दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 20 मई 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, “प्रिय भाइयो और बहनों, सुप्रभात।”
हम प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हुए सृष्टि के रहस्य पर चिंतन करते हैं। हमारा जीवन जो हमारे लिए सत्य है, मानव के रुप में हम अपने हृदय को प्रार्थना हेतु खोलते हैं।
धर्मग्रंथ बाईबल के प्रथम अध्याय में हम कृतज्ञता के गीत को पाते हैं। इस गीत में कई कड़ियाँ हैं जो हमें ईश्वर द्वारा बनाई गई सुन्दर चीजों का सदैव बखान करने हेतु प्रेरित करती हैं। ईश्वर ने अपने शब्दों के द्वारा सृष्टि में सारी चीजों की रचना की। अपने शब्दों के द्वारा उन्होंने प्रकाश और अंधकार को अलग किया, दिन और रात बनाये, ऋतुओं को बनाया और पृथ्वी पर विभिन्न सुन्दर पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को सजाया। इस वनस्पति जगत में जो जीवन की सारी भागदौड़ के परे जाती है मानव की संरचना सबसे अंत में की गई। मानव की यह उत्पति ईश्वर को अपने में अनंत संतोष और खुशी से भर देती है। “ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उनको अच्छा लगा” (उत्पि.1.31)। हम ईश्वर की सुन्दर कृति को सृष्टि में देख सकते हैं।
सृष्टि की सुन्दर रचना
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सृष्टि की सुन्दर रचना और इसका रहस्य मानव के हृदय को सर्वप्रथम प्रार्थना के मनोभवाओं से भरता है।(सीसीसी.2566) इसे हम स्तोत्र आठ में पाते हैं जिसका पठन हमने शुरू में किया। “जब मैं तेरे बनाये हुए आकाश को देखता हूँ तेरे द्वारा स्थापित तारों और चन्द्रमा को, तो सोचता हूँ कि मनुष्य क्या है, जो तू उसकी सुधि लेॽ आदम का पुत्र क्या है जो तू उसकी देखभाल करेॽ” (स्त्रो.8.4-5) इस स्त्रोत के द्वारा प्रार्थना करते हुए हम सृष्टि के रहस्य पर चिंतन करते हैं-आकाश के तारेगण और यह खगोलीय भौतिकी हमें आज अपनी विशालता में- इस प्रेममय आश्चर्य से भर देती है कि इस सुन्दर शक्तिशाली सृष्टि के पीछे किसका हाथ है... और इस अथाह विशालता के सामने मनुष्य क्या हैॽ स्त्रोत 89 का पद 48 कहता है मनुष्य इसके सामने कुछ भी नहीं है, वह एक प्राणी है जो जन्मता और मर जाता है, वह एक अति क्षंणभगुर कृति है। इसके बावजूद पूरे बह्माण्ड में मानव ही केवल एक ऐसा प्राणी है जो संसार की सुन्दरता पर चिंतन कर सकता है। मानव इस दुनिया में आज है, कल मर कर खत्म हो जाता है, हम अपने जीवन की इस सुन्दरता से वाकिफ हैं।
मानव की प्रार्थना
संत पापा ने कहा कि मानव की प्रार्थना उसकी गहरी आश्चर्यजनक अनुभूतियों से जुड़ी है। यदि हम मानव की महानता की तुलना करें तो यह विश्व के आकार से भी बड़ी है। मानव की विशाल उपलब्धियां अपने में छोटी लगती हैं...लेकिन मानव अपने में छोटा नहीं है। प्रार्थना में हम करुणा के मनोभावों को संयुक्त पाते हैं। संसार में कोई भी चीज संयोग से उत्पन्न नहीं हुई है- विश्व का रहस्य देखनेवालों के परोपरकारी निगाहों में है जिसे कोई हमारी अपनी आंखों में देख सकता है। स्त्रोत 8 के पद 6 हमें कहता है कि तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही छोटा बनाया और उसे महिमा और सम्मान का मुकुट पहनाया। ईश्वर के साथ मानव का संबंध एक महानता है, जो उसे सिंहासन प्रदान करता है। हम अपनी प्रकृति में कुछ भी नहीं हैं लेकिन अपनी मानवीय बुलाहट में, ईश्वर की संतान स्वरूप हम उस महान राजा की प्रजा हैं।
जीवन की कहानी
