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संत पापाः ज्योतिषियों की तरह सपने देखें, खोजें और आराधें

संत पापा फ्रांसिस ने संत पेत्रुस के महागिरजाघर में प्रभु प्रकाश के महोत्सव का ख्रीस्तयाग अर्पित किया। अपने प्रवचन में उन्होंने हृदय की चाह की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए ईश्वर की खोज में यात्रा पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, 06 जनवरी, 2022 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने 06 जनवरी को संत पेत्रुस के महागिरजाघर में प्रभु प्रकाश का समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए मानवीय जीवन की यात्रा के मर्म पर अपना चिंतन प्रस्तुत किया।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि ज्योतिगण बेतलेहेम की यात्रा करते हैं। उनकी यात्रा हमें भी यह बतलाती है कि हम भी येसु की ओर यात्रा करने हेतु बुलाये गये हैं क्योंकि वे उत्तर के तारे हैं जो हमारे जीवन की आशा में उदित होते हुए हमारे पदचिन्हों को सच्ची खुशी से भर देते हैं। ज्योतिषियों की यात्रा कहाँ से शुरू हुईॽ पूरब के उन व्यक्तियों को इस यात्रा हेतु क्या प्रेरित करता हैॽ

आंतरिक बेचैनी, नयी शुरूआत

उनके पास यात्रा नहीं करने के सर्वोतम कारण थे। वे ज्ञानी व्यक्ति थे, उन्हें नक्षत्रों का ज्ञान था, वे  विख्यात और अपने में धनी थे। अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संपन्नता में संतुष्ट वे अपने में सीमित होकर रह सकते थे। इसके बदले, वे एक निशानी को देखकर अपने में सवाल करते हुए विचलित होते हैं,“यहूदियों का राजा कहाँ जन्म है क्योंकि हमने उनका तारा उदित होते देखा है...” (मत्ती.2,2)। उन्होंने अपने हृदय को उदासी और निराशा की खोह में नहीं छोड़ा बल्कि वे उस प्रकाश को देखने की चाह रखते हैं। वे जीवन में आगे बढ़ने के लिए संतुष्ट नहीं थे, लेकिन नए और अधिक क्षितिज के लिए तरस रहे थे। उनकी आंखें नीचे की ओर झुकी हुई नहीं थीं बल्कि वे आकाश की ओर ऊपर उठी हुई थीं। संत पापा बेनेदिक्त 16वें इस संदर्भ में कहते हैं,“वे बेचैन हृदय वाले व्यक्ति थे... वे आशाओं से भरे थे, वे अपने धन-दौलत और समाज में मिलने वाले सम्मानजनक स्थान से संतुष्ट नहीं थे...। वे ईश्वर को खोजने वाले थे” (प्रवचन, 06 जनवरी 2013)

हमारे हृदय की चाह

संत पापा ने हृदय में होने वाली बेचैनी के बारे में कहा कि यह कहाँ से शुरू हुई, उनके हृदय की सकारात्मक बेचैनी, यात्रा में निकलने की प्रेरणा कहाँ से आईॽ यह एक चाह से शुरू होती है। हृदय में उत्पन्न चाह, यही उनका रहस्य है। हम इसके बारे में चिंतन करें। चाह रखने का अर्थ है उस आग में तेल डालना जो हमारे हृदय के अंदर व्याप्त है यह हमें हमारे समाने पड़ी चीजों से परे देखने को सक्ष्म बनाती है। यह जीवन को एक रहस्य के रूप में आलिंगन करना है जो हमें आगे ले चलती है। यह दीवार में उस छिद्र की भांति है जो हमें आगे दूर देखने का निमंत्रण देता है, क्योंकि जीवन को हम केवल यहाँ वर्तमान में नहीं बल्कि दूर और अधिक गहरे रूप में पाते हैं। यह एक सादे कैनवास की भांति है जो रंगों की मांग करता है। एक महान चित्रकार, भिन्सेंट वॉंन गोह ने एक बार यह कहा कि ईश्वर की जरूरत उसे रात्रि के अंधेरे में तारों की आकृति उतारने को बेचैन से भर दी। ईश्वर ने हमें इसी भांति बनाया है- हम चाहतों से भरे हैं, जो ज्योतिषियों की तरह तारों से संचालित होते हैं। हम वही बनते,जिन बातों की हम चाह रखते हैं। क्योंकि यह हमारी चाहते हैं जो हमारी निगाहों को विस्तृत करती हैं और हमारे जीवन की आदत रुपी बाधाओं, तुच्छ भौतिकतावाद, रूखे-सूखे विश्वास, भय से परे दूसरों के जीवन में सम्मिलित होते हुए उनकी सेवा, जन सामान्य की भलाई हेतु आगे ले चलती है। संत अगुस्टीन से शब्दों में, “हमारा सम्पूर्ण जीवन पवित्र चाह हेतु एक कार्य है”। (Homily on the First Letter of John, IV, 6).

