उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21 मई 2020 (रेई)- संत पापा ने कहा कि सुसमाचार की घोषणा, राजनीतिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक या विभिन्न प्रकार के धर्मांतरण से भिन्न है। मिशन पवित्र आत्मा का एक मुफ्त वरदान है और इसकी तुलना प्रशिक्षण कार्यक्रमों या कलीसियाई संस्थानों से नहीं की जा सकती है। ऐसा लगता है कि खुद को और अपने प्रयासों को बढ़ावा देने के जुनून ने इसे निगल लिया है एवं अपनी पहल का विज्ञापन बन है।"
संत पापा ने परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी से सदस्यों को, ख्रीस्तीय मिशन के बारे संदेश दिया जो अपनी वार्षिक सभा के लिए रोम में जमा होने वाले थे और इसी दरमियान संत पापा से भी मलाकात करने वाले थे किन्तु कोविड-19 के कारण यह सभा स्थगित कर दी गई है।
मिशन की स्थापना
संत पापा ने याद दिलाया कि कलीसिया के मिशन की सबसे केंद्रीय विशेषता है पवित्र आत्मा, न कि हमारे विचार और योजनाएँ। आत्मा के आनन्द को स्वीकार करना एक कृपा है और यह पवित्र शक्ति है जो हमें सुसमाचार का प्रचार करने का सामर्थ्य देता है।
मुक्ति, मिशनरी प्रयासों का परिणाम नहीं है और न ही शब्द के शरीरधारण के बारे बतलाना ही। मुक्ति तभी मिल सकती है जब हमारी मुलाकात उनसे होती है जो हमें बुलाते हैं अतः यह आनन्द और कृतज्ञता का परिणाम है। सुसमाचार की घोषणा करने का अर्थ है पुर्जीवित ख्रीस्त की महिमा का साक्ष्य देना।
मिशन के विशिष्ठ तत्व
अपने प्रेरितिक प्रबोधन एवंनजेली गौदियुम का हवाला देते हुए संत पापा ने मिशन के विशिष्ठ तत्वों के बारे बतलाया है।
पहला, आकर्षक : कलीसिया विश्व में आकर्षण के द्वारा बढ़ती है, धर्मांतरण के द्वारा नहीं। यदि कोई येसु का अनुसरण करता है, उनकी ओर खुशी से आकर्षित होता है तब दूसरे उन्हें गौर करेंगे। वे उससे विस्मित भी होंगे।
दूसरा, कृतज्ञता एवं मुफ्त : चूँकि मिशनरी मनोभाव तर्क अथवा हिसाब करने से प्राप्त नहीं किया जा सकता। कर्तव्य का भाव भी नहीं है। मिशन कृतज्ञता का प्रतिबिम्ब है।
तीसरा, दीनता : खुशी और मुक्ति हमारी सम्पति नहीं हैं और न ही हमारी उपलब्धियाँ हैं। अतः ख्रीस्त का सुसमाचार केवल दीनता से प्राप्त की जा सकती है उदण्डता से नहीं।
चौथा, सच्चा मिशन सुलझाता है उलझाता नहीं। मिशन उन लोगों पर अनावश्यक भार नहीं डालता जो पहले ही थक चुके हैं और न ही प्रशिक्षण कार्यक्रमों की मांग करता है ताकि हम उन चीजों का मजा ले सकें जिनको प्रभु हमें आसानी से देते हैं।
मिशन की तीन अन्य विशेषताएँ हैं चलते हुए जीवन के करीब होना – क्योंकि मिशन का अर्थ है लोगों तक पहुँचना, वहीं जहाँ वे हैं और जिस स्थिति में हैं। छोटे और गरीब लोगों का विशेष ख्याल रखना है जो वैकल्पिक कार्य नहीं है।
क्षमताओं का विकास करना
भविष्य की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए संत पापा ने कहा है कि परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी बपतिस्मा प्राप्त लोगों के विश्वास द्वारा व्यक्त स्वतः मिशनरी उत्साह से उत्पन्न हुआ है।
यह सोसाईटी दो रास्तों पर आगे बढ़ता है – प्रार्थना और परोपकार। यह हमेशा रोम की कलीसिया के द्वारा पहचानी गई है। उनकी बुलाहट है स्थानीय कलीसिया के समर्थन में सेवा देना। संत पापा ने कहा कि सोसाईटी एक ऐसा नेटवर्क बन गया है जो सभी देशों में फैला है जो अपनी बहुसंख्या में वैचारिक समरूपता के विपरीत सुरक्षा का काम कर सकता है।
नुकसान से बचना
