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संत पापाः संत योसेफ के पितृत्व में ईश्वर का कोमल प्रेम

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में संत योसेफ के करूणावान पिता होने पर प्रकाश डालता जो हमें ईश्वर पिता के करूणामय प्रेम से वाकिफ करता है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 19 जनवरी 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

आज मैं संत योसेफ की छवि को एक सुकोमल पिता के रुप में प्रस्तुत करना चाहूँगा।

मैंने अपने प्रेरितिक पत्र पात्रिस कोरदे (8 दिसम्बर 2020) में संत योसेफ के इस व्यक्तित्व पर चिंतन प्रस्तुत किया था वास्तव में, सभी सुसमाचार हमें इस तथ्य का वृतांत प्रस्तुत नहीं करते हैं कि संत योसेफ ने पिता के रुप में अपने कार्यों का निर्वाहण किस रुप में किया। हम केवल इस बात से सुनिश्चित होते हैं कि वे एक “धर्मी” पुरूष थे उन्होंने येसु की शिक्षा-दीक्षा का ख्याल रखा। “योसेफ ने येसु को ज्ञान में, उम्र में और मनुष्य के मध्य ईश्वरीय अनुग्रह में दिन-व-दिन बढ़ते देखा” (लूका.2.52)। जिस भांति याहवे ने इस्रराएली प्रजा के साथ किया वैसे ही योसेफ ने येसु के साथ किया- उन्होंने हाथ पकड़कर उसे चलना सिखाया, वे येसु के लिए उस पिता की भांति थे जो एक शिशु को गले से लगाते, घुटनों में झुक कर उसे खाना खिलाते हैं (होश.11.3-4), (पात्रिस कोरदे,2)। धर्मग्रंथ की यह परिभाषा बहुत सुन्दर है जो ईश्वर का इस्रराएली जनता के संग उनके संबंध को व्यक्त करता है। हम योसेफ को येसु के संग इसी संबंध में पाते हैं।

पिता का शर्तहीन प्रेम

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सुसमाचार हमें इस बात को प्रस्तुत करता है प्रेम में, येसु ने ईश्वर के लिए सदैव “पिता” शब्द का प्रयोग किया। हम बहुत से दृष्टांतों में पिता के इस रूप को एक नायक की भांति पाते हैं। इसमें एक अति प्रसिद्ध दृष्टांत जिसे संत लूकस का सुसमाचार करूणावान पिता स्वरुप प्रस्तुत करता है (लूका.15.11-32)। यह दृष्टांत न केवल पापों के अनुभव और क्षमादान पर जोर देता बल्कि क्षमादान के उस रुप को, जो गलती किये व्यक्ति के लिए प्रकट होता है, व्यक्त करता है। संत लूकस के पद हमें कहते हैं, “वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया” (20)। पुत्र अपने लिए सजा की चाह रखता था, एक न्याय जहाँ वह अपने को नौकरों में से एक होने की सोचता, लेकिन वह अपने को पिता के आलिंगन से भरा पाता है। करूणा अपने में वह चीज है जो दुनिया के तर्क से बढ़कर है। यह हमारा न्याय आश्चर्यजनक रुप में करती है। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि हम यह कभी न भूलें कि ईश्वर हमारे पापों से, गलतियों से, हमारे असफलताओं से भयभीत नहीं होते हैं बल्कि वे हमारे हृदयों के बंद होने से भयभीत होते हैं, वे उनके प्रेम में हमारे विश्वास की कमी से डरते हैं। हम ईश्वर के प्रेम में एक बृहृद करूणा का अनुभव करते हैं। हमारे लिए इस बात पर विचार करना कितना सुन्दर है कि इस सत्य को येसु के संग साझा करने वाले पहले व्यक्ति स्वयं संत योसेफ थे। ईश्वरीय चीजें सदैव हमारे लिए मानवीय अनुभवों के माध्यम आती हैं।

सफेद रुमाल

संत पापा ने धर्मग्रंथ के दृष्टांत पर एक सच्ची घटना को सभों के संग साझा करते हुए कहा कि युवाओं का एक दल करूणामय पिता के इस दृष्टांत से प्रभावित होकर इसका मंचन किया। यह अपने में बुहत की सफल रहा। संगीतमय नाटक मंचन के उपरांत एक मित्र को यह मालूम हुए की एक पुत्र जो अपने पिता से दूर चला गया है अपने पिता के घर लौटने की चाह रखता है लेकिन वह भयभीत है कि कहीं उसका पिता उसे दंडित करते हुए भगा न दे। उसके मित्र ने उसे सुझाव देते हुए कहा कि तुम एक संदेश भेजो कि तुम घर लौटना चाहते हो और यदि तुम्हारा पिता तुम्हें स्वीकार करे तो एक खिड़की में एक रूमाल बांध कर इसे इंगित करें। यह सुझाव कारगर सिद्ध होता है जब वह पुत्र घर की राह में होता तो वह खिड़की में एक नहीं अपितु कई सफेद रुमालों को बंधा हुआ पाता है। हरएक खिड़की में तीन से चार रूमाल। ईश्वर की करूणा हमारे लिए ऐसा ही है। वे हमारे आतीत से, हमारी बुरी चीजों से भयभीय नहीं होते हैं। हमारे लौटने पर वे हमें अपनी बाहों में भर लेते हैं।

संत पापा ने कहा अतः हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि यदि हमने ऐसी करूणा का अनुभव किया है। क्या हम इसके साक्षी बने हैं। क्योंकि करूणा अपने में एक भावना या संवेदनशील बात नहीं है, यह प्रेम किये जाने की अनुभूति है जहाँ हम अपनी दयनीय स्थिति और बदहाली में स्वागत किये जाते हैं जो ईश्वरीय प्रेम में हमें परिवर्तित करता है।

