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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

मरियम प्रार्थना की नारी, हमारी आदर्श

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में माता मरियम के प्रार्थनामय जीवन पर प्रकाश डाला।

वाटिकन सिटी-दिलीप संजय एक्का

वाटिकन सिटी, बुधवार, 18 नवम्बर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभी का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

मरियम प्रार्थना की नारी

प्रार्थना की अपनी धर्मशिक्षा माला में हम आज कुंवारी मरियम से भेंट करते हैं जो प्रार्थना की नारी हैं। मरियम प्रार्थना करती थी। एक सधारण लड़की, जिसकी मंगनी दाऊद के घराने से हुई थी, दुनिया उसे नहीं जानती थी, तब भी मरियम प्रार्थनामय नारी थी। हम नाजरेत की उस युवा बाला के बारे में सोचें, जो शांति में ईश्वर से निरंतर वार्ता करती है, जिसे एक प्रेरितिक कार्य की जिम्मेदारी शीघ्र सौंपी जायेगी। वह गर्भधारण के पहले से ही कृपा से पूर्ण और निष्कंलक है, लेकिन वह अपने आश्चर्यजनक और अति विशिष्ट बुलाहट से अनभिज्ञ है जहाँ उसे तूफानी समुद्र से पार होना पड़ेगा। एक बात स्पष्ट है कि मरियम हृदय से दीन-हीन है जिसे आधिकारिक इतिहासकार अपनी किताबों में कभी अंकित नहीं करते हैं, लेकिन ईश्वर उन्हें अपने पुत्र को दुनिया में भेजने के लिए तैयार करते हैं।

मरियम अपने जीवन को अपनी स्वायत्तता में नहीं जीती है, वह ईश्वर का इंतजार करती है जिससे वे उनके जीवन की डोर पकड़कर दिशा-निर्देशक स्वरुप जहाँ चाहें संचालित करें। वह अपने में विनम्र है, वह अपनी उपलब्धता में अपने को उस महान घटना हेतु तैयार करती है जिसके द्वारा ईश्वर दुनिया में सहभागी होते हैं। कलीसिया की धर्मशिक्षा पिता ईश्वर की हितकारी योजनानुसार उसके निरंतर सेवामय उपस्थिति की याद दिलाती है जिसे हम उसके सम्पूर्ण जीवन में पाते हैं (सीसीसी. 2617-2618)।

भावनाओं की अभिव्यक्ति बेहतर प्रार्थना

मरियम प्रार्थना कर रही होती है जब स्वर्गदूत गाब्रियेल नाजरेत में उसके लिए येसु के जन्म का संदेश लेकर आते हैं। उनका छोटा अपितु महान “मैं प्रस्तुत हूँ”, सारी सृष्टि को आनंद से भर देता है। मुक्ति के इतिहास में यह प्रथम “प्रस्तुत हूँ” दूसरों के लिए विश्वास भरी आज्ञाकारिता का स्रोत बनता है जहाँ वे अपने को ईश्वर की योजना हेतु खुला रखते हैं। अपने को खुले मनोभावों से ईश्वर के सामने प्रस्तुत करने से बेहतर कोई प्रार्थना नहीं हो सकती है, “प्रभु, आप जो चाहते हैं, आप जब चाहते हैं और आप जैसे भी चाहते हैं”। यह ईश्वर की योजना हेतु हमारे हृदय के खुलेपन को दिखलाती है, और येसु हमारी सदैव सुनते हैं। संत पापा ने कहा कि कितने विश्वासी हैं जो इस तरह की प्रार्थना करते हैं। हृदय के नम्र इस तरह की प्रार्थना करते हैं। वे अपने जीवन में तकलीफों के भरे होने पर भी विचिलित नहीं होते, बल्कि सच्चाई का सामना करते हुए आगे बढ़ते हैं यह जानते हुए कि नम्रता और प्रेम में जीवन की परिस्थिति को चढ़ाना, हमें ईश्वरीय कृपाप्रात्र बनाता है। “प्रभु, आप जो चाहते हैं, जब चाहते हैं और जैसे चाहते हैं” एक साधारण प्रार्थना है लेकिन इसके द्वारा हम अपने जीवन को ईश्वर के हाथों में सौंपते हैं, जो हमारे मार्गदर्शक हैं। संत पापा ने कहा कि हम सभी इस प्रार्थना को कर सकते हैं।

प्रार्थना शांति का स्रोत

प्रार्थना हमारे जीवन के अशांति भरे क्षणों में शांति लाती है। लेकिन हम अशांत हैं क्योंकि हम जीवन में चीजों को अति शीघ्र पाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन ऐसा नहीं है, ऐसी अशांति बुराई लाती है, वहीं प्रार्थना अशांति में हमारे लिए शांति का कारण बनती है, यह हमारी अशांति को उपलब्धता में बदल देती है। अपनी अशांति में प्रार्थना करना हमारे हृदय को खोलता है और हम अपने को ईश्वर की योजना से संयुक्त करते हैं।

