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संत पापाः हम पवित्र आत्मा से संचालित हों

संत पापा फ्रांसिस ने अपने आमदर्शन समारोह में सभों को पवित्र आत्मा से संचालित होने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरूवार, 03 अक्टूबर 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपनी बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में जमा हुए सभीं विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

गलातियों के नाम पत्र जिसे हमने सुना, संत पौलुस ख्रीस्तीय समुदाय को पवित्र आत्मा के अनुरूप चलने का अनुरोध करते हैं। वास्तव में, येसु में विश्वास करने का अर्थ उनका अनुसारण करना है, उनके पीछे उनकी राह में चलना है जैसे कि प्रथम शिष्यों ने किया। वहीं इसका अर्थ विरोधाभाव की बातों का परित्याग करना है जैसे कि स्वार्थ, अपनी व्यक्तिगत चाह की पूर्ति जिसे प्रेरित “शरीर की वासना” कहते हैं। ख्रीस्त की राह में चलने हेतु पवित्र आत्मा एक आश्चर्यजनक रूप में हमारा मार्ग प्रदर्शन करते हैं लेकिन यह यात्रा अपने में कठिन है जो बपतिस्मा से शुरू होती और हमारे जीवन के अंत तक बनी रहती है। हम इसे पहाड़ की ऊंचाई में एक लम्बी पर्यटन के रूप में सोच सकते हैं- जिसका गंतव्य आकर्षक है लेकिन यह थकान भरी होती है जो हमसे बहुत प्रयास और दृढ़ता की मांग करती है। 

आत्मा से प्रेरित हों

यह उपमा हमारे लिए प्रेरित के फलदायक कार्य को समझने में मददगार हो सकती है जिसे वे अपने शब्दों में “आत्मा के अनुरूप चलना” “अपने को आत्मा से निर्देंशित” होने देना कहते हैं। ये सारी अभिव्यक्तियाँ एक कार्य, एक भावना, एक गतिशीलता को व्यक्त करती है जो कठिनाइयों में हमें रूकने को नहीं कहती अपितु “ऊपर से आने वाली शक्ति” में विश्वस्त रहने को कहती है।  (Shepherd of Hermas, 43, 21). ऐसे मार्ग में चलते हुए ख्रीस्तीय को जीवन की एक सकारात्मक दृष्टि प्राप्त होती है। इसका यह अर्थ नहीं कि दुनिया में व्याप्त बुराइयाँ उसके लिए खत्म हो जाती हैं या हमारे जीवन की नकारात्मक अंतःप्रेरणा स्वार्थ और घमंड अपने में कम हो जाते हैं। बल्कि इसका अर्थ ईश्वर पर हमारा विश्वास सदैव हमारी अड़चनों और पापों से शक्तिशाली होता है। ईश्वर पर विश्वास करना हमारे लिए हमेशा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारी अइच्छाओं और हमारे पापों से अधिक विशाल है।  

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि गलातियों को इस राह में चलने हेतु आहृवान करते हुए प्रेरित स्वयं अपने को उनके स्तर में लाते हैं। वे क्रिया “चलने” पर बल देते हुए “हम” को संकेतिक रुप में उपयोग करते हैं, “हम आत्मा के अनुरूप जीवन बितायें” (गला.5.25)। यहाँ कहने का अर्थ है हम उसी राह पर चलें और अपने को पवित्र आत्मा से संचालित होने दें। संत पौलुस इस संबोधन को स्वयं अपने जीवन में भी जरूरी समझते हैं। यद्यपि वे इस बात से वाकिफ हैं कि ईश्वर उनके जीवन में वास करते हैं (2.20), वे इस बात से भी भिज्ञ हैं कि उन्होंने पर्वत की चोटी, अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है (फिलि.3.12)। प्रेरित अपने को समुदाय से ऊपर नहीं रखते हैं लेकिन वे लोगों के मध्य उनकी यात्रा का अंग बनाते जिससे वे उन्हें एक ठोस उदाहरण दे सकें कि ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कितना आवश्यक है जिसे पवित्र आत्मा हमारे लिए बेहतर रुप में निर्देश स्वरुप व्यक्त करते हैं।

