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संत पापाः सिनॉड, एक साथ एक मार्ग में चलना

संत पापा फ्रांसिस ने धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की शुरूआत करते हुए 10 अक्टूबर को वाटिकन में मिस्सा बलिदान अर्पित किया। उन्होंने धनी युवा की चाह पर चिंतन करते हुए सिनॉड के अर्थ पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए धर्माध्यक्षों की धर्मसभा का शुभारंभ किया।

संत पापा ने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि एक धनी व्यक्ति येसु की यात्रा के दौरान उनके पास आया (मरकुस.10.17)। सुसमाचार येसु को निरंतर “एक यात्रा” में प्रस्तुत करता है। वे लोगों के साथ चलते हुए उनके सवालों और बातों को सुनते हैं जो उनके हृदयों से आते हैं। वे हमारे लिए इस बात को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर सच्चाई से दूर साफ-सुथरी और व्यवस्थित स्थानों में नहीं मिलते बल्कि वे सदैव हमारे साथ चलते हैं। हम जहाँ रहते वे हमें बहुधा वहाँ जीवन की पत्थरीली राहों में मिलते हैं। आज, जब हम धर्मसभा की शुरूआत करते हैं हम सभी अपने आप से पूछें, संत पापा, धर्माध्यगण, पुरोहित, धर्मबंधुगण और लोकधर्मियों का समुदाय क्या हम ईश्वर की इस शैली को अपने में धारण करते हैं, जो इतिहास का अंग बनते और हमारी मानवता के संग अपने को साझा करते हैंॽ क्या हम इस साहासिक यात्रा हेतु अपने को तैयार पाते हैंॽ या हम अज्ञात बातों से अपने को भयभीत पाते हैं, कुछ सामान्य बहानों की पनाह लेते हैं, “यह व्यर्थ है” या “हमने सदैव ऐसे किया है”ॽ

सिनॉड का अर्थ

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सिनॉड का अर्थ एक साथ उसी राह में चलना है। हम येसु की ओर निगाहें फेरें। सर्वप्रथम वे राह में उस धनी व्यक्ति से भेंट करते हैं। वे उसके सवालों को सुनते हैं और अंततः वे उन्हें आत्म-निरक्षण करने में मदद करते हैं कि अनंत जीवन पाने हेतु उसे क्या करना चाहिए। संत पापा ने तीन क्रियाओं मिलन, सुनना और आत्म-निरिक्षण पर चिंतन किया जो धर्मसभा की विशेषताएं हैं।

मिलन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सुसमाचार पाठ की शुरूआत एक मिलन से शुरू होती है। एक व्यक्ति येसु के पास आया और घुटने टेकते हुए उनसे पूछा, “भले गुरू, अनंत जीवन पाने हेतु मुझे क्या करना चाहिएॽ” यह महत्वपूर्ण सवाल जो दूसरों में बेचैनी उत्पन्न करता है हमें ध्यान देने, समय देने, दूसरों से मिलन हेतु इच्छा शक्ति और संवेदनशील होने की मांग करता है। येसु ख्रीस्त अपने में पृथ्क खड़े नहीं होते हैं, वे विचलित या अधीर नहीं होते हैं, बल्कि वे उस व्यक्ति को ध्यान से सुनते हैं। वे उससे मिलन को खुले हैं। येसु किसी भी बात को लेकर उदासीन नहीं हैं वरन वे सभी चीजों की फ्रिक करते हैं। वे लोगों से मिलते उनकी आंखों में देखते और हरएक के जीवन इतिहास का अंग बनते हैं। यह येसु की निकटता है जहाँ वे हमें अपने में धारण करते हैं। वे जानते हैं कि किसी का जीवन एक मिलन से ही बदल सकता है। हम सुसमाचार में ऐसे बहुत से मिलनों को देखते हैं जो लोगों को जीवन में ऊपर उठने में मदद करता और उनमें चंगाई लाता है।