कंवारी मरियम, स्वर्गदूत द्वारा दिये जा रहे संदेश के समय भय का परित्याग करती है, यद्यपि उसे इस बात का एहसास होता है कि यह “हाँ” कितना मुश्किल भरा है। यदि प्रार्थना में हम इस बात को समझते हैं कि हर दिन हमारे लिए ईश्वर का एक बुलावा है, तो हमारा हृदय विस्तृत बनता और हम सभी चीजों को स्वीकार करते हैं। हम यह कहना सीखते हैं, “प्रभु, तेरी इच्छा पूरी हो। मुझ से यह प्रतिज्ञा कर कि तू हर कदम में मेरे साथ उपस्थिति रहेगा”। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम उन्हें अपने जीवन के हर कदम में अपने साथ रहने हेतु निवेदन करें, वे हमें अकेला न छोड़ें, हमें परीक्षाओं में न छोडें, अपने जीवन के बुरे समय में न छोडें। “हे पिता हमारे” की अपनी प्रार्थना में येसु ने हमें इस कृपा की मांग करने की शिक्षा दी है।

मरियम कलीसिया और हमारी माता

मरियम प्रार्थना के माध्यम, मृत्यु से लेकर पुनरूत्थान तक येसु के साथ चली, और अंतत: प्रथम कलीसिया की उत्पत्ति तक रही (प्रेरित 1.14)। मरियम शिष्यों के साथ प्रार्थना करती है जिन्होंने क्रूस के अपमान को देखा था। वह पेत्रुस के साथ प्रार्थना करती है जो भय से ग्रस्ति दुःख के आंसू बहाता है। वह उन नर और नारियों के बीच रहती है जिन्हें उसके बेटे ने समुदाय निर्माण हेतु बुलाया था। वह उनके बीच पुरोहित नहीं वरन् येसु की माता है जो समुदाय के संग प्रार्थना करती है। वह उनके साथ और उनके लिए प्रार्थना करती है। उसकी प्रार्थना पुनः एक बार भविष्य को पूर्णतः की ओर ले चलती है, जब वह पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा ईश्वर और कलीसिया की माता बनती है। मरियम की प्रार्थना शांतिमय है। सुसमाचार में केवल काना के विवाह भोज में वह बेचारे लोगों के लिए अपने बेटे से निवेदन करती है। वह निवेदन करते हुए अपने बेटे को उनकी मुसीबत दूर करने हेतु छोड़ देती है। हम चेलों के संग उसकी प्रार्थनामय उपस्थिति को अंतिम व्यारी की कोठरी में पाते हैं जहाँ वे पवित्र आत्मा की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। इस तरह हम मरियम को कलीसिया की संरक्षिका और माता के रुप में पाते हैं। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा इस बात की चर्चा करती है, “अपनी दीन दासी के विश्वास में, जो ईश्वर का उपहार है, अर्थात् पवित्र आत्मा, “जिसकी प्रतीक्षा समय के पहले से ही की गई थी स्वीकृत किया गया” (सीसीसी, 2617)

मरियम प्रथम शिष्या

कुंवारी मरियम में हम नारीत्व के प्राकृतिक अंतर्ज्ञान को प्रार्थना में संयुक्त पाते हैं। इसीलिए धर्मग्रंथ का पाठ करते हुए हम उसकी अनुपस्थिति को कई बार पाते हैं, जहाँ वह कठिन परिस्थितियों में प्रकट होती है, यह ईश्वर की आवाज थी जो उसके हृदय और कदमों को निर्देशित करती, जिसके फलस्वरुप वह जरुरत की घड़ी में उपस्थित हो जाती। हम माता और शिष्य के रुप में उसकी शांतिमय उपस्थिति को पाते हैं। वह हमें यह नहीं कहती, “आओ मैं तुम्हारे तकलीफों का निदान करती हूँ, नहीं, वरन तुम्हें वह जो कहें वही करो।” वह येसु की ओर हमें इंगित करती है। शिष्य ऐसा ही करता है, वह पहली शिष्या है।

“मरिया सारी बातों को अपने हृदय में रख कर उन पर चिंतन करती है” (लूका.2.19) उसके इर्दगिर्द जो घटनाएं घटती वह अपने हृदय की गहराई में उन पर चिंतन करती है। वह सारी बातों को अपने हृदय में संजोकर रखती चाहे वह ज्ञानियों के उपहार हों या मिस्र देश की ओर पलायन और दुःखभोग का शुक्रवार। वह सारी बातों को ईश्वर के सामने वार्ता में लाती है। किसी ने मरिया के दिल की तुलना अतुलनीय भव्य मोती से की है, जो प्रार्थना में धैर्यपूर्ण ढ़ग से येसु के रहस्यों पर चिंतन करते हुए ईश्वर की योजना को चिकनी और ठोस बनाती है। ईश्वर के वचन हेतु खुले रहना, शांतिमय आज्ञाकारी हृदय में उन्हें धारण करना जो कलीसिया का निर्माण करती है, इस भांति अपनी माता की तरह बना हमारे लिए कितना सुन्दर है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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18 November 2020, 15:58