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Pope Francis general audience Pope Francis general audience 

संत पापाः शांति हमें हृदय की गहराई में ले चलती है

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत योसेफ के जीवन की चर्चा करते हुए उन्हें शांति पुरूष कहा जो हमें शांति में बने रहने की शिक्षा देते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 15 अगस्त 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयों एवं बहनों सुप्रभात।

हम संत योसेफ पर अपना चिंतन जारी रखते हैं। हमें उनके जीवन की उस परिस्थिति का जिक्र किया जहाँ वे मरियम के धर्मी वर स्वरूप मुक्ति इतिहास में अपनी भूमिका अदा की, आज मैं उनके एक महत्वपूर्ण गुण शांत स्वभाव पर जिक्र करूँगा। संत पापा ने कहा कि हमें बहुत बार शांति में रहने की जरुरत है। शांति महत्वपूर्ण है। ख्रीसमस रात की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि रात्रि के घोर सन्नाटे में मानव पुत्र धरती पर आये। ईश्वर अपने को अति शांतिमय स्थिति में प्रकट करते हैं। हम वर्तमान परिस्थिति में शांति के बारे में सोचने की जरुरत है जब हम इसके महत्व को कम आंकते हैं।  

योसेफ अल्पभाषी नहीं

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार नाजरेत के योसेफ पर एक में एक भी वाक्य नहीं कहता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे अल्पभाषी थे नहीं, इसका कारण अपने में और भी अधिक गहरा है। अपने शांत स्वभाव के कारण वे संत अगुस्टीन की बातों को पुष्ट करते हैं, “जिस भांति “शब्द” हममें बढ़ता- शब्द ने शरीरधारण किया, वह हममें विकसित होता, शब्द अपने में कम हो जाता है।” योहन बपतिस्ता जिन्होंने यह घोषणा की, “निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज- प्रभु का मार्ग तैयार करो” (मत्ती.3.3) इस शब्द के संबंध में कहते हैं,“वे बढ़ते जायें और मैं घटता जाऊँ” (यो. 3.30)। अपने शांत स्वभाव के द्वारा योसेफ हमें इस बात के लिए निमंत्रण देते हैं कि हम शब्द के रूप में शरीरधारण येसु ख्रीस्त की उपस्थिति हेतु स्थान दें।

योसेफ की शांति, उद्यमी चुप्पी

संत पापा ने कहा कि योसेफ का शांत रहना उनका मूकवाद नहीं है, बल्कि यह शांति में पूर्णरूपेण सुनना है, यह उद्यमी चुप्पी है, शांति की एक वह अवस्था जो उनके विशाल आंतरिक स्थिति को प्रकट करती है। “पिता ने एक शब्द उच्चरित किया और वह उसका पुत्र था” क्रूस के संत योहन कहते हैं, “और यह सदैव अनंत शांति में प्रकट होती है, और इस शांति को हृदय से सुनने की आवश्यकता है।”

येसु का प्रशिक्षण नाजरेत के घर, इस “विद्यालय” में मरियम और योसेफ के उदाहरणों में हुआ था। हमारे लिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे स्वयं अपने जीवन में शांतिमय समय की चाह रखते थे (मत्ती.14.23) उन्होंने अपने शिष्यों को उसकी अनुभूति हेतु निमंत्रण दिया,“तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा विश्राम कर लो”(मर.6.31)।

संत पापा ने कहा कि हममें हर किसी के लिए यह कितना अच्छा होता यदि हम संत योसेफ का अनुसरण करते हुए चिंतनमय जीवन के आयाम, बृहृद शांति हेतु अपने को खुला रखते। लेकिन हम अपने अनुभवों के आधार पर यह जानते हैं कि यह सहज नहीं है, शांति हमें थोड़ा भयभीत करती है, क्योंकि यह हमें अपने जीवन की गहराई में ले चलती और हमें गूढ़ हकीकत से रुबरु कराती है। दर्शनशास्त्री पास्कल इस बात से वाकिफ हैं, कि “मानव की सभी नाखुशी केवल एक बात से उत्पन्न होती है कि वे चुपचाप अपने कक्ष में नहीं रह सकते हैं”।

