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संत पापाः हमारा हृदय ईश्वर का निवास बनें

संत पापा फ्रांसिस ने 02 जनवरी को देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने संदेश में शब्द के शरीधारण पर प्रकाश डालते हुए ईश्वर की चाह के बारे में बतलाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 3 जनवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने साल के प्रथम सप्ताह 02 जनवरी को विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये संदेश में ईश्वरीय की चाह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ईश्वर हमारे बीच रहने की चाह रखते हैं।

संत पापा ने देवदूत प्रार्थना के पूर्व सबों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि हमारे लिए एक सुन्दर पद को प्रस्तुत करती है जिसे हम देवदूत की प्रार्थना में सदैव कहते हैं जो हमारे लिए ख्रीस्त जयंती के रहस्य को प्रस्तुत करता है। “शब्द ने शरीरधारण कर हमारे बीच में निवास किया” (1. यो.14)। यदि हम दो शब्दों के बार में विचार करें तो यह हमारे लिए एक विरोधाभाव व्यक्त करती है। वे हमारे लिए दो विपरीत बातों को लेकर आते हैं-शब्द और शरीर। “शब्द” हमें येसु की ओर इंगित कराता है जो पिता के शाश्वत शब्द हैं, जो अनंत काल से बने हैं, वे सारी चीजों की सृष्टि से पहले हमारे लिए उपस्थित हैं। वहीं “शरीर” हमारे लिए विशेष रूप में सृष्टि की सच्चाई की ओर इंगित करती है जो क्षणभंगुर, सीमित और नश्वर है। येसु के पहले हम दो अलग-अलग दुनिया को  पाते हैं, स्वर्ग जो पृथ्वी से विपरीत है, नश्वर और अनश्वर, आत्मा और तत्व। संत योहन के सुसमाचार की प्रस्तावना में हम द्विपद श्ब्द और शरीर को पाते हैं, वहीं एक दूसरा द्विपद प्रकाश और अधंकार है (5)। येसु ख्रीस्त ईश्वर के प्रकाश हैं जो दुनिया के अंधेरे में प्रवेश करते हैं। ईश्वर ज्योति हैं और उनमें कोई अस्पष्टता नहीं है वहीं दूसरी ओर हम सबों में बहुत अधिक अधंकार है। येसु में हम ज्योति और अधंकार के मेल को पाते हैं, हम पवित्रता और पाप, कृपा और कलंक को पाते हैं। येसु का जन्म हमारे लिए इस मिलन को व्यक्त करता है। उनमें हम ईश्वर और मानवता के बीच मेल को पाते हैं, कृपा और पाप के मेल को पाते हैं।

ईश्वर का कार्य हमारे बीच आना

इन विरोधाभावों के द्वारा सुसमाचार हमें क्या घोषित करना चाहता हैॽ हम इसमें एक अद्वितीय बात, ईश्वर के कार्य करने के तरीके को पाते हैं। हमारी कमजोरियाँ जहाँ ईश्वर हमसे अपने को दूर नहीं करते हैं। वे अपने दिव्य अनंत उपस्थिति और ज्योति में हम से तटस्थ नहीं रहते बल्कि वे हमारे निकट आते हैं, वे शरीरधारण करते हुए हमारे बीच अंधकार में आते हैं, वे उस अनजान धरती पर आते जिससे वे अनभिज्ञ हैं। ईश्वर ऐसा क्यों करते हैंॽ वे हमारे जीवन में क्यों आते हैंॽ वे ऐसा करते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि हम उनसे भटकर, अनंत जीवन, ज्योति से दूर चले जाये। हमारे बीच में आना ईश्वर का कार्य है। यद्यपि हम अपने को अयोग्य समझते लेकिन यह उन्हें हमारे पास आने से नहीं रोकता है। यदि हम उनका तिरस्कार करते हैं तो भी वे हमारी खोज करते हुए नहीं थकते हैं। यदि हम उन्हें स्वीकारने हेतु तैयार और इच्छुक नही होते, तो भी वे हमारे बीच आना चाहते हैं। और यदि हम उनके लिए अपने दरवाजों को बंद कर देते हैं तो भी वे हमारा इंतजार करते हैं। वे सचमुच में भले चरवाहे हैं। शब्द का शरीरधारण कर हमारे जीवन में प्रवेश करना उस भले चरवाहे की एक सुन्दर निशानी है। येसु भले चरवाहे के रुप में हमारी खोज करने हेतु हमारे जीवन की परिस्थिति में आते हैं, वे हमारे तकलीफों में, हमारी मुसीबतों में, हमारे दुःख में हमें खोजने आते हैं।

