05 जनवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज हम संत योसेफ को येसु के पिता स्वरुप चिंतन करेंगे। संत मत्ती और संत लूकस उन्हें येसु के पालक पिता स्वरुप प्रस्तुत करते हैं न कि येसु के जैविक पिता। संत मत्ती विशेष रूप से, येसु की वंशावली में सूत्र “के पिता” का उपयोग नहीं करते बल्कि वे उन्हें “मरियम के वर” स्वरूप परिभाषित करते हैं, जिनसे येसु उत्पन्न हुए जो येसु कहलाते हैं। (मत्ती. 1.16) वहीं संत लूकस दूसरी ओर उन्हें येसु के पिता स्वरुप सुनिश्चित करते हैं “जैसे उनके बारे में” कहा गया था। (लूका.3.23)।

गोद लेने की प्रथा

योसेफ को पालक पिता की भूमिका में समझने हेतु, हमें पूर्वी रीति में प्राचीन काल से चली आ रही गोद लेने की प्रक्रिया को, जो आज से अधिक प्रचलित थी, ख्याल में रखने की आवश्यकता है। यहाँ हम इस्रराएल में “लेविरैट” (देवर-विवाह) को सामान्य रुप में पाते हैं जिसका जिक्र विधि-विवरण ग्रंथ करता है- “यदि भाइयों के एक साथ रहने में किसी एक की मृत्यु संतानविहीनता में हो जाती तो मृतक भाई की पत्नी का विवाह उस घर के बाहर किसी अपरिचित से नहीं होता था, बल्कि पति का भाई उसे अपनी पत्नी की तरह लेता और पति के उत्तरदायित्वों का निर्वाहण करता था। इस तरह उस नारी से उत्पन्न प्रथम पुत्र मृत पति के नाम को वहन करता था जिससे उसका वंश इस्रराएल में खत्म न हो जाये (25. 5-6)। दूसरे शब्दों में उस बच्चे का पिता पत्नी का देवर होता, जो बच्चे को सभी वंशानुगत अधिकारों का हकदार बनता था जबकि कानूनी रुप में उसका पिता मृत होता था। इस नियम के दो उद्देश्य थे, मृतक का वंश सुनिश्चित करना और संपत्ति का संरक्षण करना। 

येसु के आधिकारिक पिता स्वरूप, योसेफ अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपने पुत्र को एक अधिकार प्रदान करते हैं जो कानूनी तौर पर उन्हें पहचान प्रदान करता है।

नाम में पहचान

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि प्राचीन व्यवस्थान में नाम संक्षिप्त रुप में व्यक्ति के पहचान की निशानी थी। अपने नाम में परिवर्तन लाने का अर्थ अपने को बदलना था जैसे कि हम अब्रहाम के संदर्भ में पाते हैं जिसके नाम में परिवर्तन ईश्वर लाते हैं जिसका अर्थ “बहुतों के पिता” है क्योंकि उत्पत्ति ग्रंथ कहता है, वह “बहुत से राष्ट्रों का पिता होगा”। हम याकूब के साथ भी ऐसा ही पाते हैं जो “इस्रराएल” कहलाये जिसका अर्थ है “वह जिसने ईश्वर से संघर्ष किया”, क्योंकि उनसे ईश्वर से युद्ध करते हुए अपने लिए आशीर्वाद की मांग की।  (उत्प.32.29,35.10)।

लेकिन इससे भी बढ़कर, किसी को या किसी वस्तु को नाम देने का अर्थ उस व्यक्ति या वस्तु पर अधिकार स्थापित करना है जैसा कि आदम ने सभी जानवरों के साथ किया (उत्प.2.19-20)।

