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संत पापा: क्रिसमस पर यूरोपीय संघ का दस्तावेज़ कालदोष

अपनी 35वीं प्रेरितिक यात्रा, साईप्रस और यूनान से रोम वापसी के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने वायुयान में पत्रकारों द्वार पूछे गये सावलों का जवाब दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 7 दिसम्बर 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने यूनान और साईप्रस की प्रेरितिक यात्रा की समाप्ति उपरांत, रोम लौटने के क्रम में हवाई यात्रा के दौरान, पत्रचारों के साथ अपने साक्षात्कार में उनके विभिन्न सवालों का जवाब दिय़ा।

कोस्तानदिनोस तिसिनदास (सीवाईबीसी) यूनान और साईप्रस दोनों स्थानों पर अंतरधार्मिक वार्ता पर कही गई बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिध्वनित हो रही हैं और चुनौतीपूर्ण उम्मीदों को जाग्रति करती हैं। क्षमा की याचना अपने में सबसे कठिन है जबकि ऐथेंस में आपने इसे अभूतपूर्व रुप में किया है। इस संदर्भ में ओर्थोडक्स और काथलिक कलीसिया के संबंध में वाटिकन की क्या व्यवाहरिक योजना है। क्या सिनोड के विचार हैं...ॽ प्राधिधर्माध्यक्ष बरथोलोमी के साथ, आपने ख्रीस्तियों को 2025, 17 सदियों में नाइसिया प्रथम सिनोड की यादगारी मनाने का विचार किया है। यह प्रक्रिया कैसे प्रगति कर रही है? (अंत में) यूरोपीय संघ के दस्तावेज मे  क्रिसमस शब्दावली के बारे में क्या कहते हैं।

संत पापाः जी हाँ, धन्यावाद। मैंने क्षमा की याचना की, मैंने, भाई, इरोनोमुस से सामने क्षमा की याचना की। मैंने उन सभी विभाजनों के लिए उनसे माफी मांगी जो ख्रीस्तियों के बीच में हैं, उससे भी बढ़कर उसके लिए जब हमने ख्रीस्तियों को भड़काया।

मैंने इस बात के लिए भी क्षमा की मांग की, क्योंकि स्वतंत्रता की लड़ाई के समय- जैसे कि इरोनोमुस ने मुझे इंगित कराया- कुछ ख्रीस्तियों ने यूरोपीय सरकारों का साथ देते हुए यूनान की स्वतंत्रता में बाधक बनें। दूसरी ओर द्वीप में काथलीकों ने द्वीप का समर्थन किया,वहीं कुछ लोगों ने युद्ध में भाग लिया और अपनी जान कुर्बान कर दी। क्रेन्द उस समय यूरोप का साथ दे रहा था। मैंने दोषपूर्ण विभाजन के लिए भी क्षमा की याचना की जिसके लिए हमें दोषी ठहराया जाता है।

आत्मनिर्भरता की भावना- जिसके फस्वरुप क्षमा मांगने के बदले हम चुप रहने की सोच लेते हैं- मुझे इस विषय में सोचने को बाध्य करता है कि ईश्वर क्षमा करने हेतु कभी नहीं थकते हैं, कभी नहीं,...यह हम हैं जो क्षमा मांगने हेतु थक जाते हैं, और यदि हम ईश्वर से क्षमा की मांग नहीं करते तो हम अपने भाई-बहनों से क्षमा की मांग नहीं कर सकते हैं। अपने एक भाई से क्षमा की याचना करना ईश्वर से क्षमा मांगने से अधिक कठिन है क्योंकि हम जानते हैं कि वे हमें कहते हैं,“हाँ, जाओ तुम्हारे पाप क्षमा किये गये”। हम अपने भाई-बहनों से क्षमा माँगने में शर्मिगी और अपमानित होने का अनुभव करते हैं। आज की दुनिया में हमें अपमानित और शर्मिगी के मनोभावों को धारण करने की जरुरत है। दुनिया में बहुत सारी चीजें घटित हो रहीं हैं, बहुत-सी जानें जा रही हैं, बहुत-सी लड़ाइयाँ.... हम कैसे क्षमा की याचना न करेंॽ

