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देवदूत प्रार्थना का पाठ करते संत पाप फ्रांसिस एवं रोम के युवा देवदूत प्रार्थना का पाठ करते संत पाप फ्रांसिस एवं रोम के युवा 

ख्रीस्त के राज का अर्थ है सच्चाई, सेवा, जीवन

ख्रीस्त राजा महापर्व के दिन देवदूत प्रार्थना के दौरान संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्त के राज पर चिंतन किया तथा गौर किया कि येसु शासन करने नहीं बल्कि दूसरों की सेवा करने आये। ख्रीस्तीय भी येसु के असीम प्रेम की सच्चाई खोजने के लिए बुलाये गये हैं जो हमें हमारी कमजोरी से मुक्त करते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 21 नवम्बर 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 21 नवम्बर को ख्रीस्त राजा महापर्व के अवसर पर देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ, पूजन पद्धति वर्ष का अंतिम रविवार, येसु के दृढ़ कथन से समाप्त होता है, जो कहते हैं ˸ मैं राजा हूँ। (यो.18,37) ये शब्द वे पिलातुस के सामने कहते हैं जब भीड़ उनके लिए मृत्यु दण्ड देने की मांग करते हुए चिल्ला रही थी। वे कहते हैं, "मै राजा हूँ" और भीड़ मृत्यु दण्ड की मांग करते हुए चिल्लाती हैं, कितना बड़ा विरोधाभास है। समय आ गया है। इससे पहले लगता है कि येसु नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें राजा घोषित करें। हमें याद है कि रोटी और मछली के चमत्कार के बाद जब वे अलग होकर प्रार्थना करने चले गये थे। (यो. 6,14-15)

येसु सभी के राजा

सच्चाई यह है कि येसु का राजत्व दुनिया के राजत्व से बिलकुल भिन्न है। वे पिलातुस से कहते हैं, मेरा राज इस संसार का नहीं है। (यो.18,36) वे अधिकार जताने नहीं बल्कि सेवा करने आये। वे सामर्थ्य के चिन्ह के बीच नहीं आये बल्कि चिन्हों की शक्ति के साथ आये। वे राजसी वस्त्र के साथ नहीं आये किन्तु क्रूस पर निर्वस्त्र किये गये। वास्तव में, क्रूस पर अंकित लेख से येसु "राजा" घोषित किये गये। (यो.19,19) उनका राजत्व दुनिया के मापदण्ड से अलग है। उनका राजत्व मानवीय मापदण्ड से सचमुच परे है। हम कह सकते हैं कि वे दूसरों के समान राजा नहीं हैं बल्कि दूसरों के लिए राजा हैं। हम इस पर पुनः गौर करें ˸ पिलातुस के सामने ख्रीस्त कहते हैं कि वे राजा हैं जबकि भीड़ उनके विरूद्ध है। जब वे उनका अनुसरण करते एवं उन्हें राजा घोषित करना चाहते थे तब वे इससे दूर रहना चाहते थे। अर्थात्, येसु खुद को प्रसिद्धि और सांसारिक महिमा की इच्छा से मुक्त दिखलाते हैं। हम अपने आप से पूछें – क्या हम जानते हैं कि हमें किस तरह उनका अनुकरण करना है? क्या हम अपनी प्रवृत्ति पर लगातार नियंत्रण करना जानते हैं अथवा क्या हम दूसरों के द्वारा सम्मानित किये जाना चाहते हैं? हम जो कुछ करते हैं, खासकर, ख्रीस्तीय समर्पण में। हम अपने आप से पूछें, क्या महत्व रखता है? तालियों की गिनती होती है अथवा सेवा मायने रखती है?

अनुगामी मुक्त और स्वतंत्र

येसु न केवल दुनियावी महानता की खोज करने से बचते हैं बल्कि उन लोगों के हृदय को मुक्त और स्वतंत्र बनाते हैं जो उनका अनुसरण करते हैं। वे बुराई की अधीनता से मुक्त करते हैं। उनका राज मुक्ति का है, इसमें किसी तरह का दबाव नहीं है। वे हर शिष्य से, अधिनस्थ की तरह नहीं बल्कि एक मित्र की तरह व्यवहार करते हैं। यद्यपि ख्रीस्त, सबसे बढ़कर स्वतंत्र हैं तथापि वे खुद और दूसरों के बीच विभाजन की लकीर नहीं खींचते। बल्कि वे भाइयों को चाहते हैं ताकि वे उनसे अपने आनन्द को साझा कर सकें। (यो.15,11) उनका अनुसरण करनेवाला कुछ नहीं खोता बल्कि प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। क्योंकि ख्रीस्त अपने चारों ओर सेवक नहीं बल्कि मुक्त लोगों को चाहते हैं। अब हम अपने आप से पूछें – येसु की स्वतंत्रता कहाँ से आती है? हम इसे पिलातुस के सामने उनकी दृढ़तापूर्ण कथन में पाते हैं, "मैं राजा हूँ।" "इसलिए जन्मा और इसी लिए इस दुनिया में आया कि मैं सच्चाई का साक्ष्य दूँ।" (यो.18˸37)

सच्चाई का साक्ष्य देना

संत पापा ने कहा कि येसु की स्वतंत्रता सच्चाई से आती है। यह उन्हीं की सच्चाई है जो हमें मुक्त करती है किन्तु येसु की सच्चाई कोई विचारधारा, अस्पष्ट चीज नहीं है। "येसु की सच्चाई वास्तविक है, वे स्वयं हममें सच्चाई उत्पन्न करते, हमें हमारे अंदर के मिथ्य एवं झूठेपन और दोहरी भाषा से मुक्त करते हैं। येसु के साथ रहने के द्वारा हम सच्चे बनते हैं। ख्रीस्तीय जीवन एक खेल नहीं है कि हम जहाँ चाहें मुखौटा लगा लें। क्योंकि जब येसु हृदय में राज करते हैं वे हमें ढोंगीपन, छल और दोहरी चाल से मुक्त करते हैं। ख्रीस्त हमारे राजा हैं इसका उत्तम प्रमाण है जीवन को प्रदूषित करने, अस्पष्ट, अपारदर्शी और उदास बनानेवाली चीजों से दूर होना। जब जीवन अस्पष्ट होता, कुछ यहाँ, कुछ वहाँ, तो यह दुखद हैं, अत्यन्त दुखद। निश्चय ही हमें कमजोरियों और खामियों को ध्यान में रखकर चलना है क्योंकि हम सभी पापी हैं किन्तु जब व्यक्ति येसु के प्रभुत्व के अनुसार जीता है तब वह भ्रष्ट नहीं होता, गलत नहीं होता, सच्चाई को ढंकने की कोशिश नहीं करता। उसमें दोहरी जिंदगी नहीं होती। इस बात को ठीक से याद रखें ˸ हम पापी हो सकते हैं किन्तु भ्रष्ट कभी नहीं।"

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि वे हमें हर दिन येसु, विश्व के राजा की सच्चाई खोजने में मदद दे जो हमें दुनिया की गुलामी से मुक्त करते हैं और हमें अपने दुर्गुणों को नियंत्रित करना सिखाते हैं। इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

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21 November 2021, 16:04