पोप फ्राँसिस : मेरे जीवन में एकाकी के तीन पल
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 24 नवम्बर 2020 (वीएन)- संत पापा फ्राँसिस ने अपने व्यक्तिगत एकाकी के पलों को एक किताब में साझा किया है जिसको ब्रिटिश लेखक एवं पत्रकार ऑस्टेन इवेरिह ने सोमवार को प्रकाशित किया। संत पापा ने कहा है, "मैंने अपने जीवन में तीन कोविडों का अनुभव किया है : मेरी बीमारी, जर्मनी और कोरडोबा।"
युवा अवस्था में बीमारी
संत पापा के लिए कोविड के समान परिस्थिति पहली बार उस समय आयी थी जब वे 21 साल के थे। वे उस समय बोयनोस आएरेस में द्वितीय वर्ष के गुरूकुल छात्र थे और फेफड़े के संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार थे। वे बतलाते हैं कि उन्होंने जीवन को जिस तरह देखा, उससे अनुभव बदल गया और उन्हें कोविड-19 के कारण वेंटीलेटर में सांस लेने के लिए संघर्ष करने का अच्छा अनुभव दिया। वे कहते हैं, "मैं याद करता हूँ कि मैंने अपनी माँ का आलिंगन किया था और कहा था : बस मुझे बता दीजिए कि क्या मैं मरने जा रहा हूँ।"
संत पापा बतलाते हैं कि अस्पताल में दो नर्सों ने उनकी बड़ी मदद की। पहली, सिस्टर कोर्नेलिया कारालियो ने उनका जीवन बचाया क्योंकि उसने डॉक्टर की जानकारी के बिना ही दवा का खुराक बढ़ा दिया। दूसरी, मिकाएला ने भी दर्दनाशक दवाई देकर दया दिखाई, जब उन्हें अत्यधिक दर्द सहन करना पड़ रहा था। उन्होंने अंत तक, स्वास्थ्य में सुधार होने तक उनके लिए संघर्ष किया।
मृत्यु को नजदीक से देखने के अनुभव द्वारा उन्होंने सस्ती सांत्वना से परहेज करने के महत्व को समझा। कई लोग शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की खाली शुभकामना देते हैं, भले ही वे शुभ मतलब से ऐसा करते हैं। किन्तु एक धर्मबहन सिस्टर दोलोरेस तोरतोलो जिसने उन्हें बचपन में पढ़ाया था उसने ऐसा नहीं किया, वह अंदर आयी, उनके हाथ को लिया, चुम्बन दिया और चुपचाप बैठ गई। अंत में उसने कहा, "आप येसु का अनुसरण कर रहे हैं।" उसके शब्द और उपस्थिति ने उन्हें सिखलाया कि बीमारों से मुलाकात करते समय कम से कम बात करनी चाहिए।
संबंध नहीं होने की एकाकी
जर्मनी में सन् 1986 में, संत पापा ने बिलकुल संबंध नहीं होने की एकाकी का अनुभव किया। वहाँ उन्होंने अधिकत्तर समय फ्रैंकफोर्ट के कब्रस्थान के सुविधाजनक स्थल से विमानों को देखने में बिताया और अपनी जन्मभूमि की याद की। जब अर्जेंटीना ने विश्व कप जाता तब उन्होंने जीत की खुशी को किसी के साथ नहीं बांट पाने का अनुभव किया।
आत्मारोपित लॉकडाउन
संत पापा ने अपने कोविड के तीसरे अनुभव के बारे बतलाया कि इसे उन्होंने 1990 और 1992 के बीच अनुभव किया था, जब वे अर्जेंटीना के कोरडोबा में थे। यह उखाड़े जाने का अनुभव था किन्तु चंगाई के रूप में था जो मौलिक बदलाव के रूप में आया खासकर, नेतृत्व के तरीके पर ध्यान केंद्रित करने के लिए।
संत पापा ने 1 साल, 10 महीने और 13 दिन वहाँ के जेस्विट आवास में व्यतीत किया। वहाँ वे ख्रीस्तयाग अर्पित करते थे, पाप स्वीकार सुनते और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते थे। उन्होंने शायद ही कभी घर छोड़ा, जिसको वे आत्मारोपित लॉकडाउन कहते हैं। यह उनके लिए फायदेमंद रहा क्योंकि वहाँ उन्होंने लिखा, खूब प्रार्थना की और विचारों को विकसित किया।
वे कहते हैं कि उस समय तीन चीजों ने प्रभावित किया। पहला, प्रार्थना करने की क्षमता, दूसरा, प्रलोभन का अनुभव और तीसरा, ईश्वर की प्रेरणा से संत पापाओं के इतिहास पर लुदविग पास्टर के 37 संस्करणों को पढ़ना।
पीड़ा और शुद्धिकरण
संत पापा कहते हैं कि कोरडोबा सचमुच एक शुद्धिकरण था। इसने उन्हें सहनशक्ति प्रदान की, क्षमा करने, समझने, कमजोर विशेषकर बीमार लोगों के प्रति सहानुभूति रखने की शक्ति प्रदान की।
अंतिम पाठ- धीरज ने उन्हें सिखाया कि परिवर्तन जैविक है और कुछ सीमाओं के भीतर होता है तथापि हमें अपनी नजर क्षितिज पर रखना चाहिए जैसा कि येसु ने किया।
वे बतलाते हैं कि उन्होंने छोटी चीजों में बड़ी बातों को देखने को महत्व देना और बड़ी बातों में छोटी चीजों पर ध्यान देना सीखा। कोरडोबा में उनका समय बढ़ना का था जो एक कड़ी छटनी के बाद हुआ।
संत पापा कहते हैं कि ये तीन व्यक्तिगत कोविडों ने उन्हें सिखलाया कि बड़े कष्ट में बेहतर के लिए परिवर्तन लाने की शक्ति होती है, यदि उसे होने दिया जाए।