योसेफे हमारे शांति के शिक्षक

प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आइए हम संत योसेफ से सीखें कि हमें कैसे अपने में शांतिमय स्थल सृजित करने की आवश्यकता है जिससे पवित्र आत्मा हमारे जीवन का अंग हो सकें, जो हममें निवास करते हैं। उस आवाज को पहचानना अपने में सजह नहीं है, जो बहुधा हजारों प्रकार की चिंताओं, प्रलोभनों, चाहतों और आशाओं के रुप में हमारे अंदर व्याप्त है, जो अपने में उलझ कर रह जाती है। शांति में बने रहना एक विशिष्ट अभ्यास की मांग करती है जिसके बिना हमारे शब्द अपने में बीमार प्रतीत होते हैं। इस भांति अपने वचनों में सच्चाई की चमक लाने के बदले वचन एक खतरनाक हथियार बन सकते हैं। वास्तव में, हमारे शब्द अपने में चाटुकारिता, डींग मारना, झूठ बोलना, निंदा-शिकायत और दूसरों के लिए बदनामी का कारण बन सकते हैं। यह एक प्रमाणित सत्य है जैसे कि प्रवक्ता ग्रंथ हमारे लिए इसे व्यक्त करता है, “बहुत लोग तलवार की धार से मारे गए, परन्तु उतने नहीं जितने जीभ से मारे गए” (प्रवक्ता.28.18)। येसु स्पष्ट रुप में कहते हैं, “जो अपने भाई या बहन की बुराई करता है, जो अपने पड़ोसी की निंदा करता वह हत्यारा है” (मत्ती.5.21-22)। संत पापा ने कहा कि हम अपनी जीभ से हत्या करते हैं। हम इसमें विश्वास नहीं करते लेकिन यह सत्य है। हम इस बात पर विचार करें कि कितनी बार हमने अपने जीभ से हत्या की है यह हमें शर्मिदा करेगा। इस बात पर विचार करने से हमारी भलाई होगी।

जीभ शक्तिशाली है

सूक्ति ग्रंथ में वर्णित जीवन और मरण की चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा, “जीवन और मृत्यु दोनों मनुष्य की जिह्वा के अधीन हैं, उसका सदुपयोग करो और तुम्हें उसका फल प्राप्त होगा” (सूक्ति.18.21)। प्रेरित संत याकूब अपने पत्र में इस प्राचीन शक्ति, सकारात्मक और नकारात्मक विषय की चर्चा प्रभावकारी उदाहरणों के साथ करते हैं, “यदि कोई व्यक्ति गलत बात नहीं कहता तो वह पहुँचा हुआ व्यक्ति है, और वह अपने शरीर को नियंत्रण में रख सकता है...इसी प्रकार जीभ शरीर का एक छोटा-सा अंग है किन्तु शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है...इससे हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं औऱ उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरुप बनाया है। एक ही मुख से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी” (याकू.3.2-10)।

योसेफः शांति और कार्य का सामंजस्य

संत पापा ने कहा यही कारण है कि हमें संत योसेफ से शांति में बने रहने की शिक्षा लेनी है- जहाँ हम अपने अंतःस्थल को पवित्र आत्मा हेतु स्थान देते हैं जो हमें नवीन बनते, सांत्वना देते और सुधारते हैं। उन्होंने इस बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम चुपचाप नहीं बल्कि अपने में शांति विकसित करें। हम सभी अपने अंदर झांक कर देखें। अपने किसी काम को खत्म करने के उपरांत हम तुरंत मोबाईल में झांक कर देखते हैं जो हमेशा होता है। यह हमारी मदद नहीं करता लेकिन हमें छिछलेपन की ओर अग्रसर करता है। हृदय की गहराई शांति में बढ़ती है जो हमें प्रज्ञा, चिंतन और पवित्र आत्मा से पोषित करती है। शांत रहने से हमें डर लगता है लेकिन हम न डरें, यह हमारी भलाई करेगा। यह हमारे हृदय को लाभ पहुंचाता और हमारी भाषा, शब्दों में चंगाई लाता और उससे भी बढ़कर जीवन के चुनाव में हमारी मदद करता है। वास्तव में, संत योसेफ ने शांति और कार्य दोनों में सामंजस्य स्थापित किया। वे बोले नहीं बल्कि कार्य किये और इस भांति यह दिखलाया कि येसु ने अपने शिष्यों को एक बार क्या कहा,“जो लोग मुझे, प्रभु, प्रभु कहकर पुकारते हैं, उनमें सब-के-सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। लेकिन जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा” (मत्ती.7.21)। इतना कहने के बाद संत पापा ने संत योसेफ से प्रार्थना की,

संत योसेफ, शांतिमय व्यक्ति

तूने सुसमाचार में एक शब्द उच्चरित नहीं किया, हमें व्यर्थ की बातों से दूर रहने की शिक्षा दे,

उन शब्दों का मूल्य जानने में हमारी मदद कर जो दूसरों के लिए लाभप्रद, प्रोत्साहन, सांत्वना और सहायक बने।

उनके निकट रहने की कृपा कर जो कटु  शब्दों जैसे कि निंदा और शिकायत से आहत हो जाते हैं,

और हमारी सहायता कर कि हम सदैव अपने शब्दों और कार्यों में सामंजस्य स्थापित कर पायें, आमेन।

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15 December 2021, 15:36