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साईप्रस में संत पापा की प्रेरितिक यात्रा, मिस्सा बलिदान साईप्रस में संत पापा की प्रेरितिक यात्रा, मिस्सा बलिदान  

संत पापाः हमारी चंगाई साथ चलने में

“दाऊद के पुत्र, हम पर दया कीजिए” संत पापा फ्रांसिस ने येसु के इस नाम पर प्रकाश डालते हुए दो अंधे व्यक्तियों का जिक्र किया जो सारी मानवता को अपनी ओर अभिमुख होना का निमंत्रण देते हैं जिससे वे हमें जीवन की ज्योति प्रदान करें।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

निकोसिया, शुक्रवार, 3 दिसम्बर 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने साईप्रस की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन जीएसपी स्टेडियम में मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए विश्वास को नवीन बनाने का आहृवान किया।

संत पापा ने आगमन काल हेतु निर्धारित दैनिक पाठों के आधार पर दो अंधे व्यक्तियों की चंगाई पर चिंतन करते हुए अपने प्रवचन में तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला।

येसु के पास जाना

पहला वे येसु के पास चंगाई हेतु गये। संत पापा ने कहा कि सुसमाचार हमें यह बतलाता है कि अंधे चिल्लाते हुए येसु का अनुसारण करते हैं। वे देख नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने उनकी आवाज और उनके कदमों को सुना। वे येसु ख्रीस्त में ईश्वरीय चंगाई की शक्ति और करूणा की खोज करते हैं जिनके बारे में नबियों ने भविष्यवाणी की थी। नबी इसायस ने लिखा था, “तब अंधे की आंखें खुल जायेगी” (इसा. 35.5)। हमने आज भी एक अन्य भविष्यवाणी को सुना,“अंधे देखने लगेंगे क्योंकि उनकी आँखों से धुँधलापन और अंधकार दूर हो जायेगा” (इसा.29.18। सुसमाचार के अंधे येसु में विश्वास करते हैं। वे आंखों की रोशनी की चाह लिए उनके पीछे आते हैं।

येसु का खुला निमंत्रण

संत पापा ने कहा कि क्यों उन्होंने येसु पर विश्वास कियाॽ क्योंकि उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि येसु वह ज्योति हैं जो उनके हृदय और दुनिया के अंधकार को दूर कर सकते हैं। ज्योति अंधकार पर विजय प्राप्त करती और अंधेपन को दूर करती है। उन्होंने कहा कि जीवन की राह में चलने वाले राहगीरों के रुप में हमारा हृदय भी उन दो अंधों की भांति एक प्रकार के अंधेपन से ग्रस्ति है। हम येसु के पास जायें जैसे कि वे हमें बुलाते हैं, “थके-मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो। तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” मत्ती, (11.28)। क्या हममें से कोई ऐसा है जो अपने में थका या बोझ से दबा हुआ नहीं हैॽ फिर भी हम येसु के पास आने से अपने को रोकते हैं। संत पापा ने कहा कि बहुत बार हम अपने आप में बंद रहना पसंद करते हैं, अंधेरे में अकेले रहना चाहते हैं, अपने में दुःखित और दुःख को अपना मित्र बना कर संतुष्ट रहते हैं। येसु ख्रीस्त हमारे लिए दिव्य चिकित्सक हैं, सिर्फ वे ही सच्ची ज्योति हैं जो हर नर और नारी को आलोकित करते, हमें ज्योति और प्रेम में उत्साह से भर देते हैं। केवल येसु हमारे हृदय को बुराई से मुक्त करते हैं। संत पापा ने कहा कि हम अपने आप से पूछें, क्या मैं निराशा के अंधकार में और नखुशी में घिरा रहना चाहता हूँ या मैं येसु के पास जाता और अपने जीवन को उन्हें देता हूँॽ क्या मैं येसु का अनुसरण करते हुए अपनी जरूरतों के लिए पुकारता और अपनी कमजोरियों को उन्हें सौप देता हूँॽ उन्होंने कहा, “हम येसु को अपने हृदय की चंगाई का अवसर दें”। यह पहला चरण है लेकिन चंगाई हेतु आगे और दो कदम हैं।

