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संत पापा, आमदर्शन समारोह में आशीष देते हुए संत पापा, आमदर्शन समारोह में आशीष देते हुए 

करूणा हमारे जीवन की सांस बने, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान अपनी धर्मशिक्षा माला में करूणा को जीवन की सांस बनाने हेतु आह्वान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 18 मार्च 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने कोरोना वायरस के कहर के बावजूद बुधवारीय आमदर्शन समारोह को जारी रखते हुए वीडियो संचार माध्यम के जरिये विश्वासियों को अपनी धर्मशिक्षा माला दी। इस उपलक्ष्य में उन्होंने वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

आज हम पाँचवें धन्य वचन पर चिंतन करते हैं जो हमें कहता है, “धन्य हैं वे जो दयालु हैं उनपर दया की जायेगी” (मत्ती.5.7)। यही वह एक मात्र ईश धन्य वचन है जिसमें हम करूणा के कारण और खुशी के प्रतिफल दोनों को एक साथ पाते हैं। वे जो दया के कार्य करते हैं उन पर दया की जायेगी, वे “करूणा” के पात्र होंगे।

करूणा ईश्वर के हृदय का केन्द्र-बिन्दु

इस धन्य वचन में न केवल क्षमा की पारस्परिकता सम्माहित है वरन इसमें निहित आनंद की विषयवस्तु का आवर्तन पूरे सुसमाचार में होता है। संत पापा ने कहा कि करूणा ईश्वर के हृदय का केन्द्र-बिन्दु है। येसु ख्रीस्त कहते हैं, “किसी के विरूद्ध निर्णय न दो और तुम्हारे विरूद्ध भी निर्णय नहीं दिया जायेगा। क्षमा करो औऱ तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी” (लूका.6.37)। हम इसमें सदैव पारस्परिकता को देखते हैं। संत याकूब का पत्र हमें कहता है, “दया न्याय पर विजय पाती है” (2.13)।

इन सभी बातों से ऊपर हम हे पिता की प्रार्थना में कहते हैं, “हमारे अपराध क्षमा कर जैसे हम भी अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं” (मत्ती 6.12)। यदि हम वास्तव में दूसरों के पापों को क्षमा करते हैं तो स्वर्गिक पिता भी हमारे पापों को क्षमा करते हैं लेकिन यदि हम दूसरों के पापों को क्षमा नहीं करते तो पिता हमें भी हमारे पापों से मुक्त नहीं करते हैं। (मत्ती 6. 14-16)

क्षमा देना, क्षमा पाना है

संत पापा ने कहा कि यहाँ हम दो बातों को पाते हैं क्षमा देना औऱ क्षमा पाना। लेकिन बहुतों के साथ कठिनाई यही है कि वे क्षमा नहीं कर पाते हैं। हमारे जीवन में की गई बुराई इतनी बड़ी होती है कि क्षमा देना हमें एक विशाल पहाड़ पर चढ़ने की भांति लगता है, इस कार्य हेतु हमें बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है। हमें ऐसा प्रतीत होता है कि यह संभंव नहीं होगा। करूणा की यह पारस्परिकता हमें अपने मनोभावों में बदलाव लाने की मांग करती है। हम अपने में क्षमा देने के योग्य नहीं होते हैं वरन इसके लिए हमें ईश्वरीय कृपा की जरुरत होती है जिसकी मांग हमें करनी है। पांचवाँ धन्य वचन हमें करूणा की प्रतिज्ञा करता है और इसके लिए हमें दूसरों के पापों को क्षमा करने को कहता तो इसका अर्थ यही है कि हम अपने में पापी हैं और हमें ईश्वरीय करूणा की जरुरत है।

