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प्रभु प्रकाश महापर्वः देवदूत प्रार्थना से पूर्व सन्देश

वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में गुरुवार छः जनवरी को प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में मध्यान्ह देवदूत प्रार्थना के लिये एकत्र तीर्थयात्रियों को सन्त पापा फ्राँसिस ने सम्बोधित किया...

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरुवार, 6 जनवरी 2022 (रेई,वाटिकन रेडियो): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में गुरुवार छः जनवरी को प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में मध्यान्ह देवदूत प्रार्थना के लिये एकत्र तीर्थयात्रियों को सन्त पापा फ्राँसिस ने इन शब्दों से सम्बोधित किया...

आज, प्रभु प्रकाश महापर्व के दिन, हम सन्त मत्ती रचित सुसमाचार के दूसरे अध्याय में निहित ज्योतिष राजाओं के आगमन की घटना पर चिन्तन करते हैं। यहूदियों के नवजात राजा के दर्शन और आराधना हेतु उन्होंने एक लम्बी और कठिन यात्रा का सामना किया था। एक तारे के चमत्कारी चिन्ह द्वारा वे निर्देशित थे, और जब अन्ततः वे अपने गंतव्य पर पहुँचे, तो कोई भव्य एवं प्रभावशाली दृश्य देखने के बजाय उन्होंने अपनी माँ के साथ एक नवजात शिशु को पाया। उस दृश्य को देखकर वे विरोध कर सकते थेः "कितनी सड़कें और कितनी कुर्बानियां, सिर्फ एक ग़रीब बच्चे को देख पाने के लिए?" तथापि, वे अपमानित नहीं हुए, वे निराश नहीं हुए। उन्होंने शिकायत नहीं की अपितु उन्होंने झुककर दण्डवत किया। सुसमाचार के अनुसार, "घर में प्रवेश कर, उन्होंने बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा और उसे साष्टांग प्रणाम किया।"  

आश्चर्यचकित करनेवाला विनम्र कृत्य

आइए, हम उन बुद्धिमान, धनी, शिक्षित और विख्यात पुरुषों के बारे में विचार करें जो सुदूर से आए थे, जिन्होंने ख़ुद झुककर दण्डवत किया, यानी नवजात शिशु की आराधना हेतु ज़मीन पर झुक गये! इतने महान पुरुषों द्वारा सम्पादित ऐसा विनम्र कृत्य सचमुच में आश्चर्यचकित करनेवाला है। सत्ता और महिमा के ताम-झाम सहित ख़ुद को प्रस्तुत करने वाले नेता के सामने दण्डवत करना उस युग में सामान्य बात थी। और आज भी यह कोई विचित्र बात नहीं होगी। तथापि, बेथलेहेम के एक नन्हें शिशु के आगे यह सरल काम नहीं था। ऐसे  ईश्वर की आराधना करना आसान नहीं है, जिसकी दिव्यता प्रच्छन्न और अदृश्य रहती है और जो विजयी प्रतीत नहीं होता। तथापि, सन्त पापा ने कहा... "इसका अर्थ है ईश्वर की महानता को स्वीकार करना जो स्वतः को अल्पता में प्रकट करती है। ज्योतिष तीन राजाओं ने कभी न सुनी गई ईश्वर की तर्कणा के समक्ष ख़ुद को दीन बना लिया, उन्होंने उद्धारकर्ता को उस रूप में स्वीकार नहीं किया जिस तरह से उन्होंने उनकी कल्पना की थी, बल्कि उस रूप में स्वीकार किया जैसे वे थे  निर्बल और दीन।" सन्त पापा ने कहा, "ज्योतिष राजाओं का साष्टांग प्रणाम उन लोगों की निशानी है जो अपने विचारों को एक तरफ रखकर ईश्वर के लिए जगह बनाते हैं।" 