मिलन में निपुणता का आहृवान

संत पापा ने कहा कि जब हम इस प्रक्रिया की शुरूआत करते तो हमें भी मिलन की कला में निपुण होने का निमंत्रण मिलता है। उन बातों के लिए नहीं की हम कार्यक्रमों या समस्याओं का निपटारा कैसे करते हैं लेकिन हम ईश्वर से और एक दूसरे से मिलन हेतु किस तरह समय देते हैं। हम अपने लिए प्रार्थना और आराधना के लिए समय देते हैं जिससे हम पवित्र आत्मा को सुन सकें कि वे कलीसिया में हमसे क्या कहना चाहते हैं। हम दूसरों की आंखों में देखने और उन्हें सुनने हेतु समय देते हैं कि वे हमसे क्या कहना चाहते हैं। हम दूसरे के संग एक संबंध स्थापित करते, अपने भाई-बहनों के सवालों के प्रति संवेदनशील होते और  अपने को उनके विभिन्न आदर्शो, बुलाहट तथा प्रेरिताई द्वारा धनी बनाते हैं। हमारा हर मिलन जैसे कि हम सभी जानते हैं, हमें खुला, सहासी और दूसरों की उपस्थिति तथा इतिहास द्वारा अपने में चुनौती ग्रहण करने की मांग करता है। यदि हम औपचारिकता या अनुरूपता को अपने में लेते तो मिलन के अनुभव हममें एक तरह से परिवर्तन लाते हैं, बहुधा यह हमारे लिए नयी या आशातीत संभावनाओं को खोलता है। ईश्वर ऐसे ही हमारे लिए नयी राहों को खोलते और हमें अपनी पुरानी आदतों का परित्याग करने का निमंत्रण देते हैं। जब हम बिना औपचारिकता या ढोंग के, उसी सरल रुप में जैसे कि हम हैं एक बार ईश्वर और दूसरों से मिलते तो सारी सारी चीजें बदल जाती हैं।

मिलन का उद्गम सुनना है

संत पापा ने कहा कि दूसरी क्रिया है सुनना। मिलन की शुरूआत केवल सुनने से होती है। येसु ने उस व्यक्ति की बातों को सुना जो धार्मिक और जीवन के अस्तित्व से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने कोई गैर-प्रतिबद्ध उत्तर या पहले से बनी बनाई समाधान की पेशकश नहीं की, उन्होंने उसे नम्रता में उत्तर देने का ढोंग नहीं किया जिससे वह उसे अपनी राह से दूर कर आगे बढ़ सकें।  येसु उसकी बातों को सुनते हैं। वे उसे कानों से ही नहीं अपितु अपने हृदय से सुनने हेतु नहीं डरते हैं। वास्तव में, वे उस धनी व्यक्ति के सवाल का उत्तर साधारण बातों से अधिक देते और उसे अपने जीवन का वृतांत सुनाने को प्रेरित करते हैं, अपने बारे में बतलाने को कहते हैं। येसु उसे संहिता की आज्ञाओं के बारे में बतलाया और वह व्यक्ति अपनी युवास्था की चर्चा करता, अपनी धार्मिकता की यात्रा का जिक्र करता और ईश्वर की अपनी खोज के बारे में कहता है।  यह तब होता है जब हम किसी को अपने हृदय से सुनते हैं, जब उन्हें लगता है कि कोई बिना टीका- टिप्पणी किये उन्हें सुन रहा है तो वे जीवन के अपने अनुभवों को और अपनी धार्मिक यात्रा का जिक्र करने में सहज अनुभव करते हैं।

हम कैसे सुनते हैं

संत पापा ने कहा कि हम अपने में पूछें कि कलीसिया में क्या हम अच्छी तरह सुनते हैंॽ हम हृदय से सुनने में कितने अच्छे हैंॽ क्या हम लोगों को अपनी बातें कहने देते हैं, मुश्किलों के बावजूद विश्वास की राह में उन्हें चलने देते, और उनका परित्याग किये बिना, उनकी आलोचना किये उन्हें समुदाय का अंग होने देते हैंॽ सिनॉड में सहभागी होना अपने को उसी राह में ले चलना है जहाँ हम शब्द के शरीरधारण को पाते हैं। इसका अर्थ हमें उनकी राहों में चलना है, दूसरों की बातों को सुनते हुए उनकी बातों को सुनना है। इसका अर्थ आश्चर्य में सदैव पवित्र आत्मा के विस्मय को खोजना है जो हमें नई राहों में ले चलते और नये रुपों में अपनी बातों को कहते हैं। दूसरों को सुनने की यह एक धीमी और थकान भरी क्रिया हो सकती है जहाँ हमें बनवाटी और छिछली प्रतिउत्तरों से दूर रहने की जरुरत है। पवित्र आत्मा हमें लोगों और देशों के सवालों, विचारों और हर कलीसिया की आशाओं को सुनने को कहते हैं। इस भांति दुनिया को सुनते हुए यह हमारे समक्ष अपनी चुनौतियों और परिवर्तनों को रखता है। हम अपने हृदय को ध्वनिरहित न बनायें, हम अपने को अपनी निश्चिताओं में घिरे न रखें। हम एक दूसरों को सुनें।

