संत पापा का सपना, सभी के लिए एकात्मता एवं सम्मान का यूरोप
उषा मनोरमा तिरकी -वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने यूरोप पर वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पियेत्रो परोलिन को एक पत्र भेजा है। पत्र में परमधर्मपीठ एवं यूरोप की कलीसिया द्वारा इस साल मनाये जानेवाले विभिन्न अवसरों का जिक्र करते हुए संत पापा ने यूरोप के सभी विश्वासियों से अपील की है कि वे अपने समर्पण, साहस और दृढ़ निश्चय से वे जहाँ रहते एवं कार्य करते हैं उसके हर विभाग को सहयोग दें। यूरोप इस साल तीन वर्षगाँठों को मनानेवाला है।
पहला, यूरोपीय समुदाय एवं परमधर्मपीठ के बीच कूटनैतिक संबंध स्थापित किये जाने की 50वीं वर्षगाँठ। दूसरा, 40 वर्षों पहले यूरोपीय समुदाय के काथलिक धर्माध्यक्षों के आयोग (सीओएमईसीई) का गठन। तीसरा, दो विश्व युद्धों के बाद शुमन घोषणा की 70वीं वर्षगाँठ।
50 वर्षों पहले, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, परमधर्मपीठ एवं यूरोपीय समुदाय के बीच सहयोग ने आपस में कूटनैतिक संबंध स्थापित किये जाने तथा यूरोप की समिति में एक पर्यवेक्षक के रूप में परमधर्मपीठ की उपस्थिति के बाद ठोस रूप लिया। सन् 1980 में यूरोपीय समुदायों के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के आयोग की स्थापना की गई, जिसमें यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के धर्माध्यक्ष शामिल हैं। आयोग का उद्देश्य है, संघ के विकास हेतु प्रेरिताई से संबंधित सवालों के साथ धर्माध्यक्षों को करीबी से सहयोग देना। इस साल शुमन घोषणा की 70वीं वर्षगाँठ है जिसने महाद्वीप के एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया को प्रेरित किया और दो विश्व युद्धों से उत्पन्न दुश्मनी को दूर करना संभव बनाया।
इस बात पर गौर करते हुए कि कार्डिनल परोलिन निकट भविष्य में यूरोपीय संघ, यूरोप के धर्माध्यक्षों के आयोग और यूरोप समिति के अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण मुलाकात करनेवाले हैं, संत पाप ने यूरोप के भविष्य पर एक चिंतन प्रस्तुत किया।
यूरोपीय परियोजना
उन्होंने यूरोप के संस्थापक की भावना को याद करते हुए लिखा, "यूरोपीय परियोजना, विभाजन को समाप्त करने के दृढ़ निश्चय के साथ उत्पन्न हुआ। इसका जन्म एकता एवं सहयोग को साकार करने के लिए हुआ था, उस शक्ति को प्राप्त करने के लिए कि एकता संघर्ष से महान है और एकात्मता जीवन में इतिहास रचने का एक रास्ता हो सकता है जहाँ संघर्ष, तनाव और विरोध, विविधता के साथ जीवन देनेवाली एकता प्राप्त कर सकते हैं।" हमारे समय में जहाँ अलग-अलग रास्तों पर बढ़ने की प्रवृति दिखाई पड़ती है महामारी ने हमें एक साथ आने के लिए मजबूर किया है।
यूरोप, अपने आपको खोजो
तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहे विश्व में यूरोप अपनी पहचान खो सकता है विशेषकर, जब साझा मूल्यों की कमी हो, संत पापा ने महादेश से आग्रह किया कि वह संत पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों को प्रतिध्वनित करे, "स्वयं को खोजें, वास्तविक बने रहें।"
