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संत पापाः हम सहायता में खुशी बाटें

संत पापा फ्रांसिस ने अपने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये संदेश में माता मरियम के जीवन पर चिंतन करते हुए दो क्रियाओं, उठना औऱ शीघ्रता से चलना पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 20 दिसम्बर 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने 19 दिसम्बर को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा ने सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आगमन के चौथे रविवार धर्मविधि हेतु लिया गया सुसमाचार पाठ माता मरियम का एलिजबेद से मिलन की बात कहता है (लूका. 1. 39-45)। स्वर्गदूत के आनंदमय संदेश उपरांत कुंवारी मरियम अपने घर में रूक कर अपने ऊपर आने वाली आने वाली कठिनाइयों और मुसीबतों पर विचार नहीं करती हैं। इसके विपरीत वे उसकी चिंता करती जिसे मदद की आवश्यकता है। वह ऐलिजबेद अपनी कुटुबिनी की चिंता करती है जो अपनी बुढ़ापे की उम्र में, विचित्र और चमत्कारिक ढ़ंग से गर्भावास्था में है। मरियम अपनी उदारता में, अपनी सुख-सुविधाओं की चिंता किये बिना, अपनी आंतरिक प्रेरणा का अनुसरण करते हुए उनकी सहायता हुए निकल पड़ती है। यात्रा हेतु सुविधाओं की कमी में भी एक लम्बी राह में वह पैदल ही निकल पड़ती है। वह किस मनोभाव से सहायता हेतु जाती हैॽ वह अपनी खुशी को बांटने जाती है। मरियम ऐलिजबेद को येसु की खुशी प्रदान करती है, जिसे वह अपने हृदय में और गर्भ में वहन करती है। वह उसके पास जाती और अपनी भावनाओ को अभिव्यक्त करती है और अनुभूतियों की यह अभिव्यक्ति एक प्रार्थना बन जाती है जिसे हम सभी मरियम का भजन स्वरूप जानते हैं। धर्मग्रंथ के पद हमें कहते हैं वह “उठती और शीघ्रता” से चल पड़ी है।

मरियम की चिंता

संत पापा ने आगमन के अंतिम पड़ाव पर दो क्रियाओं “उठना” और शीघ्रता से चलना” पर चिंतन करते हुए कहा कि मरियम में हम इन दो बातों को पाते हैं जो हमें ख्रीसमस की निकटता में ऐसा ही करने का निमंत्रण देता है। पहली क्रिया उठने पर अपने चिंतन व्यक्त करते हुए संत पापा ने कहा कि स्वर्गदूत का संदेश उसके लिए एक कठिन अस्पष्ट स्थिति लेकर आती है, गर्भाधारण उसके लिए एक गलतफहमी उत्पन्न करती और जिसके लिए उस समय की प्रथानुसार उसे कठोर दंड, पत्थरों से मारे जाने की सजा मिलती। उन्होंने कहा कि हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि उसे कितनी चिंता और मुसीबत से होकर गुजरना पड़ा। यद्यपि वह उन सारी चीजों से विचलित नहीं हुई और न ही उनसे निराश। वह उठती है। वह अपनी मुसीबतों और कठिनाइयों पर ध्यान नहीं देती बल्कि अपनी निगाहें ईश्वर की ओर उठाती है। वह इस बात पर विचार नहीं करती है कि किससे सहायता की मांग की जाये बल्कि वह यह सोचती है कि कैसे किसी की सहायता की जाये। वह सदैव दूसरों के बारे में सोचती है मरियम हमारे लिए ऐसी ही है वह निरंतर दूसरों के जरुरतों की चिंता करती है। काना के विवाह भोज में, जब उसे इस बात का पता चलता कि अंगूरी नहीं रह गई है, तो वह ऐसा ही करती है। यह दूसरों के लिए एक तकलीफ है अतः मरियम इसके बारे में सोचती और इसका निदान खोजती है। मरियम सदैव दूसरों की चिंता करती है। वे हम सभों के बारे में भी सोचती है।

