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संत पापाः पलायन सामाजिक अपमान भरी समस्या

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधावीरय आमदर्शन समारोह में संत योसेफ के साहस का जिक्र करते हुए सभों को साहसी होने का निमंत्रण दिया जो जीवन की कठिनाइयों का सामना करने हेतु जरूरी है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 29 दिसम्बर 2021, (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पापा पौल षष्टम के सभागार में सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज मैं संत योसेफ को आप सभों से लिए प्रताड़ित और साहसिक प्रवासी के रुप में प्रस्तुत करना चाहूँगा। सुसमाचार लेखक संत मत्ती उन्हें ऐसा ही प्रस्तुत करते हैं। येसु के जीवन की यह विशेष घटना जो योसेफ और मरियम को भी अपने में सम्माहित करती है परांपरागत ढ़ंग से “म्रिस देश में पलायन” के नाम से जाना जाता है (मत्ती.2.13)। नाजरेत के परिवार को ऐसे अपमान झेलना पड़ा जहाँ वे भय और दुःख में अपनी मातृभूमि को छोड़ने हेतु बाध्य होते हैं। आज भी कितने ही हमारे भाई-बहनों को इस अन्याय और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह शक्तिशालियों की हिंसा और अहंकार के परिणाम स्वरूप होता है। येसु के साथ भी ऐसा ही हुआ।

राजा हेरोद को ज्योतिषियों के द्वारा “यहूदियों के राजा” के जन्म के बारे पता चला और इस समाचारर से उसे झंकझोर दिया। वह अपने में असुरक्षित महूसस करता है उसे अपनी शक्ति  खोने का अनुभव हुआ। अतः उसने येरूसलेम के सभी अधिकारियों को एकत्रित करते हुए इस बात का पता लगाया कि उसका जन्म कहाँ हुआ है, वह ज्योतिषियों से आग्रह करता है कि वे इसका सही-सही पता दें जिससे वह भी जाकर उनकी आराधना करे, जो झूठी बात था। लेकिन जब उसे यह पता चलता कि ज्योतिषिगण दूसरे रास्ते से अपने-अपने गणतव्य स्थान को चले गये हैं तो उसने बेतलेहम के सभी बच्चों को जो दो साल से छोटे थे मार डालने की एक दुष्ट योजना बनाई।

आज्ञाकारी योसेफ

इसी समय, एक स्वर्गदूत योसेफ को यह आज्ञा देते हैं, “उठिये, बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र देश भाग जाइये, जब तक मैं आप से न कहूँ, वहीं रहिए क्योंकि हेरोद मरवा डालने के लिए बालक को ढ़ूंढ़ने वाला है”। संत पापा ने कहा कि हम बहुत से लोगों के हृदय की इस बात को याद करें जो अपने अंदर यह अनुभव करते हैं,“हम यहाँ से भाग चलें, क्योंकि यहाँ खतरा है”। हेरोद की योजना उस बात की याद दिलाती है जहाँ फराऊन ने इस्रराएलियों के सब नर बालकों को नील नदी में फेंकवा दिया था (निर्ग.1.22)। और मिस्र से भागना इस्रराएली इतिहास के बातों की याद दिलाती है, आब्रहम से लेकर याकूब के बेटे, योसेफ, जो उस “भूमि का शासक बना”, जिसे अपने ही भाइयों ने बेच दिया (निर्ग.41.37-57) और मूसा, जो अपने लोगों को मिस्रियों की गुलामी से छुटकारा दिलाते हैं (निर्ग.1.18)।

अहंकार और तानाशाही  

पवित्र परिवार का मिस्र पलायन येसु को बचाता है लेकिन दुर्भाग्यवश यह बालकों को हेरोद के नरसंहार से नहीं बचा पाता है। इस भांति हम यहाँ हम दो विपरीत व्यक्तित्वों को पाते हैं, एक ओर हेरोद को अपनी क्रूरता में तो दूसरी ओर योसेफ को उनके सेवा और साहस में। हेरोद घोर क्रूरता में अपनी शक्ति में बने रहना चाहता है जो हमारे लिए उसकी एक पत्नी, उसके कुछ बच्चों और सैकड़ों विरोधियों के वध से प्रमाणित होता है। वह एक क्रूर व्यक्ति था जो समस्याओं के हेतु लोगों को केवल मार डालना जानता था। वह हमारे लिए अतीत और वर्तमान के तानाशाहों की निशानी है। यह हमारे समय आज भी होता है। इस भांति हम एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्तियों के लिए एक “भेड़िया” बनता हुआ पाते हैं। इतिहास में बहुत से ऐसे लोग हैं जो भय के कारण अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए अमानवीय हिंसा को अंजाम देते हैं। लेकिन हम यह न सोचें कि हम केवल हेरोद के मनोभावों के आधार पर ही तानाशाह होते हैं वास्तव में, यह एक व्यवहार है जिसका शिकार हम सभी हो सकते हैं, हर समय जब हम अहंकार में अपने भय को दूर करते हैं जहाँ हम अपने शब्दों के द्वारा अपने निकट रहने वालों को अपमानित करते हैं।

