खोज

आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

ईश्वर के सामने दिखावा असंभव

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान “हे पिता हमारे प्रार्थना” पर धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय  एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का “हे पिता हमारे प्रार्थना” पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयों एवं बहनों सुप्रभात।

हम येसु ख्रीस्त के द्वारा सिखलाई गई “हे पिता हमारे” की प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए येसु की तरह अच्छी प्रार्थना करने की शिक्षा को जारी रखते हैं।

प्रार्थना, हृदय की गरहाई में

येसु हमें कहते हैं, “जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरे में जाकर कर द्वार बंद कर लो और एकांत में प्रार्थना करते हुए कहो, “हे पिता”। येसु अपने शिष्यों से चाहते हैं कि वे फरीसियों की भांति गलियों में खड़े हो कर प्रार्थना न करें जिससे लोगों उन्हें देखें और उनकी प्रशंसा करें।(मत्ती.6.5) सच्ची प्रार्थना हमारे हृदय के अंतस्थल की गहराई में रहस्यमयी ढ़ंग से होती है जिसे केवल ईश्वर देखते हैं। यह दिखावे का परित्याग करती है, ईश्वर के सामने हमारा दिखावा करना असंभव है। यह अपनी गहराई में एक शांतिपूर्ण वार्ता है जहाँ हम दो प्रेम करने वालों, मानव और ईश्वर को, एक दूसरे के संग नजरों से नजरें मिला कर देखता हुआ पाते हैं।

संत पापा ने कहा कि शिष्यों की प्रार्थना अपने में विश्वास पूर्ण और व्यक्तिगत है जहाँ हम घनिष्टता का अभाव नहीं पाते हैं। अपने हृदय के अतंरतम में एक ख्रीस्तीय अपने को दुनिया से अलग नहीं करता लेकिन वह अपने हृदय में लोगों और परिस्थितियों को वहन करता है।

प्रार्थना एक वार्ता

“हे पिता हमारे” की प्रार्थना में हम “मैं” का अभाव पाते हैं। इस प्रार्थना में येसु हमारे ओठों में शब्द “तेरा” को अंकित करते हैं जो कि हमारे ख्रीस्तीय प्रार्थना को वार्ता स्वरुप प्रस्तुत करता है। “तेरा नाम पवित्र किया जावे, तेरा राज्य आवे, तेरी इच्छा पूरी होवे”। इसके बाद द्वितीय भाग में हम प्रथम पुरूष बहुवचन “हमारे” को पाते हैं। “हमारे प्रति दिन का आहार हमें दे, हमारे अपराध क्षमा कर, हमें परीक्षा में न डाल, हमें बुराई से बचा”। हमारे जीवन के अति मूलभूत सवाल जैसे भूख मिटाने हेतु आहार जैसे सारी बातों को हम बहुवचन में पाते हैं। हमारे ख्रीस्तीय प्रार्थना के आधार पर हम केवल अपनी भूख मिटाने हेतु रोटी की मांग नहीं करते वरन हम संसार के सारे गरीबों के लिए भोजन की मांग करते हैं।

ईश्वर से वार्ता के दौरान हम केवल अपने व्यक्तिगत चिंता नहीं करते हैं। इस प्रकार हम अपने को ऐसे प्रस्तुत नहीं करते मानो केवल दुनिया में हम ही दुःखों से घिरे हुए हैं। एक समुदाय के रुप में अपने भाइयों और बहनों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने से बड़ा और कोई भी प्रार्थना नहीं है।

ईश्वर हमें नम्र बनाते

संत पापा ने कहा कि एक ख्रीस्तीय अपनी प्रार्थना में अपने जीवन की सारी बातों को ईश्वर के सामने लाता है। अपने संध्याकलीन प्रार्थना में वह ईशवर के सामने दिन भर के अपने दुःख तकलीफों को लाता है। वह अपने मित्रों यहाँ तक कि अहितकारियों के लिए भी विन्ती करता है वह उन्हें अपने लिए खतरे के रुप में नहीं देखता और न ही उन्हें अपने से दूर करता है। यदि कोई अपने जीवन में इस बात का अनुभव नहीं करता कि दुनिया में बहुत से लोग हैं जो दुःख सहते हैं, यदि वह गरीबों की आंसू से प्रभावित नहीं होता, यदि वह अपने को इन बातों से अभ्यस्त पाता तो इसका अर्थ यह है कि उसका हृदय पत्थर का हो गया है। ऐसी परिस्थिति में हमें ईश्वर से यह प्रार्थना करने की जरुरत है कि वह अपना आत्मा भेजकर हमारे हृदय को कोमल बनायें। येसु ख्रीस्त दुनिया की परेशानियों से अपने को नजरअंदाज नहीं करते हैं, जब कभी उन्हें कोई अकेला, शारीरिक या आध्यात्मिक रुप में दुःख से पीड़ित मिला तो वे उसके प्रति दया से वशीभूत हो गये मानो एक मां अपने बच्चों के दुःख को देखकर द्रवित हो रही हो। “दया के भाव” सुसमाचार में महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। इसे हम भले समारी के दृष्टांत में पाते हैं जो डाकूओं के हाथों में पड़े घायल व्यक्ति की सहायता करता है जबकि हृदय के कठोर वहाँ से गुजर जाते हैं।

हमारी प्रार्थना कैसी है

संत पापा ने कहा कि हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि जब मैं प्रार्थना करता हूँ तो क्या मैं अपने इर्दगिर्द दुःख में पड़े लोगों की याद करता हूँॽ क्या मैं अपनी प्रार्थना को एक दर्द निवारक दवाई के रुप में देखता हूँ जो मुझे शांति प्रदान करती हैॽ यदि ऐसी बात है तो प्रार्थना के प्रति मेरी समझ अच्छी नहीं है। निश्चय ही यह मेरे लिए एक ख्रीस्तीय प्रार्थना नहीं है क्योंकि येसु ख्रीस्त के द्वारा सिखलाई गई “हमारे” मुझे अकेले होने से बचाता और हमें अपने भाई-बहनों के प्रति उत्तरदायी बनाता है।

सभों के लिए प्रार्थना करना

बहुत लोग हैं जो ईश्वर की खोज नहीं करते लेकिन ईश्वर हमसे चाहते हैं कि हम उनके लिए प्रार्थना करें क्योंकि वे उनकी भी चिंता करते हैं। वे निरोगों के लिए नहीं वरन रोगियों और पापियों के लिए आये,(लूका. 5.31) अर्थात हम सबों के लिए क्योंकि हम जो अपने में यह सोचते कि हम भले चंगे हैं तो यह सत्य नहीं है। यदि हम न्याय के लिए कार्य करते तो हम अपने को दूसरो से अच्छा न समझें क्योंकि ईश्वर अच्छे और बुरे हम सभों पर अपना सूर्य उगाते हैं।(मत्ती. 5.45) हम ईश्वर से सीखें जो सभों के लिए अच्छे हैं वे हमारी तरह नहीं जो केवल कुछ ही लोगों से साथ अच्छी तरह पेश आते हैं।

हम पापी और धर्मी क्यों न हों हम भाई-बहन के समान हैं जिन्हें ईश्वर प्रेम करते हैं। हम अपने प्रेममय जीवन के द्वारा न्याय किये जायेंगे न केवल भावनात्मक प्रेम के कारण वरन करूणामय और ठोस प्रेम हेतु जिसकी चर्चा सुसमाचार करता है, “जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे भाई-बहनों के लिए किया तुमने वह मेरे लिए किया।” (मत्ती. 25.40)

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

13 February 2019, 15:42