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आमदर्शन समारोह में लोगों के साथ संत पापा फ्राँसिस आमदर्शन समारोह में लोगों के साथ संत पापा फ्राँसिस 

हम अकेले नहीं, येसु हमारे साथ प्रार्थना करते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित कर प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा जारी की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 28 अक्टूबर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो।

आज हम इस आमदर्शन समारोह में, जैसा कि हमने पहले के आमदर्शन समारोहों में किया है, मैं यहीं रहूँगा। मैं सभी से मुलाकात करना पसंद करता हूँ किन्तु हमें दूरी रखना है क्योंकि यदि में मुलाकात करना शुरू करूंगा तो भेंट करनेवालों की तुरन्त भीड़ लग जायेगी और यह स्वस्थ के विरूद्ध होगा। हमें उस महिला के सामने सावधान रहना है जिसका नाम कोरोना है और बहुत हानि करती है। इसलिए मुझे क्षमा करें यदि मैं मुलाकात करने नीचे न आऊं। मैं यहीं से आप सभी का अभिवादन करता हूँ। मैं आपको अपने दिल में रखता हूँ, आप मुझे अपने हृदय में रखिये और मेरे लिए विन्ती कीजये। दूर से भी एक-दूसरे के लिए प्रार्थना की जा सकती है।     

तब संत पापा ने धर्मशिक्षा देते हुए कहा, "प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला में पुराने व्यवस्थान का दौर पूरा करने के बाद, हम येसु ख्रीस्त के पास पहुंचते हैं। जन सामान्य लोगों के बीच उनके प्रेरितिक कार्य की शुरूआत यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करने के द्वारा होती है। सुसमाचार लेखकों को हम इस घटना के महत्व पर सहमत होते हुए पाते हैं। इस संबंध में वे इस बात की चर्चा करते हैं कि कैसे जनसमूह प्रार्थना के भाव में एक साथ जमा होता था जिसका एक मुख्य उद्देश्य पश्चताप था (मरकुस. 1.5, मत्ती. 3.8)। लोग योहन के पास बपतिस्मा ग्रहण करने जाते थे, पापों से क्षमा पाप्त करने, मन-परिवर्तन की एक विशेषता है पश्चताप।"

प्रार्थना में येसु की सहभागिता

जनसमूह के बीच येसु का पहला कार्य था उनकी प्रार्थना में सहभागी होना। उन लोगों की प्रार्थना में जो बपतिस्मा ग्रहण करनेवाले थे, पश्चताप की प्रार्थना, जहाँ वे अपने को एक पापी के रुप में स्वीकारते थे। इसी कारण योहन बपतिस्ता येसु को इसके बात की मनाही करते हुए कहते हैं, "मुझे आप से बपतिस्मा लेने की जरुरत है, और आप मेरे पास आते हैं।" (मत्ती.3.14) योहन जान गये थे कि येसु कौन थे।

लेकिन येसु इस बात को, होने देने पर जोर देते हैं क्योंकि यह पिता के प्रति उनकी आज्ञाकारिता को व्यक्त करता है, वे मानव जीवन की परिस्थिति को अपने में सम्मिलित करते हैं। वे पापी ईश प्रजा के साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं। हम इस बात को मन में रखें कि येसु निर्दोष हैं, पापी नहीं, किन्तु हम पापियों के पास आना चाहे और वे हमारे साथ प्रार्थना करते हैं। जब हम प्रार्थना करते हैं तब वे हमारे साथ प्रार्थना करते हैं। वे हमारे साथ होते हैं क्योंकि वे स्वर्ग से हमारे लिए प्रार्थना करते हैं। येसु हमेशा अपने लोगों के साथ प्रार्थना करते हैं। वे हमेशा हमारे साथ प्रार्थना करते हैं हम कभी अकेले प्रार्थना नहीं करते। वे नदी के दूसरे छोर पर खड़े होकर अपने को दूसरे से अलग नहीं रखते, "मैं शुद्ध हूँ और तुमलोग पापी" वरन् अपने कदमों को शुद्धिकरण करनेवाले नदी के पानी में डूबाते हैं। वे एक पापी के समान करते हैं। यह ईश्वर की महानता है जिन्होंने अपने पुत्र को भेजा जिन्होंने शरीरधारण किया और एक पापी के समान प्रकट हुए।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि येसु दूर रहने वाले ईश्वर नहीं हैं और न ही वे वैसे हो सकते हैं। उनका शरीरधारण उन्हें पूरी तरह मानवीय सोच-विचार से परे बनाता है। इस भांति, अपने प्रेरिताई की शुरूआत करते हुए येसु अपने को पश्चतापी लोगों के साथ संयुक्त करते हैं, मानों वे एक दरार को खोलते हों, जहाँ से हमें उनके बाद पार होने का साहस करना है। यात्रा कठिन है किन्तु वे रास्ता खोल देते हैं। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें इसे समय के पूरा होने की नवीनता के रुप में व्य़ाख्या करती है। ‘उनका पुत्र तुल्य प्रार्थना, जिसे पिता अपनी संतानों से आशा करते हैं, अंततः एकलौटे पुत्र के द्वारा उनकी मानवता में, जनसामान्य लोगों के साथ और उनके लिए जीया जायेगा।’ (सीसीसी 2599)। येसु हमारे साथ प्रार्थना करते हैं। इस बात को हम मन और हृदय में रखें ˸ येसु हमारे लिए प्रार्थना करते हैं।

