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यूनानी ख्रीस्तियों को संत पापा का प्रोत्साहन

यूनान की यात्रा के पहले दिन संत पापा फ्रांसिस ने ऐथेंस में काथलिकों की छोटी कलीसिया से भेंट करते हुए उन्हें संत पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करने को प्रोत्साहित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

ऐथेंस, 04 दिसम्बर 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने ऐथेंस के संत दायोनिसियुस महागिरजाघर में काथलिक कलीसिया के लधु समुदाय से भेंट करते हुए उन्हें पौसुल की भांति प्रेरित किया।

अपने 35वें प्रेरितिक यात्रा के दूसरे चरण में शनिवार को संत पापा फ्रांसिस ने यूनान के ऑर्थोडॉक्स प्राधिधर्माध्यक्ष हिरोनिमोस द्वितीय से मुलाकात करने के उपारंत यूनानी कलीसिया के धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबहनों और प्रचारकों से स्नेह पूर्ण भेंट की और उन्हें अपने विश्वास में बन रहने का संदेश दिया।

ऐथेंस के सेवानिवृत महाधर्माध्यक्ष सेभास्तियानो रोस्सोलातोस ने संत पापा का अभिवादन करते हुए इस मिलन का शुभांरभ किया। संत पापा फ्रांसिस के संबोधन के पूर्व तोनोस द्वीप में कार्यरत अर्जेंटीना की एक धर्मबहन और एक लोकधर्मी ने अपने विश्वास के साक्ष्य प्रस्तुत किये। उन्होंने ऑर्थोडॉक्स कलीसियाई की बहुलता के मध्य, बढ़ते धर्मनिरपेक्षता और अप्रवासन के बीच, लघु विश्वासी कलीसिया के रुप में अपनी आनंदमय अनुभूतियों और चुनौतियों को साझा किया जो स्थानीय कलीसिया के स्वरुप में परिवर्तन लाती है।

संत पौसुल के कदमों का अनुसरण

संत पापा ने कलीसिया में चरवाहों का कार्यभार संभाल रहे धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबंधुओं, गुरूकुलवासियों, धर्मबहनों और प्रचारकों को अपने संबोधन में प्रोत्साहित करते हुए संत पौलुस के नक्शे कदमों पर चलने का आहृवान किया जिन्होंने अरियोपागुस में संत दायोनिसियुस, ऐथेंस के प्रथम धर्माध्यक्ष और संरक्षक संत का मन परिवर्तन में मदद की।

संत पापा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उस समय के यूनानी समाज में सुसमाचार की घोषणा करना सहज नहीं था, लेकिन प्रेरित राई के छोटे दाने को बोने में सफल रहे जो ख्रीस्तीयता और यूनानी संस्कृति का संश्लेषण प्रस्तुत करता है। उन्होंने दो मनोभावों पर प्रकाश डाला जिसके फलस्वरुप प्रेरित गैर-यहूदियों के बीच में सफल हुए जो आज भी हमारे लिए विश्वास के प्रसार हेतु मददगार सिद्ध हो सकता है।    

ईश्वर में पूर्ण विश्वास

संत पापा ने कहा कि प्रथम मनोभाव ईश्वर में पूर्ण विश्वास है। ऐथेंस पहुंचने पर जैसे की प्रेरित चरित हमें बतलाता है, पौलुस को अरियोपागुस में अस्वीकृत अतिथि की तरह लाया गया जिससे उसकी जांच-पड़ताल की जा सकें। वह अपने प्रेरिताई के कार्य में कठिनाई का अनुभव कर रहा था लेकिन उन्होंने अपने में निराशा को हावी होने नहीं दिया। संत पापा ने कहा कि यह सच्चे प्रेरित की निशानी है जहाँ हम उसे विश्वास में अनिश्चिताओं की चिंता किये बिना आगे बढ़ते हुए देखते हैं। पौलुस में वह साहस था। यह हमारे लिए कहाँ से आता हैॽ निश्चय ही ईश्वर में विश्वास से। उसके विश्वास की जड़ें ईश्वर में थी जो अपने महान कार्यों को हमारी छोटेपन में पूरा करते हैं।

राई का बीज

संत पापा ने कहा, “कलीसिया के रुप में, हम विजयी होने, अपनी संख्या में प्रभावकारी या दुनियावी रूप में शानदार होने हेतु नहीं बुलाये गये हैं”। हमें राई के दाने से प्रेरणा लेने को प्रेरित किया जाता है जो अपने में सबसे छोटा दिखाई देता लेकिन वह धीरे-धीरे और चुपचाप विकसित होता जाता है।” उन्होंने कहा, “हम खमीर बनने हेतु बुलाये जाते हैं जो अपने में धैर्य और चुपचाप, दुनिया में गुप्त बना रहता है, इसके लिए हमें पवित्र आत्मा का निरतंर धन्यवाद करना है”।