चाह और जोश की आवश्यकता

संत पापा ने कहा कि जिस तरह यह ज्योतिषियों के लिए था उसी भांति यह हमारे लिए भी है। जीवन की यात्रा हमसे एक गहरी चाह और आंतरिक जोश की मांग करती है। एक कलीसिया के रुप में हमें इसकी जरुरत है। हमें अपने में यह पूछने की जरुरत है,“हम अपने विश्वास की यात्रा में कहाँ हैंॽ क्या हम लम्बें समय तक एक पारंपरिक, बाहरी और औपचारिक धार्मिकता में फंसे हुए हैं जो हमारे दिलों में उत्साह नहीं भरता जिसके कारण हमारे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आता हैॽ क्या हमारे वचन और हमारी धर्मविधियाँ लोगों के हृदय को प्रज्जवलित करती हैं जिसके फलस्वरुप वे ईश्वर की ओर आने की चाह रखते हैं, या क्या वे एक “मृत भाषा” की भांति हैं जो सिर्फ अपने लिए और अपने को संबोधित हैंॽ यह अपने में दुःखद बात है जब एक विश्वासियों का एक समुदाय अपनी इच्छा खो देता और यह अपने को बनाये रखने की भावना से प्रेरित होता है जबकि उसे येसु ख्रीस्त के द्वारा विस्मित होते हुए सुसमाचार की खुशी में बेचैनी भरा विस्फोटक होना चाहिए।

सबकुछ के होते उदासी क्योंॽ

विश्वास की समस्या हमारे जीवन और हमारे समाज में ईश्वर की चाह में ग्रहण लगने के कारण होता है। यह एक तरह से आत्मा का निद्रा भरी स्थिति में होना है जो हमारे दैनिक जीवन में आदतन अभ्यस्तता को बयां करती है जहाँ हम ईश्वर से यह कभी नहीं पूछते कि वे असल में हमसे क्या चाहते हैं। हम अपने दुनियावी नक्शे को देखते लेकिन स्वर्ग की ओर देखना भूल जाते हैं। हम बहुत सारी चीजों से भरे हैं लेकिन उस भूख हेतु निष्फल रहते जिसकी हममें कमी है। हम अपनी जरुरतों में उलझे हुए हैं कि हम क्या खायेंगे और क्या पहनेंगे (मत्ती.6.25), इस भांति हम मूल्यवान चीजों की चाह को हवा में उड़ जाने देते हैं। हम उन समुदायों में रहते हैं जो सभी चीजों की चाह रखती है, जहाँ सब कुछ है यद्यपि बहुधा हम अपने हृदय में खालीपन के अलावे और कुछ का अनुभव नहीं करते हैं। क्योंकि चाहत की कमी हममें उदासी और उदासीन की ओर ले चलती है।

विश्वास में नई शुरूआत करें

संत पापा ने कहा सबसे पहले अपनी ओर देखें और पूछें, मेरे विश्वास की यात्रा कैसी हैॽ विश्वास में यदि हमें बढ़ना है तो इसकी शुरूआत नये सिरे से करने की जरुरत है। इसमें चाहत की चमक होनी है, जहाँ हम ईश्वर के संग सजीव और जोशीले संबंध में प्रवेश करते हैं। क्या मेरा हृदय ईश्वर की चाह में अब भी ज्वलित होता हैॽ या क्या मैं आदतों के बोझ और स्वयं की निराशाओं से इस आग को बुझा दिया हैॽ आज वह दिन है जहाँ हमें इन सवालों को अपने में पूछने की आवश्यकता है। आज हमें अपने जीवन में लौटते हुए अपनी चाह को नया बनाना है। हम यह कैसे करते हैंॽ हम ज्योतिषियों की ओर अभिमुख हों और उनकी “चाहत के विद्यालय” से सीखें। आइए हम उनके कदमों को देखें और अपने लिए कुछ शिक्षा ग्रहण करें।

सर्वप्रथम हम उन्हें तारे के उदित होने पर निकलते हुए देखते हैं। वे हमें बतलाते हैं कि हमें रोज दिन नये रुप में निकलने की जरुरत है, जैसे जीवन में वैसे ही विश्वास में भी, क्योंकि विश्वास कोई कवच का वस्त्र नहीं जो हमें घेरे रखती हो, बल्कि यह एक अति मनोहर यात्रा है, एक संतोष और बेचैनी भरी चाल जो सदैव ईश्वर की खोज करती है।