हम उठें और दूसरों को उठायें

संत पापा ने कहा कि हम माता मरियम के इस मनोभाव से अपने को रूबरू करें विशेष रुप से जब कठिनाइयाँ हमारे जीवन को तहस-नहस करने का भय उत्पन्न करती हैं। हम उठें, जिससे हम कठिनाइयों में फंसे न रहें, अपने जीवन के गड्डे में न गिरें या उदासी के शिकार न हों जो हमें पंगु बना देती हैं। हमें क्यों उठने की जरुरत हैॽ क्योंकि ईश्वर अपने में महान हैं और वे हमें सदैव उठाने हेतु तैयार रहते हैं बर्शते हम उनकी ओर आते हैं। अतः हम अपने जीवन की नकारात्मक विचारों का परित्याग करें, भय जो हमारी हर प्रेरणा को बाधित करता है जो हमें आगे बढ़ने से रोकता है। इस भांति हम वही करें जो माता मरियम ने कियाः हम अपनी चारों ओर निगाहें फेंरे और किसी एक व्यक्ति की खोज करें जिसके लिए हम सहायक हो सकें। क्या कोई बुजुर्ग व्यक्ति है जिसे मैं जानता हूँ जिसकी थोड़ी सहायता मैं कर सकता हूँॽ संत पापा ने कहा कि हममें से हर कोई इसके बारे में विचार करें। या हम करूणा के माध्यम किसी को फोन करते हुए उसे एक सेवा दे सकते हैंॽ लेकिन मैं किसी सहायता कर सकता हूँॽ मैं उठते हुए किसी की सहायता करूँ। दूसरों को अपनी सहायता प्रदान करते हुए हम स्वयं मुश्किलों में अपनी सहायता करते हैं।

अपनी खुशी बांटें

संत पापा ने दूसरी क्रिया शीघ्रता में निकलना का जिक्र करते हुए कहा कि इसका अर्थ घबराहट में निकलना, बेचैनी में जाना नहीं है। बल्कि, इसका अर्थ अपनी खुशी में अपने को देना है, विश्वास में आगे की ओर दृष्टि बनाये रखना है जहाँ हमें अपने पैरों को घसीट-घसीट कर नहीं चलते हैं, गुलामों की तरह शिकायत नहीं करते हैं, क्योंकि शिकायतें हमारे जीवन को बर्बाद कर देती है। शिकायतों के कारण हम किसी व्यक्ति की खोज करते हैं जिस पर हम अपना दोष मढ़ सकें। ऐलिजबेद के घर की राह में मरियम तेजी से बढ़ती है जिसका हृदय और जीवन ईश्वर की खुशी से भरा है। अतः हम अपने आप में पूछें जिससे हमारी भलाई हो, मेरे “कदम” कैसे हैंॽ क्या में सक्रिया हूँ या उदासी में उलझा हुआ हूँॽ क्या मैं आशा में आगे बढ़ता हूँ या उदासी के कारण अपने में बंद रहता हूँॽ यदि मैं थके कदमों से दूसरों की निंदा शिकायत करते हुए आगे बढ़ता हूँ तो मैं ईश्वर को किसी के लिए नहीं लाता हूँ। मैं दूसरों के लिए कटुता और बुरी चीजों को प्रसारित करता हूँ। इसके बदले हमें अपने में हस्याप्रद स्वस्थ परिस्थिति को उत्पन्न करने की जरुरत है जैसे की संत थोमस मूरा या संत फिलिप नेरी ने किया। संत पापा ने कहा कि हम सभी इस कृपा की मांग करें क्योंकि इसके द्वारा हमारी भलाई होती है। हम इस बात को न भूलें कि अपने पड़ोसी के लिए करूणा का पहला कार्य हम उसे अपनी शांतिमय मुस्कान स्वरुप दे सकते हैं। यह मरियम की भांति हमारे लिए उनके जीवन में खुशी का संचार करना है जैसे कि उन्होंने ऐलिजबेद के साथ किया। माता मरियम ईश्वर की माँ हमारा हाथ पकड़कर हमें उठने और इस ख्रीसमस में शीघ्रता से चलने हेतु मदद करें। 

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20 December 2021, 14:01