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इराक में  संत पापा फांसिस इराक में संत पापा फांसिस 

संत पापाः इराकी कलीसिया सजीव है

संत पापा फ्रांसिस ने इराक की अपनी चार दिवासीय प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन एरबिल के फ्रान्सो हारीरी स्टेडियम में मिस्सा बलिदान अर्पित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

इरबिल, रविवार 07 मार्च 2021 (रेई) संत पापा ने कहा, “संत पौलुस येसु ख्रीस्त को ईश्वर की शक्ति और प्रज्ञा कहते हैं” (1 कुरू.1.22-25)। येसु ख्रीस्त पापों की क्षमा और करूणा प्रकट करते हुए हमारे लिए ईश्वरीय शक्ति और प्रज्ञा को व्यक्त करते हैं। वे अपनी शक्ति प्रदर्शित करते हुए ऊपर से इन सारी चीजों को हमें अपने लम्बी और ज्ञानभरी शिक्षा के रुप में नहीं दिखलाते हैं। वे क्रूस काठ पर अपना जीवन अर्पित करते हुए ऐसा करते हैं। वे मृत्यु तक अपने पिता के प्रति प्रेम में निष्ठावान बने रहते हुए हमें अपनी प्रज्ञा और शक्ति को दिखलाते हैं।

येसु के घावों में हमारी चंगाई

दूसरों को अपनी शक्ति या ज्ञान की नुमाईश करते हुए ईश्वर के प्रतिरुप से हटकर झूठे प्रतिरूप में गिरना कितना सहज है जहाँ हम अपने में सुरक्षित होने का अनुभव करते हैं (निर्ग.20.4-5)। यद्यपि सच्चाई यह भी है कि हमें ईश्वरीय शक्ति और ज्ञान की जरुरत है जिसे येसु ने अपने क्रूस मरण द्वारा हमारे लिए प्रकट किया है। कलवारी में, उन्होंने अपने घावों को, पिता को अर्पित किया जिसके माध्यम से हम चंगे किये जाते हैं (1पेत्रु.2-24)। इराक में यहाँ कितने ही हमारे भाई-बहनें, मित्रगण और नागरिक, हिंसा और युद्ध के कारण घावों को अपने में वहन करते हैं जो दृश्य और अदृश्य हैं। हमारे लिए यह परीक्षा आती है कि हम अपने उन दर्दभरी अनुभूति का उत्तर मानवीय शक्ति और ज्ञान में प्रतिशोध स्वरुप दें। इसके बदले येसु हमें ईश्वर के मार्ग को दिखलाते हैं, जिस मार्ग का चुनाव उन्होंने किया जिसका अनुसरण करने हेतु वे हमें निमंत्रण देते हैं।

हमारे शद्धिकरण की शक्ति येसु में

सुसमाचार पाठ जिसे हमने सुना, कैसे येसु येरुसलेम के मंदिर में पैसों का लेन-देन और खरीद-बिक्री करनेवालों को निकाल-बाहर करते हैं। येसु ऐसा क्यों करते हैं जो हमें उत्तेजित करता है? वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि पिता ने उन्हें मंदिर की सफाई हेतु भेजा, केवल पत्थर के मंदिर की सफाई हेतु नहीं वरन् हमारे हृदय रुपी मंदिर की भी। अपने पिता के घर को बाजार बनता देख उनसे रहा नहीं जाता है (यो. 2.16)। वे यह भी चाहते हैं कि हमारा हृदय भी शोऱगुल, अस्तव्यस्थता और बेचैनी का स्थल न बने। हमारा हृदय साफ सुथरा और व्यवस्थित रहे। किन चीजों सेॽ झूठों से जो हमारे हृदय को दूषित करता, दिखावे से जो हमें नकली बनाता है। हम सबों में ये सारी चीजें हैं। ये सारी चीजें बीमारी की तरह हैं जो हमारे हृदय को हानि पहुंचाते हैं हमारे जीवन को बिगाड़ देते और हमें बेईमान बनाते हैं। हमें झूठी बातों से स्वच्छ रहने की जरुरत है जो दुनियावी बातों से ईश्वर पर हमारे विश्वास को बिगाड़ देती है, हमें क्षणभंगुर चीजों से बचे रहने की जरुरत है। शक्ति और धन की चाह हमारे लिए हानिकारक परीक्षाएं हैं जो हमें हृदय से और कलीसिया से बहा ले जाती है। अपने हृदयों की सफाई हेतु हमें अपने हाथों को गंदा करने की जरुरत है जहाँ हम दुःख में पड़े भाई-बहनों के प्रति उत्तरदायी होने का अनुभव करते हैं, हम उन्हें केवल न निहारे। हम कैसे अपने हृदय की सफाई करते हैंॽ अपने प्रयासों द्वारा हम यह नहीं कर सकते हैं, हमें येसु की जरुरत है। उनके पास बुराइयों पर विजयी होने की शक्ति है, हमारी बीमारियों से चंगाई पाने की शक्ति हमारे मंदिर रुप हृदय को पुनः निर्माण करने की शक्ति।