सवालों को सुनना

इसके बाद हम ज्योतिषियों को येरुसालेम में सवाल पूछता पाते हैं। वे यह पूछते हैं कि वे बालक को कहां पायेंगे। वे हमें यह बतलाते हैं कि हमें कौन-सा सवाल पूछने की जरुरत है। हमें अपने हृदय और अंतःकरण में सवालों को ध्यानपूर्वक सुनने की जरुरत है क्योंकि वहाँ ईश्वर सदैव हमसे बातें करते हैं। वे हमें जवाबों से अधिक सवालों के माध्यम बातें करते हैं। फिर, हम अपने को अपने बच्चों के सवालों, संदेहों, आशा और वर्तमान समय के नर और नारियों की इच्छाओं से विचलित होने दें। हमें सवालों का स्वागत करने की जरुरत है।

साहस और प्रेरितिक विश्वास

इसके बाद ज्योतिषी हेरोद की अवहेलना करते हैं। वे हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि हमें एक साहस और प्रेरितिक विश्वास की जरुरत है, जो सत्ता के भयावह तर्क को चुनौती देने से नहीं डरती और समाज में न्याय तथा भ्रातृत्व के बीज बनती है, जहाँ वर्तमान समय के हेरोद, उदासीनता में गरीबों और निर्दोषों का वध करते हैं।

नये मार्ग का चुनाव

अंततः ज्योतिषी दूसरे मार्ग से लौट जाते हैं (मत्ती.2.12)। वे हमें नये मार्गों का चुनाव करने की चुनौती देते हैं। यहां हम पवित्र आत्मा की रचनात्मकता को देखते हैं जो नई चीजों को लाते हैं। यह हमारे लिए सिनोड के एक कार्य को दिखलाती हैः जहाँ  हम एक साथ मिलकर चलते और एक-दूसरे की सुनते हैं, पवित्र आत्मा हमें नई राहों का सुझाव देते जिससे हम सुदूर रहने वालों के हृदय में, जो उदासीन या आशाहीन हैं सुसमाचार लाते हैं, इस भांति ज्योतिषियों की भांति हम “बड़ी खुशी” की खोज  करते हैं जिसे उन्होंने पाया (मत्ती 2.10)।

ज्योतिषियों की यात्रा का अंत उनकी चरमसीमा में होता है जहां वे अपने गंतव्य स्थल में पहुंचते और “झुककर बालक येसु की आराधना करते हैं” (11)। उन्होंने उनकी आराधना की। संत पापा ने कहा कि हम इसे कभी न भूलें, विश्वास की यात्रा अपने में नवीनता और पूर्णता को तब प्राप्त करती है जब हम अपने को ईश्वर की उपस्थिति को पाते हैं। जब हम आराधना के स्वाद को पुनः प्राप्त करते केवल तब हमारी इच्छा प्रज्वल्लित होती है। क्योंकि ईश्वर के लिए हमारी चाह केवल तब विकसित होती जब हम अपने को उनकी उपस्थिति में लाते हैं। केवल येसु हमारी चाहतों के परिशुद्ध कर सकते हैं। किन चीजों सेॽ हमारी तानाशाही जरुरतों से। वास्तव में, जब हम केवल अपनी ही इच्छाओं तक सीमित होकर रह जाते तो हमारे हृदय बीमार हो जाते हैं। ईश्वर दूसरी ओर हमारे हृदयों को ऊपर उठाते, उन्हें शुद्ध करते और स्वर्थीपन से चंगाई प्रदान करते हैं। वे हमें स्वयं को और हमारे भाई-बहनों को प्रेम करने हेतु खोलते हैं। यही कारण है कि हम आराधना को नजरअदांज न करें- आइए हम पवित्र यूखारिस्त के सम्मुख समय व्यतीत करें और येसु के द्वारा अपने को परिवर्तित होने दें।

हमारा तारा

वहाँ, ज्योतिषियों की भांति हम अपने लिए निश्चितता को पायेंगे कि अंधेरी रात में भी एक तारा हमारे लिए चमकता है। हमारे लिए वे तारा येसु हैं, जो हमारी दुर्बल मानवता की देख-रेख हेतु आते हैं। आइए हम उनकी ओर आगे बढ़ें। आइए हम उदासीनता और परित्याग के मनोभाव को अपने में हावी होने न दें जो हमें उदासी और घिसा-पिटा जीवन जीने को अग्रसर करती है। दुनिया विश्वासियों से, स्वर्गीय चीजों को एक नये जोश के रुप में पाना चाहती है। ज्योतिषियों के रुप में हम अपनी आंखें ऊपर उठायें, अपने हृदय की इच्छाओं को सुनें और उस तारे का अनुसरण करें जिसे ईश्वर हमारे लिए उदित करते हैं। बेचैनी में खोजने वालों की तरह, हम अपने को ईश्वरीय आश्चर्य हेतु खुला रखें, हम सपनें देखें, हम उन्हें खोजे और उनकी आराधना करें।

 

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06 January 2022, 13:09