छोटा होना एक आशीष

संत पापा ने आगे कहा, “आप अपने छोटापन को ईश्वर की आशीष समझें और इसे स्वेच्छा से स्वीकार करें। यह आप को केवल ईश्वर और ईश्वर में आशावान बने रहने हेतु मदद करता है। हमारा छोटा होना अपने में अर्थहीन नहीं अपितु ईश्वर के निकट प्रेम में रहने का कारण बनता है जो अपने में नम्र, दीनता और अपने को सभी रुपों में खाली करते हैं।

स्वीकारने के मनोभाव

संत पापा ने दूसरे मनोभाव की चर्चा करते हुए कहा जिसे पौलुस अरियोपागुस में व्यक्त करते हैं, वे दूसरे के जीवन और उनकी सीमाओं में दखल दिये बिना उनके जीवन की अच्छी भूमि में सुसमाचार के बीज बोते है। यह हमें तथ्य को पहचानते और उसकी प्रशंसा करने में मदद करता है कि ईश्वर ने इस धरती में आने से पहले ही हमारे हृदयों में अच्छे बीजों को बोया है।

प्रस्तावित करना थोपना नहीं

संत पापा ने संत पौलुस का ऐथेंसवासियों के बीच कार्य करने के प्रारुप पर प्रकाश डालते हुए कहा, “उन्होंने अपने को थोप नहीं अपितु प्रस्तावित किया”। संत पौलुस के कार्य करने का तरीका धर्मपरिवर्तन पर आधारित नहीं था, बल्कि यह येसु की दीनता पर प्रकाश डालना था”। यह वर्तमान समय में हमारे लिए सही मनोभाव है इस बात को जानते और अनुभव करते हैं कि “पवित्र आत्मा सदैव हमारे लिए जरुरत से ज्यादा कार्य करते हैं जिनसे हम अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। इस संदर्भ में संत पापा रोकोस के साक्ष्य का हवाला दिया जिन्होंने कहा कि बच्चों को धार्मिक क्रिया-कलापों से दूर होता देख उसे बेचैनी होती थी।

विभिन्नताओं के मध्य एकता

अपने चिंतन को जारी रखते हुए संत पापा ने कहा कि यूनान में मानव, सांस्कृतिक और धार्मिक मतभेदों के बीच एकता बनाने की आवश्यकता है, “उन्होंने संत पापा बेनेदिक्त 16वें के द्वारा 21 दिसम्बर 2009 में रोम कुरिया में किये गये संबोधन की याद की, “हम अपने हृदय में उनके लिए जगह रखने की जरुरत है जो अज्ञेयवादी या अविश्वासी हैं, हमें उनकी देख-रेख करनी है, खास कर जब हम नवीन सुसमाचार की बातें करते हैं तो हम उन्हें अपने से दूर नहीं रख सकते”।

भ्रातृत्व के रहस्य को बढ़ावा

वर्तमान चुनौती पर बल देते हुए संत पापा ने कहा कि हम सभों को अपने में उत्साह का विकास करने की जरुरत है जिससे हम ख्रीस्तीय, ऑर्थोडाक्स और दूसरे संप्रदाय के भाई-बहनों को सुन सकें, उनके साथ सपने देखते हुए कार्य करें और भ्रातृत्व के “रहस्य” का विकास कर सकें। उन्होंने कहा कि अतीत के दर्द वार्ता की हमारी राहों में रह जाते हैं, लेकिन हमें साहस से आज की चुनौती का आलिंगन करना है। 

प्रयोगशाला बनें

अपने संबोधन के अंत में संत पापा फ्रांसिस ने इस बात की याद दिलाई कि यद्यपि अरियोपागुस के लोग संत पौलुस की खिल्ली उड़ाया करते थे और उनकी बातों को महत्व नहीं देते थे, वहीं दायोनिसियुस उनके साथ हो लिया और विश्वास को ग्रहण किया। यह एक छोटी बची हुई चीज के समान लगती है यद्यपि हम देखते हैं कि कल से लेकर आज तक कैसे ईश्वर इतिहास को बुनते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी इच्छा है कि आप अपने ऐतिहासिक “विश्वास के प्रयोगशाला” में कार्य करना जारी रखें। 

 

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05 December 2021, 12:22