पुनः इस विषय पर पुनः जिक्र करते हुए, मैंने उन विभाजनों के लिए क्षमा याचना की चाह रखी जिसके जिम्मेदार हम हैं। दूसरों के लिए... (उनके लिए) जो जिम्मेदार हैं, लेकिन हमारे लिए मैंने क्षमा की याचना की, उन सारी बातों के लिए जहाँ ख्रीस्तियों ने सरकार का साथ दिया, और वे जो द्वीप युद्ध में सहभागी हुए... मैं नहीं जानता यदि यह प्रार्याप्त है...।

संत पापा ने कहा कि और अंतिम में उसके लिए क्षमा की याचना की- जो मेरे हृदय का स्पर्श करता है– प्रवासियों की घटनाओं के लिए जहाँ बहुत से लोग समुद्र में डूब गये हैं।  

सिनोड की संभावना पर सवाल

संत पापा ने कहा कि हाँ, हम सभी एक झुण्ड हैं, यह सच है। यह अंतर- याजक और लोकधर्मी- यह एक कार्यात्मक विभाजन है, हाँ, योग्यता की, लेकिन इसमें हम एक एकता को पाते हैं, जो एक ही झुंड है। कलीसिया के भीतर अंतरों का आयाम सिनोडलिटी: अर्थात्, एक दूसरे को सुनना और एक साथ आगे बढ़ना है। सिन होदो (Syn hodò) राह में एक साथ आगे बढ़ना है। सिनोडालिटी के इस अर्थ को आर्थोडाक्स कलीसियाओं और पूर्वी रीति की कलीसियाओं ने बनाये रखा है जबकि लातिनी कलीसिया इसे भूल गई थी, संत पापा पौल छंटवें ने इसे 54 या 56 साल पहले पुनः स्थापित किया है। हम एक साथ चलते हुए इसे अपने जीवन का अंग बनाने की कोशिश कर रहें हैं।

क्रिसमस पर सावल

यूरोपीयन संघ का क्रिसमस पर दस्तावेज अपने में एक कालदोष है। इतिहास में बहुत से तानाशाह हुए जिन्होंने इसे लागू करने की कोशिश की। आप नापोलियन के बारे में विचार कीजिए...वहाँ से नाजी तानाशाह और सम्यवादी विचार धारा...यह धर्मनिरपेक्षता कम करने वाली एक शैली है, लेकिन यह कारगर सिद्ध नहीं हुई है।

यह मुझे इसके बारे में सोचने हेतु विवश करता है कि यूरोपीय संघ को चाहिए कि वे अपने संस्थापकों के आदर्शों का अनुसरण करें जो एकता के आदर्शों, महानता को बढ़वा देना है न कि वैचारिक उपनिवेशीकरण के मार्ग को। यह देशों में विभाजन लाते हुए यूरोपीय संघ को असफल बना सकता है। यूरोपीय संघ को चाहिए की वे हर देश की विभिन्नातों का सम्मान करें न कि उनमें एकरुपता लाने का प्रयास करें। हर देश की अपनी विशेषता है वहीं देश एक दूसरे के लिए खुले हुए हैं। यूरोपीय संघ इसकी संप्रभुता, एकता में भाइयों की संप्रभुता है जो प्रत्येक देश की विशेषता का सम्मान करती है। हमें इसका ध्यान रखने की जरुरत है कि हम वैचारिक उपनिवेशीकरण के वाहन न बनें। यही कारण है की क्रिसमस का सवाल अपने में एक कालदोष है।

ईयाना माग्रा (काथीमेरीनी) संत पापा, यूनान की प्रेरितिक यात्रा हेतु धन्यवाद। आप ने राष्ट्रपति भवन ऐथेंस में लोकतंत्र में गिरावट की बात कही, विशेष कर यूरोप में। आप ने किन राष्ट्रों की ओर इंगित किया। आप उन नेताओं से क्या कहना चाहेंगे जो भक्त ख्रीस्तीय होने की चाह रखते लेकिन कभी-कभी अलोकतांत्रिक मूल्यों और नीतियों को बढ़ावा देते हैं?

