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संत पापाः नवीन मानवता सभों की चिंता

संत पापा फ्रांसिस ने यूनान के राजनायिकों और सामाजिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए विभिन्न मुद्दों विशेषकर ईश्वर की खोज, जलवायु परिवर्तन, राजनीति में सहभागिता और प्रवासियों के लिए भ्रातृत्व के भाव की चर्चा की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

ऐथेंस, शानिवार, 04 दिसम्बर 2021 (रेई) संत पापा ने फ्रांसिस ने अपनी साईप्रस की अपनी दो दिवसीय यात्रा पूरी करने के बाद रोम समयानुसार शानिवार सुबह साढ़े दस बजे यूनान पहुँचे। वहाँ उन्होंने यूनानी गंणतत्र देश के सभी राजनयिकों, सामाजिक अधिकारियों और गणमान्य धार्मिक अधिकारियों से मुलकात की।

महान यूनान

संत पापा ने अपने संबोधन में कहा कि मैं एक तीर्थयात्री की भांति आध्यात्मिकता, संस्कृति और सभ्यता के इस देश में उस खुशी की अनुभूति हेतु आता हूँ जिसे कलीसिया के महाधर्माचार्यों ने अनुभव किया और उसे ज्ञान की खुशी और सुन्दर के रुप में दूसरों के संग बांटा। खुशी अपने में सीमित नहीं होती बल्कि आश्चर्य में उत्सर्जित होते हुए अनंत की चाह रखते हुए समुदाय को अपने में समाहित करती है। उन्होंने कहा कि ऐथेंस और यूनान के बिना यूरोप और विश्व का अस्तित्व वह नहीं रहता जो आज है। वे अपने बौधिक क्षमता और खुशी में न्यूतम ही रहते।

संत पापा ने यूनान से मावनता के क्षीतिज में हुए बृहद विस्तार के बारे में कहा कि यह हमें अपनी दृष्टि को ऊंचाई, दिव्य ईश्वर की ओर उठाने का आहृवान करती है क्योंकि पूर्ण मानव होने हेतु हम अपने से परे जाने हेतु बुलाये गये हैं। दुनिया की हजारों भौतिक क्षणभंगुर चीजों में फंसे, आज हमने स्वर्ग की चाह को खो भूला दिया है। उन्होंने कहा, “यहां से सुसमाचार की यात्रा शुरू हुई जो पूर्व और पश्चिम, यूरोप, रोम और येरूसालेम के पवित्र स्थलों को जोड़ती है। विश्व में ईश्वर के प्रेमपूर्ण संदेश को प्रसारित करने हेतु यूनान में सुसमाचारों की संरचना हुई जहाँ मानव के विवेक में यूनानी भाषा दिव्य विवेक में परिणत हो गया।

नयी मानवीय क्षीतिज

संत पापा ने कहा कि यह शहर हमें केवल ऊपर की ओर देखने हेतु नहीं अपितु दूसरों को ओर भी देखने में मदद करता है जहाँ भूमध्यसागर के माध्यम दूसरों के संग सेतु स्वरूप जुड़े हुए हैं। महान व्यक्तित्व सुकरात के वचन हमें कहते हैं,“लोगों ने अपने को एक शहर या देश के नागरिक स्वरूप नहीं देखा अपितु उन्होंने अपने को पूरे विश्व की नागरिकता से संयुक्त किया।” उन्होंने कहा कि यह वह शहर है जहाँ मानव ने पहली बार “एक राजनीति प्राणी” होने का एहसास किया (cf. ARISTOTLE, Politics, I, 2) । लोकतंत्र की उत्पत्ति यहाँ हुई। 

लोकतंत्र में सहभागिता जरुरी

संत पापा ने लोकतंत्र में आये ह्रास की ओर राजनायिकों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि आज लोकतंत्र में गिरावट आई है। लोकतंत्र में हमारी सहभागिता और भागीदारी की आवश्यकता है जो हमसे मेहनत और धैर्य की मांग करती है। यह अपने में जटिल है जबकि अधिकारवाद अपने में सर्वोपरि और प्रसिद्धि आकर्षक लगती है। कुछ समाजों में, सुरक्षा की चिंता और उपभोक्तावाद से आये ऊबाऊ, थकान और असंतोष लोकतंत्र के संबंध में एक प्रकार का संदेह उत्पन्न करता है, यद्यपि इसमें वैश्विक सहभागिता जरुरी है सिर्फ अपने उद्देश्य की पूर्ण हेतु नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि हमें सामाजिक प्राणियों के रुप में विशेष दर्जा देते हुए एक दूसरे पर निर्भर रखता है।  

संत पापा ने राजनीति में सहभागिता पर बल देते हुए कहा कि यह एक अच्छी चीज है क्योंकि इसमें नागरिकों के प्रति उत्तरदायित्व और जन सामान्य की भलाई निहित है। उन्होंने कहा कि इसके द्वारा हम अच्चाई को साझा करते हैं, “इस संबंध में मैं इस विकल्प पर जोर देना चाहूँगा कि हमें समाज के सबसे कमजोर तबके को प्राथमिकता दें”। संत पापा ने कहा, “आइए हम एक दूसरे की मदद करें जिससे हम सभों को आगे बढ़ने में सहायता कर सकें”।