ईश्वरीय करुणा की जरुरत

संत पापा ने कहा कि हम सभी पापी और ईश्वर के श्रृणी हैं। हममें से प्रत्येक जन अपने में इस बात का अनुभव करते हैं कि हम अपने में वैसे माता-पिता, पति-पत्नी और भाई-बहन नहीं हैं जैसे कि हमें होना चाहिए। हम सभी अपने में पापी हैं और हमें ईश्वरीय करूणा की दरकार है। जब हम अपने में इस बात का अनुभव करते हैं कि हमने गलती की है तो यह यही दिखाता है कि हमारे जीवन में किसी चीज की कमी है जिसे हमें पूरा करने की जरुरत है।

हमारी कमजोरी हमारी शक्ति बनती

लेकिन हमारे जीवन कि यही दरिद्रता हमारे लिए दूसरों को क्षमा करने की शक्ति बनाती है। यदि हम अपने में पापी हैं और जिस माप से हम दूसरों को मापते, उसी माप का उपयोग हमें मापने हेतु किया जायेगा (लूका. 6.38)। अतः हमें चाहिए कि हम अपनी माप को बड़ा करें औऱ दूसरों को क्षमा दें। संत पापा ने कहा कि हमें इस बात को याद करने की जरुरत है कि हम सभी को क्षमा देना और क्षमा पाने की आवश्यकता है। हमें अपने में धैर्यवान बने रहने की जरुरत है जो क्षमाशीलता का रहस्य है, जहाँ हम अपने में क्षमा देने के द्वारा क्षमा प्राप्त करते हैं। ईश्वर अपनी ओर से पहल करते और हमें पहले क्षमा करते हैं (रोमि.5.8)। इस क्षमा को प्राप्त कर, हम दूसरों को क्षमा करने के योग्य बनते हैं। इस तरह हमारा व्यक्तिगत टूटपन औऱ न्याय की कमी हमारे लिए वह अवसर बनती जहाँ हम अपने को स्वर्गराज्य के लिए खोलते और ईश्वरीय करूणा का आलिंगन करते हैं।

करूणा का स्रोत

संत पापा ने कहा कि करूणा हमारे लिए कहाँ से आती हैॽ येसु ने हमें कहा है, “दयालु बनो जैसा कि स्वर्गीय पिता दयालु है” (लूका. 6.36)। हम जितना ईश्वर के प्रेम से अपने को प्रोषित करते हमें उतना ही दूसरों को प्रेम करने के योग्य बनते हैं। करूणा ख्रीस्त जीवन का केन्द्र-बिन्दु है इसके बिना हम ख्रीस्तीयता की कल्पना नहीं कर सकते हैं। यदि हमारी ख्रीस्तीयता हमें करूणा के मार्ग में अग्रसर नहीं करती तो हमने गलत मार्ग का चुना किया है क्योंकि करूणा ही हर आध्यात्मिक यात्रा का सच्चा उद्देश्य है। यह प्रेम के सबसे सुन्दर फलों में से एक है। संत पापा ने अपने परमाध्यक्षीय काल के शुरूआती दिनों की याद करते हुए कहा कि करूणा की चर्चा मैंने अपने सर्वप्रथम देवदूत प्रार्थना में की थी। यह विषय मुझे बहुत अधिक प्रभावित करती है औऱ माता कलीसिया के शीर्ष अधिकारी संत पापा के रुप में इसी करूणा के संदेश को प्रतिदिन देने की चाह रखता हूँ। “रोम के धर्माध्यक्ष स्वरूप मैं करूणा, दया का संदेश प्रसारित करूँ, हम एक दूसरे को क्षमा करें”।

करूणा जीवन की सांसें

ईश्वरीय करूणा हमें बचती औऱ जीवन की खुशी प्रदान करती है। हम करूणा में अपने जीवन को जीने के योग्य बनते हैं और हम अपने को करूणा से वंचित नहीं रख सकते हैं, यह हमारे जीवन की सांसें हैं। हम अपनी निर्धनता के कारण शर्त नहीं रख सकते, हमें क्षमा करने की जरुरत है जिससे हम भी क्षमा प्राप्त कर सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षामाला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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18 March 2020, 16:25