हममें से बहुतों ने इस बात का एहसास किया है। हमारे जीवन की कहानी हमारी कृतज्ञतापूर्ण प्रार्थना में प्रकाशित होती है जहाँ हम अपने जीवन की कटुता और कठिनाइयों के बावजूद आकाश के भरे तारों, सूर्यास्त और फूलों पर चिंतन करते हुए अपने जीवन की सुन्दरता का एहसास करते हैं। संत पापा ने कहा कि शायद हमारे जीवन का यही एहसास धर्मग्रंथ बाईबल के प्रथम पन्नों में सम्माहित है।
धर्मग्रंथ में जब सृष्टि की संरचना का स्वरुप लिखा जा रहा था इस्रराएल अपने सुखद दिनों से नहीं गुजर रही थी। एक शक्तिशाली शत्रु ने पृथ्वी को उसे अपने कब्जे में कर लिया था, बहुतों को इस परिस्थिति में प्रवासन का शिकार होना पड़ा, कितनों को मेसोपोटामिया में गुलाम होना पड़ा था। उस समय उनका कोई निवास नहीं रह गया था, कोई गिरजाघर, सामाजिक जीवन और धार्मिक जीवन उनके लिए कुछ नहीं बचा था।
इन सारी चीजों के बावजूद, सृष्टि की महान कहानी के शुरूआती दिनों से ही किसी ने कृतज्ञता के कारणों की खोज की जहाँ हम ईश्वर को सारी चीजों के लिए धन्य कहते और उनकी महिमा गाते हैं। संत पापा ने कहा कि प्रार्थना हमारे लिए आशा की पहली शक्ति है। हम प्रार्थना करते हैं और हमारी आशा विकसित होती, बढ़ती जाती है। उन्होंने कहा, “प्रार्थना आशा का द्वार खोलती है। आशा उपस्थित है, जिसका द्वार हम अपनी प्रार्थना के माध्यम से खोलते हैं।” प्रार्थनामय व्यक्तियों के द्वारा सच्चाई की रक्षा होती है, वे सर्वप्रथम अपने लिए और साथ ही दूसरों के लिए इस बात को अभिव्यक्त करते हैं कि जीवन की कठिनाइयों, तकलीफों के बावजूद हम कृपाओं की प्रचुरता में अपने को आश्चर्यमय ढंग से आनंदित होता पाते हैं। हमें इसे बचाने और सुरक्षित रखने की जरुरत है।
आशा निराशा से अधिक शक्तिशाली
संत पापा ने कहा कि नर और नारी जो प्रार्थना करते हैं अपने में इस बात को जानते हैं कि आशा निराशा से शक्तिशाली होती है। वे विश्वास करते हैं कि प्रेम मृत्यु से ताकतवर है और एक दिन निश्चित रुप में उसकी विजय होगी, यद्यपि हम उसकी राहों और समय से अनभिज्ञ ही क्यों न हों। प्रार्थना में जीवन व्यतीत करनेवाले नर और नारी अपने चेहरे में प्रकाश को धारण करते हैं क्योंकि अंधेरे दिन में भी सूर्य चमकना बंद नहीं करता है। संत पापा ने कहा कि प्रार्थना हमें प्रकाशित करती है, यह हमारे हृदय को, हमारी आत्मा और हमारे चेहरे को प्रकाशित करती है। यहाँ तक की हमारे अंधकारमय समय और हमारे सबसे तीक्ष्ण दुःख को भी।
उन्होंने कहा कि हम सभी खुशी के वाहक हैं। कभी आप ने इसके बारे में चिंतन किया हैॽ या क्या आप दुःखद समाचार के वाहक हैंॽ वे चीजें जो हमारे लिए दुःख लाती हैं, हम सबों में खुशी लाने की क्षमता है। हमारा यह जीवन ईश्वर का उपहार है और यह छोटा है जिसे हम कटुता और दुःख से नहीं भर सकते हैं।
खुशमय जीवन के द्वारा ईश्वर की महिमा
हम अपने खुशमय जीवन के द्वारा ईश्वर की महिमा करते हैं। हम दुनिया को देखते, इसकी सुन्दरता को निहारते और क्रूस को भी देखते और कहते हैं, “लेकिन, आप जीवित हैं, आपने हमारे लिए यह किया है।” यह हमारे लिए जरुरी है कि हम अपने हृदय की गहराई में अशांति का अनुभव करें जो हमें ईश्वर के प्रति कृतज्ञता में उनकी महिमा गान हेतु मददगार होते हैं। हम सृष्टिकर्ता, उस महान राजा की संतान हैं जो हमें अपनी सृष्टि के रहस्यों की थाह लेने में मदद करते हैं, जिसकी सुरक्षा हम नहीं करते लेकिन वे उसे प्रेम से हमारे लिए बनाते और देते हैं। संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमें इस बात को गहराई से समझने हेतु मदद करें और हममें “कृतज्ञता” के भाव जगाये, क्योंकि “कृतज्ञता” एक सुन्दर प्रार्थना है। इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।