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Pope Francis' mass for the World Day of the Poor Pope Francis' mass for the World Day of the Poor 

संत पापाः आशा का उद्भव दुःख है

विश्व दरिद्र दिवस के अवसर पर संत पापा ने संत पेत्रुस महागिरजाघर में मिस्सा बलिदान अर्पित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 14 नवम्बर 2021 (रेई) संत पापा ने गरीबों के विश्व दिवस पर संत पेत्रुस महागिरजाघर में यूखारिस्त बलिदान अर्पित करते हुए वर्तमान समय के दुःख और आशा पर प्रकाश डाला।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में येसु के द्वारा निशानियों का उपयोग हमें विस्मित करता है। सूर्य अंधकार हो जायेगा, चन्द्रमा में प्रकाश नहीं रहेगा, तारे गिर जायेंगे और स्वर्ग की शक्ति हिल जायेगी (मर.13. 24-25)। ऐसी स्थिति में भी ईश्वर हमें आशा में बने रहने का निमंत्रण देते हैं क्योंकि इसी परिस्थिति में ईश्वर का पुत्र आयेगा। हम अभी भी उनके आने की निशानी को अनुभव कर सकते हैं जैसे कि अंजीर का वृक्ष हमें गर्मी के दस्तक देने का संकेत देता है।

आज का दुःख और आशा की आशा

सुसमाचार का यह पद हमें इतिहास को दो रूपों, आज के दुःख और कल की आशा में व्याख्या करने को मदद करता है। यह उन सभी दर्दनाक विरोधभावों को हमारे समाने लाता है जिनमें हर युग की मानवता डूबी हुई है, वहीं यह हमें भविष्य में हमारी मुक्ति की प्रतीक्षा की ओर इंगित करता है: प्रभु जो हमें सभों से मिलने आते हैं हमें सभी बुराईयों से मुक्त करेंगे।

आज के दुःख की चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा कि हम सभी इतिहाम की मुसीबत, हिंसा, दुःख-दर्द और अन्याय के अंग है जो मुक्ति की प्रतीक्षा करते हैं जो कभी नहीं आने के समान लगती है। वे जो अत्यधिक घायल, सताये और टूटे हुए हैं उनमें हम गरीबों को सबसे बुरी जंजीर से जकड़ा पाते हैं। विश्व गरीब दिन जिसे हम आज मना रहे हैं हमें उनकी ओर से अति निकटता की निगाहें से देखने और उनकी ओर से अपनी नजरों को हटाने नहीं कहते जो अपने को दुखों से भरा पाते हैं। आज का सुसमाचार इसके बारे में गहराई से कहता है। उनके जीवन का सूर्य हमेशा अकेलेपन के अंधकार से भरा रहता है, चन्द्रमा के प्रकाश रूपी उनकी आशाएँ धूमिल रहती हैं और तारों के रुप में उनके सपने उदासी में गिरे रहते हैं, उनका जीवन डांवाडोल है। ये सारी चीजें गरीबी के परिणाम हैं जहाँ हम उन्हें अन्याय और आसमानता में फेंके जाने वाले समाज का शिकार पाते हैं जो उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ देता है।  

आशा की उत्पत्ति    

इसके साथ ही हम एक दूसरे आयाम कल की आशा को देखते हैं। येसु हमारे हृदयों को आशा के लिए खोलना चाहते हैं, वे हमारी चिंताओं और भय को इस दुःखदायी दुनिया से दूर करना चाहते हैं। अतः वे कहते हैं कि सूर्य के अंधकार होने और सभी चीजों के गिरने के बावजूद वे हमारे निकट आते हैं। इतिहास की दर्द भरी कराह के मध्य वे हमारे लिए भविष्य में मुक्ति को लेकर आते हैं। कल की आशा दर्द के बीच में खिल कर आती है। वास्तव में,  ईश्वर की मुक्ति केवल भविष्य की प्रतिज्ञा मात्र नहीं है बल्कि यह आज की घालय परिस्थिति में भी कार्यशील है, जो दुनिया के अन्याय और शोषण के बीच भी प्रसारित हो रही है। हम सभों का हृदय अपने में घायल है। गरीबों की आंसूओं के बीच ईश्वार का राज्य पेड़ की कोमल पत्तियों की भांति खिलाता और इतिहास को अपने लक्ष्य की ओर ले चलता है जहाँ हम दुनिया का राजा ईश्वर से भेंट करते जो निश्चित ही हमें स्वतंत्र करेंगे।