अपने दुःखों को बांटना

अपने दुःखों को एक-दूसरे के साथ साझा करने को संत पापा ने दूसरा कदम बतलाया। सुसमाचार के इस अंश में हम व्यक्तिगत चंगाई को नहीं देखते जैसे कि बरथेमेयुस (मर. 10.46-52) या जन्म से अंधे व्यक्ति को पाते हैं (यो.9.1-41)। यहाँ हम दो व्यक्तियों को पाते हैं जो एक साथ राह में चल रहे होते हैं। उन्होंने अपने दुःखों को एक-दूसरे के साथ बांटा, अपने अंधे होने की नखुशी और हृदय में एक चमकती ज्योति को अनुभव करने की चाह को। उनकी वार्ता को हम बहुवचन को पाते हैं जो हमें यह बतलाती है कि उन्होंने सभी चीजों को एक साथ मिलकर किया। विशेषकर वे दोनों एक साथ पुकारते हैं, “हम पर दया कीजिए”। वे एक साथ सहायता की मांग करते हैं। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए ख्रीस्तीय और कलीसियाई जीवन के विशेष गुण को व्यक्त करता है जहाँ हम अपने व्यक्तिगतवाद, स्वार्थ जो हमारे हृदय को दूषित करता परित्याग करते और एक साथ सोचते, बोलते और कार्य करते हैं।

हमारी दृष्टिहीनता

संत पापा ने भ्रातृत्व में दो अंधे व्यक्ति का एक दूसरे के संग जीवन साझा करने पर आगे चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हमें बड़ी शिक्षा देते हैं। हर कोई अपने में अंधा है जो पाप का परिणाम है जिसके कारण हम ईश्वर पिता को और एक-दूसरे को अपने भाई-बहन स्वरुप देखने में असमर्थ होते हैं। पाप का परिणाम यही है यह सच्चाई को तोड़-मरोड़ देता है। यह हमें ईश्वर को तानाशाह और दूसरों को मुसीबतों की तरह प्रस्तुत करता है। हमारा क्रोध चीजों को बिगाड़ देता, उन्हें नकारात्मक ऊर्जा से भरता जिससे हम निराशा और कटुता के गर्त में गिर जाते हैं। इस भांति हम एक भंयकर उदासी के शिकार होते जो अपने में खतरनाक होती है, यह ईश्वर की ओर से नहीं आती है। हमें अपने अंधकार का अकेले सामना नहीं करना चाहिए। यदि हम अपने आंतरिक अंधेपन का सामना अकेले करते तो यह हम पर हावी हो सकता है। हमें एक दूसरे के निकट खड़ा होने की आवश्यकता है, अपने दुःख-दर्द को दूसरों से बांटने और राह में एक साथ आगे बढ़ने की जरुरत है।

साथ चलना चंगाई का स्रोत

संत पापा ने कहा कि अपने आंतरिक अंधेरेपन और हमारे सामने कलीसिया तथा समाज की चुनौती, हमें भ्रातृत्व के मनोभाव को नवीकृत करने का निमंत्रण देती है। यदि हम अपने में अलग-थलग रहते, यदि व्यक्ति केवल अपने बारे में ही सोचता, हम अपने को छोटे समुदाय तक ही सीमित करते या एक साथ आना अस्वीकार करते, यदि हम वार्ता नहीं करते और एक साथ नहीं चलते तो हम अपने अंधेपन से कभी भी पूर्णरूपेण चंगाई प्राप्त नहीं करेंगे। चंगाई तब होती जब हम अपने दर्द को एक साथ वहन करते हैं, जब हम अपनी मुसीबतों का सामना एक साथ करते हैं, जब हम एक-दूसरे को सुनते और वार्ता करते हैं। यह समुदाय में रहने की कृपा है, जो हमें इस बात का एहसास दिलाती है कि समुदाय में रहना हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। संत पापा ने कहा, “आप सदैव एक साथ, एकता में रहें, जिससे आप ख्रीस्तीय भाई-बहनों की भांति खुशी में पिता की संतान स्वरुप आगे बढ़ सकें।

