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संत पापाः संत योसेफ जरुरी चीजों को जानने में मदद करें

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत योसेफ पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, 17 नवम्बर, 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

संत पापा धन्य पियुस नवें ने 8 दिसम्बर 1870 को संत योसेफ को वैश्विक कलीसिया का संरक्षक संत घोषित किया। उस घटना के एक सौ पचास साल बाद हमने संत योसेफ के नाम एक विशेष साल को समर्पित किया है, और प्रेरितिक पत्र पात्रिस कोरदे के आधार पर मैंने उनके व्यक्तित्व पर कुछ चितनों को संग्रहित किया है। महामारी के विभिन्न वैश्विक त्रासदियों के बीच वे हमारी सहायता करते हुए हमें सांत्वना और दिशा-निर्देशित कर सकते हैं जो आज से पहले कभी नहीं हुआ। संत पापा ने कहा कि अतः मैंने इस बात का निर्णय लिया है कि धर्मशिक्षा की एक श्रृंखला उनके नाम में समर्पित हो, मैं आशा करता हूँ उनका उदाहरण और साक्ष्य हमें आलोकित करते हुए हमारी मदद करेंगे।

धर्मग्रंथ में योसेफ 

धर्मग्रंथ में दस से अधिक व्यक्ति हैं जो योसेफ के नाम को धारण करते हैं। उनमें से सबसे अधिक महत्वपूर्ण हम याकूब और रेचेल के पुत्र को पाते हैं जो अपने जीवन में विभिन्न उतार-चढ़ाव के बाद, एक दास से परे जाते हुए मिस्र में राजा फराऊन के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनते हैं (उत्पि.37-50)। इब्रानी भाषा में योसेफ का अर्थ है,“ईश्वर बढ़ें, ईश्वर हमारा विकास करें”। यह एक नेक चाह है, इसमें हम एक आशीष को देखते हैं, यह ईश्वर पर विश्वास में आधारित है जो मुख्य रुप से उर्वरकता और संतानों के विकास की ओर इंगित कराता है। वास्तव में, यह नाम हमारे लिए नाजरेत के योसेफ में एक अति महत्वपूर्ण व्यक्तित्व को प्रकट करता है। वे ईश्वर के विश्वास में पूर्ण, उनके विधान से ओत-प्रोत हैं। उन हर कार्य, जैसे कि धर्मग्रंथ में वर्णित है, हमें इस बात की निश्चितता को प्रकट करता है कि ईश्वर “हमें विकास प्रदान करते”, “बढ़ाते”, “देते” कहने का तत्पर्य है ईश्वर अपनी योजना को पूरा करने हेतु हमें निरंतर अपनी आशीष से भरते रहते हैं। इस भांति नाजरेत के योसेफ को हम मिस्र के योसेफ की भांति ही पाते हैं।

योसेफ का प्रथम भौगोलिक संदर्भ, बेतलेहेम और नाजरेत भी हमें इसके महत्वपूर्ण भूमिका को समझने हेतु मदद करता है।

बेतलेहेम येसु घर

प्राचीन विधान में, बेतलेहेम का शहर, बेत लेकेम, “रोटी का घर” कहलाता है, या एफ्राता, जब कोई जाति उस प्रांत में बस जाती है। जबकि अरबी भाषा में यह “मांस का घर” कहलाता है, शायद इसलिए क्योंकि उस प्रांत में मेढ़ें औऱ बकरियाँ बहुत अधिक संख्या में पायी जाती हैं। वास्तव में, येसु के जन्म पर यह अनायास घटिन नहीं हुआ कि चरवाहों ने सर्वप्रथम उस घटना का साक्ष्य दिया (लूका.2.8-20)। येसु के जीवन इतिहास के प्रकाश में, ये रोटी और मांस हमें यूखारिस्त के रहस्य की ओर इंगित करते हैं, येसु वह जीवंत रोटी हैं जो स्वर्ग से उतरते हैं ( यो.6.15)। वे स्वयं इसके बार में कहते हैं,“जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता उसे अनंत जीवन प्राप्त होगा” (यो.6.54)।

बेतलेहेम की चर्चा उत्पत्ति ग्रंथ में कई बार की गई हैं। बेतलेहेम को हम रूथ और नओमी के जीवन इतिहास से जुड़ा हुआ पाते हैं जिसकी चर्चा रूथ का सुन्दर ग्रंथ हमारे लिए करता है। रूथ ने ओबेद को जन्म दिया जिनके द्वारा दाऊद के पिता जेस्से उत्पन्न हुए। इस भांति दाऊद के वंश से जोसेफ आते हैं जो येसु के वैध पिता हैं। हम नबी मीका को बेतलेहेम के बारे में बड़ी भविष्यवाणी करते सुनते हैं, “बेतलेहेम एफ्राता, तू यूदा के वंशों में छोटा है। जो इस्रराएल पर शासन करेगा, वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होगा” (मीका.5.1)। सुसमाचार लेखक मत्ती इस भविष्यवाणी को लेते हुए इसे येसु ख्रीस्त के जीवन से संयुक्त करते जो अपनी पूर्णतः को प्राप्त करता है।

ईश्वर का चुनाव

वास्तव में, ईश पुत्र ने येरूसलेम को अपने शरीरधारण का स्थल नहीं चुना लेकिन उन्होंने अपने लिए बेतलेहेम और नाजरेत, दो सुदूर गाँवों को चुना जो अपनी तड़क-भड़क की खबरों और उस समय की शक्तियों से दूर थे। इसके बावजूद येरुसलेम वह शहर था जो ईश्वर को प्रिय था (इसा.62.1-12) वह “पवित्र शहर” था (दानि.3.28) जो ईश्वर के द्वारा अपने निवास स्थल स्वरूप चुना गया था (जाक.3.2, स्तो.132.13)। वहाँ, वास्ताव में, संहिता के ज्ञानी, सदूकी और फरीसी, प्रधान याजक और जनता के नेता रहते थे (लूका. 2.46, मत्ती.15.1, यो.1.19, मत्ती.26.3)।

संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि ईश्वर ने अपने पुत्र के लिए शहर से बाहर परित्यक्त बेतलेहेम और नाजरेत का चुना किया। येसु येरुसलेम में शाही शहर में नहीं जन्में, उनका जन्म सुदूर गाँव में हुआ जहाँ उन्होंने तीस वर्षों तक एक बढई के रुप में अपने पिता की तरह कार्य किया। यही कारण है कि येसु अपने प्रेरिताई कार्य में परित्यक्त और हाशिये में रहने वालों को चुनते हैं। इस तत्थ को गंभीरता से समझने में गलती करना हमें सुसमाचार और ईश्वर के कार्य को गंभीरता से नहीं लेने के समान है जो अपने को निरंतर भौगोलिक और अस्तित्वगत परिधि में प्रकट करते हैं। ईश्वर सदैव गुप्त रुप में, परिधि में कार्य करते हैं। यहाँ तक की हमारी आत्मा की परिधि में, जहाँ हम लज्जा अनुभव करते हैं, लेकिन ईश्वर वहाँ हैं जो हमें आगे बढ़ने में मदद करते हैं। ईश्वर अपने को सदैव हाशिये में प्रकट करते हैं चाहे वह भौगोलिक हो या अस्तित्वगत। संत पापा ने कहा कि विशेष रूप से येसु पापियों की खोज करते हैं वे उनके घरों में जाते, उनसे बातें करते और उन्हें परिवर्तन का निमंत्रण देते हैं। इस प्रेरिताई हेतु उन्हें गालियाँ मिलती हैं, शास्त्रीगण कहते हैं कि देखो वे पापियों के संग खाते-पीते, उठते-बैठते हैं। वे बीमारों, भूखों, गरीबों और खोये लोगों की खोज करते हैं। येसु सदैव केन्द्र से बाहर की ओर जाते हैं। वे हमारे हृदय के कोने को जानते हैं, हमारे समाज, शहर और हमारे परिवारों के हाशिये में देखते और जानते हैं जिन्हें हम लज्जा के कारण व्यक्त नहीं करने की कोशिश करते हैं।

मूल्यवान चीजों को पहचानें

इस संदर्भ में वर्तमान समय का समाज उस समय के समाज से अधिक भिन्न नहीं है। आज भी हम अपने बीच में एक केन्द्र और एक परिधि को पाते हैं। कलीसिया अपने में इस बात को जानती है कि वह हाशिये में सुसमाचार का प्रचार करने हेतु बुलाई गई है। योसेफ जो नाजरेत में एक बढई है जो अपने लिए और अपनी पत्नी हेतु ईश्वर की योजना में विश्वास करता है, कलीसिया को इस बात की याद दिलाते हैं कि वह अपनी आंखों को उन बातों की ओर गड़ाये रखे जिसका तिरस्कार यह दुनिया जानबूझ कर करती है। आज योसेफ हमें इस बात की शिक्षा देते हैं, “हम उन चीजों को ओर ध्यान न दें जिनकी प्रशंसा दुनिया करती है, बल्कि किनारों में, तुच्छ चीजों को देखें, हाशिये में देखें जिन्हें दुनिया पसंद नहीं करती है।” वे हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हम उन बातों को महत्व दें जिनका परित्याग दूसरे करते हैं। इस अर्थ वे हमारे लिए सचमुच में जरूरी चीजों के स्वामी हैं, वे हमें यह याद दिलाते हैं कि जो सही अर्थ में जरूरी है वह हमारा ध्यान आकर्षित नहीं करता है, लेकिन वह धैर्यपूर्वक हम से आत्मनिरक्षण की मांग करता है जिससे हम उसे पहचान सकें और उसका मूल्य जान सकें। हम उस बात की खोज करें जो हमारे लिए मूल्यवान है। हम उन से निवेदन करें कि वे पूरी कलीसिया को इस विवेक भर दें कि हम महत्वपूर्ण और मूल्यवान चीजों को जानने, उन्हें पहचानने की योग्यता प्राप्त कर सकें। हम पुनः बेतलेहेम से, नाजरेत से अपनी एक नई शुरूआत करें।

संत पापा ने कहा कि आज मैं भौगोलिक रूप में विश्व के हाशिये में रहने वालों या अपने अस्तित्व को लेकर परित्यक्ता का अनुभव करने वाले नर और नारियों के लिए एक संदेश भेजना चाहूँगा। आप संत योसेफ के रुप में अपने लिए साक्ष्य और संरक्षक पा सकते हैं। आप उनकी ओर अभिमुख होते हुए यह प्रार्थना कर सकते हैं-

संत योसेफ, तूने सदा ईश्वर में विश्वास किया

और उन चीजों को चुना जो ईश्वर की योजना में निर्देशित हुई 

हमें इस बात की शिक्षा दे कि हम अपनी योजनाओं को नहीं

बल्कि उनके प्रेमपूर्ण योजना को अधिक महत्व दें।

तू जो हाशिये से आता हमारी निगाहों को परिवर्तित कर

हमें उनका चुनाव करने में मदद कर जिसे दुनिया फेंकती और छोड़ती है।

उन्हें सांत्वना दे जो अपने में अकेलेपन का अनुभव करते हैं

और उनकी मदद कर जो मानव सम्मान और जीवन की रक्षा हेतु

चुपचाप अपने कार्य को करते हैं, आमेन।

आमदर्शन समारोह पर संत पापा की धर्मशिक्षा

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17 November 2021, 15:35