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अस्ताली केंद्र में शर्णार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस अस्ताली केंद्र में शर्णार्थियों से मुलाकात करते संत पापा फ्रांँसिस 

अस्ताली केंद्र से पोप ˸ शरणार्थी एकजुटता से जीने का मार्ग प्रदान करते हैं

संत पापा फ्राँसिस ने जेस्विट शरणार्थी केंद्र अस्ताली की 40वीं वर्षगाँठ पर "भविष्य का चेहरा" प्रदर्शनी का उद्घाटन किया तथा सभी लोगों से अपील की कि वे समृद्ध विविधताओं के बीच एकता की खोज करें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 16 नवम्बर 2021 (रेई)- रोम स्थित अस्ताली केंद्र की स्थापना की 40वीं वर्षगाँठ मनायी जा रही है। इस अवसर पर फोटोग्राफिक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया जो उन हजारों शरणार्थियों और आप्रवासियों की याद दिलाती है जो इताली जेस्विट शरणार्थी केंद्र (जीआरएस) से होकर गुजरे हैं।  

प्रदर्शनी का शीर्षक है - "भविष्य के चेहरे" या "भविष्य की ओर चेहरे"। प्रदर्शनी को क्विरिनल हिल पर संत एंड्रयू के गिरजाघर में आयोजित किया गया है और यह 28 नवंबर तक जनता के लिए खुला रहेगा।

संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार को प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर अपने संदेश में उन्होंने उन हजारों लोगों की याद की जिन्हें विगत 40 वर्षों तक अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा।

'चालीस' में इतिहास  

संत पापा ने गौर किया कि 40 नम्बर का बाईबिल में गहरा अर्थ है, विशेषकर 40 साल जिसको इस्राएली लोगों ने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले मरूभूमि में बिताया था।

"अपनी गुलामी से आजाद होने के बाद, उन्हें एक प्रजा के रूप में तैयार होने के लिए पूरी एक पीढ़ी का समय लगा जिसमें उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।"

संत पापा ने कहा कि दूसरा 40 साल हमारा आधुनिक इतिहास है और यह भी आसान नहीं रहा। उन्होंने उन शर्णार्थियों की याद की जो अस्ताली केंद्र से होकर गुजरे।  

उन्होंने कहा, "आप में से कई लोगों को गुलामी जैसी स्थितियों से भागने के लिए मजबूर किया गया, जो एक मानव व्यक्ति के विचार पर आधारित हैं जिन्हें अपनी गरिमा से वंचित किया जाता और एक वस्तु की तरह प्रयोग किया जाता है।"

मानवता का मरूस्थल

संत पापा ने कहा कि कई शरणार्थियों ने युद्ध की भयंकर कीमत को जाना और अपनी भूमि को मटियामेट होते एवं जल को सूखते हुए देखा।  

इस तरह की पीड़ा से भागने के लिए मजबूर, कई शरणार्थियों सड़क पर उतरे, उन्हें सच्ची स्वतंत्रता नहीं मिली, बल्कि वे उदासीनता से प्रभावित "मानवता के रेगिस्तान" में समाप्त हो गए।

संत पापा ने खेद प्रकट किया कि विगत 40 वर्षों में राष्ट्रवाद और लोकलुभावनवाद पर कई संघर्ष हुए हैं जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रों ने आप्रवासियों को रोकने के लिए दीवारों को खड़ा किया है।  

हालांकि इन 40 सालों में और इस मरूभूमि में आशा के कई उदाहरण हैं जो हमें 'एक वृहद हम की ओर' एक साथ चलने के सपने देखने में मदद देते हैं।  

एकात्मता की स्वतंत्रता

संत पापा ने कहा कि अस्ताली केंद्र जिससे कई लोगों ने मदद पायी और स्वयंसेवक जिन्होंने उनकी मदद की, वे आशा के चेहरे हैं। हजारों लोग जो एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न थे किन्तु एक अधिक न्यायपूर्ण दुनिया की इच्छा में एकजुट रहे, यह सम्मान और अधिकार सभी के लिए है।"

उन्होंने कहा कि हम एक साथ भविष्य और साथ रहने का सपना देख सकते हैं। यह मुफ्त है क्योंकि यह एकात्मता में, स्वतंत्र होकर समुदाय की खोज करना जानता है। यह एक साथ रहना है किन्तु एकरूपता नहीं है और कई संस्कृतियों की विविधता से धनी है।   

संत पापा ने कहा, "हमारे लिए समय आ गया है कि हम प्रतिज्ञात देश, एकात्मता की भूमि में जीयें जो हम प्रत्येक को एक-दूसरे की सेवा में लगाता है, यह आमघर का समय है जो कई लोगों, हमारे ही भाई और बहनों से बना है।"

खाई के ऊपर सेतु का निर्माण

अंत में संत पापा ने कहा कि अस्ताली केंद्र का फोटोग्राफ प्रदर्शनी एक मुलाकात की संस्कृति का निर्माण कर सकता है जो हमारी विविधताओं में सेतु का निर्माण करता है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इस प्रदर्शनी को तैयार किया है वे शहरों में सक्रिय रहने की भावना व्यक्त करते हैं जहाँ हम रहते और आपस में एक-दूसरे की मदद करते हैं और कई दूसरे पुरुषों और महिलाओं के साथ एकजुटता के समुदाय का निर्माण करने के लिए पूर्ण नागरिकता के नायक बनते हैं।"

 

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16 November 2021, 17:00