आनंद में सुसमाचार की घोषणा

संत पापा ने आनंद में सुसमाचार की घोषणा को तीसरा चरण निरूपित किया। उन्होंने कहा कि चंगाई प्राप्त उपरांत वे दो व्यक्ति जो हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं पूरे प्रांत में सुसमाचार का प्रसार करना शुरू करते हैं। येसु ने उन्हें ऐसा करने से मना किया लेकिन वे ठीक उसके विपरीत करते हैं जो हमारे लिए थोड़ा विरोधाभाव लगता है (मत्ती.9.30-31)। लेकिन जैसे हमें बतलाया जाता है उनका उद्देश्य येसु की अवज्ञा करना नहीं था बल्कि वे येसु से मिलन, चंगाई की खुशी और जोश को अपने में नहीं रख पाते हैं। यह ख्रीस्तीय का एक दूसरा विशेष चिन्ह है, सुसमाचार की खुशी जो हमारे हृदय और जीवन को भर देती, अपने में सीमित होकर नहीं रह सकती है (ऐभनजेली गौदियुम)। यह हमें स्वाभाविक रुप से साक्ष्य देने को प्रेरित करती और हमें एक निजी, उदास और विचित्र विश्वास के जोखिम से मुक्त करती है।

संत पापा ने सुसमाचार के आनंद को जीने हेतु ख्रीस्तीय विश्वासियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह धर्मांतरण नहीं बल्कि साक्ष्य देना है। यह नौतिकता नहीं जो दूसरे की आलोचना करता हो बल्कि एक करूणा है जो आलिंगन करता है, यह एक छिछली धार्मिकता नहीं अपितु प्रेम है जो जीवन में व्यक्त होता है। “आप इस राह में आगे बढ़ते जायें”। हम सुसमाचार के दो अंधे व्यक्तियों की भांति एक बार पुनः येसु से मिलें और निर्भीक होकर उनका साक्ष्य उन्हें दें जिनसे हम मिलते हैं। हम आगे बढ़ें और ईश्वर से मिली ज्योति को दूसरों तक ले चलें। हम आगे बढ़ते हुए अंधकार को दूर करें जो हमें बहुधा घेरे रहती है। हम आलोकित ख्रीस्तियों की जरुरत है उसके भी बढ़कर वे जो ज्योति से भरे हुए हैं, जो अपने भाई-बहनों की दृष्टिहीनता को प्रेम से, अपने कार्य और सांत्वना के शब्दों से, अंधेरे में आशा की ज्योति से स्पर्श करते हों। हम वे ख्रीस्तीय बनें जो सुसमाचार को प्रतिदिन की सुखी भूमि पर बोते और दुःख तता गरीबी की बंजर भूमि को उर्वरक बनाते हैं। 

येसु की चाह

संत पापा ने कहा कि येसु साईप्रस की गलियों से होकर गुजर रहे हैं जो हमारी दृष्टिहीनता भरी पुकार को सुनते हैं। वे हमारी आंखों और हृदयों का स्पर्श करना चाहते और हमें ज्योति की ओर ले जाना चाहते हैं जिससे वे हमें आध्यात्मिक रुप में नवजीवन और नयी शक्ति प्रदान करें। वे हमें उन दो व्यक्तियों की भांति पूछते हैं, “क्या तुम विश्वास करते हो कि मैं यह कर सकता हूँ” (मत्ती.9.28)ॽ क्या आप विश्वास करते हैं कि येसु ऐसा कर सकते हैंॽ हम येसु में अपने विश्वास को नवीन बनायें। हम उनसे कहें,“आप की ज्योति हमारे अंधेरे से अधिक शक्तिशाली है, हम विश्वास करते हैं कि आप ऐसा कर सकते हैं, आप हमें नया बना सकते हैं, आप हमारी खुशी को बढ़ा सकते हैं। हम पूरी कलीसिया के साथ प्रार्थना करें, आइए, प्रभु येसु।

 

 

 

 

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03 दिसंबर 2021, 15:10