पोप फ्रांसिस ने तब कुछ नुकसानों को सूचीबद्ध किया जो पोंटिफिकल मिशनरी सोसाइटीज के रास्ते पर पड़े थे।
पहला- आत्मलीनता, जो आत्म पदोन्नति और खुद अपने प्रयासों का विज्ञापन है।
दूसरा, बेचैनी को नियंत्रित करना। सर्वोच्चता प्राप्त करने की चाह एवं कलीसिया की इकाई द्वारा सेवा दिये जाने वाले समुदाय पर नियंत्रण।
तीसरा, उत्कृष्टतावाद : एक अभिजात वर्ग से संबंधित होने का विचार।
लोगों के अलग हो जाने से भी बचना चाहिए। यह मिशनरियों को, ईश प्रजा को निष्क्रिय भीड़ की तरह देखने के लिए प्रेरित करता है, जिन्हें हमेशा चेतना-उत्थान के माध्यम से जागृत और गतिशील होने 'की ज़रूरत होती है, जिसमें तर्क, अपील और शिक्षाएं शामिल हैं।"
संत पापा ने अमूर्तता और क्रियाशीलता को भी परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी द्वारा सामना किये जा रहे खतरों में से एक बतलाया। यह मिशनरियों को सांसारिक दक्षता के धर्मनिरपेक्ष मॉडल का अनुकरण करने के लिए प्रेरित करता है।
यात्रा के लिए अनुशंसाएँ
संत पापा ने मिशन सोसाईटी से आग्रह किया कि वे परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी ईश प्रजा के बड़े हिस्से के रूप में अपनी भूमिका की रक्षा करे। उन्होंने कहा कि उन्हें वास्तविक जीवन की स्थितियों में खुद को डुबो देना चाहिए और कार्यों के प्रभाव को फिर से संगठित करना चाहिए। उन्होंने सोसाईटी के सदस्यों को प्रार्थना में स्थापित एवं मिशन के लिए संसाधनों को एकत्र करने की सलाह दी। नये मिशनरी रास्तों को खोजने किन्तु साथ ही सरल चीजों को जटिल नहीं बनाने का परामर्श दिया।
परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी स्थानीय कलीसिया के मिशन के लिए सेवा का माध्यम है उसे उसी तरह महसूस किया जाना चाहिए। पोप फ्रांसिस ने कहा कि सुपर-रणनीतियों या मिशन के मूल सिद्धांत की कोई आवश्यकता नहीं है। पीएमएस को कभी भी एक विशेष रूप से नौकरशाही-पेशेवर के दायरे में निष्फल हुए बिना अनगिनत वास्तविकताओं के संपर्क में होना चाहिए।
संत पापा ने उन्हें दर्पण में नहीं बल्कि बाहर देखने को कहा, संरचना को भारी बनाने की अपेक्षा हल्का करने को कहा।
दान
पोप फ्रांसिस ने पोंटिफिकल मिशन सोसाइटी को धन जुटाने के लिए समर्पित एक एनजीओ में तब्दील नहीं होने के लिए कहा। उन्होंने कहा, "यदि किसी क्षेत्र में अनुदान कम हो जाए, तब स्थिति को ठीक करने से लिए बड़े दाताओं वाले समूहों द्वारा विकसित कुछ बेहतर धन उगाहने वाली प्रणाली में जुआ के द्वारा अपने आप समस्या हल करने का प्रलोभन आ सकता है जबकि सभी बपतिस्मा प्राप्त लोगों को मिशन में भाग लेना है।"
विश्व मिशन दिवस हर साल अक्टूबर माह में पड़ता है उनके लक्ष्य को प्राप्त करने का अच्छा अवसर है। अनुदान जमा करने में सोसाईटी को समुदाय की सबसे मौलिक आवश्यकता पर ध्यान देना चाहिए कल्याण संस्कृति से भी बचना चाहिए।
गरीबों को न भूलें
सोसाईटी का नेटवर्क समृद्ध बहुसंख्या के साथ हजारों चेहरों को प्रस्तुत करता है। अतः वे सुसमाचार प्रचार करने हेतु कोई एक साथ संस्कृति का निर्माण न कर लें।
अंततः संत पापा ने याद दिलाया कि परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी, कलीसिया में स्वायत्त संस्था नहीं है। उनकी विशिष्ट विशेषताएं रोम के धर्माध्यक्ष के साथ विशेष बंधन में नवीनीकृत होती हैं। संत पापा ने संदेश के अंत में संत इग्नासियुस के शब्दों को दोहराया, "आपके कार्यों को अच्छी तरह करने के लिए सोचें मानो कि सबकुछ आप पर निर्भर करता है, यह जानते हुए कि सब कुछ ईश्वर पर निर्भर करता है।"