कृपा और करूणा का  स्थान दें

संत पापा ने कहा कि “पवित्र आत्मा के अनुसार चलना” केवल एक व्यक्तिगत कार्य नहीं है, यह पूरे समुदाय को अपने में सम्माहित करता है। वास्तव में, प्रेरित के निर्देशानुसार एक समुदाय का निर्माण करना हमें उत्साह से भर देता है लेकिन यह अपने में कठिन है। “शरीर की वासना” जो हम सभों में व्याप्त है, हमारी ईर्ष्या, पूर्वाग्रह, आडम्बर, निरंतर क्रोधित होना और कठोर नियमों को निर्देशित करता है हमारे लिए एक सहज ही प्रलोभन हो सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के द्वारा हम स्वतंत्रता के मार्ग से भटक जाते हैं, और ऊंचाई में चढ़ने के बदले हम नीचे की ओर उतरने लगते हैं। पवित्र आत्मा के संग यात्रा करना हमसे इस बात की मांग करती है कि हम ईश्वर की कृपा और उनकी करूणा को प्रथम स्थान दें। हमें भयभीत हुए बिना ईश्वरीय कृपा को स्थान देने की जरुरत है। संत पौलुस अपने इन कठोर शब्दों के उपरांत गलातियों के समुदाय को इस बात के लिए आहृवान करते हैं कि एक दूसरे की कठिनाइयों को सहन करें और यदि कोई गलती करता हो तो उसके साथ नम्रता से पेश आयें। हम प्रेरित की बातों को सुनें, “भाइयो, यदि यह पता चले कि किसी ने कोई अपराध किया है, तो आप लोग, जो आध्यात्मिक हैं, उसे नम्रतापूर्वक सुधारें। आप स्वयं सावधान रहें, कहीं ऐसा न हो कि आप भी प्रलोभन में पड़ जायें। ऐसे भारी बोझ ढ़ोने में एक दूसरे की सहायता करें इस प्रकार मसीह की विधि पूरी करें (गला. 6.1-2)। संत पापा ने कहा कि यह निंदा शिकायत की मनोभावना से एकदम भिन्न है। हमें अपने भाई को प्रेम से सुधारने की जरुरत है जिससे हम स्वयं नम्रता के विरूध पाप में न गिरें।

आत्मा जाँच जरूरी है

वास्तव में, जब हम दूसरों की टीका-टिप्पणी करने की परीक्षा में पड़ जाते, जो सदैव होता है, तो वैसे परिस्थिति में हमें अपनी कमजोरियों पर चिंतन करने की जरुरत है। हमें अपने में यह पूछने की आवश्यकता है कि वह कौन-सी चीज है जो मुझे मेरे एक भाई या एक बहन में सुधार लाने को प्रेरित करता है और क्या हम उसकी गलतियों के लिए खुद जिम्मेदार नहीं हैं। हमें नम्रता का उपहार प्रदान करते हुए पवित्र आत्मा हमें इसके लिए निमंत्रण देते हैं कि हम एकता में बने रहते हुए दूसरों के भार को वहन करें। किसी व्यक्ति के जीवन में कितने सारे भार हैं बीमारी, बेरोजगारी, अकेलापन, दुःख-दर्द...। और भी कितनी ही कठिनाइयां हैं जो हमारे अपने भाई-बहनों के लिए हम से निकटता और प्रेम की मांग करता है। संत अगुस्टीन की बातें हमें इसमें सहायता प्रदान कर सकती हैं, “अतः भाइयो और बहनों, जब कभी कोई गलती में पकड़ा जाता है, (...) उसका सुधार नम्रता में करें। और यदि तुम्हारी आवाज ऊंची हो तो उसमें प्रेम हो। यदि तुम उसे प्रोत्साहित करो तो एक पिता की भांति, यदि उसे गाली दो प्रेम में एक सेवक की भांति” (Discourse 163/B 3)। यह सदैव प्रेम में हो। संत पापा ने कहा कि भ्रातृत्वपूर्ण सुधार का सर्वोच्च नियम प्रेम है जिसमें हम अपने भाई-बहनों की भलाई चाहते हैं। हम खुशी और धैर्यपूर्वक इस राह में आगे बढ़ें, हम अपने को पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित होने दें।

आमदर्शन समारोह पर संत पापा की धर्मशिक्षा

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03 November 2021, 14:48