संत पापाः लोकतंत्र एक निधि है, यह सभ्यता का एक खजाना है और हमें इसकी रक्षा करनी है, इसे हर परिस्थिति में सुरक्षित रखना है। और न केवल एक बृहद संस्थान, बल्कि स्वयं देशों द्वारा (यह आवश्यक है) कि हम दूसरों के लोकतंत्र की रक्षा करें।  

संत पापा ने कहा कि मैं लोकतंत्र के संबंध में दो खतरों के देखता हूँ, पहला लोकलुभानवाद जो इधर-उधर है, और अपने पंजों को फैलाने का प्रयास कर रहा है। मैं विगत सदी के बड़े लोकलुभानवाद के बारे में सोचता हूँ, नाजवाद, जो राष्ट्र मूल्यों की रक्षा में लगा रहा जिसके कारण लोकतांत्रिक जीवन का विनाश हो गया। उन्होंने कहा कि आज हमें सरकारों से सचेत रहने की जरूरत है जो लोकलुभावनवाद की राह में पड़ जाते हैं जिसे हम “राजनीतिक लोकलुभावनवाद” की संज्ञा देते हैं जिसका लोकप्रियवाद से कोई संबंध नहीं है, जो लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है जहाँ हमें उनके परापंराओं, मूल्यों, उनकी कला को पाते हैं, लोकप्रियवाद एक अगल विषयवस्तु है (लोकलुभावनवाद एक अलग ही)।

वहीं दूसरी ओर, लोकतंत्र अपने कमजोर में तब होती जातती जब यह धीरे-धीरे राष्ट्रीय मूल्यों का त्याग करती है और अपने को “साम्रज्य” एक तरह से शक्तिशाली सरकार स्वरुप प्रस्तुत करती है, हमें इस तरह की बातों पर विचार करने की जरुरत है।

संत पापा ने कहा कि हम लोकलुभावनवाद का शिकार न हों और न ही अपनी पहचान को एक अंतरराष्ट्रीय सरकार द्वारा निगलने दें। इस संबंध में संत पापा फ्रांसिस ने रॉबर्ट ह्यूग, एक अंग्रजी लेखक के पुस्तक,“द लार्ड ऑफ द वर्ल्ड” की चर्चा की जहाँ एक अंतरराष्ट्रीय सरकार अर्थव्यवस्था और राजनीति के आधार पर दूसरे अन्य देशों पर शासन करती है। जब आप के पास ऐसी सरकार होती तो आप अपनी स्वतंत्रता को खो देते और सभों के मध्य अपने लिए समानता की खोज करते हैं। ऐसा तक होता है जब सबसे बड़ी शक्ति अर्थव्यवस्था, संस्कृति और सामाजिक व्यवहार के आधार पर देशों में धैंस जमाती है। लोकतंत्र में कमजोरी लोकलुभावनवाद के द्वारा आती है जो अपने में लोकप्रियवाद नहीं है। संत पापा ने कहा कि मैं राजनीति शास्त्री नहीं हूँ लेकिन ये मेरे विचार हैं।  

मानुएल शार्ज़ोः प्रवासन केवल भूमध्यसागर में एक केंद्रीय मुद्दा नहीं है। यह यूरोप के अन्य भागों की भी विषयवस्तु है। यह पूर्वी यूरोप से संबंधित है। हम कांटेदार तारों के बारे में सोचें। उदाहरण के लिए, आप पोलैंड से, रूस से क्या आशा करते हैंॽ  और जर्मनी जैसे अन्य देशों से, इसकी नई सरकार से...