सारी मानव जाति के लिए प्रार्थना

उस दिन, हम यर्दन नदी के किनारे सारी मानव जाति के लिए प्रार्थना की एक चाह को पाते हैं, जो अपने में अव्यक्त है। वहाँ हम पापियों के जनसमूह को देखते हैं, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे ईश्वर को प्रिय नहीं हैं, जो मंदिर की दहलीज पर कदम रखने का साहस नहीं करते थे, वे अपने में प्रार्थना नहीं करते थे क्योंकि वे अपने को इसके लिए अयोग्य समझते थे। येसु सभी के लिए आये, उनके लिए भी और इस तरह उन्होंने खास रुप में उनका साथ दिया।

संत लूकस का सुसमाचार विशेषकर प्रार्थना की चरमसीमा पर प्रकाश डालता है जो येसु के बपतिस्मा के समय हुआ, "सारी जनता को बपतिस्मा मिल जाने के बाद ईसा ने भी बपतिस्मा ग्रहण किया। बपतिस्मा ग्रहण करने के बाद वे प्रार्थना कर ही रहे थे कि स्वर्ग खुल गया।" (3.21) प्रार्थना करने के द्वारा येसु स्वर्ग का द्वार खोलते हैं और पवित्र आत्मा उन पर उतरता है। इस भांति स्वर्ग से एक आश्चर्यजनक सच्ची वाणी सुनाई पड़ती है, "तू मेरा प्रिय पुत्र है। मैं तुझ पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ" (22) इस साधारण वाक्य में हम एक बेशुमार निधि को छिपा पाते हैं, यह हमें येसु की प्रेरिताई और उनके हृदय से रूबरु करता है जिन्हें हम सदैव पिता की ओर उन्मुख पाते हैं। अपने जीवन की आंधी में जहाँ दुनिया उन पर दोषारोपण करती है, यहाँ तक की उन्हें कठिनतम और घोर दुःख का सामना करना पड़ता है, उन्हें ऐसा अनुभव होता है मानों उनके लिए सिर रखने को कोई जगह नहीं है (मत्ती. 8.20), उन से घृणा की जाती और उन्हें सताया जाता है, येसु अपने को कभी आश्रयवहीन नहीं पाते क्योंकि वे पिता के अनंत वास में निवास करते हैं।

बपतिस्मा द्वारा हम येसु की प्रार्थना में सहभागी

यह येसु ख्रीस्त की प्रार्थना की महानता है, वे पवित्र आत्मा से परिपूरण हो जाते हैं जो पिता की वाणी में व्यक्त होती है कि वे परम प्रिय पुत्र हैं जिनपर पिता अपने को व्यक्त करते हैं।

यर्दन नदी के तट पर येसु ख्रीस्त की यह प्रार्थना पूर्णरूपेण एक व्यक्तिगत प्रार्थना है जो उनके पूरे मानवीय जीनव में बना रहता है जो पेन्तेकोस्त के दिन सभी बपतिस्मा प्राप्त विश्वासियों में कृपा का स्रोत बनाता है। येसु ख्रीस्त हम सबों को यह उपहार प्रदान करते और हमें अपने साथ प्रार्थना करने का निमंत्रण देते हैं, जैसे कि वे स्वयं प्रार्थना करते हैं।

संत पापा ने कहा कि अतः यदि हम अपनी संध्या प्रार्थना के समय सुस्त और अपने में खालीपन का अनुभव करते, यदि हमें ऐसा लगता है कि जीवन पूरी तरह व्यर्थ है, तो ऐसे क्षणों में हम येसु से निवेदन करें कि उनकी प्रार्थना हमारे जीवन की प्रार्थना बने।" उस समय येसु पिता के सामने हमारे लिए प्रार्थना करते हैं, हमारे लिए निवेदन करते हैं, हमारे लिए अपने घावों को पिता को दिखलाते हैं। हमें उनपर भरोसा है। यदि हमें उनपर भरोसा है तो हम स्वर्ग से एक आवाज सुनेंगे, जो हमारे हृदय की गहराई से निकलने वाली आवाज से अधिक तीव्र होगी, जो हमारे अंदर अपनी कोमलता में फुसफुसायेगी, "तुम ईश्वर के लिए प्रिय हो,  तुम एक पुत्र हो, तुम स्वर्गीय पिता की खुशी हो।" पिता की यह वाणी हम सबों से लिए ध्वनित होती है, चाहे दुनिया हमें पापी के रुप में सभी तरह से दुत्कार क्यों ने दे। येसु ख्रीस्त यर्दन नदी के पानी में अपने लिए नहीं उतरे, वरन वे हम सबों के लिए उतरे। वह ईश प्रजा थी जो यर्दन नदी में प्रार्थना करने उनके नजदीक आयी, उनसे क्षमा मांगने, पश्चाताप का बपतिस्मा ग्रहण करने आयी। जैसा की ईशशास्त्री कहते हैं वे नंगी आत्मा और नंगे पांव यर्दन के नजदीक गये। (संत योहन बपतिस्ता का पर्व) यही विनम्रता है। प्रार्थना करने के लिए विनम्रता जरूरी है।  

उन्होंने हमारे लिए स्वर्ग के द्वार को खोला जैसा कि मूसा ने लाल सागर के जल को खोला जिससे हम उनके पीछे चल सकें। येसु ने हमें स्वयं अपनी प्रार्थना को दिया है जो पिता से उनकी प्रेमपूर्ण वार्ता है। इसे उन्होंने हमें एक तृत्वमय बीज की भांति प्रदान किया है जिसे वे हमारे हृदय में मजबूत होने की चाह रखते हैं। हम इसे अपने हृदय में ग्रहण करें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने एक साथ मिलकर, हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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28 October 2020, 15:40