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इताली काथलिक 49वां सामाजिक सप्ताह प्रतीक चिन्ह इताली काथलिक 49वां सामाजिक सप्ताह प्रतीक चिन्ह 

काथलिक इताली 49वें सामाजिक सप्ताह के प्रतिभागियों को संत पापा का संदेश

संत पापा फ्रांसिस ने 21 अक्टूबर को इताली काथलिक के 49वें सामाजिक सप्ताह के प्रतिभागियों को एक संदेश भेजा।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21 अक्टूबर 2021 (रेई)- संत पापा ने इताली काथलिक के 49वां सामाजिक सप्ताह के प्रतिभागियों को संदेश भेजते हुए कहा कि हमें मुलाकात करने और एक-दूसरे को देखने की जरूरत है, मुस्कुराना, योजना बनाना, प्रार्थना करना एवं एक साथ स्वप्न देखना है। यह कोविड की पृष्टभूमि पर तथा सामाजिक एवं स्वास्थ्य तबाही से उत्पन्न संकट में अधिक आवश्यक हो गया है। इससे बाहर निकलने के लिए इताली काथलिकों को अतिरिक्त साहस की जरूरत है। हम अपने आपको दूर रखकर और खिड़की से झांककर नहीं देख सकते। उदासीन नहीं रह सकते अथवा दूसरों एवं समाज के प्रति जिम्मेदारी लिए बिना नहीं रह सकते। अतः हम खमीर बनने के लिए बुलाये गये हैं जो आंटे को फूलाता है।    

महामारी ने हमारे भ्रम को उजागर किया है

संत पापा ने कहा कि महामारी ने हमारे समय के उस भ्रम को उजागर किया है जिसमें हम अपने आपको सर्वशक्तिमान मान रहे थे। उन्होंने कहा है कि हम जिस क्षेत्र में और जिस पारिस्थितिक परिवेश में रहते हैं उसे कुचले रहे हैं। इससे उठने के लिए हमें ईश्वर की ओर फिरना है और उनके वरदानों का सही प्रयोग करने सीखना है सर्वप्रथम सृष्टि के साथ। संत पापा ने गौर किया कि पारिस्थितिक बदलाव, खासकर, सामुदायिक बदलाव हो रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सप्ताह जो एक सिनॉडल अनुभव का प्रतिनिधित्व करता है व्यवसायों और प्रतिभाओं से भरा एक साझाकरण है जिसे पवित्र आत्मा ने इटली में जगाया है।  

संत पापा ने संदेश में कहा कि इसके लिए गरीबों, निम्न, निराश लोगों, प्रदूषण, शोषण, जले स्थलों, भ्रष्टाचार एवं पतन में जीनेवाले लोगों की पीड़ा को सुनना जरूरी है।  

इताली काथलिक 49वां सामाजिक सप्ताह की विषयवस्तु है, "हमें आशा की आवश्यकता है"। पर्यावरण, कार्य और भविष्य सब कुछ जुड़ा हुआ है। जीने की चाह, न्याय की प्यास, पूर्ण होने की तड़पन उन समुदायों से निकलती हैं जो महामारी से अधिक प्रभावित हैं आइये हम उन्हें सुनें।"

