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संत पापाः स्वतंत्रता में सच्चाई हमें बेचैन करे

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर ख्रीस्तीय स्वतंत्रता पर प्रकाश डाला जो हमारे लिए येसु ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान से आती है, जो हमें सच्चे रुप में स्वतंत्र करती है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज हम गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर अपना चिंतन जारी रखेंगे। संत पौलुस ने गलातियों के नाम अपने पत्र में ख्रीस्तीय स्वतंत्रता को अनश्वर शब्द स्वरुप निरूपित किया है। ख्रीस्तीय स्वतंत्रता क्या हैॽ  

स्वतंत्रता वह निधि है जिसका सही महत्व हम तब समझते हैं जब हम इसे खो देते हैं। हममें से बहुतों के लिए जो अपने में स्वतंत्र रहे हैं, यह एक उपहार और आदर्श की अपेक्षा जिसे हमें सुरक्षित रखने की आवश्यकता है, एक अधिकार-सा लगता है। हम स्वतंत्रता की विषयवस्तु को लेकर अपने मध्य कितनी नसमझी को पाते हैं, कई तरह के विचारें जो शतब्दियों से विवादित रहे हैं।

स्वतंत्रता, बपतिस्मा में मिला उपहार

गलालियों के संदर्भ में, प्रेरित इस बात को स्वीकारने में कठिनाई का अनुभव करते हैं कि येसु ख्रीस्त को सच्चाई की तरह जानने और ग्रहण करने के बाद भी, वे अपने को झूठी बातों की ओर मोहित होने देते और स्वतंत्रता से गुलामी की ओर जाते हैं। वे येसु में मिलने वाली मुक्ति से पाप की गुलामी, संहितावाद  में पड़ जाते हैं। आज भी कानूनवाद हमारी समस्या है, कई ईसाइयों की जो कानूनवाद की शरण लेते हैं। यही कारण है कि प्रेरित ख्रीस्तियों को बपतिस्मा में मिली स्वतंत्रता में सुदृढ़ रहने का निमंत्रण देते हैं जिससे वे अपने को पाप के जुए में पुनः न पायें (गला.5.1)। पौलुस इस स्वतंत्रता को लेकर अपने में ईर्ष्यालु हैं। वे इस बात से सजग हैं कि कुछ “झुठे बंधुगण” समुदाय में प्रवेश कर गुप्तचर की भांति कार्य करते हैं जिसके बारे में वे कहते हैं, “कुछ झूठे भाइयों के कारण जो अनधिकार ही छिपे-छिपे घुस कर, मसीह से प्राप्त हमारी स्वतंत्रता को छीनना और हमें दासता में डालना चाहते थे” (गला. 2.4)। वे इस बात को सहन नहीं कर सकते हैं। एक प्रवचन जो येसु में हमारी स्वतत्रंता पर रोक लगती है, कभी सुसमाचार नहीं हो सकती है। आप येसु के नाम पर किसी से जबरदस्ती नहीं कर सकते हैं। येसु के नाम में आप किसी को गुलाम नहीं बना सकते जो हमें मुक्त करते हैं। स्वतंत्रता हमारे लिए बपतिस्मा में दिया गया एक उपहार है।

स्वतंत्रता के दो स्तंभ, येसु की कृपा और सत्य

इन सारी चीजों से बढ़कर पौलुस हमें स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष की शिक्षा देते हैं। प्रेरित हमारे लिए येसु ख्रीस्त की उस शिक्षा को प्रस्तुत करते हैं जो संत योहन के सुसमाचार में भी है, “यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो तुम सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे, तुम सत्य को पहचान जाओगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र बना देगा (यो.8.31-32)। अतः हमारा बुलावा येसु ख्रीस्त में बने रहने को हुआ है जो सत्य के सोत्र हैं जिनमें हमें मुक्ति मिलती है। ख्रीस्तीय स्वतंत्रता के इस भांति दो मुख्य स्तभों हैं, पहला येसु ख्रीस्त की कृपा और दूसरा सत्य जिसे येसु हमारे लिए प्रकट करते हैं, जो वे स्वयं हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सबसे पहले यह हमारे लिए ईश्वर की ओर से दिया गया एक उपहार है। स्वतंत्रता जिसे गलातियों के समुदाय और हम सभों ने बपतिस्मा द्वारा पाया है, येसु ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान का परिणाम है। प्रेरित सुसमाचार की घोषणा को पूर्णरूपेण येसु ख्रीस्त में केन्द्रित रखते हैं जिनके द्वारा उन्हें पुराने जीवन से मुक्ति मिली। केवल उनके द्वारा हमारे लिए नये जीवन के फल पवित्र आत्मा में प्राप्त होते हैं। वास्तव में, सर्वोतम सच्चाई अर्थात पापों से मुक्ति हमारे लिए येसु के क्रूस से मिलती है। हम क्रूस में ईश्वर को पाते हैं जहाँ येसु क्रूस में ठोके गये और जिसके द्वारा सारी मानव जाति को मुक्ति मिली। यहाँ हमारा विस्मित होना कभी खत्म नहीं होता है क्योंकि वह स्थान जहाँ हम सभी स्वतंत्रता से वंचित होते, अर्थात् हमारी मृत्यु, जो हमारे लिए स्वतंत्रता का स्रोत बनती है। लेकिन यह ईश्वरीय प्रेम का रहस्य है। येसु ने स्वयं इसके बारे में घोषण की थी जब उन्होंने कहा, “पिता मुझे इसलिए प्रेम करता है कि मैं अपना जीवन अर्पित करता हूँ, बाद में मैं उसे फिर ग्रहण करूंगा। कोई मुझसे मेरा जीवन हर नहीं कर सकता, मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपनी जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है (यो.10.17-18)। येसु ख्रीस्त मृत्यु को गले लगाते हुए अपनी पूर्ण स्वतंत्रता को प्राप्त करते हैं। वे जानते हैं कि केवल इसी रूप में वे सबों के लिए जीवन प्रदान कर सकते हैं।