सन्त पापा ने कहा, "सुसमाचार रेखांकित करते हैं: वे केवल यह नहीं कहते कि ज्योतिष राजाओं ने आराधना की, बल्कि इस तथ्य पर बल देते हैं कि उन्होंने नीचे झुककर दण्डवत किया और आराधना की।  इस विवरण को हम समझें कि उनकी आराधना और उनका दण्डवत करना साथ-साथ रहा। इस क्रिया को करते हुए, ज्योतिष राजाओं ने उस एक के प्रति अपनी विनम्र स्वीकृति प्रकट की जिसने स्वतः को विनम्रता से प्रस्तुत किया था। यही कारण है कि वे ईश्वर की आराधना हेतु उदार रहे। इस प्रकार, जो खज़ाने वे खोलते हैं, वे उनके उदार दिलों की छवियां हैं, वही है उनकी असली संपत्ति, उनकी प्रसिद्धि और उनकी सफलता में नहीं है, बल्कि उनकी विनम्रता में और मुक्ति की आवश्यकता के बारे में उनकी जागरूकता में उनकी सफलता निहित है।"

मिथ्याभिमान, घमण्ड का परित्याग करें

सन्त पापा ने आगे कहा... "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, यदि हम अपने विचारों के साथ सबकुछ का केन्द्र बने रहे, और यदि हम यह मान लें कि हमारे पास ईश्वर के सामने गर्व करने योग्य कुछ है, तो हम कभी भी पूर्ण रूप से उनका साक्षात्कार नहीं कर पायेंगे, हम कभी भी उनकी आराधना करने में सक्षम नहीं बन पायेंगे। यदि हमारे मिथ्याभिमान, घमंड, हठ और प्रतिस्पर्धा करने की होड़ में कमी नहीं आती है, तो हम जीवन में भले ही किसी की पूजा कर लें, लेकिन वह ईश्वर की पूजा नहीं होगी! इसके बजाय, हम आत्मनिर्भरता के अपने ढोंग को छोड़ दें, यदि हम अपने आप को भीतर से छोटा कर लें, तो हम अवश्य ही येसु की आराधना करने के चमत्कार की पुनः खोज कर पायेंगे। इसका कारण यह है कि आराधना हृदय की विनम्रता से प्रस्फुटित होती हैः जो विजयी होने के  प्रति आसक्त हैं, वे कभी भी प्रभु की उपस्थिति से अवगत नहीं हो सकेंगे। येसु हमारे निकट से निकल जाते हैं किन्तु उनकी उपेक्षा कर दी जाती है, जैसा कि उस युग में कईयों के साथ हुआ था, किन्तु ज्योतिष राजाओं के साथ नहीं।"

तनिक विचार करें

उन्होंने कहा, "ज्योतिष राजाओं का अवलोकन कर आज हम अपने आप से प्रश्न करें: मेरी विनम्रता कैसी है? क्या मुझे विश्वास है कि अभिमान मेरी आध्यात्मिक प्रगति में बाधक है? क्या मैं ईश्वर और अन्यों के प्रति उदार बने  रहने के लिए विनम्रता में प्रगति कर रहा हूं, या फिर क्या मैं ख़ुद पर और अपने ढोंग पर केंद्रित हूं? क्या मुझे पता है कि ईश्वर और दूसरों के दृष्टिकोण को अपनाने के लिए मुझे अपने ख़ुद के दृष्टिकोण को कैसे अलग रखना चाहिये? अन्ततः, क्या मैं तब ही प्रार्थना और आराधना-अर्चना करता हूँ  जब मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ती है, अथवा यह कार्य मैं अनवरत करता रहता हूँ क्योंकि मेरा विश्वास है कि मुझे सदैव येसु की ज़रूरत रहा करती है?"   

अन्त में पवित्र कुँवारी मरियम से इस प्रार्थना के साथ सन्त पापा ने प्रभु प्रकाश महापर्व पर अपना चिन्तन समाप्त किया, उन्होंने कहा, "कुँवारी मरियम, प्रभु की दासी, हमें विनम्रता तथा आराधना की जीवन्त एवं प्रबल इच्छा की आवश्यकता की पुनः खोज करना सिखाएं।"

इतना कहकर सन्त पापा फ्राँसिस ने तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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06 January 2022, 11:13