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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना ˸ प्रभु हमें एक पिता की तरह प्यार करते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्वासियों से अपील की कि वे अपने विकास हेतु अपनी दुर्बलता को स्वीकार करें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 3 अक्तूबर 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 3 अक्टूबर को संत पापा फ्रांसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि के सुसमाचार पाठ में, हम येसु की एक असामान्य प्रतिक्रिया को देखते हैं। वे गुस्से में हैं। और सबसे आश्चर्यजनक बात है कि उनका गुस्सा फरीसियों के कारण नहीं है जो उनकी परीक्षा लेने के लिए तलाक की वैधता के बारे सवाल करते हैं बल्कि शिष्यों के कारण है, जो उन्हें भीड़ से बचाते हैं, कुछ बच्चों को फटकारते हैं जिन्हें उनके पास लाया गया था। दूसरे शब्दों में, प्रभु उनसे गुस्सा नहीं होते जो उनसे विवाद करते हैं बल्कि उनसे होते हैं जो उनके भार को कम करने की कोशिश करते हुए, उन्हें बच्चों से दूर कर देते हैं। क्यों? यह एक अच्छा सवाल है ˸ येसु क्यों ऐसा करते हैं?

संत पापा ने कहा, "आइये हम याद करें- यह दो रविवारों के पहले के सुसमाचार पाठ में था कि येसु ने एक बालक का आलिंगन किया था। छोटे बच्चों के सामने अपने को प्रस्तुत किया था। उन्होंने बतालाया था कि यकीनन छोटे लोग हैं जो दूसरों पर निर्भर करते हैं, जिन्हें आवश्यकता है और जो वापस नहीं कर सकते, उन्हीं की मदद पहले की जानी चाहिए। (मार.9,35-37) जो ईश्वर की खोज करते हैं वे छोटों और जरूरतमंदों में उन्हें पा सकते हैं ˸ न केवल चीज वस्तुओं से अभावग्रस्त लोगों में बल्कि देखभाल और सांत्वना की कमी, बीमार, अपमानित, कैदी, अप्रवासी और बंदी लोगों में भी। वे उन्हीं छोटे लोगों में हैं। यही कारण है कि येसु गुस्से में हैं। जो कुछ एक निम्न, गरीब, बच्चा, असहाय व्यक्ति के लिए किया जाता है वह उनके (प्रभु) लिए किया जाता है।"

येसु आज इसी शिक्षा को देते और पूरा करते हैं। वास्तव में, वे कहते हैं ˸ "जो व्यक्ति ईश्वर के राज्य का स्वागत एक बच्चे की तरह नहीं करता वह उसमें प्रवेश नहीं कर पायेगा।" (मार. 10:15) संत पापा ने कहा कि यही नयी बात है ˸ शिष्यों को केवल छोटों की सेवा नहीं करनी है बल्कि अपने आपको छोटा मानना है। क्या हम प्रत्येक जन ईश्वर के सामने अपने आपको छोटा मानते हैं? हम इस पर चिंतन करें, यह हमें मदद करेगा। जानना कि हम छोटे हैं, हमें मुक्ति की आवश्यकता है, यही प्रभु का स्वागत करने के लिए खुलापन है। यह उनके लिए अपने आपको खोलने का पहला कदम है। अक्सर हम इसे भूल जाते हैं। समृद्धि में, अपनी सुख सम्पन्नता में, हम आत्म-निर्भर होने के भ्रम में पड़ जाते और आत्मनिर्भर होने के कारण ईश्वर की आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं। संत पापा ने कहा कि भाइयो और बहनो यह एक धोखा है क्योंकि हम प्रत्येक जन एक जरूरतमंद प्राणी हैं, नग्नय हैं। हमें अपनी क्षुत्रता को देख सकना एवं स्वीकार कर सकना है। और वहीं हम येसु को पायेंगे।

जीवन में अपने आपको छोटा समझना, विकास का शुरूआती विन्दु है। यदि हम इसपर विचार करते हैं तब हम बढ़ते हैं, सफलता और समृद्धि के आधार पर नहीं बल्कि सबसे बढ़कर संघर्ष और दुर्बलता में। जरूरत में हम परिपक्व होते, हम अपने आपको ईश्वर के लिए, दूसरों के लिए और जीवन की सार्थकता के लिए खोलते हैं। हम अपनी आंखें दूसरों के लिए खोलते हैं। जब हम छोटे होते, तब हम जीवन के सच्चे अर्थ के लिए खुलते हैं। जब हम समस्याओं, क्रूस अथवा बीमारी के सामने छोटे महसूस करते, जब हम थकान और एकाकीपन का एहसास करते हैं तब हम निराश न हों। तब हमारे छिछलेपन का मुखौटा गिर रहा है और हमारी वास्तविक दुर्बलता फिर से उभर रही है। यही हमारा आम आधार है, हमारा खजाना क्योंकि ईश्वर के साथ, कमजोरियाँ बाधा नहीं हैं बल्कि अवसर। यह एक सुन्दर प्रार्थना हो सकती है˸ "प्रभु मेरी कमजोरियों पर नजर डालिए..." ईश्वर के सामने यह एक सुन्दर मनोभाव है।

निश्चय ही, हम दुर्बलता में ही समझते हैं कि ईश्वर हमारी कितनी चिंता करते हैं। आज का सुसमाचार बतलाता है कि येसु छोटों के साथ अत्यधिक कोमल हैं। उनका आलिंगन करते और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। (16) संत पापा ने कहा कि असफलताएँ जो हमारी कमजोरियों को उजागर करती हैं वे उनके प्रेम का एहसास करने के सुअवसर हैं। जो लोग धीरज से प्रार्थना करते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि अंधकार या अकेलापन के समय में ईश्वर की कोमलता हमारे साथ होती है वह और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है। जब हम छोटे होते तभी ईश्वर की कोमलता को अधिक महसूस कर सकते हैं। यह कोमलता हमें शांति देती है, हमें बढ़ाती है क्योंकि इसके द्वारा सामीप्य, करुणा और कोमलता में ईश्वर हमारे नजदीक आते हैं। किसी भी कारण से जब हम छोटे महसूस करते हैं तब ईश्वर हमारे नजदीक आ जाते हैं और हम उन्हें अपने करीब पाते हैं। वे हमें शांति प्रदान करते, और बढ़ाते हैं। प्रार्थना में प्रभु हमें एक पिता की तरह अपनी बाहों में ले लेते हैं। इस तरह हम महान बनते हैं न कि अपने भ्रमक आत्मनिर्भरता के द्वारा। यह किसी को भी महान नहीं बनाता बल्कि हम पिता पर अपना पूरा भरोसा रखकर ही उनकी शक्ति से महान बन सकते हैं। जैसा कि बच्चे करते हैं।

माता मरियम से प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए संत पापा ने कहा, "आज हम कुँवारी मरियम से महान कृपा की याचना करें, दीनता की कृपा, बच्चों की तरह होने की कृपा जो पिता पर भरोसा रखते हैं, भरोसा रख सकें कि वे हमारी देखभाल करने से कभी नहीं चूकते।"    

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

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03 October 2021, 16:00