संत पापाः इसके बारे में यह कहूँगा, वे लोग जो प्रवासन को रोकते या अपनी सीमाओं को बंद करते हैं... दीवार का निर्माण करना या कांटेदार तार यह एक आधुनिक फैशन बन गया है। यह साधारणतः लोगों को रोकने के लिए किया जाता है...। पहली बात मैं कहना चाहूँगा, आप अपने को एक प्रवासी के रुप में देखें जाहँ आप को प्रवेश करने की अनुमित नहीं मिली है । पहले आप अपनी जमीन से भागना चाहते थे लेकिन अब आप दीवारों को खड़ा करना चाहते हैं। वे जो अपने में दीवारों को खड़ा करते हैं अपने इतिहास को भूल जाते हैं, जब वे दूसरे देश में गुलाम थे। जिन्होंने दीवारों को खड़ा किया है उनके अनुभव ऐसे ही रहे हैं। आप मुझे कह सकते हैं,“लेकिन सरकारों के अपने उत्तरदायित्व हैं, यदि प्रवासियों की ऐसी भीड़ आती रही तो वे शासन नहीं कर सकते हैं।” मैं कहूंगा, कि हर सरकार को स्पष्ट रुप से कहना चाहिए,“हम इतनों को स्थान दे सकते हैं...” क्योंकि देश के संचालक जानते हैं कि वे कितने प्रवासियों को ले सकते हैं। यह उनका अधिकार है जो सही है।

संत पापा ने कहा कि प्रवासियों का स्वागत करना, उनका साथ देना, उन्हें प्रोत्साहित करना और समाज में सम्मिलित करना जरुरी है। यदि सरकार एक निश्चित संख्या से अधिक नहीं ले सकती तो वह दूसरे देशों से वार्ता करें जो उनकी देख-रेखकर सकते हैं। यही कारण है कि यूरोपीयन संघ महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रवासियों के संबंध में सरकारों से तालमेल स्थापित कर सकती है। उन्होंने कहा कि हम साईप्रस या यूनान या लम्पेदूसा, सिसल्ली में प्रवासियों के बारे में विचार करें जो देशों में सही तालमेल के बिना होता है। संत पापा ने उनका समाज में सम्मिलित किये जाने की बात पर जोर देते हुए कहा कि यदि उन्हें नागरिकता का दर्ज नहीं दिया जाता तो वे घेटो मानसिकता का शिकार होते हैं। यदि हम उन्हें शिक्षा,कार्य से वंचित करते उनकी चिंतन नहीं करते तो हम गुरिल्ला युद्ध की जोखिम को उत्पन्न करते हैं। प्रवासियों का स्वागत और इस समस्या का निदान सहज नहीं है लेकिन यदि हम इसका हल नहीं खोजते तो हम सभ्यता के टूटने की स्थिति में आ जाते हैं।

संत पापा ने स्वीडेन में, लातीनी अमेरीका प्रवासियों के स्वागत और उन्हें दी गई नगारिकता का जिक्र किया। उन्होंने ऐथेंस में युवाओं की उपस्थिति और उनका एक दूसरे के साथ खुलकर मिलने जुलने की प्रक्रिया की प्रशंसा की और कहा, “वे यूनान के भविष्य हैं”। प्रवासियों को सामाजिक जीवन में सम्मिलित करना आवश्यक है। संत पापा ने प्रवासियों को छोड़ दिये जाने पर हो रही त्रासदी की ओर ध्यान आकर्षित कराया जहाँ वे मानव व्यापारियों का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हम उन्हें यूं ही नहीं छोड़ सकते हैं यह उनके प्रति हमारी क्रूरता है।

सेसिल चम्ब्रौद (ले मोंदे) आप ने पेरिश के महाधर्माध्यक्ष औपेतीत का त्यागपत्र स्वीकार किया, इसमें इतनी तीव्र क्यों हुईॽ और सॉव दुराचार रिपोर्ट के संबंध में: यह कलीसिया की एक संस्थागत जिम्मेदारी थी और घटना का एक व्यवस्थित आयाम था। आप इसके बारे में क्या सोचते हैं, और सार्वभौमिक कलीसिया के लिए इसका क्या अर्थ है?