आशा का बीज

संत पापा ने कहा कि हम अपने आप से पूछें कि ख्रीस्तियों के रुप में इस परिस्थिति में हमें क्या करने को कहा जाता है। हमें आज के दर्द का निवारण करते हुए कल की आशा को पोषित करने का निमंत्रण दिया जाता है। ये दोनों चीजें एक-दूसरे से संयुक्त हैं। यदि आप दर्द निवारण हेतु कार्य नहीं करते तो यह भविष्य की आशा को कठिन बना देता है। सुसमाचार की आशा हमें भविष्य के लिए सुषुप्त रुप में आशावान बन रहने को नहीं कहती बल्कु यह हमें ईश्वर की प्रतिज्ञा को ठोस रूप में, आज औऱ रोज दिन, कार्यान्वित करने का मांग करती है। ख्रीस्तीय आशा हमें अपने रोज दिन के जीवन में ठोस कार्यों- प्रेम के राज्य, न्याय और भ्रातृत्व की भावना में कार्य करने को कहता है जिसकी शुरूआत स्वयं येसु ख्रीस्त ने किया।  ख्रीस्तीय आशा का बीज लेवी और पुरोहित के रूप में नहीं बोया गया जो घायल व्यक्ति को देख कर गुजर जाते हैं (लूका.10.30-35)। कलीसिया आज हमें कहती है, “रूको और गरीबी के बीच आशा के बीज बो। गरीबों के निकट जाओ और आशा बिखेरो”। संत पापा ने कहा कि यही हम सभों से कहा जा रहा है- दुनिया के विध्वंस परिस्थिति में बिना थके आशा का निर्माता बने। दुनिया में सूर्य की भांति चमक बिखेरे, उदासीनता की परिस्थिति में प्रेममय करूणा का साक्ष्य दें। हम करूणा का साक्ष्य प्रस्तुत करें। हम करूणा के बीज बोये बिना अच्छाई की आशा कभी नहीं कर सकते हैं। हम अच्छी चीजें कर सकते हैं लेकिन वे ख्रीस्तियों के काम करने के तरीके नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे हृदयों का स्पर्श नहीं करते हैं। यह करूणा है जो हमारे हृदयों का स्पर्श करता है जिसके द्वारा हम दूसरों के निकट आते, प्रेम के कार्य को पूरा करते हैं। ईश्वर के कार्य करने के तरीके ऐसे ही हैं, निकटता, करूणा और कोमलता। हम सभों से यही करने को कहा जाता है।

कलीसिया आशा का संगठन बनें

संत पापा ने धर्माध्यक्ष तोनीनो बेलो के विचारों को व्यक्त करते हुए कहा, “हम आशा से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं, हमें आशा को पहचाने की जरुरत है।” जब तक हमारी आशा निर्णयों और ठोक कार्यो,न्याय,एकता और सामान्य घर की चिंता में नहीं बदली है गरीबों के दुःख खत्म नहीं होंगे, फेंके जाने वाली अर्थव्यवस्था जो उन्हें हाशिये पर रहने के लिए मजबूर करती है, परिवर्तित नहीं होगी, उनकी उम्मीदें नए सिरे से नहीं खिलेंगी। ख्रीस्तियों के रुप में हमें आशा को पहचाने की जरुरत है इसे हमें अपने रोज दिन के जीवन में, अपने संबंधों में, सामाजिक जीवन और राजनीतिक उत्तरदायित्वों में ठोस बनाने की जरुरत है। संत पापा ने बहुत से ख्रीस्तियों  द्वारा किये जा रहे करूणा के कार्यों की याद की। उन्होंने वाटिकन के दानाध्यक्ष कार्यालय को आशा का संगठन कहा, जो रकम का वितरण नहीं करती बल्कि लोगों की आशा को सुव्यवस्थित करती है। कलीसिया को आज यही करने की आवश्यकता  है।