साहस की आवश्यकता

संत पापा ने कहा कि योसेफ हेरोद के विपरीत हैं, सर्वप्रथम वे एक धर्मी व्यक्ति हैं (मत्ती. 1.19) इसके भी बढ़कर वे स्वर्गदूत के आज्ञानुसार कार्य करते हुए अपने साहस को दिखलाते हैं। हम उनके जीवन की कठिनाइयों का अनुमान लगा सकते हैं जिसे उन्होंने एक खतरनाक यात्रा करते हुए एक अनजान देश में रहते हुए अनुभव किया। हम उसके साहस को उस समय भी देख सकते हैं जब स्वर्गदूत उन्हें वापस लौटने हेतु कहते जहाँ वे अपनी भय पर विजयी होते और मरियम और येसु के संग नाजरेत में बस जाते हैं। (मत्ती. 2.19-23)। हेरोद और योसेफ दो अलग-अलग व्यक्तित्व हैं जो मानवता के दो चेहरों को सदैव व्यक्त करते हैं। साहस को नायक का एक विशेष गुण स्वरूप देखना एक गलतफहमी है। वास्तव में, हर व्यक्ति को साहस की जरूरत है जिससे वह अपने दैनिक जीवन में रोज दिन की कठिनाइयों का सामना कर सके। हम हर संस्कृति और समय में साहसी नर और नारियों को पाते हैं जो विश्वासों में दृढ़ बने रहते हुए, सभी प्रकार की कठिनाइयों, अन्याय, निंदा और यहां तक कि मृत्यु को भी सहन किया है। साहस का समानार्थी शब्द धैर्य है जो न्याय, विवेक और संयम के संग मिलकर मानवीय गुणों के समूह का हिस्सा है जो “अतिविशिष्ट” गुण रूप जाना जाता है।

जीवन कठिनाइयों से भरा

संत पापा ने कहा योसेफ आज हमारे लिए यहा शिक्षा देते हैं, जीवन अपने में विषम परिस्थितियों के भरी है, वे परिस्थतियों हमें भयभीत और डरा देंगे, लेकिन वैसे परिस्थियों में हम हेरोद की भांति कार्य न करें नहीं अपितु योसेफ की भांति साहसिक होते हुए उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, जो ईश्वर में विश्वास से हमारे लिए होता है। उन्होंने कहा कि हमें सभी प्रवासियों, प्रताड़ितों के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है जो विषम परिस्थिति के शिकार हैं चाहे वे राजनीति, ऐतिसहासिक या व्यक्तिगत परिस्थितियाँ ही क्यों न हों। हम युद्ध में फंसे लोगों की याद करे जो अपनी मातृभूमि से भागने की चाह रखते हैं लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते, हम प्रवासियों की याद करें जो स्वतंत्रता के मार्ग की शुरूआत करते लेकिन दूसरे मार्ग या समुद्र में फंस जाते हैं। हम योसेफ और मरियम की बाहों में येसु को सोचें जो भागते हैं, और उनमें वर्तमान प्रवासियों को देखें। यह हमारे सामने आज के प्रवासियों की एक सच्चाई है जिनके बारे हम अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं। यह एक मानवीय सामाजिक अपमान है। इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने संत योसेफ से प्रार्थना की-

संत योसेफ, तूने उन लोगों के दुःख का अनुभव किया जो पलायन को विवश हैं

अपने प्रियजनों के जीवन की रक्षा हेतु तुझे पलायन का शिकार होना पड़ा,

उन सभों की रक्षा कर जो युद्ध, घृणा, भूख के कारण भागते हैं।

उनकी कठिनाइयों में उन्हें सहायता प्रदान कर,

उनकी आशा को मजबूत कर और उन्हें स्वागत और एकता की अनुभूति प्रदान कर,

उनका मार्गदर्शक बन और उन हृदयों को खोल जो उनकी सहायता कर सकते हैं, आमेन। 

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29 December 2021, 12:52