हमारी कमजोरियों में ईश्वर का साथ  

ईश्वर केवल हमारे गुणों में आश्रित नहीं होते बल्कि वे हमारी कमजोरियों में निर्भर रहते हैं जिनसे वे हमें मुक्त करते हैं। संत पौलुस इसकी चर्चा करते हुए कहते हैं कि हमारी कमजोरियों में भी ईश्वर की एक योजना है। वास्तव में, वे कुरूथियों के समुदाय को लिखते हैं, “मुझ पर बहुत-सी असाधारण बातों का रहस्य प्रकट किया गया गया है। मैं इस पर घमण्ड न करूं, इसलिए मेरे शरीर में एक कांटा चुभा दिया गया है, मुझे शैतान का एक दूत मिला है वह मुझे घूँसे मारता रहे...मैंने तीन बार प्रभु से निवदेन किया कि यह मुझ से दूर हो किन्तु प्रभु ने कहा- मेरी कृपा तुम्हारे लिए पर्याप्त है, क्योंकि तुम्हारी दुर्बलता में मेरा सामर्थ्य पूर्ण रुप से प्रकट होता है” (2 कुरू. 12.7-9)। प्रभु हमारी सभी कमजोरियों को दूर नहीं करते हैं, लेकिन वे हमें कमजोरियों के साथ चलने में मदद करते हैं, वे हमारा हाथ थाम लेते हैं। लेकिन कैसे? हां, वे हमारी कमजोरियों को हाथ में लेते हैं, वे हमारी कमजोरियों में हमारे करीब होते हैं। और यही उनकी कोमलता है।

ईश्वर की क्षमाशीलता को याद रखें

इस कोमलता के अनुभव में हम ईश्वर की शक्ति को उस तरह से गुजरता हुए देखते हैं जो हमें सबसे कमजोर बनाती है; वैसे परिस्थिति में हम अपने को बुराई की निगाहों से देखते जो “हमें हमारी कमजोरियों को दिखता और उनकी निंदा करता है”, जबकि पवित्र आत्मा प्रेम में हमें उन्हें आलोकित करता है” (पात्रिस कोरदे, 2)। कोमलता हमारे भीतर की कमजोरियों को छूने का सबसे अच्छा तरीका है (...)। यही कारण है कि यह हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है जहां हमारा मिलन ईश्वरीय दया से होती है विशेषरूप से मेल-मिलाप के संस्कार में, जहाँ हम उनकी सच्चाई और कोमलता का अनुभव करते हैं। इसके विपरीत बुराई भी हमारे लिए सच्चाई को प्रस्तुत करती है यद्यपि यह केवल हमें दोषी करार देती है। हम जानते हैं कि ईश्वरीय सच्चाई हमें दोषारोपित नहीं करती बल्कि यह हमारा स्वागत करती, हमें गले लगती, हमें बनाये रखती और हमें क्षमा करती है” (पात्रिस कोरदे, 2)। संत पापा फ्रांसिस ने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर हमेशा माफ करते हैं: हम इसे अपने दिल और दिमाग में रखें। वे हमेशा क्षमा करते हैं। हम माफ़ी मांगते थक जाते हैं लेकिन वे हमेशा माफ करते हैं चाहे चीजें कितनी भी बुरी क्यों न हों।

कोमलता की क्रांति

संत पापा ने कहा कि संत योसेफ के संरक्षण को अपने लिए देखना हमारे लिए हितकर है। हमें अपने में यह पूछने की जरुरत है कि क्या हम अपने को ईश्वरीय कोमलता में प्रेम करने देते हैं, जो हममें से प्रत्येक जन को परिवर्तित करते और ऐसा ही प्रेम करने के योग्य बनाते हैं। इस “कोमलता की क्रांति” के बिना हम एक ऐसे न्याय में कैद रहते हैं जो हमें आसानी से उठने नहीं देती है और जो मुक्ति को सजा के रुप में भ्रमित करती है। उन्होंने कहा कि यही कारण है आज मैं उन भाई-बहनों की विशेष याद करना चाहूँगा जो कैदखाने में बंद हैं। यह उचित है कि जिन्होंने गलती की है उन्हें सजा की आवश्यकता है लेकिन यह उससे भी न्यायोचित है कि जिन्होंने गलती की है वे अपनी गलती से अपने को मुक्त करें। ऐसी कोई सजा नहीं जिसमें आशा का अभाव हो। आइए हम जेल में बंद अपने भाइयों और बहनों के बारे में सोचें, हम उनके लिए ईश्वर की कोमलता के बारे में सोचें और प्रार्थना करें, ताकि वे आशा में एक बेहतर जीवन हेतु एक मार्ग खोज सकें।

संत योसेफ, करूणावान पिता,

हमें यह स्वीकारने की शिक्षा दे कि हम अपनी सबसे बड़ी कमजोरियों में खासकर प्रेम किये जाते हैं।

हमें कृपा दे कि हम अपनी दरिद्रता और ईश्वरीय महान प्रेम के मध्य बाधा उत्पन्न न करें।

हममें मेल-मिलाप के भाव जागृत कर, जिससे हम क्षमा प्राप्त करें और अपने भाई-बहनों को करूणा में प्रेम करने के योग्य बन सकें जो निर्धनता की स्थिति में हैं।

उनके निकट रह जिन्होंने गलती की है और उसकी सजा काट रहे हैं,

उन्हें न केवल न्याय पाने बल्कि करुणावान बनने में मदद कर जिससे वे नई शुरूआत कर सकें।

और उन्हें इस बात की शिक्षा दे कि फिर से शुरू करने का पहला तरीका

पिता के दुलार को महसूस करने हेतु, ईमानदारी से क्षमा याचना करना है।  

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19 January 2022, 15:07