संत पापा ने यूरोप से कहा कि वह अपने अतीत को अलबम की यादगारी के समान पीछे मूड़कर न देखे बल्कि अपनी सबसे गहराई में निहित आदर्शों की खोज करें।
"वास्तविक बने रहें, अपने पुराने इतिहास से न डरें, जो अतीत से ज्यादा भविष्य के लिए खुली एक खिड़की है। सच्चाई के लिए अपने प्यार से न घबरायें जो प्राचीन ग्रीस के समय से विश्वभर में फैला है तथा हरेक मानव प्राणी के सबसे अंदर के सवाल को प्रकाश में लाया है। न्याय की प्यास से न डरें जो रोमी कानून से विकसित हुआ है और अब सारी मानव जाति एवं उसके अधिकार के लिए सम्मान बन गया है। अनन्त की अपनी प्यास से न डरें, जो यहूदी-ईसाई परंपरा से समृद्ध हुई है और जो आपके विश्वास, कला और संस्कृति में परिलक्षित होती है।
भावी यूरोप
भविष्य के लिए हम किस तरह के यूरोप एवं उसकी विशेषताओं की कल्पना करते हैं उसपर चिंतन करते हुए संत पापा ने चार छवियों को प्रस्तुत किया।
पहला, यूरोप जो हरेक का मित्र हो। संत पापा ने कहा कि वे एक ऐसे यूरोप की कल्पना करते हैं जो प्रत्येक की प्रतिष्ठा का सम्मान करे, जिसमें हरेक व्यक्ति के आंतरिक मूल्य की सराहना की जा सके - आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं अथवा उपभोक्ता के रूप में केवल नहीं। जो हर युग में गर्भधारण से लेकर इसके स्वाभाविक मृत्यु तक जीवन की रक्षा करता हो। ऐसी भूमि जो काम को व्यक्तिगत विकास एवं नौकरी के अवसर के रूप में बढ़ावा दे।
संत पापा का दूसरा सपना है कि यूरोप जो एक परिवार एवं एक समुदाय है, हरेक व्यक्ति और सभी लोगों की विशिष्टता को सम्मान दे, जो लोगों का वास्तविक परिवार बन जाता है अलग होने पर भी एक आम इतिहास एवं लक्ष्य से जुड़ा होता है।
संत पापा एक समावेशी और उदार यूरोप का भी सपना देखते हैं, जो दूसरों का स्वागत करता एवं अतिथि सत्कार करता है। जहाँ उदारता जैसे सबसे महान ख्रीस्तीय मूल्य हर प्रकार के स्वार्थ और उदासीनता से ऊपर उठने में मदद देता है। जहाँ एकात्मता हमें सबसे कमजोर लोगों एवं समाज के विकास की ओर प्रेरित करे।
संत पापा का चौथा सपना है कि यूरोप एक स्वस्थ धर्मनिर्पेक्ष स्थान हो, जहाँ ईश्वर और प्रशासक अलग हों किन्तु एक-दूसरे के विरोधी नहीं। संत पापा ने कहा है कि वे एक ऐसे भूमि की कल्पना करते हैं जहाँ विश्वासी अपने विश्वास को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने के लिए स्वतंत्र हों तथा अपने विचारों को समाज में व्यक्त कर सकें।
ख्रीस्तियों का एक कर्तव्य है
संत पापा ने कहा कि आज ख्रीस्तियों की एक बड़ी जिम्मेदारी है। वे यूरोप की अंतरात्मा को पुनर्जीवित करने हेतु खमीर बनने एवं समाज में नई ऊर्जाओं को जगाने में सक्षम प्रक्रियाओं को उत्पन्न करने हेतु मदद करने के लिए बुलाये गये हैं। अतः संत पापा ने सभी विश्वासियों का आह्वान किया कि वे जहाँ रहते एवं कार्य करते हैं वहाँ साहस एवं दृढ़ निश्चय के साथ हर विभाग को सहयोग दें।
अंत में, उन्होंने पूरे यूरोप को संत बेनेडिक्ट, संत सीरिल और मेथोडियुस, संत ब्रिजीट, संत कैथरिन और क्रूस की संत तेरेसा बेनेदिक्ता के संरक्षण में समर्पित किया।