अनाथालय युग

योसेफ पहले से इस बात को जानते हैं कि मरियम के पुत्र हेतु पहले से ही एक नाम “येसु” निर्धारित किया गया, जिसका अर्थ है, “ईश्वर हमें बचाते हैं”, जैसे के स्वर्गदूत ने इसके बारे में कहा, “वह अपने लोगों को पाप से मुक्त करेंगे” (मत्ती.1.21)। योसेफ का यह पक्ष हमें उनके पितृत्व और मातृत्व पर चिंतन करने को सक्षम बनाता है। संत पापा ने कहा कि यह मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतीत होता है, हम आज पितृ दिवस की याद करें। क्योंकि हम एक कुख्यात अनाथालय युग में रहते हैं। यह अपने में एक अजीब स्थिति है, हमारी सभ्यता थोड़ी अनाथ जान पड़ती है, और हम इस अनाथपन को अपने में महसूस करते हैं। संत जोसेफ का व्यक्तित्व हमें यह समझने में मदद करे कि अनाथ होने की अनुभूति हमें कैसे चोट पहुंचाती है और हम इस भावना का समाधान कैसे कर सकते हैं।

गोद लेनाः सर्वोतम प्रेम, उदारता

संत पापा ने कहा कि माता-पिता के रुप में इस संसार में एक बच्चे को जन्म देना केवल काफी नहीं है। “पिता जन्मते नहीं लेकिन बनते हैं। एक पुरूष संसार में बच्चे को जन्म देने मात्र से एक पिता नहीं बनता बल्कि उस बच्चे की परवरिश हेतु जिम्मेदारी लेने से पिता बनता है। जब कभी एक पुरूष दूसरे जीवन की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता, तो वह अपने में उस व्यक्ति का पिता बनता है” (प्रेरितिक पत्र पात्रिस कोरदे)। उन्होंने कहा कि मैं विशेष रुप से उन लोगों के बारे में सोचता हूँ जो गोद लेते हुए जीवन का स्वागत करते हैं जो उदारता और अति सुन्दर मनोभाव को व्यक्त करता है। संत योसेफ हमें इस संबंध की ओर इंगित कराते हैं जो अपने में गौण नहीं है, यह अनुबोध अर्थात कार्य उपरांत विचार नहीं है। इस तरह का चुनाव एक सर्वोतम प्रेम, पितृत्व और मातृत्व को व्यक्त करता है। दुनिया में कितने बच्चे हैं जो इस बात की प्रतीक्षा करते हैं कि उन्हें किसी के प्रेम का साया मिले। और कितने ही दंपत्ति हैं जो अपने में माता-पिता होने की चाह रखते हैं लेकिन अपनी जैविक परिस्थिति के कारण वे उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं या यद्यपि उनकी अपनी संतानें हैं फिर भी वे अपने पारिवारिक प्रेम को उनके संग साझा करने की चाह रखते हैं जिन्हें बेसहारा छोड़ दिया गया है।

संत पापा की चुनौती

संत पापा ने कहा कि हमें गोद लेने से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, हम बच्चों का स्वागत करने की जोखिम लें। उन्होंने विगत दिनों अपने संबोधन में जनसांख्यिकीय में सूखेपन की याद दिलाते हुए कहा कि आज बहुत से लोगों बच्चों की चाह नहीं रखते, या केवल एक से अधिक नहीं का विचार रखते हैं। बहुत से दंपत्ति हैं जिनके बच्चे नहीं हैं क्योंकि वे उन्हें नहीं चाहते हैं या चाहते भी हैं तो सिर्फ एक, क्योंकि वे एक से अधिक नहीं चाहते हैं, लेकिन उनके पास दो कुत्ते, दो बिल्लियाँ हैं...हाँ, आज कुत्तों और बिल्लियों ने बच्चों का स्थान ले लिया है। यह अपने में बेतुका लगता है लेकिन सच्चाई यही है। उन्होंने कहा कि मातृत्व और पितृत्व में यह विघटन हमें मानवता से दूर ले जाती है। इस भांति सभ्यता बुजुर्ग और मानवहीन हो जाती है क्योंकि हम पितृत्व और मातृत्व की समृद्धि को खोते जाते हैं। बच्चों के नहीं होने से हमारी मातृभूमि प्रभावित होती है। संत पापा ने संत योसेफ से प्रार्थना की कि वे हमारी अंतरआत्मा को जागृत करें जिससे हम इस पर विचार कर सकें। मातृत्व और पितृत्व व्यक्ति के जीवन की पूर्णतः है हम इसके बारे में विचार करें। उन्होंने कहा कि यह सच है कि जिन्होंने समर्पित जीवन को चुना है वे अपने लिए ईश्वर में आध्यात्मिक मातृत्व और पितृत्व को पाते हैं लेकिन दुनिया में विवाहितों को चाहिए कि वे अपने लिए संतानों की चाह रखें, क्योंकि वे आपके भविष्य की देख-रेख करेंगे और आप को विदा करेंगे।