आत्म-निरिक्षण करें

अंत में संत पापा फ्रांसिस ने आत्म-निरिक्षण की बात कही। मिलन और सुनना अपने में साधन नहीं है जो हमारे लिए चीजों को जैसे के तैसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत जब कभी हम वार्ता में प्रवेश करते हैं तो हम चुनौती ग्रहण करते हैं जिससे हम एक यात्रा में बढ़ सकें। अंतत यह हम सबों में परिवर्तन लाता है। इसे हम आज के सुसमाचार में पाते हैं। येसु उस व्यक्ति को नेक और धार्मिक पाते हैं जो संहिता की आज्ञाओं का पालना करता है लेकिन वे उसे संहिताओं के अनुकरण से और आगे ले चलना चाहते हैं। वार्ता के माध्यम वे उसे आत्म-निरिक्षण करने में मदद करते हैं। वह उसे ईश्वरीय प्रेम की नजरों में अपने अंदर झांक कर देखने को प्रोत्साहित करते और इस बात का निरिक्षण करने को कहते हैं कि उसके हृदय में कौन-सी सच्ची निधि है। इस भांति वे उसे इस बात की खोज करने को कहते हैं कि वह धार्मिक बातों के अनुपालन से अपने जीवन को नहीं भर सकता बल्कि अपने को खाली करते हुए, अपनी धन-दौलत को बेचने के द्वारा जो उसके हृदय में भरा है, ईश्वर के लिए एक स्थान तैयार कर सकता है।  

संत पापा ने कहा कि यहाँ हम सभों के लिए एक मूल्यवान सीख है। धर्मसभा एक आध्यात्मिक आत्म-निरिक्षण की एक यात्रा है जो आराधना, प्रार्थना और ईश वचन से वार्ता करने में पूरी होती है। आज का दूसरा पाठ हमें कहता है कि ईश्वर का वचन “सजीव और क्रियाशील दुधारी तलवार से भी अधिक धारदार है जो हमारे हृदय की गहराई में प्रवेश करते हुए हमारी अंतरआत्मा की बातों की थाह लेती है”। यह हमें आत्म-निरिक्षण हेतु अग्रसर करती है। यह सिनॉड को दिशा-निर्देश देती और कलीसिया को एक सम्मेलन, पठन-पाठन समुदाय या राजनीति समारोह बनने से बचाती है बल्कि यह इसे कृपा से पूर्ण एक घटना बनाती है जहाँ पवित्र आत्मा हमें आगे ले चलते हुए चंगाई प्रदान करते हैं। सुसमाचार के युवा की भांति येसु हमें इन दिनों आहृवान देते हैं जिससे हम अपने को खाली कर सकें, अपने को आंतरिक और बाह्य दोनों रुपों में दुनियादारी की बातों से मुक्त करते हुए यह पूछ सकें कि ईश्वर हमें इस समय क्या कहना चाहते हैं। वे हमें  किस दिशा में लेना चाहते हैं।

संत पापा ने सभों को धर्मसभा हेतु मंगलयात्रा की शुभकामनाएं देते हुए अपने प्रवचन के अंत में कहा कि हम सुसमाचार के प्रेमी तीर्थयात्रियों की भांति पवित्र आत्मा से विस्मित होने हेतु अपने को खुला रखें। मिलन, सुनने और आत्म-परिक्षण में मिलने वाली कृपाओं के अवसरों को हम न खोयें। अपने विश्वास की खुशी में हम ईश्वर की खोज करें जो सदैव प्रेम में हम से मिलने हेतु सर्वप्रथम पहल करते हैं। 

धर्मसभा के उद्घाटन का पवित्र मिस्सा

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10 October 2021, 16:08