एक ख्रीस्तीय स्वतंत्र है

संत पापा ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि पौलुस ने प्रेम के इस रहस्य का अनुभव प्रत्य़क्ष रूप में किया था। यही कारण है कि वे गलातियों से कहते हैं, “मैं येसु के साथ क्रूस में अर्पित किया गया हूँ” (गला.2.19)। येसु के संग उस सर्वोतम मिलन में वे इसका अनुभव करते हैं कि उन्हें जीवन का सबसे बड़ा उपहार, स्वतंत्रता मिला है। वास्तव में, प्रेरित कहते हैं कि जो येसु के हैं उन्होंने क्रूस में अपनी वासनाओं और इच्छाओं को चढ़ा दिया है (5.24)। हम प्रेरित के विश्वास की थाह ले सकते हैं उनका संबंध येसु से कितना गहरा था। हम अपने में इस बात से वाकिफ हैं कि इस बात की कमी हम सभों में है, वहीं दूसरी ओर प्रेरित हमें अपने साक्ष्य से जीवन में आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। एक ख्रीस्तीय अपने में स्वतंत्र है, उसे स्वतंत्र होना चाहिए। हम नियमों और विचित्र चीजों के गुलाम न बनें।

स्वतंत्रता में सच्चाई है  

स्वतंत्रता का दूसरा स्तम्भ सच्चाई है। हमारे लिए इस बात को याद करना जरुरी है कि विश्वास की सच्चाई अपने में अमूर्त विषय नहीं है बल्कि यह जीवित येसु ख्रीस्त की सच्चाई है जो हमारे रोज दिन के जीवन को स्पर्श करते हुए हमारे व्यक्तिगत जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है। इस संदर्भ में संत पापा ने नैसर्गिक अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि कितने ही लोग हैं जिन्होंने शिक्षा ग्रहण नहीं की है, वे पढ़ना-लिखना नहीं जानते हैं लेकिन उन्होंने ख्रीस्त के संदेश को अच्छी तरह से समझा है। यह ज्ञान उन्हें स्वतंत्र बनाता है। यह ज्ञान हमें येसु ख्रीस्त में पवित्र आत्मा की ओर से बपतिस्मा में मिला है। कितने ही लोग हैं जो महान ईशशास्त्रियों की अपेक्षा अपने जीवन को, येसु ख्रीस्त में, सुसमाचार की स्वतंत्रता के अनुरूप जीते हैं। स्वतंत्रता हमें इस हद तक स्वतंत्र करता है कि हम अपने जीवन में परिवर्तन लाते और अच्छाई को ओर अग्रसर होते हैं। सही अर्थ में स्वतंत्र होने के लिए हमें केवल अपने को मनोवैज्ञानिक रुप में जानना नहीं बल्कि सच्चाई को एक गहरे स्तर में जीना है, वहाँ हम हृदय को ईश्वर की कृपा हेतु खोलते हैं। सच्चाई हमें बेचैन करें।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम ख्रीस्तीय शब्द बेचैनी पर गौर करें। हम जानते हैं कि बहुत से ख्रीस्त हैं जो कभी बेचैन नहीं होते, कभी विचलित नहीं होते, वे सदैव एक जैसा रहते हैं क्योंकि उनके हृदय में हलचल, बेचैनी नहीं होती है। क्योंॽ क्योंकि यह बेचैनी हमारे अंदर पवित्र आत्मा के कार्य को अभिव्यक्त करता है और स्वतंत्रता पवित्र आत्मा की कृपा में हमारे लिए सक्रिया स्वतंत्रता बनती है। यही कारण मैं कहता हूँ कि स्वतंत्रता हमें विचलित करे। यह हममें निरंतर सावल उत्पन्न करे, जिससे हम सदैव अपने जीवन की गरहाई में डुबकी लगा सकें कि हम वास्तव में क्या हैं। इस भांति हम सच्चाई और स्वतंत्रता के मार्ग को जान सकेंगे जो एक थकान भरी यात्रा है जो निरंतर हमारे जीवन में बनी रहती है। स्वतंत्रता में बना रहना अपने में थकानदायक है लेकिन यह असंभव नहीं है। हम साहस के साथ इस मार्ग में आगे बढ़ें यह हमारी भलाई करेगा। यह एक यात्रा है जहाँ क्रूस से हमारे लिए प्रेम प्रवाहित होता जो हमें निर्देशित और पोषित करता है, प्रेम हमारे लिए सच्चाई को व्यक्त करता और हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह हमारे लिए खुशी का मार्ग है। स्वतंत्रता में हम मुक्ति, खुशी और आनंदित होते हैं।  

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06 October 2021, 15:31