संत पापा का आहृवान

संत पापा ने इस बात पर जोर दिया कि जिन्हें संतान प्राप्ति में कठिनाई है वे गोद लेने पर विचार करें। “यह अपने में जोखिम भरा है, जरूर, बच्चे का होना सदैव जोखिम भरा है, चाहे वह प्राकृतिक हो या गोद लेने में। लेकिन उसके भी अधिक जोखिम बच्चों का नहीं होना है। माता-पिता के रुप में जिम्मेदारियों को अस्वीकार करना सच्चे और आध्यात्मिक, दोनों रुपों में और भी खतनाक है। एक स्त्री और पुरूष जो स्वभाविक रुप से माता-पिता की जिम्मेदारी से अपने को दूर करते वे अपने में महत्वपूर्ण कमी को पाते हैं। कृपा, आप सभी इस बात पर विचार करें”। उन्होंने कहा कि गोद लेने के संदर्भ में संस्थाएँ सदैव सहायक होती हैं, जो गंभीरता से कार्यों का निर्वाहन करती हैं, लेकिन आवश्यक प्रक्रिया को सरल भी बनाती हैं जिससे इतने सारे बच्चों को, जिन्हें परिवार की जरूरत है, और इतने सारे पति-पत्नियों जो स्वयं को प्रेम में समर्पित करना चहाते हैं, उनके सपने सच हो सकें।

एक चिकित्सक की पहल

संत पापा ने एक निःसंतान चिकित्सक का साक्ष्य दिया जिन्होंने अपनी पत्नी के संग गोद लेने का फैसला किया था, जब समय आया, तो बच्चें के स्वास्थ्य को लेकर पत्नी ने आना-कानी की। लेकिन चिकित्सक ने उससे कहा, “अगर तुमने मुझे अंदर जाने से पहले यह पूछा होता, तो शायद मैं न कहता। लेकिन मैंने इसे देखा है: मैं इसे ले रहा हूं”। ये है पिता बनने की चाह, गोद लेने में भी मां बनने की तमन्ना। आप इससे न डरें।

उन्होंने कहा कि मैं प्रार्थना करता हूं कि कोई भी माता-पिता के प्रेम से वंचित महसूस न करें। संत योसेफ अनाथों को अपनी सुरक्षा और सहायता प्रदान करें, और उन जोड़ों के जीवन में हस्तक्षेप करें जो संतान की चाह रखते हैं। इतना कहने के बाद संत पापा ने संत योसेफ से प्रार्थना की।

संत योसेफ, तूने येसु को पितृत्व स्नेह से प्रेम किया,

उन असंख्य बच्चों के निकट रह जिनके परिवार नहीं हैं, और वे जो एक माता-पिता बनने की चाह रखते हैं।

उन दंपत्तियों की सहायता कर जो संतान प्राप्ति में असक्षम हैं, उन्हें उनके दुःख में, एक बृहद योजना को जानने में मदद कर।

यह सुनिश्चित कर कि किसी को एक घर, एक संबंध, एक व्यक्ति की कमी न हो जो उसकी देख-रेख करें,

और उन्हें चंगाई प्रदान कर जो स्वयं को जीवन से बंद कर देते हैं, जिससे वे अपने को प्रेम के लिए खोल सकें, आमेन।

 

 

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05 जनवरी 2022, 15:34