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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

उपयोगिता को खुशी के साथ भ्रमित न करें, संत पापा फ्राँसिस

परमधर्मपीठीय सामाजिक विज्ञान अकादमी को दिये एक संदेश में, संत पापा फ्राँसिस ने लोगों की खुशी सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में आत्मा की दीनता की ओर इशारा किया।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार 4 अक्टूबर 2021 (वाटिकन न्यूज) :  परमधर्मपीठीय सामाजिक विज्ञान अकादमी द्वारा आयोजित एक बैठक का उद्देश्य आशीर्वचनों को गहराई से समझना है: "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं, क्योंकि स्वर्ग राज्य उन्हीं का है।" 3-4 अक्टूबर को चल रही बैठक की विषयवस्तु है, "कारितास, सामाजिक मित्रता और गरीबी का अंत: खुशी का विज्ञान और नैतिकता।"

खुशी में क्या शामिल है?

बैठक को संत पापा फ्राँसिस के एक संदेश के साथ शुरू किया गया। संत पापा ने कहा कि खुशी प्रत्येक स्त्री और पुरुष की सबसे गहरी इच्छा है और प्रभु उन लोगों से इसकी प्रतिज्ञा करते हैं जो उनकी 'शैली' के अनुसार जीते हैं। यह वही इच्छा है जो आशीर्वचन में इंगित की गई है, जो संत अगुस्टीन के लिए "हमारे जीवन की सभी पूर्णता" का प्रतिनिधित्व करती है। संत पापा ने कहा कि हर कोई खुशी को पाना चाहता है, लेकिन सभी के पास खुशी की अवधारणा समान नहीं होती है।

उन्होंने कहा कि आज हम एक प्रचलित प्रतिमान का सामना कर रहे हैं, जो व्यापक रूप से "एकल विचार" द्वारा फैला हुआ है, जो उपयोगिता को खुशी के साथ भ्रमित करता है। संत पापा ने कहा कि यह आत्म-परख के लिए एकमात्र वैध मानदंड होने का दावा करता है और "वैचारिक उपनिवेशवाद का एक सूक्ष्म रूप" है। "यह इस विचारधारा को मानने के लिए विवस करता है कि खुशी में केवल वही है जो उपयोगी है, चीजों और संपत्ति में, चीजों की प्रचुरता में, प्रसिद्धि और धन में।"

गरीब और कमजोर व्यक्ति की अदृश्यता

संत पापा फ्राँसिस ने तब ध्यान दिलाया कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थ संतुष्टि की यह खोज पर्याप्त नहीं होने का भय पैदा करती है और व्यक्तियों तथा देशों में लालच एवं लोभ की ओर ले जाती है, अमीर और गरीब, साथ ही "भौतिकवाद और संघर्ष की एक सामान्य स्थिति"। यह लोगों और सृष्टि की गरिमा को कम करता ह, और गरीबी और असमानता को बढ़ाता है।

संत पापा ने कहा, "अधिकता के इस समय में, जब गरीबी को समाप्त करना संभव होना चाहिए, एकल-विचार की शक्तियां गरीबों, बुजुर्गों, अप्रवासियों, गंभीर रूप से बीमार लोगों के बारे में कुछ नहीं कहती है।" वे बहुमत के लिए अदृश्य हैं और "जब उन्हें दृश्यमान बनाया जाता है, तो उन्हें अक्सर सार्वजनिक धन पर एक अयोग्य बोझ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।"

संत पापा ने कहा कि इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें "येसु के आशीर्वचन के नए और क्रांतिकारी प्रतिमान को लागू करना है। पहला आशीर्वचन है, अपने को "दीन-हीन बनाना" यह "वह मोड़ है जो एक पूर्ण प्रतिमान बदलाव के माध्यम से खुशी का मार्ग खोलता है"। यह "उस पूर्णता तक पहुँचने का एक निश्चित तरीका है जिस तक पहुँचने के लिए हम सभी बुलाए गये हैं।"

अन्याय के फल के रूप में कष्ट नरक है

संत पापा फ्राँसिस ने तब आत्मा की गरीबी और भौतिक गरीबी, यानी जीवन की आवश्यकताओं से वंचित होने के बीच अंतर पर जोर दिया, जिसका उन्होंने कठोर शब्दों में वर्णन किया।

"जो आवश्यक है उससे वंचित होने के रूप में गरीबी - यानी, दुख - सामाजिक रूप से है, जैसा कि [लियोन] ब्लोय और [चार्ल्स] पेग्यू ने स्पष्ट रूप से देखा, एक प्रकार का नरक, क्योंकि यह मानव स्वतंत्रता को कमजोर करता है और इससे पीड़ित लोगों को जीवित रहने के लिए गुलामी के नए रूपों (जबरन श्रम, वेश्यावृत्ति, अंगों की तस्करी आदि) का शिकार बनने की स्थिति में डालता है ये आपराधिक स्थितियां हैं जिनकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। हर कोई, अपनी जिम्मेदारी के अनुसार, विशेष रूप से सरकारों, बहुराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कंपनियों, नागर समाज और धार्मिक समुदायों द्वारा न्याय के लिए अथक संघर्ष किया जाना चाहिए। ये मानवीय गरिमा का सबसे खराब ह्रास हैं और, एक ख्रीस्तीय के लिए, मसीह के शरीर का खुला घाव, जो अपने क्रूस से रोता है: मैं प्यासा हूँ।"

इसलिए, गरीबों की मदद करना एक कर्तव्य है, संत पापा फ्राँसिस ने कहा,"सब का आकलन उसी के अनुसार किया जाएगा, जैसा उन्होंने 'अपने ज़रूरतमंद भाइयों' के लिए किया है।"

"एकजुटता के वैश्वीकरण" में युवाओं की शिक्षा

संत पापा ने कहा कि उदासीनता के व्यापक वैश्वीकरण के साथ, हालांकि यह प्रचलित है, "इस महामारी के समय में हमने देखा है कि कैसे एकजुटता का वैश्वीकरण हमारे शहरों के विभिन्न कोनों में अपने विशिष्ट विवेक के साथ खुद को लागू करने में सक्षम है।" यह अच्छा है कि यह फैल रहा है और सबसे बढ़कर, यह आवश्यक है कि यह युवा लोगों के जीवन में सन्निहित हो। इसलिए हमें इसके लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए।

प्यार की सभ्यता की तलाश

अपने संदेश को समाप्त करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने लिखा कि गरीबी की भावना और लाभ की सीमा ही एकमात्र तरीका है जो "व्यक्ति, अर्थव्यवस्था और स्थानीय और वैश्विक समाज की भलाई" की गारंटी दे सकता है। इसलिए एक प्रतिबद्धता का संकेत जिसके लिए आज हम सभी बुलाये गये है: "उदासीनता के खिलाफ एक वैश्विक आंदोलन शुरु करना, जिसके लिए सामाजिक संस्थानों बनाये गये हैं यह आशीर्वचन से प्रेरित है और [जो] हमें ‘प्रेम की सभ्यता’ की तलाश करने का आग्रह करता है।"

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04 October 2021, 15:38