ईश्वर की चाह

संत पापा फ्रांसिस ने कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, बहुधा हम अपने को ईश्वर से दूर करते हैं क्योंकि हम अपने को किसी भी रुप में उनके योग्य नहीं पाते हैं। और यह सत्य भी है। लेकिन ख्रीस्मस हमें इस बात का निमंत्रण देता है कि हम चीजों को उनकी निगाहों से देखें। ईश्वर हमारे जीवन का अंग होना चाहते हैं। यदि आप का हृदय बुराइयों से दूषित है, यदि यह अपने में अव्यवस्थित है, तो कृपया आप अपने को बंद न करें, आप भयभीत न हों, वे आयेंगे। आप बेतलेहेम के गोशाले के बारे में विचार करें। येसु वहाँ दरिद्रता में जन्म लिये, इसके द्वारा वे हमें यह बतलाना चाहते हैं कि वे निश्चित रुप में हमारे हृदयों में आने से नहीं डरते हैं, चाहे हमारा जीवन कितना भी गंदा क्यों न हो। यहाँ हम शब्द “निवास करना” को पाते हैं। निवास करना वह क्रिया है जो आज के सुसमाचार की हकीकत को व्यक्त करती है, यह हमारे लिए पूर्णरूपेण जीवन में सहभागी होने को व्यक्त करता है जहाँ हम एक बृहद निकटता को पाते हैं। ईश्वर हम से यही चाहते हैं, वे हमारे साथ रहना चाहते हैं, वे हमारी बीच में रहना चाहते हैं, वे हमसे दूर होना नहीं चाहते हैं।

 जीवन  की अंदरूनी बातें

संत पापा ने स्वयं से और सबों से यह सवाल पूछा, “क्या (मैं) हम सब उनके लिए स्थान तैयार करते हैंॽ शब्दों में हम सब हां कहेंगे, कोई “मैं नहीं” नहीं कहेगा”। लेकिन, वास्ताविक रुप मेंॽ उन्होंने कहा कि शायद हमारी जीवन की कुछ बातें हैं जिन्हें हम अपने लिए रखते हैं, जो सिर्फ हमारे लिए होती हैं। हमारे जीवन की वे अंदरूनी बातें जहाँ हम सुसमाचार के प्रवेश से भयभीत होते हैं, जहाँ हम ईश्वर के साथ होना नहीं चाहते हैं। संत पापा ने सभों का आह्वान करते हुए कहा कि आज आप उन बातों को विशेष रुप से चिन्हित करें। हमारे जीवन में वे कौन-सी अंदरूनी बातें हैं जिन्हें मैं सोचता हूँ कि ईश्वर पसंद नहीं करते हैं। वह कौन-सा भाग है जो सिर्फ मेरे लिए है, जहाँ मैं ईश्वर को आने नहीं देना चाहता हूँॽ हममें से हर कोई इसका खास रुप में उत्तर दे। हममें से रह किसी का कोई न कोई पाप है जिसे हम नाम दे सकते हैं। वे हमारे उन पापों से भयभीत नहीं होते हैं। वे हमें उनकी चंगाई देने हेतु आते हैं। हम उन्हें अपने जीवन के उस भाग को कम-से-कम देखने दें, अपने उस पाप को। हम अपने में साहसी हों और कहें, “लेकिन, प्रभु मैं इस परिस्थिति में हूँ और मैं बदलना नहीं चाहता हूँ। लेकिन प्रभु, आप कृपया मुझ से अधिक दूर न जायें”। वह जो ऐसा कह सकता है अपने में सच्चा खिलाड़ी है, हम आज ईमानदारी से उनके सामने पेश हों।

हमारे जीवन के गोशाले

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्मस के इन दिनों में ईश्वर को अपने यहाँ निमंत्रण देना एक अच्छी बात होगी। कैसेॽ उदाहरण के लिए, हम किसी चरनी के निकट रूक सकते हैं क्योंकि यह उनका हमारे जीवन की सच्ची परिस्थिति में, साधारण रुप में आने को दिखलाता है, जहाँ सारी चीजें ठीक नहीं हैं, जहाँ बहुत सारी समस्याएँ हैं, जिसमें से कुछ के लिए हम दोषीदार हैं तो कुछ के लिए दूसरे। येसु एक भले चरवाहे की भांति हमारे बीच आते हैं जो हमारी जीवन की समस्याओं में हमारे लिए कठिन मेहनत करते हैं, वे हमारे बीच में रहने की चाह रखते हैं। वे हमारी प्रतीक्षा करते हैं कि हम अपने जीवन की परिस्थितियों को उनके सामने व्यक्त करें चाहे वे जैसे भी हों। हम चरनी के सामने अपने जीवन की वास्तविक परिस्थिति को उन्हें बतलाये। हम अधिकारिक रूप में उन्हें अपने जीवन में आने का निमंत्रण दें विशेष कर अपने जीवन की अंधेरे भागों में,“देखिए प्रभु, वहाँ ज्योति की कमी है, वहां बिजली नहीं पहुँची है, लेकिन आप उसका स्पर्श न करें क्योंकि मैं उस परिस्थिति को छोड़ना नहीं चाहता हूँ”। संत पापा ने कहा, “आप स्पष्ट और सीधे रूप में कह सकते हैं”। हमारे जीवन के काले भाग, हमारे “आंतरिक गोशाले हैं”, जो सभों के जीवन का अंग है। हम अपने जीवन और समय की सामाजिक कठिनाइयों और कलीसियाई मुसीबतों को भी उनके सामने रखें, यहाँ तक कि अपने के व्यक्तिगत तकलीफों को भी उन्हें बतलायें क्योंकि ईश्वर प्रेम में हमारे अस्तबल में रहना चाहते हैं।  मरियम, ईश्वर की माता जिनमें शब्द ने शरीरधारण किया, हमें ईश्वर के संग एक गहरे संबंध में प्रवेश करने में मदद करें।

 

 

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03 January 2022, 15:29