लक्ष्य और तूफानी मार्ग

अपने संबोधन में संत पापा फ्रांसिस ने जलवायु परिवर्तन, महामारी, वैश्विक बाजार और उससे भी बढ़कर दुनिया में फैली गरीबों के विभिन्न रुपों का भी जिक्र किया। ये सारी चीजें हमारे लिए चुनौतियाँ हैं जो हमें मिलकर ठोस रुप में कार्य करने का निमंत्रण देती हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसकी आवश्यकता है जिससे वह बहुपक्षवाद के माध्यम शांति के रास्ते खोल सकें, जो अत्यधिक राष्ट्रवादी मांगों से प्रभावित नहीं होगा। राजनीति को इसकी आवश्यकता है जिससे वह व्यक्तिगत चाह के आगे सामान्य आवश्यकताओं को बढ़वा दे सकें। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए तूफानी समुद्री लहरों के मध्य एक काल्पनिक आदर्श लगता है यद्यपि जैसे कि महाकाव्य होमेरिक हमें बतलाता है, तूफानी समुद्रों के बीच यात्रा करना बहुधा हमारे लिए एकमात्र उपाय रहता है, जहाँ एक साथ चलते और कोशिश करते हुए अपने उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं।

वचन कार्य में परिणत हों

भूमध्यसागर के किनारे ऊर्वरक भूमि में लगे जैतून के पेड़ों का संदर्भ देते हुए संत पापा ने कहा कि जैतून के पेड़ हमारे लिए जलवायु संकट और इसकी तबाही से निपटने के लिए दृढ़ संकल्प प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि मेरी आशा है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई की हमारी प्रतिबद्धताएं महज दिखावा बनकर न रहें बल्कि उन्हें पूरी तरह और गंभीरता से लागू किया जा सकता है। हमारे वचन कार्य में परिणत हों जिससे  हमारी आने वाली पीढ़ी पुरखों की आडम्बरता का भुगतभोगी न बनें।

प्रवासियों के प्रति मनोभाव

संत पापा ने धर्मग्रंथ मे उद्धरित जैतून वृक्षों का हवाला देते हुए कहा कि यह हमारे लिए भ्रातृत्व के भाव को व्यक्त करता है (विधि.24.20) जिसे हम इस देश में प्रवासियों का स्वागत स्वरुप पाते हैं। आतीत में वैचारिक मतभेदों के कारण ऊत्तरी और पश्चमी यूरोपीय क्षेत्रों में सेतु का निर्माण नहीं हुआ। आज प्रवास के मुद्दे ने दक्षिण और उत्तर के बीच पुनः दरार पैदा कर दी है। संत पापा ने प्रवासियों के संबंध में इस बात पर जोर दिया कि वे अति जरुरत में पड़े हुए लोगों की ओर ध्यान दें, उनका स्वागत करें, उन्हें सुरक्षा प्रदान करें, उन्हें प्रोत्साहित करते हुए समाज का अंग बने में मदद करें जिससे उनके मानवीय सम्मान और अधिकारों की रक्षा हो सकें। मुसीबतें हमें एकजुट करती हैं जहाँ हम मानव के रुप में अपनी को कमजोर पाते हैं, अतः हम दुखद आपदा को एक साहसिक अवसर के रुप में देखें जिससे हमारा भविष्य शांतिमय हो सकें।

महामारी एक त्रासदी

संत पापा ने महामारी को एक बड़ी त्रासदी के रुप में निरूपित करते हुए कि इसके द्वारा हमने अपनी कमजोरियों के पाया है जो हमें दूसरी की सहायता के महत्व को बतलाता है। उन्होंने इस संबंध में अधिकारियों से उपयुक्त हस्तक्षेप का आह्वान किया जिससे सबसे संवेदनशील और बुजुर्गों को आवश्यक सहायता मिल सकें क्योंकि जीवन हमारे लिए एक अधिकार है।

संता पापा ने यूनान को यूरोप की यादगारी बतलाते हुए, संत पापा योहन पौसुल द्वितीय के उपरांत अपनी इस प्रेरितिक यात्रा हेतु खुशी जाहिर की जो बीस सालों के बाद पूरी हुई। “ईश्वर ने यूनान की स्वतंत्रता पर अपने हस्ताक्षर किये हैं”। वे मानव स्वतंत्रता पर अपने हस्ताक्षर करते हैं जो हम सभों के लिए सर्वोतम उपहार है। ईश्वर ने हमें अपनी स्वतंत्रता में गढ़ा है और उनके लिए सबसे प्रिय बात यह होती है कि हम अपनी स्वतंत्रता में उन्हें और अपने पड़ोसियों को प्रेम करते हैं। नियम हमें इसे संभव बनाने में मदद करते हैं वहीं हमारा प्रशिक्षण हमें उत्तरदायी और संस्कृति का सम्मान करते हुए उनके विकास में सहायक होता है।

एकता और करूणा में आलिंगन

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में येसु ख्रीस्त की आज्ञा पड़ोसी प्रेम का जिक्र करते हुए कहा, “ख्रीस्तियों के रुप में क्रूस के नीचे हम सभी एक पिता की संतान हैं”। विश्वासियों के रुप में हम हर स्तर पर एकता स्थापित करने, ईश्वर के नाम में सभों का आलिंगन करूणा में करने हेतु बुलाये गये हैं। आप अपने निष्ठामय जीवन के द्वारा देश के सहायक बनें और खुले हृदय से न्याय हेतु कार्य करें। सभ्यता के इस पालना, इस शहर से हम अपनी निगाहें ईश्वर और दूसरों की ओर उठायें। लोकतंत्र, सत्तावाद के मोहिनी गीतों का उत्तर बनें, व्यक्तिवाद और उदासीनता गरीबों, दूसरों और सृष्टि की चिंता से दूर की जाये क्योंकि ये सारी चीजें मानवता के लिए आवश्यक नींव हैं जिनकी जरुरत आज हमें और पूरे यूरोप को है।

 

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यूनान में संत पापा फ्रांसिस
04 December 2021, 15:18