हम येसु के निवास स्थल

अपने इस अधिकार को व्यक्त करते हुए येसु कहते हैं, “इस मंदिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों में खड़ा करूँगा” (पद.19)। येसु ही केवल हमारे हृदय को बुरे कार्यों से शुद्ध कर सकते हैं। येसु जो क्रूस पर मर कर जी उठे, वही येसु ख्रीस्त हमारे लिए ऐसा करते हैं। संत पापा ने कहा कि वे हमें पापों में मरने नहीं देते हैं। हम उनकी ओर से पीठ मोड़ लेते फिर भी वे हमें कभी अपने में नहीं छोड़ते हैं। वे हमें खोजते, हमारे पीछे दौड़ते, हमें पश्चाताप करने हेतु पुकारते औऱ हमें पापों से शुद्ध करते हैं। येसु कहते हैं “मुझे किसी दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्नता नहीं होती, बल्कि इससे होती है कि दुष्ट अपना कुमार्ग छोड़ दे और जीवित रहे।” (एजे.33.11) येसु हमें बचाना चाहते हैं और हमें भ्रातृत्व, सेवा और करूणा में अपने प्रेम का निवास स्थल बनाना चाहते हैं।

मानव, करूणा और शांति का साधन

येसु हमें केवल पापों से शुद्ध नहीं करते बल्कि वे हमारे साथ अपनी शक्ति और प्रज्ञा साझा करते हैं। वे हमें संकुचित और विखंडित परिवार होने के विचार से, उस विश्वास से जो समुदाय को विभाजित करता, विरोध और अलगाव से मुक्त करते हैं जिससे हम एक कलीसिया और समाज का निर्माण कर सकें जो सभी के लिए खुली हो, सबों की चिंता करती हो और उन भाई-बहनों की जो अति जरुरत की स्थिति में हैं। वहीं वे हमें प्रतिशोध भरी परीक्षा पर विजय होने हेतु सबल बनाते हैं जो केवल अंतहीन हिंसा के भंवर को जन्म देती है। पवित्र आत्मा से पोषित वे हमें लोगों का धर्मपरिवर्तन करने हेतु नहीं भेजते बल्कि प्रेरिताई के शिष्यों स्वरुप प्रेषित करते हैं जिससे हम सुसमाचार में आधारित जीवन परिवर्तन की शक्ति का साक्ष्य प्रस्तुत कर सकें। पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त हमें अपनी करूणा और शांति का साधन बनाते हैं जिसके फलस्वरुप हम धैर्य और साहस में एक नये समाज के शिल्पकार बन सकें। इस भांति येसु ख्रीस्त और पवित्र आत्मा की शक्ति से परिपूर्ण हम प्रेरित संत पौलुस के प्रेरितिक वचनों की पूर्णतः को पाते हैं जो कुरूथियोंवासियों के पत्र में वयक्त है, “ईश्वर की मूर्खता मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की दुर्बलता मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है” (कुरू.1.25)। सरल औऱ साधारण लोगों से बना ख्रीस्तीय समुदाय ईश्वरीय राज्य के आने की एक निशानी बनती है जहाँ हम प्रेम, न्याय और शांति के निवास को पाते हैं।

“इस मंदिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों में खड़ा कर दूंगा” (यो.2.19) येसु ख्रीस्त अपने शरीर रूप मंदिर के साथ-साथ कलीसिया के बारे में कहते हैं। ईश्वर पुनरूत्थान में हमसे प्रतिज्ञा करते हैं वे हमें, हमारे समुदायों को अन्याय के बिगाड़ से, विभाजन और घृणा से पुनर्जीवित करेंगे। हम उसी प्रतिज्ञा को यूखारिस्तीय बलिदान में याद करते हैं। विश्वास की आंखों से हम क्रूसित और पुनर्जीवित येसु की उपस्थिति को अपने मध्य देखते हैं। हम उनके मुक्तिदायी शिक्षा को अपने में आलिंगन करना सीखते हैं, उनके घावों में विश्राम करते, और उनमें चंगाई पाते हुए उनके राज्य के आने हेतु अपनी सेवा देने में मजबूती का अनुभव करते हैं। उनके घावों में हमें चंगाई मिली है (1पेत्रु.2.24)। उन घावों में प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा ने कहा कि हम उनके करूणामय प्रेम का मधुर एहसास करते हैं। क्योंकि मानवता के एक भले समारी की भांति वे हमारे सभी घावों को मलहम पट्टी करना चाहते हैं, सभी दर्दभरी यादों को हम से दूर करते हुए इस भूमि को वे भविष्य में शांति और भ्रातृत्व का एक स्थल बनाना चाहते हैं।

इराक एक सजीव कलीसिया

इराक की कलीसिया, ईश्वर की कृपा से येसु ख्रीस्त की करूणा और क्षमा के इस विवेकपूर्ण कार्य को पहले से ही करती आ रही है विशेष कर उनके लिए जो अति जरुरत की स्थिति में हैं। दरिद्रता और दुःख की कठिन परिस्थिति में भी आप में से बहुतों ने उदारता में गरीबों और पीड़ितों के संग एकात्मकता स्थापित करते हुए उनकी सेवा ठोस रुप में की है। संत पापा ने कहा कि यह एक कारण है जो मुझे तीर्थयात्री के रुप में इस भूमि पर आने हेतु प्रेरित किया जिससे मैं आपका कृतज्ञ अदा करते हुए आप के विश्वास और साक्ष्य को सुदृढ़ कर सकूं। मैं पहली नजर में यह देख सकता हूँ कि इराक की कलीसिया सजीव है, ख्रीस्त अपने विश्वासी पवित्र प्रज्ञा में जीवित और क्रियाशील हैं।

इस भांति अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने सभी इराकी परिवारों और समुदायों को कुंवारी माता मरियम के हाथों में सुपूर्द किया जो अपने बेटे के दुःखभोग और मरण में उनके संग संयुक्त रहते हुए उनके पुनरूत्थान की खुशी में सहभागी हुई। वे हम सभों के लिए, येसु ख्रीस्त जो ईश्वरीय ज्ञान और शक्ति के स्रोत हैं, निवदेन करती रहें। 

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07 March 2021, 15:58