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बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  

संत पापा: अलगाववाद और लोकप्रसिद्धि युद्ध के कारण

इताली दैनिक अखबार, ला-स्ताम्पा को दिये गये एक साक्षात्कार में संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अपने को बंद किये बिना यूरोप को दूसरों की पहचान का सम्मान करने की जरुरत है। उन्होंने राजनीतिक, प्रवासी, अमाजोन सिनॉड, पर्यावरण और कलीसिया के प्रेरितिक कार्यों पर अपने विचार रखे।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 12 अगस्त 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यूरोप को बचाने की जरुरत है क्योंकि इसकी एक संस्कृति है जो “अपने में विलीन नहीं हो सकती और नहीं होनी चाहिए।” वार्ता और सुनने का दौर “हमारी पहचान से शुरू होती है”, मानव और ख्रीस्तीय मूल्य में “श्रेष्ठतावाद” और लोकप्रसिद्धि एक निरोधक की भांति है। ये यंत्र की भांति हैं जो “प्रक्रिया के पुनः प्रक्षेपण” में हमारी जरूरतों को पूरा करती है।

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के वरिष्ट पत्रकार दोमनिको अगास्सो को दिये गये अपने साक्षात्कार में कई बातों का जिक्र किया। 

यूरोप और इसके संस्थापक

संत पापा इस बात के प्रति विश्वस्त हैं कि यूरोप अपने संस्थापकों की आशाओं को जीना जारी रखेगा। यह एक दृष्टि है जो महाद्वीप की विशेषता खास कर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता को अपने में धारण करते हुए एक वास्तविकता बन गई है।

यूरोप में "प्रशासन और आंतरिक असहमतियों की समस्याओं" के बावजूद, संत पापा यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में उर्सुला वॉन डेर लेयन की नियुक्ति से आशावादी हैं। वह उनकी नियुक्ति को लेकर खुश हैं "क्योंकि एक महिला संस्थापक पिताओं की ताकत को पुनर्जीवित करने के लिए सही व्यक्तित्व हो सकती है।" "महिला", उन्होंने कहा, "लोगों को एक साथ लाने और एकजुट करना जानती है।"

यूरोप में मानवता और ख्रीस्तीयता की जड़ें

संत पापा फ्रांसिस के अनुसार, यूरोप में खुद को स्थानांतरित करने के लिए मुख्य चुनौती वार्ता से आती है। "यूरोपीय संघ में हमें एक-दूसरे से बात करनी चाहिए, एक-दूसरे का सामना करना चाहिए, एक-दूसरे को जानना चाहिए"। संत पापा कहते हैं कि हर तर्क के पीछे "मानसिक तंत्र" जहां हम "पहले यूरोप, फिर हममें से प्रत्येक" को देखते हैं।

इसके लिए वे कहते हैं, "हमें सुनने की ज़रूरत है”, जबकि बहुत बार हम केवल “समझौता एकतरफा वार्ता”  को देखते हैं। प्रारंभिक और पुन: शुरूआती बिंदु, वे कहते हैं, व्यक्ति के मानवीय मूल्य हैं। यह इतिहास का एक तथ्य है कि यूरोप में मानव और ख्रीस्तीयता दोनों की जड़ें हैं। “और जब मैं यह कहता हूं, तो मैं काथलिक, रूढ़िवादी और प्रोटेस्टेंट को अलग नहीं करता। यूरोप के लिए ओर्थोडाक्स की भूमिका अति मूल्यवान है। हम सभी का महत्व अपने में एक समान है।”