संत पापाः मैं द्वितीय सवाल से शुरू करता हूँ। जब खोजबीन की गई है तो हमें इस संबंध में टीका-टिप्पणी करने हेतु सावधानी बरतने की जरुरत है। जब आप एक लम्बे समय तक खोजबीन करते हैं तो यह अपने समय के संर्दभानुसार भ्रम की जोखिम उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा, “मैं इसे केवल एक सिद्धांत के रूप में कहना चाहूंगा: एक ऐतिहासिक स्थिति की व्याख्या उस समय के व्याख्याशास्त्र अनुरूप किया जाना चाहिए, न कि वर्तमान समयानुसार। संत पापा ने गुलामी का उदाहरण देते हुए कहा कि “यह अपने में एक क्रूरता है”। आज से 70 या 100 साल पहले यह एक क्रूरता थी लेकिन वर्तमान समय में यह वैसे नहीं है। कलीसिया में दुरचार एक मनोभावना थी जिसे गुप्त रखा जाता था जो दुर्भाग्यवश बहुत से परिवारों, पड़ोसों में भी गुप्त रखा गया। इसे छिपाकर रखना उचित नहीं है। लेकिन हमें इसे समय के अनुरूप व्याख्या करने की जरुरत है।

औपेतीत प्रकरण के बारे में संत पापा ने कहा कि उन्होंने जो किया वह गंभीर नहीं था जिसके लिए वह त्यागपत्र दे। संत पापा ने पत्रकारों से उनके केस के संबंध में सावल किये लेकिन किसी ने उचित जवाब नहीं दिय़ा। संत पापा ने कहा कि यदि हम उसके ऊपर लगे आरोप के बारे में सही तरीके से नहीं जानते तो हम उसे दोषी करार नहीं दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि उनके बारे में इतनी सारी अपवाहें फैलाई गयीं कि मुझे उनका त्यागपत्र स्वीकारना पड़ा।

वेरा शेरबकोवा (इटार-तास): आप आर्थोडाक्स कलीसियाई प्रमुखों से मिले और एकता तथा मेल-मिलाप के बारे में सुंदर शब्द कहे: किरिल से मिलने पर आपकी सामान्य योजनाएँ क्या हैं, और इस मार्ग में आपको क्या कठिनाइयाँ दिखाई देती हैंॽ

संत पापाः प्राधिधर्माध्यक्ष किरिल के साथ एक मिलन की क्षितिज बहुत दूर नहीं है। मैं विश्वास करता हूँ कि इस संभावित बैठक पर सहमति हेतु हिलारियन अगले सप्ताह मुझसे मिलने आएंगे। प्राधिधर्माध्यक्ष को फिनलैंड की यात्रा करनी है और मैं मास्को जाने को सदैव तैयार हूँ जिससे मैं भाई के संग वार्ता कर सकूं। एक भाई के साथ वार्ता हेतु पोर्टोकोल की जरुरत नहीं है। प्राधिधर्माध्यक्षों किरिल, क्रिस्तोस्तोमस, इरोनिमोस से प्रत्यक्ष भेंट करते हुए हम भाइयों की तरह वार्ता करते हैं। और भाइयों को आपस में झगड़ते देखना अच्छा है क्योंकि वे एक ही माता कलीसिया के अंग हैं, लेकिन वे थोड़े विभाजित हैं, कुछ विरासत के कारण, कुछ इतिहास के कारण विभाजित हुए हैं। 

लेकिन हमें एक साथ चलने, काम करने और एकता के लिए चलने की कोशिश करनी चाहिए। मैं इरोनिमोस, क्रिस्तोस्तोमस और उन सभी प्राधिर्माध्यश्रों का आभारी हूं जो एक साथ चलने की इच्छा रखते हैं। संत पापा ने कहा कि हम एक साथ चलते, प्रार्थना करते और करूणा के कार्य करते हैं।

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07 December 2021, 15:47