आशा पत्तियों की भांति हरी

येसु आज हमारे लिए आशा को एक साधारण लेकिन अति विशिष्ट प्रतीक स्वरूप प्रदान करते हैं। यह अंजीर के पेड़ की पत्ती स्वरुप है जो गुप्त रूप से प्रस्फूटित होता एवं सूचित करता है कि ग्रीष्म ऋतु नजदीक है। येसु इस बात पर जोर देते हैं कि ये पत्ते तब दिखाई देते जब ये कोमल होते हैं। (मार. 13:28) प्यारे भाइयो एवं बहनो, यही वह शब्द है जो दुनिया में आशा उत्पन्न करती है तथा गरीबों की पीड़ा में राहत देती है। करुणा जो हमें कोमलता के लिए प्रेरित करती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने में बंद रहने के मनोभाव से, अपनी आंतरिक कठोरता से बाहर निकलें। यह “पुनर्स्थापनवाद” का प्रलोभन है जो सब कुछ को व्यवस्थित करना चाहता है, यह एक कठोर कलीसिया की चाह रखता है, यह हमारे लिए पवित्र आत्मा की ओर से नहीं आता है। हमें इससे ऊपर उठने की जरुरत है जिससे कठोरता में आशा प्रस्फूटित हो सके। यह हम पर निर्भर करता है कि हम केवल अपनी समस्याओं से ऊपर उठने का प्रयास न करें, बल्कि हम दुनिया की त्रासदी का सामना करने हेतु अपने में कोमलता को विसकित करें। हम पेड़ की पत्तियों के समान प्रदूषण को सोख लेने के लिए बुलाये जाते हैं जो हमारे आसपास है जिससे हम इसे अच्छाई में बदल सकें। समस्याओं के बारे बातें करते रहना उनपर बहस करना और उनके द्वारा ठोकर खाना हमारे लिए व्यर्थ है। हमें पत्तियों का अनुकरण करने की आवश्यकता है जो किसी का ध्यान खींचे बिना, हर दिन हवा से गंदगी को सोख लेती और उसे शुद्ध कर देती हैं। येसु चाहते हैं कि हम अच्छाई के परिवर्त्तक हों, जिससे बुराई से अच्छाई उत्पन्न हो सके (12.21) ऐसा व्यक्ति जो भूखों के साथ अपनी रोटी बांटता, न्याय के लिए कार्य करता, गरीबों को उठाता और समारितानी की तरह उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा करता है।  येसु के समान गरीबों में सुसमाचार करने वाली कलीसिया अपने में कितनी सुन्दर है, जो जवान के रुप में अपने आप से बाहर निकलती और सुसमाचार की घोषणा करती है (लूक.4,18)।

युवा कलीसिया का सार

संत पापा ने कलीसिया को जवान निरूपित करते हुए कहा कि कलीसिया जो आशा बोती अपने में युवा बनी रहती है। एक प्रेरितिक कलीसिया अपनी उपस्थिति के द्वारा टूटे हृदयों और दुनिया से बहिष्कृत लोगों से कहती है, “ढाढ़स रखो, प्रभु निकट हैं, आपके लिए भी ग्रीष्म आ रहा है जो शीत का केंद्र है। आपके दुःख से भी उम्मीद पुनः निकल सकती है”।

संत पापा ने कहा, “भाइयो एवं बहनो, आइये हम इस आशा को दुनिया में लेकर जायें। हम इसे कोमलता में गरीबों के लिए लाये, अपने सामीप्य में, सहानुभूति में और उनकी आलोचना किये बिना इस कोमलता को प्रसारित करें क्योंकि इसी के द्वारा हमारा न्याय होगा। क्योंकि गरीबों में, उनके द्वारा और उनमें हम येसु को पाते हैं जो हमारी प्रतीक्षा करते हैं।

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14 November 2021, 16:41