पहचान, संवाद हेतु खुलापन

संत पापा कहते हैं कि हममें से हर कोई महत्वपूर्ण है, कोई भी दोयाम दर्जे का नहीं है। इसलिए हर संवाद में, “हमें अपनी पहचान से शुरुआत करनी चाहिए”। वे एक उदाहरण देते हैं: “यदि मैं अंतरकलीसियाई वार्ता की बात करना चाहता हूँ तो मुझे अपने ख्रीस्तीय होने से शुरू करने की जरुरत है, और दूसरा जो मेरे साथ अंतरकलीसियाई वार्ता करता है, तो उसे एक प्रोटेस्टेंट, ओर्थोडाक्स आदि के रूप में शुरू करने का जरुरत है... हमारी अपनी पहचान परक्राम्य नहीं है; यह खुद को एकीकृत करती है।”

संत पापा ने कहा कि अतिशयोक्ति की समस्या तब होती है जब हम अपने को अलग करते हुए बंद कर लेते हैं। हमारी पहचान अपनी संस्कृति, देश, इतिहास और कला की समृद्धि में है जो हर एक देश का अपना-अपना है लेकिन हमें इसे वार्ता के माध्यम एक दूसरे के साथ साझा करना है। अपनी संस्कृति के बारे में बातें करते हुए हमें दूसरी संस्कृति के लिए अपने को खुला रखना कठिन प्रतीत होता है।

उन्होंने कहा, “हम इस बात को कभी न भूलें की हम एक बड़े भू-भाग के अंश हैं।” वैश्वीकरण और एकता को हमें एक क्षेत्र के रुप में नहीं बल्कि बहुतल के रुप में देखने की जरुरत है जहाँ हम एक दूसरे के साथ अपनी एकता में अपनी पहचान स्वरुप पाते हैं।

"श्रेष्ठतावाद" और लोकप्रियतावाद

संत पापा “श्रेष्ठतावाद” की विषयवस्तु को एक अलगाव की मानसिकता स्वरुप परिभाषित करते हैं। वे इस बात पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1934 के समय की हिटलर मानसिकता को व्यक्त करते हैं जो “पहले हमलोग, हम...हम” की भावना पर बल देता है।  

“सर्वश्रेष्ठ” की भावना में हम अपने को बंद कर लेते हैं। आधिपत्य की भावना को हमें दूसरे देशों से मिलकर रोकने की जरुरत है, वहीं हमें यूरोपीय समुदाय को भी सुरक्षित रखते हुए और उसे बढ़ावा देने की जरुरत है।

संत पापा कहते हैं कि “श्रेष्ठतावाद” अपने में एक अतिशयोक्ति है जिसका अंत बुरा होता है। “यह युद्ध की ओर हमें ले चलता है।” लोकप्रियतावाद के बारे में उन्होंने कहा कि यह अपने को दूसरों के ऊपर थोपना है जो हमें “श्रेष्ठतावाद” की ओर ले चलता है। “श्रेष्ठता” में लगा प्रत्यय “वाद” अपने में बुरा है।

प्रवासीः जीवन के अधिकार की प्रधानता

प्रवासियों के संबंध में संत पापा फ्रांसिस ने चार सिद्धांतों स्वागत करने, साथ देने, प्रचार और एकीकरण पर जोर दिया। इस संदर्भ में सबसे मुख्य बात जीवन का अधिकार है जो युद्ध की स्थिति और भूख से जुड़ी हुई है जिसके कारण लोग पलायन कर रहें हैं विशेषकर मध्यपूर्वी क्षेत्र और अफ्रीकी देशों से। सरकारों और अधिकारियों को अपने में यह विचार करने की जरुरत है कि वे कितने अप्रवासियों के अपने यहाँ पनाह दे सकते हैं।  

इस संदर्भ में वे सकारात्मक उपाय पर बल देते हैं विशेषकर कृषि के क्षेत्र में मजदूरों की कमी दूर की जा सकती है। जनसांख्यिकीय गिरावट के कारण कुछ देशों में अर्ध-खाली शहर हैं। प्रवासी समुदाय इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकते हैं।