संत पापा ने आशा के रास्ते पर साहस के साथ आगे बढ़ने हेतु तीन चिन्ह बतलाये।

पार होने पर ध्यान देना  

कई लोग हमारे जीवन से होकर गुजरते हैं जो निराश होते हैं। युवा जिन्हें अपना देश छोड़ना और पलायन करना पड़ता है, जो बेरोजगार हैं, शोषित हैं। महिलाएँ जिन्होंने महामारी के समय अपनी नौकरी खो दी है अथवा जिन्हें माँ बनने या नौकरी करने के बीच चुनाव करना पड़ता है। बिना अवसर के मजदूर गरीब, अकेले और बहिष्कृत आप्रवासी के रूप में अपने घर से बाहर निकलते हैं। बूढ़े अकेले छोड़ दिये जाते हैं, परिवार सूदखोरी, जुआ और भ्रष्टाचार के शिकार होते तथा माफिया के हाथों पड़ जाते हैं। समुदाय आग से जल जाते हैं, कई लोग बीमार हैं, मजदूर असुरक्षित स्थिति में अवैध नौकरी करने के लिए मजबूर हैं। संत पापा ने कहा कि ये वे चेहरे हैं जो हमें चुनौती देते हैं कि हम उदासीन बनकर नहीं रह सकते। ये हमारे भाई-बहन हैं जो दुःख सह रहे हैं और पुनरूत्थान का इंतजार कर रहे हैं।

दूसरा चिन्ह है- पार्किंग निषेध

जब हम धर्मप्रांत, पल्ली, समुदाय, संगठन, आंदोलन और कलीसियाई दल को थका एवं निराश देखते हैं, इससे कभी-कभी जटिल स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सुसमाचार धूमिल होता दिखाई देता है जबकि दूसरी ओर यह हमें धकेलता एवं रूकने नहीं देता है। एक विश्वासी और येसु के शिष्यों के रूप में यह हमें दुनिया के रास्तों पर उनके उदाहरणों पर चलने के लिए प्रेरित करता है जो रास्ते पर हैं और जिन्होंने हमारे रास्ते को तय किया है। अतः संत पापा ने कहा कि हम बंद होकर अकेले नहीं रूकें बल्कि बाहर निकलें। आशा हमेशा रास्ते पर मिलती है और ख्रीस्तीय समुदाय से पार होती है जो पुनरुत्थान की बेटियोँ के रूप में ईश्वर के राज्य के निर्माण के लिए बाहर आती हैं, घोषणा करती, साझा करती, सहन करती और संघर्ष करती हैं। संत पापा ने प्रेरितिक पत्र "लौदातो सी" का हवाला देते हुए कहा कि मेल-मिलाप को अधूरा करना, प्रकृति के देखभाल के अनुदान देना या प्रगति के साथ पर्यावरण का संरक्षण काफी नहीं है। इस मामले में थोड़ा विलम्ब विनाश का कारण बन सकता है। तकनीकी और आर्थिक विकास जो एक बेहतर विश्व के रूप में नहीं छोड़ती उसे प्रगति नहीं कहा जा सकता।

तीसरा चिन्ह है – मुड़ने का दायित्व

गरीबों एवं पृथ्वी की पुकार हमारा आह्वान कर रही है। उम्मीद हमें यह पहचानने के लिए निमंत्रण दे रही है कि हम हमेशा अपने रास्ते को बदल सकते हैं, कि हम समस्या का हल करने के लिए हमेशा कुछ उपाय कर सकते हैं। हम केवल आशा रखने तक सीमित नहीं रह सकते। हमें आशा को व्यवस्थित करना होगा। संत पापा ने कहा कि हमें एक गहरे मन-परिवर्तन की आवश्यकता है जो पर्यावरण पारिस्थितिकी से पहले, मानवीय, दिल की पारिस्थितिकी को छूता है। यह बदलाव तभी आयेगा जब हम अपने अंतःकरण को उन लोगों की सुरक्षा के लिए सहज समाधान नहीं खोजने हेतु विकसित कर पायेंगे जिन्हें पहले ही गारांटी मिल चुकी है किन्तु युवा पीढ़ी के लिए स्थायी परिवर्तन प्रक्रिया का प्रस्ताव रखेंगे। एक सामाजिक पारिस्थितिकी के उद्देश्य से यह परिवर्तन, इस बार "पारिस्थितिक संक्रमण" के रूप में परिभाषित किया गया है, जहां विकल्प न केवल नई तकनीकी खोजों का परिणाम हो सकता है, बल्कि नए सामाजिक मॉडल का भी परिणाम हो सकता है।  

 

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21 October 2021, 15:51