युद्ध के बारे में वे कहते हैं, “हमें इस संदर्भ में अपने को समर्पित करने की जरुरत है जिससे शांति बहाल की जा सके। अफ्रीकी महाद्वीप में भूख मुख्य रूप से चिंता की बात है, जो एक क्रूर अभिशाप है, जिसे हमें खत्म करने की जरुरत है। इस समस्या के समाधान हेतु हमें वहां निवेश करना है जिससे प्रवास के बाढ़ को रोका जा सके।

अमाजोन सिनॉड

अक्टूबर महीने में होने वाली अमाजोन सिनॉड के बारे में संत पापा ने कहा, “यह लौदातो सी की उपज है।” वे इस बात को स्पष्ट करते हैं कि “लौदातो सी” एक हरा विश्वकोश नहीं लेकिन एक सामाजिक विश्वकोश है जो हमारी विरासत, सृष्टि की "हरियाली" की वास्तविकता पर आधारित है।

उन्होंने कहा कि यह अति आवश्यक सिनॉड है, दुनिया की वर्तमान स्थिति हमारे लिए आपातकलीन-सी लगती है क्योंकि मानव ने हाल के वर्षों में पुनरुज्जीवित संसाधनों का दोहन कर दिया है। इसका प्रभाव हम हिमनद में देखते जो पिघले जा रहें हैं, समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है, समुद्र में पलास्टिकों का जाल बिछता जा रहा है, जंगल उजाड़ होते जा रहें हैं और विकट परिस्थिति उत्पन्न होती जा रही है।

सिनॉड, समाचार प्रचार हेतु पवित्र आत्मा का कार्य

संत पापा ने कहा कि सिनॉड वैज्ञानिकों, राजनीतिक नेताओं का मिलन या संसद नहीं है। “यह कलीसिया द्वारा बुलाई गई धर्मसभा है जिसका आयाम प्रेरिताई है। यह एक समुदायिक क्रिया-कलाप है जो पवित्र आत्मा से संरक्षण में होगा।” उन्होंने कहा कि सिनॉड की मुख्य विषयवस्तु है “सुसमाचार की प्रेरिताई और प्रेरिताई की विभिन्नताएं।”

पृथ्वी के भविष्य हेतु अमाजोन अति महत्वपूर्ण

अमाजोन सिनॉड की चाह के बारे में संत पापा ने कहा कि इस क्षेत्र में नौ प्रांत शामिल हैं। “यह एक महत्वपूर्ण और निर्णायक जगह है। महासागरों के साथ मिलकर, यह ग्रह के अस्तित्व हेतु निर्णायक रूप से योगदान देता है। हम जो ऑक्सीजन लेते हैं, उसमें से अधिकांश ऑक्सीजन वहाँ से आती है। इसलिए वनों की कटाई का मतलब मानवता की हत्या करना है।”

राजनीति

राजनीति के बारे में पूछे जाने पर, संत पापा ने कहा कि “आबादी और जन-जीवन को खतरा समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों के द्वारा होता है जो अपने आर्थिक और राजनीतिक लाभ हेतु अन्यों को उपभोग करते हैं”। राजनीति में चाहिए कि वह “धारणाओं और भ्रष्टाचारों को खत्म करे”। “उसे ठोस जिम्मेदारी लेने की जरुरत है, उदाहरण के लिए खुले कास्ट खानों के विषय पर, जो पानी को जहरीला बनाते हैं और कई बीमारियों का कारण बनते हैं”।

युवाओं में आशा

संत पापा की आशा आज के युवा हैं जैसे कि स्वीडेन कि गरेता तुनबर्ग, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दुनिया भर में विरोध का नेतृत्व कर रही है।  उन्होंने कहा कि वे युवाओं की तख्ती को देख कर अति प्रभावित हुए जिसमें लिखा था: “हम भविष्य हैं”। इसका मतलब है कि छोटी रोजमर्रा की चीजों पर ध्यान देना, जो “संस्कृति को प्रभावित करती है” क्योंकि वे ठोस कार्यों को पूरा करते हैं"।

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15 August 2019, 16:32